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नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में...

वृषभ लग्न की कुंडली में कौन-कौन सी योग कारक स्थितियां बनती हैं?

वृषभ लग्न की कुंडली में क्या होती है योग कारक स्थितियां। वहां के अधिपति कौन होते हैं। भाग्येश और लग्नेश की दशाएं किस तरह के फल लेकर आती है जीवन के कौन से क्षेत्र में सावधान रहने की आवश्यकता होती है और साथ में यदि हम कोई डिजीज सेे परेशान है तो उससे एवर्ट कैसे करें खुद को। किस तरह से बचें। कौन से डिजीजेज की संभावनाएं बहुत अधिक रहती हैं। कौन सा क्षेत्र हमें बहुत अधिक बेनिफिट देने वाला होता है। ये सब कुछ और चर्चा का विषय हो जाता है जब हम वृषभ लग्न की कुंडली के जातक की बात करते हैं। यदि आप भी अपनी कुंडली खोलते हैं और लग्न कुंडली में 2 नम्बर लिखा हुआ पाते है, लग्न स्थान पर तो इसका अर्थ यही है कि आप वृषभ लग्न की कुंडली के जातक हैं। शुक्र प्रधान ग्रह की कुंडली के जातक हैं। यहां एक व्यवस्था बड़ी ही अलग तरह की हमारे सामने आती है। आप देखिये। वृषभ लग्न की कुंडली की जब भी हम बात करते हैं तो लग्नेश होंगे शुक्र इसके साथ में षष्ठेश भी होंगे शुक्र। मेष लग्न की जब मैंने बात की थी तो लग्नेश थे मंगल और अष्टमेश भी थे मंगल। अब इसके साथ में मिथुन लग्न की जब हम बात करेंगे तो लग्नेश बुध होंगे और इसके साथ में नेष्ट स्थिति के भी एक तरह से आधिपति होंगे जहां पर वो नेष्ट होते हैं यानि चतुर्थेश भी होंगे बुध। तो ये एक तरह से काम्बीनेशन के साथ में स्थितियां चलती हैं यानि कि बिलकुल तराजू के दोनों पलड़े बराबर ही रहते हैं। बेफिक्री का अंदाज उसके साथ में ही जीना जो भी स्थितियां सामने आ रही हैं बड़ा ही हंस कर उसका मुकाबला करना। जिस भी क्षेत्र में चले गए आनंदित रह कर लगातार आगे बढ़ते चले जाना। कल की पोजीशन्स के साथ में बहुत अधिक फिक्रमंद नहीं होता। और जैसे मिथुन और कन्या लग्न की कुंडली के जातक वाचाल प्रवृत्ति के होते हैं। वाचाल प्रवृत्ति यानि कि बहुत ज्यादा बातुनी स्थितियां उनके साथ में रहती हैं। काफी हद तक चीजों के साथ में एक्सपटिबिलिटी होती है। कई बार ऐसे लोग खुद को खुलकर दूसरों के सामने रख देते हैं जहां पर एक्सपोज होने की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन हम जब भी वृषभ लग्न की कुंडली की जातक की बात करते हैं, बातुनी ये भी होते हैं। बेफिक्री का अंदाज इनका भी होता है। लेकिन अपनी जिन्दगी के संघर्ष और गाथाएं हरेक इंसान के साथ में खुलकर नहीं रखते। एक सबकान्सियस एप्रोच में पोजीशन बड़ी ही कन्डेविव में क्लियर होती है मुझे कहां कौन सी बात किस तरह से करनी है। होती है तो वो भी एक लिमिट तक। संबंध है तो वो भी एक लिमिट तक। प्रत्येक व्यक्ति को