
कर्क लग्न की कुंडली में योगकारक स्थितियों में कौन से ग्रह बाधा पहुंचाते हैं तथा कौन से ग्रह अनुकूल होते हैं। साथ ही गोचरीय, विशोंतरी व भाग्येश-लग्नेश के फल तथा क्रमबद्ध विकास में आगे बढऩे के लिए फलाफल कैसे रहेंगे इसका एक विश्लेषण। इस लग्न वाले जातक भावुक और बुद्धिमान, प्रखर बुद्धित्तम में विश्वास करता है। जैसे मन चलायमान रहता है वैसे ही उनका शरीर भी चलायमान रहने के लिए अग्रसर रहता है। इनका सेल्फ मोटिवेशन कमजोर होता है। मोटिवेशन की आवश्यकता रहता है। जागरूकता के लिए अन्य की आवश्यकता रहती है, तब भागना शुरू कर पाते हैं। मन के कारक चन्द्रमा सौम्य ग्रह हैं तथा सुख स्थान के कारकाधिपति हैं। किसी भी पापी ग्रह के साथ दृष्टि निक्षेपित का कार्य करते हैं। मंगल और शनि जैसे या राहू-केतु जब पापी ग्रह इन पर दृष्टि निक्षेपण करते हैं तो मन की अवस्थाएं डेमेज होती है, जिसे सुधारना मुश्किल हो जाता है। लगातार तनाव से डिप्रेशन की ओर अग्रसर होता चला जाता है। नकारात्मकता की ओर जाने पर दिक्कतें बढ़ जाती है। चन्द्रमा की रश्मियों में समय जरूर बितायें। लग्नेश होकर चन्द्रमा लाभ स्थान में यदि 3-6-10-11 उच्चय स्थान में बैठ जाएं, या शुक्र जैसे ग्रह में बैठ जाए और स्थिर रहे तब उससे उच्चस्थ अवस्था कहेंगे। जब भी कोई उच्चय ग्रह होगा तो मन की स्थिरिता बढ़ती चली जाएगी। इससे जातक प्रसन्नता से लगातार कार्य करता चला जाता है। मंगल और शनि यदि उन्हें नहीं देखते हों। सूर्य सातवीं दृष्टि से देखते हों। सूर्य चन्द्रमा जहां भी साथ में बैठ जाते हैं तो अमावस्या के आसपास का जन्म होता है। किन्तु यदि दोनों के रिफलेक्शन विपरीत हो सातवें, पांचवें छठे भाव के पास हो तब बड़े ही अच्छे परिणाम जीवन में परिलक्षित होते हैं। चन्द्रमा लाभ में बैठ गए और लग्नेश की दशा आ गई तो प्रभावशाली सिद्ध होते हैं। रुके हुए काम आसान होने लगते हैं। यदि शिक्षा काल में है और चन्द्रमा की दशा आ जाए तो डिस्टर्ब कर सकते हैं, लेकिन निरन्तर प्रभाव के साथ बढ़ाएगी भी। पीक हासिल नहीं कर पाती स्थिति, लेकिन आगे बढ़ते रहे और गुरु साथ में बैठ जाए तो शुक्र की राशि में जरूर होंगे किन्तु यहां गुरु और चन्द्रमा एक अच्छी स्थिति को निर्मित करने वाले होंगे। भाग्याधिपति होकर कहीं से भी चन्द्रमा के ऊपर दृष्टि निक्षेपण का कार्य करते हैं तो बड़े सुदृढ़ परिणाम देने वाले होते हैं। गुरु पांचवें बैठ जाएं और चन्द्रमा उच्चस्थ विराजित हों तो सोने में सुगंध देने का कार्य करते हैं। कारकोभाव नाशाय वाली स्थितियों में गुरु को यहां संकेतात्मक माना गया है। गुरु यहां कारक भाव का नाश करने वाले नहीं होते। साथ में मंगल की राशि में और बैठ जाएंगे तो अपने कार्य निक्षेपण में परिणाम अच्छा