
नमस्कार। यूथ फूल ऐज। युवा उम्र 20-25-27 साल की वो ऐज जिसमें सपने हर रोज कुलांचे भरते हैं। नई उम्मीदें जागती हैं नए सपने देखने का जोश निरन्तर अपने मन में आता रहता है। हमें ऐसा लगता है इस उम्र में कि जो आइडिया हमारे पास में है वो इतने अच्छे से क्लिक कर सकता है कि हम दुनिया पर छा सकते हैं। अपने गली-मोहल्ले, आसपास के एरिया में वो नाम स्थापित कर सकते हैं जिसकी कल्पना आसपास के लोगों ने कतई नहीं की थी। इतना जोश और इतने क्रिएटिविटी के साथ भरे हुए हैं आप। लेकिन इसके विपरीत आपके पिता में पूरी जिन्दगी सर्विस की फिक्सड इनकम के बूथे चले। रिस्क नाम का प्रप्रोशन जिन्दगी में जीरो प्रसेन्टेज था जो भौतिक रूप से रिस्क होती है वो रिस्क अलग है, लेकिन जो फाइनेंसियल रिस्क होती है जो एक रिस्कटेकिंग कैपेबिल्टी होती है वो बिलकुल जीरो। उन्हें लगता है कि संतोष भरी जिन्दगी सबसे अच्छी है और उसके साथ में ही आगे बढऩा चाहिए। लेकिन आपको तो लगता है कि इस उम्र में यदि जोखिम नहीं लिया तो फिर ये उम्र किस काम की। जब ये काम्पलिक पिता और पुत्र के बीच में खड़े होते हैं तो दुनिया इसे जनरेशन गैप और कम्युनिकेशन गैप का नाम दे देती है। ऐसे पिता पुत्र की जोड़ी जब ज्योतिषी के पास पहुंचती है तो अमूमन इस लेवल के कान्फलिक वाले लोगों में शनि और युति साथ में दिखाई देती है। गृह व्यवस्था में सूर्य और शनि पिता और पुत्र हैं लेकिन आदर्श शत्रु भी हैं क्योंकि दोनों की प्रकृति बिलकुल विपरीत है, सूर्य जहां पूर्व दिशा के स्वामी हैं शनि वहीं पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। सूर्य जहां व्यक्ति को प्रकाश, वैभव, तेज की तरफ ले जाकर तपाकर सोना बनाते हैं वहीं शनि लगातार भौतिकता के अंधेरों में घेर कर दरिद्रता, दु:ख से निकाल कर व्यक्ति को आगे बढ़ाते हैं और उसके व्यक्तित्व को नया आयाम देते हैं। यानि कि एंड रिजल्ट दोनों का सेम, लेकिन प्रकृति के अनुरूप ले जाने की जो स्थितियां हैं वो बिलकुल विपरीत, बिलकुल रेट्रोग्रेट यानि एकदम वक्र। इसे इस वजह से आदर्श शत्रु की संज्ञा दी गई है पिता और पुत्र होने के बावजूद तो जब ऐसी युति 12 भावों में बैठेगी तो निश्चित तौर पर कान्फलिक्ट एराइविज होंगे ही होंगे क्रिएट होंगे ही होंगे वैचारिक मतभेद आएंगे ही आएंगे इस गृह व्यवस्था का दिग्दगर्शन करवाते हुए भगवान श्रीरामचन्द्रजी ने माता कौशल्या को कहा था कि देखना रहा हूं मात ही निज अद्भुत रूप अखंड, रोम-रोम प्रति लागी कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड। यानि कि सब ब्रह्माण्ड की इस व्यवस्था के दो सबसे महत्वपूर्ण ग्रह हैं सूर्य और शनि तो 12 भावों में से सूर्य और शनि की युति बनती है तो किस किस तरह के रिजल्ट करती है, मानवीय जीवन को किस तरह प्रभावित करती है मैं आज यहां इसका डिस्कसन करने के लिए आपके सम्मुख उपस्थित हूं। कि इन 12 भावों के माध्यम से आज हम जानें कि युति क्या-क्या