
अभी कुछ दिनों पहले ही हमने व्लर्ड एनवायरमेंट डे मनाया। ओजोन लेयर प्रोटेक्शन डे भी मनाएंगे। इसके अलावा शेव अर्थ डे, शेव वाटर डे और ऐसे ही न जाने कितने दिन हमारे रोजमर्रा के जीवन में शुमार होते जा रहे हैं। आजकल तो हर दूसरा दिन किसी न किसी डे पर मनाया जाने लगा है। यह कुछ ही दशकों पूर्व शुरू हुई परम्परा है। इसके पीछे रीजन यही था जब प्रकृति अपने विराट स्वरूप दिखाने लगी और अपने विध्वंस के संकेत देने लगी तो हमें यह समझ में आने लगा कि इस एनवायरमेंट को सेव करना बहुत ज्यादा जरूरी है यदि हम इस एनवायरमेंट को शेव नहीं कर पाए, इस प्रकृति को शेव नहीं कर पाए तो शायद हमारा अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। इसके विपरीत जो परम्पराएं हमारे पास मौजूद थी, जो विराट संस्कृति और जो वैज्ञानिक आधार हमारे पास मौजूद थे यदि उनकी तरफ एक बार झांका जाता तो यह सब पहले से वहां मौजूद था। आप एक दिन निर्जल रह देख लीजिए आपको मालूम चल जाएगा कि जल का महत्व क्या है। आप मौन के महत्व को यदि जानना चाहते हैं तो मौनी अमावस्या के एक दिन मौन रहकर देख लीजिए। इस हरियाली का कितना महत्व है। हरियाली अमावस्या हमें वही बताती है। और रंगपंचमी पर रंगों का महत्व है तो प्रकाश के महत्व को बताती है दीपावली। हम ऊगते सूर्य को भी प्रणाम करते हैं मकर संक्रांति पर। और छठ पर डूबते सूर्य को भी अघ्र्य देते हैं ये है हमारी परम्पराएं और ये हैं उनके वैज्ञानिक आधार। आजकल बाहर के देशों से जब पैकेजिंग, पॉलिसिंग और प्रजेंटेशन के रूप में हमारे सामने मोटिवेशन आया तो हमने उसे बहुत अच्छे से स्वीकार किया कि साब अन्दर स्पार्क होना बहुत ज्यादा जरूरी है अन्दर एक एनर्जी होनी बहुत ज्यादा जरूरी है पहले बाहर के देशों ने बाहर से भीतर की यात्रा की और उसके बाद भीतर से अब बाहर की ओर बढऩे की तैयारी है मोटिवेशन के साथ। लेकिन हमारे यहां आध्यात्म हजारों सालों से मौजूद था। आप किसी भी साइक्लोजिस्ट से मिल लीजिए वो आपको यही कहेगा कि हरेक ताले की चाबी अलग है और हरेक इंसानी दिमाग अलग है यानि की कहीं न कहीं उन्हें भी एक्जम्पसन का सहारा लेना पड़ता है। लेकिन इसके विपरीत जब आप ज्योतिष की तरफ बढ़ते हैं, एस्ट्रोलॉजी की तरफ बढ़ते हैं तो पूर्ण वैज्ञानिक आधार के ऊपर बेस्ड है एस्ट्रोलॉजी जो सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण की जो गति है और वो कब कब आएंगे ये साइंटिस्ट कुछ ही समय पूर्व ही पूफ्र करते हैं हमारे पास जो पंचांग है जो आधार है वैज्ञानिक आधार है उसके आधार पर हम लोग हजारों साल पहले ही बता चुके होते हैं कि कब-कब किस किस सहस्र शताब्दी में सूर्य ग्रहण आएगा और चन्द्र ग्रहण आएगा। जरूरत है इन थ्री पीस से बचकर यानि पैकेजिंग, पॉलिसिंग, और जो प्रजेंटेशन है और उसमें एक तरह की जो फेसिनेशन क्रियेट की है उससे बचकर यदि हम हमारी परम्पराओं की तरफ झांकने की कोशिश करे तो काफी कुछ नया मिल सकता है और जिंदगी सफल, सुगम और सरलता के रास्ते पर बढ़ सकती है।
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