
नीलाञ्जनम समा भाषाम रवि पुत्रम् यमागर्जम छाया मार्तण्ड संभूतम् तम नमामि शनैच्चरम:। हे शनिदेव! आपके जैसे विराट आभामंडल वाले ग्रह को बारम्बार नमन करते हैं जो महान्यायाधिपति हैं, सूर्य पुत्र हैं, लेकिन प्रकृति में विपरीत होने की वजह से आदर्श शत्रु हैं। भौतिकता की यानि मेटेरियल एस्टेट की अंधी खाई में धकेलते हैं। संघर्षों और झंझावतों से निकाल कर व्यक्ति को जीवन के यथार्थ समझाने का कार्य करते हैं शनि देव। जब भी कोई व्यक्ति शनि देव की दशा भुगत लेता है या फिर मकर या कुंभ लगन प्रधान यानि शनि प्रधान कुंडली हो। ऐसा व्यक्ति यदि कहे कि जीवन में संघर्ष आते-जाते रहते हैं तो दुख क्या है तकलीफें क्या है। सुख-दुख आने-जाने हैं। यदि ऐसा व्यक्ति ये बात कहे शनि प्रधान जातक ये बात कहे तो निश्चित तौर पर मान लेना चाहिए कि वो आधारभूत सत्य है, अनुभव और अनुभूति के बलबूते वो ये बात कह रहा है क्योंकि उसने ऐसी परिस्थितियां भुगती होंगी और उसके बाद में जिन परिस्थितियों के साथ वो संघर्ष कर रहा है, या आगे जाकर खड़ा हो गया है वो उसने खुद ने कठिन परिश्रम के साथ में हासिल की हुई चीजें हैं। इसके विपरीत जब कोई व्यक्ति कहता है कि संघर्ष आते रहते हैं तो उसने ऐसी स्थितियां भोगी नहीं हैं। शनि देव जब भी इन स्थितियों में हमको जिंदगी के यथार्थ से परिचित करवाते हैं तो आदमी निखर कर आता है। निखरने के साथ में खुद ही व्यक्तित्व का विकास होता हुआ पाता है। ये तो रही एक स्थिति। आज मैं पंच महापुरुष योगों में एक योग। पांच तारा ग्रहों से जो पंच महापुरुष योग बनते हैं उसमें से एक महत्वपूर्ण योग है शश योग। जो कि शनि यदि केन्द्र में उच्चस्थ विराजे या फिर स्वग्रही विराजें तो उसे हमें शश योग की संज्ञा देते हैं। अब कुंडली के 12 भावों में केन्द्र क्या है सबसे पहले यह समझने की आवश्यकता है। लगन स्थान इसे हमें प्रथम केन्द्र भी कहते हैं, सुख स्थान जो कि माता, भूमि और वाहन का स्थान भी है। Fourth House इसे हमें द्वितीय केन्द्र कहते हैं। गृहस्थ का भाव इसके साथ में पार्टनर का और व्यापार का भाव ये है तृतीय केन्द्र और चतुर्थ केन्द्र जो कि इन सारे केन्द्रों में उतरोत्तर बलि कहा जाता है। Tenth हाऊस जो कि कर्म का स्थान है। पिता का स्थान है। आजीविका का स्थान है और इसके साथ में प्रबन्धन का भाव भी यही है। उतरोत्तर बलि स्थितियों की यदि बात करें इन चारों केन्द्रों में तो यही केन्द्र सबसे अधिक उतरोत्तर बलि होता है। तो शनि जब तुला में विराजित हैं तो उच्चस्थ होते हैं। उच्चस्थ ग्रह हमेशा अपने अच्छे रिजल्ट पीक पर देता है। ये एक सेक्रेगेशन है इसे समझने की आवश्यकता है। कोई भी ग्रह उच्चस्थ है तो उसका रिजल्ट सबसे अच्छे होंगे। इसके बाद में यदि वो स्वग्रही है तो उसके रिजल्ट सैकिंड नंबर पर आएंगे। मित्र क्षेत्री है तो थर्ड नंबर पर इसके बाद में यदि शत्रु क्षेत्री वो स्थिति बिलकुल अलग है। नीचस्थ है तो वो स्थिति पूर्ण रूप से नीचे के तल पर कही जा सकती है। तो ये है एक तरह से आधार क्रम इनका। तो शनि जब उच्चस्थ होंगे और उसके साथ में यदि मकर और कुंभ राशि में विराजे हुए होंगे यानि कि इन केन्द्रों के अन्दर, इन चारों केन्द्रों के अन्दर सात नंबर आप तुला के हिसाब से देखते हैं तो या फिर मकर और कुंभ के माध्यम से देखते हैं। यहां पर आप सात नंबर, दस या ग्यारह नम्बर लिखा हुआ पाता है। इसके साथ में यहां