
शनि और मंगल की युति जब हमारे कुंडली के 12 भावों के माध्यम से निक्षेपित होती है या शनि और मंगल जब दृष्टि संबंध करते हैं तो कैसे प्रभाव हमारे जीवन पर डालते हैं। आपके जीवन में यदि कार्य बाधाएं आ रही हैं, डिलेट पोजीशन हो रही है, अथक संघर्ष हो रहा है तो कुंडली खोलकर देखने की आवश्यकता है कि कहीं शनि और मंगल की युति तो नहीं बन रही है या फिर शनि और मंगल दृष्टि संबंध में तो नहीं है। यदि ऐसा है तो मैं इस युति की चर्चा के बाद में आपको कुछ उपाय बताऊंगा जिनकी तरफ आपको जाना चाहिए, जिससे ये कार्य बाधाओं वाली स्थिति, अथक संघर्ष वाली स्थिति काफी हद तक टाली जा सकती है। यदि आपने कोई काम हाथ में लिया जो चार दिन में पूरा हो जाना चाहिए था, उसमें सोलह दिन लगा दिए, आप कंस्ट्रक्शन वर्क की तरफ बढ़े कि घर का कंस्ट्रक्शन पूरा करवाऊंगा, लेकिन उसके लिए तय सीमा थी, छह महीने और कार्य पूरा हुआ 12 महीनों में जाकर। मानसिक संताप झेला आपने इनफ्लूएशन के साथ में जो काम करने की कॉस्ट थी वो बढ़ी और इसके साथ-साथ घर वाले परेशान हुए वो अलग। आपको ऑफिस में एक प्रोजेक्ट मिला। लगा कि ये कैरियर की पूरी प्रोफाइल चेंज करके रख देगा, लेकिन एटलास्ट मालूम चलता है कि कैरियर की प्रोफाइल तो चेंज नहीं हुई हमारे जॉब के ऊपर बन आई क्योंकि वो प्रोजेक्ट और जिस प्रोफाइल पर हम काम कर रहे थे उस ऑफिस से आउटडेटेड करार दे दिया गया है जो हुनर हमारे पास था, जिसे हम तराशने में लगे हुए थे उससे आउटडेटेड करार दे दिया गया। ऐसी पोजीशन में व्यक्ति नेगेटिव होने लगता है, वो डिप्रेशन का शिकार होने लगता है तो शनि और मंगल की युति ऐसे प्रभाव लाती क्यों है इसके पीछे कारण है इन दोनों की विपरीत प्रकृति। शनि जहां शनै:-शनै: चलने वाले ग्रह हैं व्यक्ति को दु:ख के दावानल में फंसाते हैं भौतिकता की अंधी चमक में फंसाते हैं और उसके बाद बताते हैं कि जीवन क्या है। मंगल जो कि ग्रहों के सेनापति हैं, जो कि पीछे देखना नहीं पसंद करते आगे ही देखते हैं। आगे आने वाले व्यक्ति को अपना विद्रोही मानते हैं बिना सोचे और समझे पराक्रम वाली स्थितियों पर लाकर खड़ा करते हैं व्यक्ति को। लेकिन इसके साथ-साथ धैर्य पनपाने का काम भी करते हैं मंगल। यहां लोग कहते हैं कि धैर्य पनपाने का काम जीवन में गुरु करते हैं वो तो उनकी इंटरेसिक क्वालिटी है मूलभूत प्रकृति है। लेकिन जब व्यक्ति ठोकर खाता है और ठोकर खाने के बाद संभलता है ऐसी स्थितियों में लाकर खड़ा करते हैं मंगल और उसे मालूम चल जाता है कि मुझे ठोकर नहीं खानी है, संभलकर चलना है। जब मंगल और शनि ऐसी विपरीत प्रकृति के हैं और साथ में बैठेंगे तो कार्य विलम्ब, कार्य बाधाएं देंगे ही देंगे, मेंटल डिटेड एप्रोच