
गुरु और राहू जब कुंडली के 12 भावों में से किसी भी भाव में एक साथ युति कर जाए तो उसे सामान्य जनमानस गुरु और राहू के चांडाल दोष के नाम से जानता है। इनके प्रभावों से और दुष्प्रभावों से घबराया हुआ रहता है और चिंतन करता रहता है कि इनसे किस तरह बचा जाए। मैं आज इसकी ही चर्चा करने के लिए यहां उपस्थित हूं। गुरु जो कि सौम्य ग्रह है, धन संचय की प्रवृति को बढ़ाते हैं, लाभ स्थान के कारकाधिपति होते हैं, शिक्षा और संतान के साथ-साथ जीवन में धैर्य पनपाने का कार्य भी करते हैं गुरु। इसके विपरीत यदि राहू की बात की जाए तो ये षडो प्लेनेट है यानि कि प्रकाश ग्रहों और तारा ग्रहों की तरह ये किरणों के माध्यम से हमारे जीवन को चलायमान नहीं रखते, प्रभावित नहीं करते वरन् नकारात्मक रूप से हमारी अंतरचेतना को प्रभावित करने का, उसे एक तरह से डिवाइडेड एप्रोच में लेकर आने का कार्य करते हैं। तो जब गुरु और राहू एक साथ बैठ गए तो हमें ये समझ लेना चाहिए कि व्यक्ति के जीवन में धर्म संकट बार-बार आकर खड़े होंगे। यदि आपके जीवन में भी धर्म संकट वाली स्थितियां आती है, निर्णय और अनिर्णय वाली स्थितियां आती है तो कुंडली जरूर संभाल लेनी चाहिए कि कहीं ये युति दुष्प्रभावों वाली युति तो नहीं बन रही है। धर्म संकट के साथ-साथ हमारी जो अंतर द्वंद्व है, खुद के भीतर ही जो दावानल चलते रहते हैं उसे भी एक स्तर के ऊपर बढ़ाने का कार्य करते हैं ये दोनों ग्रह। आप किसी बिजनस आइकून फेमिली की बात कर लीजिये और वहां के मुखिया की कुंडली उठा लीजिये यदि गुरु और राहू की युति किसी भी भाव में ऐसे व्यक्ति, ऐसे बिजनेस मेन की कुंडली में मिल जाए तो वो बिजनस को एक पीक पर पहुंचाता है उस व्यापार की जो यात्रा है उसे लेवल पर लेकर जाता है, लेकिन उसके बाद में क्या होता है। जब अपने नॉलेज को, अपने एक्सपीरियंस को दूसरी पीढ़ी के साथ में हस्तांतरित करने की बारी आती है तो पीढ़ी हाथ खड़े कर देती है और कहती है कि आप ये बिजनस जब तक आगे बढ़ा सकें बहुत सही है हमसे ये बिजनस नहीं संभलने वाला। हम कोई और कार्य की तरफ ही अग्रसर होंगे। यानि जो इतने साल मेहनत की अपने ज्ञान का संचय किया वो एक क्षण में पानी हो गया। इस तरह की स्थितियां भी जीवन में बनाने का काम करती है गुरु और राहू की ये युति। अब ये यदि ये युति लग्न स्थान में बैठ जाए तो आजीविका के साधन बार-बार बदलने पड़ते हैं, भीतरी द्वंद्व है वो बहुत अधिक बढ़ा हुआ रहता है और किसी भी कार्य को कर लेने के बाद पश्चात्ताप वाली पोजीशन में व्यक्ति बहुत ही जल्दी आता है। ये सब लग्न स्थान में बैठकर इनके गुण है। ज्ञान की तरफ तो गुरु लालायित रखते हैं, उसको तो कंट्रोल्ड एप्रोच की तरफ लेकर आते हैं लेकिन राहू उसे कभी भी एक्सप्रेस नहीं होने देते, एक्सपोज नहीं होने देते। सैकिंड हाउस की जहां बात की जाए जो कि द्रव्य स्थान है, लिक्विडिटि के फ्लो को ब्लॉक करने का कार्य करते हैं और वाणी की यदि बात की जाए तो सौ किलो दूध में एक नींबू की बूंद का कार्य करती है यहां पर गुरु और राहू की युति। किस तरह सौ जगह आपने बड़ी ही अच्छी बातें बोली, लेकिन एक जगह आप इतने कर्कश रूप में प्रस्तुत हो गए कि सारे किए कराए पर पानी फिर गया। कुटुम्बीजनों