फल देती है। लगन स्थान जहां पे आत्मा के कारक होते हैं सूर्य यदि लगन स्थान में सूर्य और शनि की युति बन रही है जो कि देह का भाव भी है यहां यदि सूर्य बलशाली स्थिति में बैठे हुए हैं यदि वो स्वगृही हैं उच्चाभीलाषी है उच्चस्थ हैं इन स्थितियों के अंदर सूर्य यहां बहुत ही अच्छे रिजल्ट देते हैं। व्यक्ति का आभा मंडल एक नई ऊर्जा लिए हुए होता है व्यक्ति के आभा मंडल में एक अलग तरीके का निखार होता है। लेकिन शनि यहां बैठकर व्यक्ति को आब्जर्वेशन और एनेलेसिस बहुत ज्यादा धकेलते हैं और जब शनि सातवी दृष्टि से सप्तम स्थान को देखते हैं शनि की दृष्टि जहां-जहां पड़ती है वहां दिक्कत, दुविधाएं निश्चित तौर पर खड़ी करती है। शनि जहां बैठे हुए हैं उस स्थिति की बात अलग है और जहां दृष्टिपात है उनका वो स्थिति बिलकुल अलग है। जब सप्तम स्थान पर ही दृष्टि पड़ती है तो प्रथम दृष्टया व्यक्ति के वैवाहिक विलम्ब की स्थितियां बनती ही बनती हैं। दूसरी बात जब दसवीं दृष्टि कर्म स्थान पर पड़ती है तो शनि धीरे-धीरे धीरे-धीरे चलने वाले हैं तो जब दशम स्थान पर इनकी दृष्टि पड़ती है तो व्यक्ति में आलस्य प्रचुर मात्रा में आने लगता है तो ये सूर्य और शनि की युति ऐसे मिले-जुले प्रभाव देती है लगन स्थान में बैठकर। अब द्वितीय स्थान सैकिंड हाऊस जो कि धन, कुटुम्ब और वाणी का स्थान है जब यहां सूर्य और शनि की युति आती है तो ये पृथकतावादी ग्रह होने की वजह से एक तो शनि सैकिंड हाऊस में बैठकर व्यक्ति को अपने क्षेत्र में अपने स्थान में इतना कर्मशील नहीं रखता वो कितनी भी मेहनत करे, लेकिन उस स्तर का रिजल्ट नहीं मिल पाते इसलिए उसके कर्म भूमि घर से कहीं न कहीं दूर होती है। दोनों पापी और क्रूर ग्रह यहां बैठकर कुटुम्ब में भी कहीं-न-कहीं वैचारिक मतभेद व्यक्ति को देते हैं और इसके साथ में वाणी में कटुता मृदृभाषिता तो बिलकुल नहीं होती, पोलाइटनेस बिलकुल नहीं होती। कर्कशता के साथ वो व्यक्ति खुद को सम्प्रेषित करता है खुद को एक्सप्रेस करता है। पराक्रम स्थान तृतीय स्थान जो कि उच्च स्थान भी है यहां बैठकर सूर्य और शनि की युति सूर्य यहां बैठकर व्यक्ति को पराक्रमी बनाते हैं, लेकिन भाई-बहिनों के साथ में संबंधों में निश्चित तौर पर बिछोह वाली स्थितियां सामंजस्य में मतभेद वाली स्थितियां निश्चित तौर पर देते हैं। शनि यहां जब पराक्रम स्थान में उच्च स्थान में बैठते हैं तो यहां उसके पराक्रम में निश्चित तौर पर वृद्धि करेंगे, लेकिन जब सातवीं दृष्टि से भाग्य स्थान को देखेंगे तो भाग्य को कमजोर करने का कार्य यहां बैठकर शनि निश्चित तौर पर करते हैं। अब बात करते हैं चतुर्थ स्थान की जो कि द्वितीय केन्द्र है। ये सुख का स्थान है माता का स्थान है भूमि का स्थान है। यहां जब सूर्य बैठते हैं क्योंकि चतुर्थ स्थान काल पुरुष की कुंडली में हृदय स्थान भी माना गया है जब हृदय स्थान में सूर्य और शनि की युति होती है तो पहली बात यहां बैठकर