सात नंबर, दस या ग्यारह नंबर लिखा हुआ पाता है। यही स्थितियां यहां भी बनती है तो इसे हम शश योग के नाम से जानते हैं। अब ये शश योग हमारे जीवन में किस तरह के रिजल्ट प्रतिपादित करता है। यदि आपकी कुंडली में शश योग बन रहा है तो आपको किन चीजों पर ध्यान देने की आवश्यकता है, कौन से केन्द्र में शश योग बन रहा है। ये भी बहुत अधिक ध्यान देना चाहिए व्यक्ति को और किस तरह के रिजल्ट मिलेंगे। ये मैं आज यहां पर आपके सामने प्रतिबिम्बित करने जा रहा हूं, चर्चा करने जा रहा हूं। यदि जैसा मैंने ये तुला लग्न की कुंडली ली है, शनि यहां पर तुला लगन में उच्चस्थ होंगे यदि लगन स्थान में विराजित हो। नेतृत्व क्षमता का गुण देते हैं, यूनिक और इंटरेनशिप पर्सनलटी देते हैं, आब्जर्वेशन और एनेलेसिस में व्यक्ति बहुत अधिक लगता है। ये तो रही एक बात पोजिटिविटि की और इसके साथ में थोड़ी सी आलस्य की प्रवृति शनि इस वजह से देते हैं, काम को टालने की प्रवृत्ति देते हैं कि दसवीं दृष्टि से ये कर्म स्थान को देखते हैं। जब भी शनि कर्म स्थान को देखेंगे, शनै:-शनै: चलने वाले हैं, दृढ़तापूर्वक चलने वाले हैं। इनके कदम वाकई में ठोस होते हैं। तो जब भी दसवीं दृष्टि से यहां देखेंगे तो थोड़ा सा आलस्य विद्यमान करने का काम करेंगे और इगोस्टिक एप्रोच ग्रह देंगे अपने गृहस्थ भाव में। और किसी व्यक्ति से नहीं। लेकिन गृहस्थ भाव में इगोस्टिक एप्रोच देंगे। व्यक्ति दुनिया से गेप बनाकर चलने का कार्य करता है, एक गेप मेंटन चलने का कार्य करता है उस लकीर के ऊपर चलने का कार्य नहीं करता जिसके ऊपर पूरी दुनिया चल चुकी है। ऐसी कोशिश करता है कि नए रास्ते बनाऊं और उन रास्तों पर चलते हुए दृढ़तापूर्वक खड़े होने की क्षमता भी ये शश योग प्रदान करता है यानि कि शनि प्रदान करते हैं यदि तुला लगन की कुंडली हो। या फिर मकर और कुंभ लगन की कुंडली हो। यहां याद रखने लायक बात है कि यदि तुला लगन की कुंडली है तो शनि उच्चस्थ होंगे लगन स्थान में। सबसे बढिय़ा रिजल्ट यही करेंगे। इसके बाद यदि मकर और कुंभ लगन की कुंडलियां हो तो आप उसे द्वितीय स्थान पर गिन सकते हैं। नेतृत्व की क्षमता देने का गुण यहां सबसे अधिक मौजूद होगा। अब बात आती है द्वितीय केन्द्र की। द्वितीय केन्द्र में यदि शनि उच्चस्थ हो जाएं या फिर स्वग्रही हो जाएं तब भी शश योग का निर्माण करते हैं। लेकिन इन चारों केन्द्रों में शश योग सबसे कम रिजल्ट देते हैं वो है सुख स्थान। क्योंकि ये हृदय स्थान भी है। एक सॉफ्ट भाव इसे कहा जा सकता है। इसके साथ में माता, भूमि और वाहन का स्थान भी है तो सुख तो व्यक्ति के पास मौजूद रहते हैं वो अपने बिजनस पर्पचेज में आगे तो बढ़ता है लेकिन इसके साथ में वो अपने उन सुखों की पूर्ण रूप से अनुभूति नहीं कर पाता। वो नेराश्रय में चला जाता है जब उसके पास में सुख इक_े होने लगते हैं और जो संघर्ष,अदम्य संघर्ष करने की जो क्षमता शनि शश योग के माध्यम से देते हैं वो चतुर्थ स्थान में यदि शनि शश योग के माध्यम से स्थापित है तो उस हिसाब के प्रभाव में नहीं आ पाते। ये एक रिजल्ट है। यहां पर शश योग को उस लेवल का अच्छा नहीं माना गया है, भले ही वो उच्चस्थ हो तब भी क्योंकि यहां के कारकेश होते हैं चन्द्रमा। और बड़ी ही सॉफ्ट पोजिशन वाला भाव है। इस वजह से इस हिसाब की युति का फलाफल देखना चाहिए यहां पर। अब यदि हम तृतीय केन्द्र की बात करते हैं। सप्तम