
कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में जब दोनों सेनाएं आमने-सामने थी। एक तरफ कौरवों का दल था तो दूसरी तरफ पांडवों का दल। इस सेना समूह के मध्य दो व्यक्तियों के मन में सबसे अधिक संशय था। एक तरफ कौरवों की सेना में दुर्योधन, जिनके मन में काफी हद तक संशय समाये हुए थे दूसरी तरफ पांडवों की सेना में धनुर्धारी अर्जुन जिनके मन में भी काफी हद तक संशय थे, काफी प्रश्न खड़े हुए थे। सर्वप्रथम दुर्योधन अपने संशय लेकर भीष्म पितामह के पास पहुंचते हैं और कहते हैं कि पांडवों की सेना भीम के बल से सुसज्जित है यर्थाथ भीम बलो रक्षितम् यानि भीम के बल से पूर्ण रूप से सुसज्जित है ये सेना, लेकिन हमारे पास भी योद्धाओं की कमी नहीं है उनसे अधिक प्रबल और पराक्रमी योद्धा हमारे पास मौजूद है, गुरु द्रोण है तो वहीं कृपाचार्य भी हैं, कर्ण है तो अश्वत्थामा भी है। इस हिसाब से मुझे लगता है कि हमारी विजय सुनिश्चित है। यानि खुद ने ही संशय प्रकट किए और उसके बाद खुद ने ही उत्तर दे दिए, सेल्फ जस्टिफिकेशन की तरफ चले गये दुर्योधन। दूसरी तरफ अर्जुन कहते हैं कि प्रथम तापेम्चयुत सेनर्योवमध्ये तापेम्यचुतम् यानि हे श्रीकृष्ण! मेरा ये रथ दोनों सेनाओं के मध्य ले चलिये मैं देखना चाहता हूं कि मुझसे कौन-कौन युद्ध लडऩे के लिए आया हुआ है और मेरे मन में संशय के काफी दावानल उपस्थित हो रहे हैं मैं कुछ संशयों से परेशान हूं यदि उसके समाधान करने की कृपा करें उसके बाद में अर्जुन और कृष्ण संवाद चलता है। आखिरकार जो अर्जुन व्यथित थे और अव्यवस्थित थे संशयों से युक्त थे वो पूर्ण रूप से संशयों से मुक्त होते हैं और आखिरकार कहते हैं कि मैं गांडीव उठाऊंगा और इन सारे शत्रुओं का संघार करूंगा। एक तरफ दुर्योधन कि सेल्फ जस्टिफिकेशन थी इसे समझने की कोशिश की जाए तो हमारे जिन्दगी के काफी अर्थ मिल सकते हैं। एक तरफ दुर्योधन कि सेल्फ जस्टिफिकेशन हम भी जब कोई गलती करते हैं या हमारी ताकत को आंकते हैं तो सामने वाले कि ताकत को पूर्ण रूप से भूल जाते हैं और सिर्फ खुद के ही सेल्फ जस्टिफिकेशन में लगे हुए रहते हैं यदि कोई गलती हमने जिन्दगी में कर भी दी तो उसकी एक्सपटिबिलिटी नहीं बन पाती हम खुद ही हमारे मन के भीतर ही एक सेल्फ जस्टिफिकेशन का एक ऐसा प्रोसेस बना चुके हैं जिसमें व्यक्ति खुद को खुद ही कटघरे में खड़ा करता है आखिरकार खुद ही जज बनता है और फिर फैसला सुना देता है कि वो निश्चित रूप से सही है। जो वो सच रहा है बिलकुल सही है इसके अलावा कुछ भी सोचने की आवश्यकता नहीं है और यह सेल्फ जस्टिफिकेशन की थ्योरी निश्चित रूप से हमें कहीं-न-कहीं एक विरोधाभास वाली स्थिति में डालती है। संशय वाली स्थिति में डालती है और हम पूर्ण रूप से सामने आने वाली स्थितियों का आंकलन नहीं कर पाते। हमारी गलतियों को स्वीकार नहीं कर पाते। जबकि दूसरी तरफ अर्जुन है जिन्होंने संशय श्रीकृष्ण के सामने रखे और उसके बाद में पूर्ण रूप से उसके हल पाये। यानि प्रश्न पूछे और उसके हल पाये खुद सेल्फ जस्टिफिकेशन की प्रोसेस की तरफ नहीं गये। तो यदि हम भी हमारी जिन्दगी में इस सेल्फ जस्टिफिकेशन के प्रोसेस की तरफ जाना छोड़कर यदि ये प्रश्न हम से विद्वान व्यक्ति के सामने रखें, श्री हरि के सामने रखें जिनसे सारे के सारे प्रश्न अन्तरतम से पूछे जाये, अन्तरमन पर ऐसे पर्ते न चढ़े जो इस सेल्फ जस्टिफिकेशन के प्रोसेस को दोहराते चली जाए तो जीवन काफी हद तक सुलझ सकता है और हमारे जिन्दगी नया आयाम पा सकती है। हटाने की जरूरत है इस सेल्फ जस्टिफिकेशन के प्रोसेस को और आगे बढऩे की जरूरत है। देखिये जिन्दगी किस हिसाब से एक सुन्दरतम रूप में आपके सामने आती है।
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