English तारीख के कलैण्डर के अनुसार 1 जनवरी, 2019 को नया साल प्रारम्भ हो गया। नया साल हर किसी के लिए नई उमंग, नया जोश और नई ऊर्जा वाला माना जाता है। साथ ही साथ हिन्दू पंचांग के अनुसार इस समय मार्ग शीर्ष मास चल रहा है और नए दिन की शुरुआत कृष्ण पक्ष की एकादशी व्रत के साथ हुई है। ये एकादशी सफला एकादशी के रूप में मनाई जाती है, जिसमें व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने पर सफलता और मनोवांछित फलों की प्राप्ति का शास्त्रोक्त वर्णन मिलता है। अब
3 जनवरी, 2019 त्रयोदशी को प्रदोष व्रत का महात्म्य है। मार्गशीर्ष (माघ) महीने में पडऩे वाला प्रदोष व्रत अत्यंत शुभ और मनोकामना पूर्ति के लिए बेहद खास माना गया है। इस बार त्रयोदशी गुरुवार को आ रही है। प्रदोष व्रत में पडऩे वाले वारों का भी विशेष महत्व होता है। इसके अनुसार ही उसकी पूजा और व्रत कथाएं प्रचलन में आती है। इस बार गुरुवार को पडऩे वाले प्रदोष व्रत में शत्रुओं से मुक्ति के लिए बेहद खास माना गया है। प्रदोष व्रत के विषय में शास्त्रीय मान्यता है कि जिस भी दिन यह व्रत आता है, उसके आधार पर इस व्रत का नाम और महत्व बदलता जाता है। मान्यता के अनुसार यदि आप रविवार के दिन प्रदोष व्रत रखते हैं तो हमेशा निरोग रहेंगे। इस व्रत को रवि प्रदोष व्रत कहा जाता है। इसके बाद यदि आप सोमवार के दिन व्रत करते हैं तो इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मंगलवार को प्रदोष व्रत रखने से रोग से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ्य उत्तम रहता है। शुक्रवार के दिन इस व्रत का पालन करने से सभी प्रकार की कामना सिद्ध होती है।
गुरूवार के प्रदोष व्रत से शत्रु का नाश होता है। शुक्रवार प्रदोष व्रत से सौभाग्य की वृद्धि होती है। शनिवार के दिन जो मनुष्य प्रदोष व्रत रखता है तो उसे पुत्र की प्राप्ति होती है। साथ ही सुख-समृद्धि और सम्पन्नता का वास भी बना रहता है। प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है। माघ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी (प्रदोष व्रत) पर शिव जी की आराधना को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है।
शिव प्रदोष व्रत का उल्लेख स्कन्द पुराण में किया गया है। स्कन्द पुराण के अनुसार प्रत्येक माह की कृष्ण व शुक्ल पक्षों की त्रयोदशी के दिन शाम के समय को प्रदोष कहा जाता है। इस दिन शिवजी को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत रखा जाता है।
प्रदोष व्रत पूजा-विधिप्रदोष व्रत के दिन सूर्यास्त के बाद रात होने से पहले के बीचे का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस प्रदोष काल में महादेव भोले शंकर की पूजा की जाती है। शिव जी के किसी भी स्वरूप की पूजा की जा सकती है। इस व्रत में व्रती अगर निर्जल रहकर व्रत रख सके तो अति उत्तम कहा गया है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की (बेलपत्र), गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप सहित पूजा करें। संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करना चाहिए। इस दौरान भगवान शिव का ध्यान करते हुए ऊँ नम: शिवाय: मंत्र का जाप करना चाहिए। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्रती को पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। सूर्यास्त के बाद और रात्रि के बीच के समय को प्रदोष काल कहा जाता है और इस काल में ही त्रयोदशी तिथि को व्रत रखकर भगवान शिव की उपासना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति के सारे कष्ट और सभी प्रकार के दोष मिट जाते हैं। कलयुग में इस व्रत को मंगलकारी और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने वाला उत्तम व्रत माना गया है।
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