शनि जो सुख का बिलकुल अपोजिट है दु:ख वाली स्थितियों के अंदर कई बार व्यक्ति को पहुंचाता है, लेकिन इसके साथ सूर्य और शनि यहां बैठकर दशम स्थान जो कि कर्म स्थान है,वहां दृष्टि डालते हैं सूर्य के दृष्टि दशम स्थान पर डालने की वजह से व्यक्ति कर्मशील होता है लेकिन फिर वही बात शनि जब सातवी दृष्टि कर्म स्थान पर डालते हैं तो व्यक्ति में आलस्य प्रचुर मात्रा में देते हैं तो एक तरह से व्यक्ति हृदय से उद्वेलित रहता है। लेटर ऐज में जब वो सक्सेस अचीव करने की तरफ भी जाता है लेकिन सूर्य उसे शांत चित नहीं रहने देते क्योंकि यहां हृदय स्थान में बैठकर सूर्य उसे लगातार उद्वेलित रखते हैं चलायमान रखते हैं जो कि कहीं-न-कहीं परेशानी का सबब बनता है। अब बात करते हैं पंचम स्थान की जो कि सुप्त स्थान है। पंचम स्थान में बैठकर सूर्य एक तरह से व्यक्ति के आभामंडल में एक अलग तरीके का तेज लेकर आते हैं पंचम स्थान में बैठकर लेकिन ये सुप्त स्थान है। सुप्त स्थान में यदि सूर्य और शनि साथ में बैठते हैं तो यहां पिता और पुत्र के बीच में जो काम्प्लिक्स वाली पोजीशन है वो एक लेवल के ऊपर एराइविज होती है। ये बात ध्यान रखने की आवश्यकता है। इसके साथ जब शनि पंचम स्थान में बैठते हैं तो व्यक्ति को दुभाषिये का कार्य करवाते हैं। दुभाषिये का कार्य करवाने के साथ-साथ में संस्कृत जैसी भाषा जो कि दैवीय भाषा है उसमें प्रकाण्डता देते हैं व्यक्ति को। मैथामेटिक्स में एक अलग लेवल की कमांड देते हैं व्यक्ति की केलकुलेशन बहुत जबरदस्त होती है जहां लोग दो प्लस दो करने में समय लगाते है पाइंट से कम समय लगता है इतनी जबरदस्त कमांड देते हैं शनि यहां बैठकर संस्कृत और गणित जैसे विषयों में। अब बात करते हैं षष्ठ स्थान की षष्ठ स्थान में जो कि त्रिक भाव भी है यहां बैठकर सूर्य और शनि जैसे ग्रह हैं व्यक्ति में रूप और शत्रुहंता योग जैसे स्थितियां बनाते हैं, लेकिन व्यक्ति और आर्थेराइटिस जैसी बीमारियों से अस्थि संबंधी विकार से कहीं-न-कहीं अपने जीवन में परेशान रहता ही रहता है। यानि कि यहां रूप स्थान में सूर्य अस्थि से संबंधित रोग देता है यहां एक इंटरेस्टिंग फैक्ट में आपको और बताऊं कि जब कैल्शियम की कमी शरीर में होने लगती है और हड्डियों की मजबूती कम होने लगती है तो कहा जाता है कि आप धूप में बैठिये। धूप जो कि सूर्य कि रश्मियों से हमें यहां प्राप्त हो रही है वही प्रकाश और तेज जो सूर्य की रश्मियों से प्राप्त हो रहा है हम हजारों साल पहले कह चुके थे कि सूर्य अस्थि का कारक है और वही सूर्य जब अस्थि का कारक बन कर हमारे शरीर में प्रवाहित है हमारे आत्मा को चलायमान रखे हुए है तो वो किस हिसाब से इन रश्मियों के माध्यम से हमारे शरीर को प्रभावित करता है आधुनिक विज्ञान ने ये डेफिनेशन कुछ सौ साल पहले दी और हमारे पास ये डेफिनेशन हजारों साल पहले से मौजूद थी। अब बात करते हैं सप्तम स्थान की पार्टनर और लाइफ पार्टनर के स्थान