धर्म ग्रंथों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन किया गया दान-पुण्य का फल कई गुण बढ़कर मिलने वाला होता है। मकर संक्रांति के दिन तिल का उपयोग छ: प्रकार से करना चाहिए। जल में तिल डालकर स्नान, तिल के तेल से शरीर पर मालिश करके स्नान, हवन सामग्री में तिल का उपयोग, तिलयुक्त जल का सेवन, तिल व गुडय़ुक्त मिठाई व भोजन का सेवन, तिल का दान आदि करने से शारीरिक, धार्मिक लाभ तथा पुण्य प्राप्त होते हैं।
व्रतधारियों को इसके अतिरिक्त पूजन में चंदन से अष्ठदल का कमल बनाकर उसमें सूर्यदेव का चित्र स्थापित करें। शाम को तिलयुक्त भोजन से अपना व्रत खोलें।
यथाशक्ति अनुसार योग्य ब्राह्मणों व गरीबों को वस्त्र दान, तिल-गुड़ तथा तेल आदि का दान दें। गाय को चारा खिलाएं। तिल मिश्रित जल से महादेवजी का अभिषेक करें।
सूर्य भगवान को अघ्र्य देना चाहिए। तांबे के लोटे में कुंकू, रक्त चंदन, लाल पुष्प आदि मिश्रित जल से पूर्व मुखी होकर तीन बार सूर्य को जल दें। पश्चात अपने स्थान पर ही खड़े होकर सात परिक्रमा करें। उसके बाद सूर्याष्टक, गायत्री मंत्र तथा आदित्य हृदय स्रोत का पाठ करें।
अपने परिचितों, संबंधियों मित्रों आदि को उनकी पात्रता तथा अपनी क्षमता अनुसार तिल-गुड़ से बने खाद्य पदार्थ, खिचड़ी, वस्त्र, सुहाग सामग्री, मुद्रा आदि का दान करें। संभव हो तो किसी नदी में स्नान करना चाहिए।
संक्रांति का धार्मिक महत्व-
* पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैं, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है। हालांकि ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य और शनि का तालमेल संभव नहीं, लेकिन इस दिन सूर्य खुद अपने पुत्र के घर जाते हैं। इसलिए पुराणों में यह दिन पिता-पुत्र के संबंधों में निकटता की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।
* इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।
* गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।
मकर संक्रांति पर दान-पुण्य का फल तो मिलता ही है, साथ ही जीवन में आई नकरात्मकता को खत्म कर सकारात्मक की ओर उन्मुख करने में भी सहायक सिद्ध होती है।
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