कन्फ्यूजन जैसी पोजीशन लाकर खड़ी करेंगे ही करेंगे। लेकिन इस नेगेटिव वर्जन नहीं लेते जब मंगल और शनि की युति बनती है तो वो व्यक्ति को टेक्नीकल ही बहुत साउंड करती है। तकनीकी क्षेत्र में उसका दिमाग इतना विकासशील होता है कि उसे हार्डवेयर के फील्ड की तरफ आप लेकर चले जाइये, मैकेनिकल इंजीनियरिंग की तरफ किसी भी फील्ड में लेकर चले जाइये जहां दूसरे लोग इस युति के वनस्पित जो दूसरे लोग हैं जो मशीनरी को समझने में दस दिन लगाएंगे। मंगल और शनि की युति वाले लोग उसे दो दिन में ही समझ लेंगे। इसके साथ-साथ जब बार-बार व्यक्ति ठोकर खाता है, कार्य बाधाएं देखता है, डिलेड पोजीशन देखता है तो उसके मन में एक दृढ़ता पनपती है और जिसके मन में दृढ़ता पनपती है वो सफलता की तरफ सुनिश्चित तौर पर जाता ही जाता है। सफलता की ओर अग्रसर होता ही होता है। जब वो किसी काम में हाथ डालता है, एक ऐज के बाद तो उसे मालूम चल जाता है कि मेरे लिए डिले वाली पोजीशन रहेगी, मुझे घबराने की आवश्यकता नहीं है, बस दृढ़ता के साथ आगे बढऩे की आवश्यकता है। जब ये युति दशम स्थान यानि कर्म स्थान में बन जाए तो वो व्यक्ति को रिसिबलेंट एप्रोच देती है। वर्दीधारी नौकरी की तरफ लेकर जाती है, लेकिन सुखों में न्यूनता लेकर आती है। जब ये युति सुप्त स्थान में बैठ जाए तो मंगल जो कि भूमि के कारक है और शनि जो कि बुढ़ी प्रोपर्टीज के कारक है, ऐसा व्यक्ति यदि बुढ़ी प्रोपर्टीज को यानि पुरानी प्रोपर्टीज खरीदे, उसे डवलप करे, री-कंस्ट्रक्ट करे और बेचने का काम करे तो वो अच्छा बेनिफिट कमाता है। पंचम स्थान में यदि ये युति बैठ जाती है तो बच्चों के हिसाब से सही नहीं है, लेकिन टेक्नीकल एज्यूकेशन के हिसाब से बड़ी ही अच्छी युति मानी गई है। लाभ स्थान में युति बन जाये तो व्यक्ति बुरे काम और गलत काम से भी पैसा कमाने में गुरेज नहीं करता। षष्ठ, अष्टम और द्वादश जो कि त्रिक भाव है। यहां यदि शनि और मंगल की युति बन रही है, या फिर आप मान लीजिये कि मंगल यहां पर विराजे हुए हैं और शनि यहां विराजे हुए हैं पराक्रम स्थान में, यदि व्यय स्थान में शनि पराक्रम स्थान में है शनि यहां से दशमी दृष्टि से मंगल को देखेंगे मंगल चौथे दृष्टि से शनि को देखेंगे ऐसी पोजीशन में भी कार्य बाधाएं और कार्य विलम्ब आते हैं। ये दृष्टि संबंध यदि कहीं और भी बन रहा है तो आप मानकर चलिये कि इन पोजीशन से आपको अवर्ट होना पड़ेगा, दूर हटना पड़ेगा। मैं बता रहा था कि षष्ठ, अष्टम और द्वादश में युति बनती है और जब इनकी गजदशा में अंतर दशा आती है तो वो व्यक्ति को सर्जरी की तरफ लेकर जाती है। व्यक्ति के शरीर पर नस्तर चलता है, धारदार हथियार चलता है। जब ऐसी दशा आपके जीवन में आने लगे, तब आपको संभल कर