के द्वारा ही ऐसे इंसान के ऊपर आरोप लगते हैं और प्रत्यारोप लगते हैं कि आपने हमारे धन को हड़पने की कोशिश की है। आपने हमें नुकसान पहुंचाने की कोशिश की है। पराक्रम स्थान में जब ये युति बनती है याद रखियेगा ऐसे व्यक्ति को सर्विस बहुत ही जल्दी मिलती है। वहां पर वो अपना पराक्रम भी दिखाता है, लेकिन उस पर नेगलीजेंसी के आरोप लगते हैं, कई बार त्यागपत्र तक की स्थितियों के ऊपर और सस्पेंसन जैसी पोजीशन में ये युति लेकर जाती है व्यक्ति को। सुख स्थान में यदि ये युति बन जाए तो वही स्थिति रहती है कि कई घड़े हमारे पास में भरे हुए रखे हुए हैं, लेकिन हम एक गिलास पानी नहीं पी सकते। यानि सुख सामने मौजूद होते हैं। सारे के सारे साधन सामने मौजूद होते हैं, लेकिन फायदा नहीं उठा पाते ऐसे लोग और इसके साथ में यदि उसके पास में खुद की पैतृक जमीन है और पूरी जिंदगी वो कोशिश करता है कि मैं धन संचय करूंगा, लिक्विडिटि के फ्लो को रेस करूंगा और उसके बाद में खुद का आशियाना बनाऊंगा, लेकिन सफल नहीं हो पाता। पंचम स्थान। पिफ्थ हाउस की यदि बात की जाए यहां पर संतान के साथ में डिस्टरबेंस क्रियेट रखते हैं ताउम्र। यदि आप खुद संतान है और यदि आप खुद फादर या मदर यानि पेरेंटल रोल में आ गए। दोनों जगह डिस्टरबेंस रखने का कार्य करती है युति। ज्ञान तो बढ़ाती है, लेकिन ज्ञान के दीपक को इतना रोशन नहीं होने देती उसकी रोशनी चारों ओर फैल नहीं पाती। आकस्मिक धन लाभ का भी भाव यही है। ये युति आकस्मिक धन लाभ तो देती है, लेकिन साथ में ऐसे रास्ते भी बना देती है कि उसमें से एक रुपया भी धन संचय वाली पोजीशन में नहीं पहुंच पाता। अब जहां तक रही षष्ठ भाव की बात, जो कि प्रथम त्रिक भाव है। यहां पर ये युति कैसे रिजल्ट देगी। गुरु जो कि लिवर और पेट संबंधी परेशानियों से परेशान रखेगा, लेकिन साथ में यहां बैठकर राहू व्यक्ति को कोई भी बड़ा रोग नहीं लगने देते और रोग नहीं लगने के साथ-साथ शत्रु हंता योग भी बनाते हैं। तो यहां इसे काफी हद तक ठीक कहा जा सकता है। सप्तम स्थान में यदि ये बैठ जाएं तो पति और पत्नी के बीच में ही प्रतिस्पर्धा करवाने का कार्य करते हैं। यानि वो खुद को कोम्पीडिशन में इनवाल हो जाते हैं। यदि दोनों सर्विस में है तो उनके भीतर कोम्पीडिशन रहता है कि मैं आगे बढ़ूं या तुम आगे बढ़ो। ये पोजीशन गृहस्थ भाव के लिए अच्छी नहीं है। बिजनस पार्टनर के साथ में भी अड़चने पैदा होती रहती है। अष्टम स्थान में बैठे हुए राहू बचपन में घात देने का कार्य करते हैं लेकिन जब गुरु साथ में बैठ जाएं तो वो अनर्थक खर्चे भी बचाते हैं और इस तरह की घात से भी बचाने का कार्य करते हैं, लेकिन जीवन इतना उन्नतिशील और प्रगतिशील नहीं रह पाता। जहां तक भाग्य स्थान की बात की जाए तो ऐसा व्यक्ति धर्म, आध्यात्म, मोक्ष इन सारी बातों की तरफ बहुत ज्यादा इनक्लाइन रहता है, लेकिन राहू उसे एक्सप्रेस नहीं करने देते और भाग्य इतना सपोर्ट नहीं कर पाता ऐसे व्यक्ति का। ये नवम स्थान में गुरु और राहू साथ में बैठ जाएं तो। अब बात करते हैं कर्म स्थान की, कर्म स्थान में राहू किसी न किसी कला को विकसित करवाने का कार्य करते हैं। आपमें कला तो विकसित हो गई, लेकिन गुरु यहां पर ज्यादा