की जो कि बिजनश का स्थान भी है। यहां बैठकर कई बार देखा गया है कि शनि व्यक्ति को लोहे से संबंधित काम से स्टील से संबंधित काम से जोड़ता है। इस काम से जोडऩे के साथ-साथ यहां जब सूर्य और शनि की युति यहां देखेंगे सप्तम स्थान जो कि गृहस्थ का स्थान है यहां बैठकर सूर्य जब अपने ताप को बढ़ाएगा गृहस्थ में ताप कहीं भी काम का नहीं है। गृहस्थ में शीतलता होनी चाहिए अंडरस्टेडिंग एंड एडजेस्टमेंट वाली पोजीशन होनी चाहिए वहां यदि सूर्य का ताप बढ़ेगा और शनि जैसे पापी ग्रह जब वहां बैठेंगे जो कि मेन इम्पोर्टेन्ट प्लेन्ट भी है जिसमें ताकत बहुत ही ज्यादा होती है जब ऐसे ग्रह यहां बैठेंगे तो वो व्यक्ति के गृहस्थ जीवन में और परेशानियां बढ़ाने का कार्य करेंगे इगो बढ़ाने का कार्य करेंगे जो कि कतई गृहस्थ भाव के लिए अच्छा नहीं माना गया है। अब बात करते हैं अष्टम स्थान की। अष्टमेश जो कि एक तरह से हैडन हाऊस है अंधेरे का घर है। द्वितीय त्रिक स्थान है लेकिन साथ में आयु का भाव भी है। यहां बैठकर आयु के मामले में तो शनि बहुत ही अच्छे रिजल्ट देते हैं। लेकिन यदि सूर्य यहां अष्टमेश न हो यानि सिंह राशिस्थ न हो तो व्यक्ति के जीवन में न्यूनाधिक परेशानियां देते हैं लेकिन ऐसा व्यक्ति यदि अनुसंधान के कार्य से जुड़े माइनिंग के कार्य से जुड़े तो उसे अचंभित करने वाले रिजल्ट निश्चित तौर पर अपने जिन्दगी में मिलते ही मिलते हैं। अब बात करते हैं नवम स्थान की। नवम स्थान जो कि भाग्य का स्थान है, आध्यात्म का स्थान है यहां बैठकर सूर्य और शनि की युति व्यक्ति को लेटर ऐज में आध्यात्म और धर्म का एक तरह से प्रणेता बनाती है उसे बहुत अच्छे लेवल पर नॉलेज एस्टेबलिश करवाती है लेकिन भाग्य में निरन्तर रूप से कहीं-न-कहीं कमी आती हुई दिखाई देती है ऐसे व्यक्ति के जीवन में। दशम स्थान, जो कि केन्द्र स्थान भी है, इस केन्द्र स्थान में जो कि कर्म स्थान है यहां बैठकर सूर्य लगातार व्यक्ति को कर्मशील रखते हैं और एक ओहदे का एक स्तर का नाम देते हैं और जब शनि यहां बैठते हैं तो व्यक्ति में बिलकुल भी आलस्य की मात्रा नहीं देते उसे कंस्बलिटी एप्रोच देते हैं लेकिन अपनी जिन्दगी में बार-बार पीक देखता है और नीचे गिरता है क्योंकि शनि कि फितरत में शुमार है। सूर्य और शनि की युति इस तरह के प्रभाव देती है लेकिन क्योंकि पिता का हाऊस भी है तो वैचारिक रूप से मतभेद यहां पिता और पुत्र के बीच में एंटरेसिक मूलभूत प्रकृति के आधार पर पड़ेंगे ही पडेंंगे इससे कम करने का सिर्फ एक ही तरीका है कि आप एक सामंजस्य स्थापित करके चलें कहीं क्लेसेज वाली पोजीशन हो रही है आज की तारीख में यही कहा जाता है कि यदि पिता और पुत्र के संबंधों में क्लेसेज वाली पोजीशन हो रही है तो उस पोजीशन को एवर्ट करना चाहिए न कि उसे और आगे बढ़ाकर तीव्रगामी वाला रूप देना चाहिए। अब जो लाभ स्थान है यहां बैठकर शनि व्यक्ति को किसी भी कार्य से पैसा कमाने में गुरेज