रहना चाहिए कि अब सर्जरी की तरफ मुझे बढऩा हो सकता है यदि आपकी बॉडी कुछ इंडिकेशन की तरफ दे रही है तो पहले से उनकी तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है जिससे कोई स्थिर पोजीशन आने वाली हो, बहुत बुरी पोजीशन आने वाली हो उससे आप अवर्ट कर पाएं। अब आपने बताया साब कि कार्य विलम्ब तो मैंने माना होता है, अथक संघर्ष तो होता है, लेकिन इसका उपाय क्या है। शनि और मंगल की युति और दृष्टि संबंधी का उपाय है हनुमन्त उपासना। जब सूर्य देव को हनुमानजी ने ग्रसित कर लिया था तब सेनापति होने के नाते मंगल और सूर्य देव के पुत्र होने के नाते शनि, दोनों हनुमानजी से युद्ध लडऩे के लिए पहुंचे। हनुमानजी ने अपने तेज प्रताप के द्वारा दोनों को बंदी बना लिया और बंदी बनाने के बाद उनसे अतिप्रसन्न हुए और कहा कि मैं तुम्हारी बहादुरी से प्रसन्न हूं जब भी तुम्हारी दशाएं जीवन में आएगी या फिर तुम्हारी युति किसी व्यक्ति के जीवन में होगी और वो हनुमन्त उपासना की तरफ जाएगा तो मैं उसके ऊपर पूर्ण रूप से कृपा करूंगा और तुम्हारे नेगेटिव रिजल्ट उनके ऊपर निक्षेपित नहीं होने दूंगा। ऐसी ही एक घटना और आती है कि जब हनुमानजी लंका दहन करने के लिए पहुंचते हैं तो एक कक्ष से बूढ़े व्यक्ति के कराहने की आवाज सुनते हैं। हनुमानजी अचम्भित होकर उस कक्ष में जब पहुंचते हैं तो देखते हैं शनि देव उलटे लटके हुए हैं और लपटों का प्रभाव उनके शरीर पर आ रहा है। हनुमानजी तुरंत उन्हें वहां से आजाद करवाते हैं और उनके पीठ पर तेल की मालिश करते हैं इससे शनि देव प्रसन्न होते हैं और कहते हैं कि हे हनुमानजी! आपकी जब भी कृपा किसी व्यक्ति के ऊपर बरसेगी वो आपकी जब उपासना करेगा तो मैं ढय्या, साढ़े साती या फिर मंगल के साथ जब युति होगी उस समय उस व्यक्ति को नहीं सताऊंगा। मेरे जो प्रभाव नेगेटिव रूप में किसी व्यक्ति के ऊपर पडऩे हैं वो पूर्ण रूप से उसके ऊपर नहीं पड़ेंगे जबकि सुखद जीवन की ओर वो व्यक्ति अग्रसर होगा। इस वजह से मंगल और शनिवार के दिन हनुमान चालीसा, बजरंग बाण का पाठ, सुन्दर कांड का पाठ व्यक्ति को करना चाहिए। इसके साथ-साथ मंगलवार को सिन्दुरी चोला हनुमानजी के मंदिर में व्यक्ति को चढ़ाना चाहिए, जिससे ये युति जो कि आपके जीवन पर नेगेटिव प्रभाव डालने वाली है, उसके असर कम होंगे और आपके जीवन में सकारात्मकता भरी ऊर्जा आने लगेगी और मंगल और शनि की युति विपरीत प्रकृति के ग्रह आपके ऊपर अपने नेह की वर्षा करेंगे। तो ये थी मंगल और शनि की युति के बारे में चर्चा और यदि ये युति है तो इससे बचने के क्या उपाय हैं। मैं ऐसी ही कई युतियों के बारे में और आपसे चर्चा करता रहूंगा।
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