देंगे। एक स्थिति में द्वादश से संबंध बनाएंगे तो पेट, लीवर फैटिनेश आदि दिक्कत हो सकती है। एल्कोहल के आदि है तो ध्यान रखें। युति की दृष्टि से यहां चन्द्रमा पंचम स्थान के अंदरं, नीचस्थ स्थितियों में, पापी ग्रह देखने से क्षीण स्थिति में आ गए तो शिक्षा काल में भटकाव मिलता है। बीमारियों के साथ में भी दो-चार होना पड़ सकता है। अन्य ग्रह की गजदशा चल रही हो और अंतरदशा चन्द्रमा की आ जाए तो स्थिति भयावह तरीके से सामने आती है। भले ही लग्नेश हो किन्तु अंतरदशाओं में स्थिति आ गए तो हमें उससे इतना सुदृढ़ नहीं समझना चाहिए। ध्यान रखे। मंगल कर्क लग्न के अंदर योगकारी स्थितियों का निर्माण करने वाले होते हैं। क्योंकि पंचमेश शिक्षा के भाव के आधिपति साथ में कर्मेश कर्म के भाव के आधिपति होकर अच्छी स्थिति में बैठ जाए तो बड़े ही बढिय़ा फल प्रतिबिम्बित करने वाले होते हैं। शिक्षा या शिक्षा से अनुभव लेने का कार्य भी पंचम स्थान से देखा जाता है। दशम स्थान में ऐसे ग्रह बैठने पर व्यक्ति श्रेष्ठ कार्य में निपुण होता है। शनि जैसे ग्रह देखें तो कार्य विलम्ब तो होगा लेकिन अच्छी स्थिति यह है कि उच्च तकनीकी शिक्षा की तरफ निरन्तर गतिमान हो पाता है। मंगल की ये स्थिति बड़ी प्रभावी सिद्ध होती है। मंगल यदि ऐसी स्थिति के अंदर उच्चय स्थान में बैठ जाएं तब भी अच्छी परिणाम देंगे। सुख स्थान के आधपति होकर शुक्र यहीं बैठ जाएं तो अच्छे परिणाम देंगे। क्योंकि लाभ स्थान के आधिपति भी हुए और लाभेश होकर सुख स्थान में बैठने पर व्यक्ति को सुखों में बढ़ोतरी देने वाले होंगे। जन्मजात से भी ऐश्वर्य का जीवन जीता है। द्वितीय केन्द्र और द्वितीय त्रिकोण एक साथ पंचम सप्तम में युति करते हों तो अतिरिक्त वैवाहिक प्रेम का कार्य करेंगे। गृहस्थ में थोड़ी बहुत बाधाएं रह सकती है। मंगल उत्तेजना के कारक, शुक्र ऐश्वर्य और भोग के कारक जब ऐसे ग्रह साथ में बैठ जाएंगे तो उसका कॉम्बीनेशन देख सकते हैं। यदि उच्चय में बैठ जाएं तो तब अलग प्रभाव होगा। त्रिक भाव के अंदर बैठ जाएं तब थोड़े से प्रभाव कमी के होंगे। इस कुंडली में सैकिंड हाउस जो स्वतंत्र भाव है। ये हाउस न केन्द्र है न ही उच्चय स्थान है न ही त्रिक भाव है और न ही त्रिकोण है तो स्वतंत्र भाव के अंदर मंगल शुक्र की ऐसी युति बैठ जाए तो अतिरिक्त वैवाहिक संबंध की तरफ छोटी उम्र में अपने किसी भी साथी के साथ में एक रिश्ता मजबूत करने की ओर बढ़ता है। ध्यान रखा जाना आवश्यक है। कर्म स्थान में ये युति हो जाए तो व्यक्ति को संभलकर रहने की आवश्यकता रहती है। लाभ स्थान में ऐसे ग्रहों की युति होने पर पार्टनर से लाभ मिलने की भी संभावना रहती है। शुक्र स्वग्रही होने पर इतने लाभ न भी दे, किन्तु फायदेमंद रहते हैं। गुरु को