स्थान। यहां पर व्यापारिक उन्नति उत्कृष्ट व्यापारिक श्रेणी में व्यक्ति को खड़ा करते हैं। व्यक्ति 24 घंटे मेहनत करने वाला हो सकता है। इसके साथ में एक जो ड्राबैक आता है व्यक्ति अपने काम में इतना संलग्न रहता है कि वो अपने गृहस्थ की तरफ इतना ध्यान नहीं दे पाता। इसलिए गृहस्थ से मनमुटाव की स्थितियां बनी हुई रहती हैं। वो वर्ककोलिक इतना ज्यादा होता है। अपने काम के प्रति एग्रेसिव इतना ज्यादा होता है कि उसे और दूसरे संभावनाएं जीवन में दिखाई ही नहीं देती। शश योग यहां यदि उच्चस्थ के माध्यम से या फिर स्वग्रही के माध्यम से बने। तो ऐसे रिजल्ट समझने चाहिए। लेकिन आप स्टील, कंस्ट्रक्शन, रियल स्टेट ऐसे व्यापार से जुड़ते हैं शनि यदि शश योग यहां बना रहे हैं तो बहुत ही अच्छा है आपके लिए। अब मैं बात करता हूं उतरोत्तर बलि केन्द्र की। यानि की दसम स्थान की। कर्म स्थान में शनि बैठ जाएंगे तो वो लगातार भ्रमणशील रहेगा आदमी। नेतृत्व की क्षमता, मैनेजमेंट की क्वालिटी बड़ी ही जबरदस्त होगी। इसके साथ में यदि चन्द्रमा बढिय़ा पोजिशन में कुंडली में बैठे हुए हों या और उसके साथ में राहू भी बढिय़ा पोजिशन में बैठे हुए हों तो उच्च कोटि के राजनीतिक व्यक्तित्व का धनी होता है ऐसा जातक। यदि दसम स्थान में उच्चस्थ या स्वग्रही शनि विराजे तो। आपकी कुंडली में यदि ये स्थिति बन रही है और राहू चन्द्रमा भी साथ में बढिय़ा पोजिशन में बैठे हुए हैं तो ये ध्यान में रखना चाहिए कि मैं राजनीति के शिखर तक पहुंच सकता हूं। मुझमें वो अदम्य क्षमताएं मौजूद हैं। लेकिन जब शनि दसम स्थान में बैठते हैं ये याद रखिये इच्छाशक्ति का भाव भी है। यहां पर पीक दिखा कर नीचे गिराने का काम करते हैं शनि देव। यहां शश योग तो बनाते हैं, अगर जैसी मैंने पोजिशन बताई उस हिसाब से। लेकिन पीक दिखाएंगे और उसके बाद जमीन भी दिखाने का कार्य करेंगे। लेकिन जब इच्छाशक्ति के भाव में ऐसे दृढ़ ग्रह बैठ जाएं तो आप निश्चित तौर पर मानकर चलें कि उसकी विलपॉवर उसकी इच्छाशक्ति मजबूत होती है कि वो फिर से शिखर तक के सफर को तय करता है। तो ये थी इन चारों केन्द्रों के माध्यम से शश योग की चर्चा। यदि शश योग आपकी कुंडली में भी मौजूद है तो आप इसका बेनफिट उठाएं। उसी दिशा की ओर चलें जिस दिशा की ओर प्रकृति आपको इशारा कर रही है इस योग के माध्यम से। इसके साथ में ही आपको शनि देव की उपासना पद्धति की तरफ जाना चाहिए। दशरथ कृत शनिस्रोत का पाठ, हनुमन्त उपासना करनी चाहिए। हनुमन्त उपासना के साथ-साथ हर शनिवार को शनि देव के मंदिर में जाकर उन्हें तेल भी चढ़ाना चाहिए। तो ये है उपाय जिससे शश योग और मजबूती के साथ आपके कुंडली में उभरता है। तो ऐसी ही कई और योगों के बारे में पंच महापुरुष के योग में से चार योग अभी तक मैं चर्चा के लिए बाकी छोड़ रहा हूं। उनके साथ भी जल्दी ही आपके साथ में मौजूद होऊंगा। आपका जीवन सुगम हो, सफल हो, निरन्तर आप प्रगति की ओर बढ़ते रहें। ऐसी ही कामनाओं के साथ मैं जल्द ही आपसे मिलूंगा।
Mere lgn me sani h tula lagan h bt sani ke sath lgn me surye budh chandrma bhi h kya meri kundli me sash yog h
ReplyDeleteSir please paragraph banake post kijiye. Ye ek saath me itna chhote font me padhne ko pareshani hori hai
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
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