नहीं करवाते और जब सूर्य यहां बैठ जाते हैं लाभ स्थान में यदि सूर्य बलशाली पोजीशन में बैठते हैं तो वो आपके लाभ को प्रकाशमान करने का कार्य करते हैं और जब सूर्य ऐसी स्थिति में लाभ को प्रकाशमान करने का कार्य करते हैं तो वो लगातार दौड़ाते हैं व्यक्ति को और सफलता की ओर लेकर जाते हैं। अब बात करते हैं व्यय स्थान की जो कि ट्रेवल्थ हाऊस है इस ट्रेवल्थ हाऊस में बैठकर व्यय स्थान में बैठकर सूर्य और शनि व्यक्ति को जीवन के जीतने उतार-चढ़ाव है उन सबसे परिचित करवा देते हैं। एक तरफ आकर व्यक्ति सुख और दु:ख से अविचलित होने लग जाता है इस स्थिति पर भी सूर्य और शनि की युति ट्रेवल्थ हाऊस में बैठकर व्यक्ति को पहुंचाती है इतना उद्वेलित करती है लेकिन एंड रिजल्ट के रूप में व्यक्ति समदृष्टया हो जाता है समभाव में चला जाता है तो ये थी सूर्य और शनि की युति की परिभाषा औरजो फल युति है जब 12 भावों के माध्यम से मैंने इसके बारे में आपसे चर्चा की। मैं ऐसे ही कई और युतियों के बारे में आपसे चर्चा करता रहूंगा। आपसे बातचीत करता रहूंगा। जीवन के किस तरह ज्योतिष के माध्यम से सुगम बने हम कैसे अपने जीवन में निरन्तर ऊंचाइयां प्राप्त करें इन ग्रहों की प्रकृति क्या है ये हमारे ऊपर किस तरह से प्रभाव डाल रही है और किस प्रभाव के माध्यम से यदि आपको जाना पूर्व दिशा में है मैं एक उदाहरण के माध्यम से समझाता हूं यदि आपको जाना पूर्व दिशा में है और आप पश्चिम दिशा की ओर चले गए फिर वहां किसी ने दरवाजा खटखटाकर आपको बतला कर कहा कि साब इस रास्ते नहीं जाना है, उस रास्ते जाना है तो आप अपनी ऊर्जा का व्यय करेंगे आप अपने समय को व्यर्थ करेंगे लेकिन यदि उसी दिशा में उसी समय बढ़ा जाए तो रिजल्ट अकल्पनीय आ सकते हैं। जीवन में पोजिटिविटी आ सकती है और आपके आसपास की जो वेसेनिटी है उसका भी आपको निश्चित तौर पर फायदा मिलेगा ही मिलेगा। अब यहां सूर्य और शनि की बात रही सूर्य और शनि जब कमजोर पोजीशन में हो यदि सूर्य कमजोर पोजीशन में हो तो क्या करना चाहिए शनि कमजोर पोजीशन में हो तो क्या करना चाहिए। इसके लिए भी हम निश्चित तौर पर चर्चा करेंगे। वैसे सूर्य के बारे में कहा जाता है कि यदि वो कमजोर स्थिति में है तो मकर संक्रांति पर तुला दान, माणक्य धारण करना, और इसके अलावा सूर्य जनित उपासनाएं हैं उसकी ओर बढऩा चाहिए जिससे सूर्य की प्रकृति आपके जीवन के अनुरूप ढलने लगती है और आप उस प्रकृति पर अपने अनुरूप ढाल कर अपने जीवन को एक सुव्यस्थित ढंग से आगे बढ़ा सकते हैं। शनि के लिए जैसे उड़द, तिल का दान, लोहे का दान कहा जाता है उस तरफ यदि आगे बढ़ा जाए शनि उपासना की तरफ आगे बढ़ा जाए हनुमन्त उपासना की तरफ आगे बढ़ा जाए तो शनि भी अपने जो अनिष्ट कार्य प्रभाव में है उन्हें कम करते हैं और जीवन की जो ज्योत है वो निरन्तर आगे बढ़ती हुई प्रतीत होती है। आज के लिए बस इतना ही।
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