मजबूत पोजीशन में यदि हैं तो पूरी जिंदगी सर्विस ही करवाते रह जाएंगे। सामान्य तौर पर व्यक्ति को जिंदगी बितानी पड़ेगी, उसे कला न जाने कहां लेकर जा सकती थी, लेकिन गुरु कि उसकी स्ट्रांग पोजीशन ने उसे सर्विस करने पर बाध्य कर दिया और एक सेफरजोन में जिंदगी निकालने की ओर उसे मोड़ दिया। लाभ स्थान में गुरु बैठकर कारक भाव का नाश करते हैं लेकिन राहू एक बड़ी ही विचित्र-सी पोजीशन, एक बड़ी सुखद-सी अवस्था बनाते हैं। कई बार व्यक्ति को जिंदगी में लगता है कि अब ये काम निष्पादित कैसे होगा, पूरा कैसे होगा। राहू ऐसे रास्ते, ऐसे व्यक्ति के जीवन में निकाल देते हैं कि वो काम अपने आप पूर्ण हो जाता है, व्यवस्थाएं अपने आप बनती चली जाती है। कई बार आपने ये देखा होगा कि एक बच्चे की शादी है और उस पिता के पास में कोई भी व्यवस्था नहीं हो रही है, वो सस्पेंसन भोग रहे हैं, एकदम अचानक पोजीशन बनती है और उनके पी.एफ. का पैसा रिलीज हो जाता है, संस्पेंसन के ऑर्डर तक कैंसिल हो जाते हैं और मनी का रोटेशन अपने आप उनकी जिंदगी में आ जाता है और बड़े ही सुखद ढंग से वो विवाह का कार्य पूर्ण हो जाता है। तो इस तरह के रिजल्ट इलेवन्थ हाउस को मिलते हैं और अब यदि ट्रावल्थ हाउस जो कि व्यय स्थान है और विदेश यात्राओं का भी स्थान है विदेश में सैटल होने का स्थान है। ऐसे व्यक्ति को ध्यान रखना चाहिए कि विदेश में जाकर धोखे मिलने की संभावनाएं बहुत अधिक होती है। शैय्या सुख में न्यूनता आती है, शैय्या सुख में न्यूनता आने के साथ-साथ मानसिक चेतना की जो अवस्था है और जो एक ज्ञान से अपने जीवन को आगे बढ़ाने की अवस्था है उसमें भी डिस्टरबेंसेज आते ही आते हैं। तो ये रही गुरु और राहू के माध्यम से इन 12 भावों में, जो फल निष्पादित होते हैं उसकी चर्चा। इसके साथ में ही यदि गुरु कमजोर है तो आपको पीले वस्त्र का दान देना चाहिए, गुड़ का दान देना चाहिए, पुखराज धारण करना चाहिए और यदि राहू कमजोर है तो बुध की उपासना करनी चाहिए। याद रखियेगा ये विशेष बात राहू के दुष्प्रभाव सिर्फ और सिर्फ बुध से ही कंट्रोल में आते हैं। राहू के बीज मंत्र के जाप के साथ में आपको बुध की उपासना भी करनी चाहिए। तो ये युति इतने नेगेटिव रिजल्ट आपके जीवन में नहीं देगी। जीवन सुखमय तौर पर व्यतीत हो पाएगा। तो हम इन पोजीशन को एवर्ट कर सकते हैं। कई बार जैसे कहा भी जाता है कि साब भाग्य क्या है और भाग्य को कैसे बदला जा सकता है। आप बारिश के मौसम में किसी सड़क से जा रहे हैं और आगे बहुत बड़ा गड्डा है किसी व्यक्ति ने आपको सूचना दे दी कि भाई साब यहां से जाओ तो बिलकुल दस की स्पीड से निकलियेगा या फिर अपना रास्ता बदल लो। आप यदि तेज रफ्तार से निकलते तो चोट लग सकती थी। चोट लगने के साथ में आपको नुकसान भी हो सकता था। मानसिक और आर्थिक हानि होती, सो अलग। लेकिन यदि आपको इस बारे में मालूम चल जाए आपने रास्ता बदल दिया तो काफी हद तक अपना नुकसान होने से बचा लिया। तो इन युतियों के बारे में यदि हम जानकारी ले लें, इनके अच्छे प्रभावों और दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी ले लें तो जीवन को सुगमता से व्यतीत किया जा सकता है।
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