नाम जपना या मंत्र जपना इसका प्रभाव कितना होता है तुलसीदास जी कि इस बात में समाहित हो जाता है कि 'कलजुग केवल नाम आधारा। नाम जपते-जपते ही प्रभु मिल जाए, इससे सरल और क्या उपाय हो सकता है। प्रभु का मिलना वैसे तो ऋषि-मुनियों को बड़ा मुश्किल होता है, लेकिन अब वो पहले वाला युग रहा नहीं तो हजारों वर्षों पहले ही कह दिया गया कि प्रभु का मिलन तो केवल नाम जपने से ही हो जाएगा। लेकिन आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में इसके लिए भी मनुष्य के पास शायद समय नहीं मिल पाता। नाम जप का ही दूसरा स्वरूप मंत्र जाप होता है। मंत्र में भी किसी न किसी देव-आराध्य के बीज मंत्र की शक्ति निहित होती है, जिसके फलीभूत होने में कोई संशय नहीं रह जाता। नित्य नियमपूर्वक मंत्र जाप का संकल्प करके एक माला ही प्रतिदिन जाप कर ली जाए तो प्रत्यक्ष लाभ मन में शांति के अहसास से शुरू हो जाता है जो आगे चलकर आने वाली समस्याओं के समाधान में भी सहायक सिद्ध होता जाता है। यानि मंत्र जाप की शक्ति से मनुष्य जीवन में दु:ख, चिंता और भय से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर लेता है।
12 राशियों में 9 ग्रहों के विचरने से 108 प्रकार की शुभ-अशुभ स्थितियों का निर्माण होता है, जो हर मानव को प्रभावित करती हैं। हर व्यक्ति यह चाहता है कि उसके साथ सिर्फ अच्छी परिस्थितियां हों, पर बुरी परिस्थितियां भी आ जाती हैं और हर कोई मन-मसोसकर कहता है कि होनी को कौन टाल सकता है? पर बुरी परिस्थितियों को टाला जा सकता है या उसका प्रभाव इतना कम किया जा सकता है कि वे नाममात्र का नुकसान कर चली जाएं।
कलयुग में होने का एक ही फायदा है कि हम मंत्र जप कर बड़े-बड़े तप-अनुष्ठान का लाभ पा सकते हैं। मंत्र अगर गुरु ने दीक्षा देकर दिया हो तो और प्रभावी होता है। जिन्होंने मंत्र सिद्ध किया हुआ हो, ऐसे महापुरुषों द्वारा मिला हुआ मंत्र साधक को भी सिद्धावस्था में पहुंचाने में सक्षम होता है।
सद्गुरु से मिला हुआ मंत्र 'सबीज मंत्र कहलाता है, क्योंकि उसमें परमेश्वर का अनुभव कराने वाली शक्ति निहित होती है। मंत्र जप से एक तरंग का निर्माण होता है, जो मन को उध्र्वगामी बनाते हैं। जिस तरह पानी हमेशा नीचे की ओर बहता है उसी तरह मन हमेशा पतन की ओर बढ़ता है अगर उसे मंत्र जप की तरंग का बल न मिले। मंत्र जाप का प्रभाव सूक्ष्म किंतु गहरा होता है।
जब लक्ष्मणजी ने मंत्र जप कर सीताजी की कुटीर के चारों तरफ भूमि पर एक रेखा खींच दी तो लंकाधिपति रावण तक उस लक्ष्मण रेखा को न लांघ सका। हालांकि रावण मायावी विद्याओं का जानकार था। किंतु ज्यों ही वह रेखा को लांघने की इच्छा करता, त्यों ही उसके सारे शरीर में जलन होने लगती थी।
मंत्र जप से पुराने संस्कार हटते जाते हैं, जापक में सौम्यता आती-जाती है और उसका आत्मिक बल बढ़ता जाता है। मंत्र जप से चित्त पावन होने लगता है। रक्त के कण पवित्र होने लगते हैं। दु:ख, चिंता, भय, शोक, रोग आदि निवृत्त होने लगते हैं। सुख-समृद्धि और सफलता की प्राप्ति में मदद मिलने लगती है।
जैसे ध्वनि तरंगें दूर-दूर तक जाती हैं, ऐसे ही नाद-जप की तरंगें हमारे अंतरमन में गहरे उतर जाती हैं तथा पिछले कई जन्मों के पाप मिटा देती हैं। इससे हमारे अंदर शक्ति-सामथ्र्य प्रकट होने लगता है और बुद्धि का विकास होने लगता है। अधिक मंत्र जप से दूरदर्शन, दूरश्रवण आदि सिद्धियां आने लगती हैं, किंतु साधक को चाहिए कि वह इन सिद्धियों के चक्कर में न पड़े, वरन अंतिम लक्ष्य परमात्मा-प्राप्ति में ही निरंतर संलग्न रहे।
मंत्र जापक को व्यक्तिगत जीवन में सफलता तथा सामाजिक जीवन में सम्मान मिलता है। मंत्र जप मानव के भीतर की सोई हुई चेतना को जगाकर उसकी महानता को प्रकट कर देता है। यहां तक कि जप से जीवात्मा ब्रह्म-परमात्म पद तक पहुंचने की क्षमता भी विकसित कर लेता है। इसलिए रोज किसी एक मंत्र का हो सके, उतना अधिक से अधिक जाप करने की अच्छी आदत अवश्य विकसित करें जिससे जीवन में सुगमता आती प्रतीत होगी।
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