देखने का कार्य करेंगे तो स्थितियां उत्तम रहती है। व्यय स्थान में ये युति बन जाए तो व्यय की ओर लेकर जाती है। बाद में पछतावा हो सकता है। यहां नवमेश हुए गुरु भाग्याधिपति हुए गुरु, भाग्येश हुए गुरु साथ में दशम स्थान के आधिपति हुए मंगल। गुरु और मंगल की युति हो जाए तब भी बड़े ही अच्छे परिणाम मिलेंगे। उच्च पद पर आसीन हो सकता है, क्योंकि गुरु ज्ञान के आधिपति है, किन्तु मंगल जब ट्रिवन एप्रोच में स्वग्रही स्थितियों का निर्माण हो गया तो मंगल और गुरु दोनों यहां बैठ जाएं। नवमेश दशम स्थान में चले जाए दशमेश दसवें स्थान में ही बैठे हों तो अच्छा फलाफल देते हैं। तृतीय त्रिकोण साथ में उत्तरोत्तर बलि केन्द्र यहां साथ में बैठे हैं। गुरु खुद से द्वितीय स्थान के अंदर होंगे। ये युति अगर नवम स्थान के अंदर बन जाए तो अच्छे परिणाम देगी। किन्तु दशम स्थान से कम। क्योंकि मंगल खुद से द्वादश आ जाएंगे तो फलाफल में बारीकी से ध्यान रखना चाहिए। मंगल गुरु की युति सुख स्थान में बन रही है तो सुखों में भले ही न्यूनता दे मंगल। किन्तु यहां बैठकर अच्छे परिणाम देंगे। जमीन आदि हिसाब से व्यक्ति प्रखर चेतना वाला होगा। शनि सप्तमेश होकर पराक्रम स्थान में भले ही बुध की राशि में बैठ जाएं। बुध जो कि सूर्य और शनि के बीच में सेतु बनाते हैं। यदि पराक्रम स्थान में बैठ जाएं तो गृहस्थ में पराक्रम की कतई आवश्यकता नहीं है। किन्तु पराक्रम देते ही हैं जो कमजोर स्थितियों का निर्माण गृहस्थ में प्रतीत होती है। सूर्य और केतु जैसे ग्रह यदि सप्तम स्थान में हो तब भी गृहस्थ के हिसाब से अच्छा नहीं कहा जा सकता। सप्तमेश लाभ स्थान पराक्रम में गए गृहस्थ की पटरी हिलाने का काम किया। लाभ स्थान में गए तो व्यापारी क्षेत्र में प्रगति देेंगे। यहां सुख स्थान माता, भूमि, वाहन का ही स्थान नहीं है, जनता का भाव भी यही है। राजनीतिक क्षेत्र में अग्रसर होना चाहता है, उसके लिए जनता से प्रेम, जुड़ाव, सीधा संवाद और संबंध बढऩे की संभावनाएं अधिक है। यदि चन्द्रमा जैसे ग्रह सुख स्थान में हों। राहू जैसे ग्रह भी मजबूत स्थिति में हों। त्रिक के अंदर हो या फिर किसी और स्थिति में हो अच्छा परिणाम। साथ में शनि जैसे ग्रह ऐसी स्थितियां ले चुके हों तो राजनीतिक स्तर पर व्यक्ति खुद की अलग पहचान बनाता है। गुरु मजबूत स्थिति लिए हुए हों तब उसकी वाकपटुता बढ़ती है। बुध कम्युनिकेशन में सहायक सिद्ध होते हैं। सारी स्थितियों से फलाफल देखा जाता है केवल एक युति या ग्रह के आधार पर नहीं देखी जा सकती। चन्द्रमा जनता के भाव में सुदृढ़ बैठ जाएं कोई भी ग्रह, पापी ग्रह दृष्टि निक्षेपण नहीं हो तो राजनीतिक कद ऊंचा बढ़ता चला जाता है। दशा भी अनुकूल आ जाए तो और बढ़ोतरी होती है। सूर्य यहां सैकिंड हाउस के आधिपति होते हैं। ये विच्छेदी कारक स्थितियों का निर्माण करते हैं। घर से दूर जाकर अपना कार्य क्षेत्र सामंजस्य के साथ करना पड़ता है। पृथकतावादी स्थितियां अपने घर के साथ में प्रदान करते हैं। सूर्य कर्म स्थान में बैठ जाए जहां उच्चस्थ स्थितियों का निर्माण करने वाले होंगे तो बड़े सुदृढ़ परिणाम देंगे। सुखों के प्रति तो न्यूनता लाएंगे लेकिन कर्म में चार चांद लगाने का काम करेंगे। सूर्य बुध का बुद्धादित्य योग बन जाए तो कर्म में प्रखरता। बुध जब प्रबंधन स्थान में बैठ गए तो मैनेजमेंट के अंदर या फिर अपनी प्रबंधकीय क्षमताएं बढ़ोतरी प्रतीत होगी। जब सूर्य और बुध ऐसी स्थिति में बैठ जाएं और ऐसी स्थितियां दिखे तो निश्चित तौर पर प्रबंधन में आगे बढऩा चाहिए। राहू यदि व्यय स्थान में बैठ जाएं या केतु व्यय स्थान में बैठ जाए। केतु व्यय स्थान में होंगे तो नीचस्थ स्थितियों के अंदर हो जाएंगे। किन्तु नीचस्थ स्थितियों के साथ-साथ मोक्ष के कारक होकर जब यहां बैठेंगे तो बड़े सुदृढ़ परिणाम मोक्षकारक स्थितियों के साथ में निर्मित करते हुए प्रतीत होंगे। भले ही नीचस्थ स्थितियों का निर्माण केतु करते हों। यहां राहू जैसे ग्रह यदि बैठ जाएं तो रोग और शत्रु हंता स्थितियों का निर्माण करते हैं। रोग और शत्रु नहीं पनपेंगे। जिससे व्यक्ति आगे अग्रसर होता है। केतु बैठ जाए तो भले ही उच्चस्थ स्थितियों का निर्माण करें कुंजवत फल वाले होते हैं। ऐसी स्थिति में कर्ज आदि से सावधान रहने की आवश्यकता रहती है। स्नायु तंत्र के प्रति व्यक्ति को सक्रियता के साथ में आगे बढऩा चाहिए। मोटापा है तो बढ़ता चला जाता है। सजगता से ध्यान रखें। समय मूल्यांकन में सिद्ध होते हैं। पराक्रमेश जब बुध हो जाए अच्छी स्थिति को धारण करते हों तो वाणी में कम्युनिकेशन से पराक्रम को बढ़ाने का कार्य करेंगे। गुरु यहां बैठ गए तो नेष्टकारक, अच्छे परिणाम नहीं देंगे। सुखों में भी न्यूनता आएगी। सूर्य बुध का बुद्धादित्य योग बन गया तो देख सकते हैं हृदय को उद्वेलित करने वाली स्थितियां बनाएंगे। बुध नेष्टता और सूर्य उद्वेलित करेंगे। हृदय रोग के प्रति भी सावधानी रखे। गुरु की दशा आ जाए तो बड़े ही अच्छे परिणाम। साथ में चन्द्रमा की दशा क्षीण नहीं हो तो बड़े ही अच्छे परिणाम। 12 भावों के मध्य यदि बाधक आधिपति की बात की जाए तो वो होंगे शुक्र। एकादश स्थान को ही बाधा पहुंचाने वाले होंगे। इनकी दशा को इतना श्रेष्ठ नहीं कहा जाएगा। बाधक आधिपति वाली स्थितियों के बाद फलाफल की ओर जाएंगे तो स्थितियां अलग तरीके से सामने आएगी। केवल एक युति के माध्यम से फलाफल नहीं करना चाहिए सम्पूर्ण स्थितियों का आंकलन जरूरी होता है। चन्द्रमा के बीज मंत्र के साथ आगे बढऩा चाहिए।
Comments
Post a Comment