अपने औरा के अंदर एंटर करने की जगह वो नहीं देते। भले ही कितना ही क्लोज रिलेशन हो ये वृषभ लग्न की कुंडली के जातक की विशेषता रहती है। सर्वप्रथम हम शुक्र प्रधान कुंडली है तो उसीसे चर्चा करना शुरू करते हैं। लग्नेश हुए और साथ में षष्ठेश भी हुए शुक्र। तो लग्नेश की स्थिति यदि लग्नेश पॉवरफुल पोजीशन के अंदर बैठ जाएं। यानि कि भले ही उच्चस्थ स्थितियों के अंदर बैठ जाएं। एकादश स्थान के अंदर बैठ जाएं। बड़े ही सुदृढ़ रिजल्ट देने वाले होंगे। इसके साथ में ये चतुर्थ स्थान के अंदर बैठ जाते हैं जहां पर सुखों के अनुभूति देने वाले होते हैं। लेकिन सूर्य की राशि में जाकर बैठेंगे तो थोड़े से फल कम करने का कार्य करेंगे। पराक्रम स्थान के अंदर यदि चन्द्रमा की राशि के अंदर जाकर बैठ जाएंगे तो वो कल के अंदर व्यक्ति को बड़ा ही अच्छा वरदहस्त देंगे। लेकिन मेंटली एक तरह से सुखों के प्रति बहुत अधिक एक दृष्टि वे के अंदर आकर्षित रखेंगे। इसलिए वो दिक्कत और समस्या उनके साथ में आती ही आती है। इसके साथ जहां पर इन्हें कारक भाव का नाश करने वाला माना गया है। यानि कि सप्तम स्थान जो मंगल की राशि में जाकर ये विराजित हो जाएं जहां के कारक अधिपति खुद होते हैं। इतने बढिय़ा रिजल्ट यहां नहीं देते। कई बार गृहस्थ के अंदर एक्स्ट्रा मेंटल वाली पोजीशन देखी जाती है। व्यापार में तो भले ही अच्छी सोच और समझ दें और जब वृषभ लग्न का जातक जो कि सॉफ्ट हार्टेड होता है, एक्सपबिलिटि एक हद तक मिथुन की तरह तो नहीं एक्सपबिलिटि अच्छी होती है तो वहां दोस्ती की स्थितियों के अंदर बहुत ही जल्दी आ जाते हैं। दूसरों के लिए खुद  से ज्यादा कन्फर्ट जोन बना देना इतनी आदत में शुमार होता है। तो स्थिति बड़ी ही अच्छी होती है। लेकिन साथ में षष्टेश भी होंगे। और लग्नेश की दशा आ जाएगी यानि कि शुक्र की दशा आ जाएगी तो आधा अंतर भोगा जाएगा लग्नेश का। बड़ी ही सोलिड पोजीशन रहेगी। लेकिन जब आधा अंतर षष्टेश का भोग जाएगा उस समय हमें ध्यान रखने की आवश्यकता रहती है। ध्यान रखने की आवश्यकता कैसे। यदि आप यूरिन डिजिट से परेशान है, आपको यूरिन इन्फेक्शन बार-बार होता है। दांतों की तकलीफ रहती है। इसके साथ-साथ यदि महिला है और उन्हें गर्भ धारण में कई बार दिक्कतें होती हैं तो ये दशा यदि आ जाए। ऐश्वर्य की स्थितियां पूर्ण रूप से प्रदान करेंगे लेकिन साथ में इन पोजीशन्स की वजह से कहीं न कहीं एक धीमापन भी जिंदगी में आएगा ही आएगा। तो यूरिन डिजिजेज हो गए। इसके साथ-साथ मधुमेह की जो स्थितियां होती हैं उनका भी विशेष तौर पर ऐसी दशा आ जाने पर ध्यान रखना चाहिए जातक को। यानि कि डायबिटिज से भी लिवर 2 की जो डायबिटिज होती है उससे भी ग्रसित रखने का कार्य करते हैं शुक्र इस पोजीशन के अंदर। यदि कमजोर पोजीशन के अंदर बैठकर। अब मान लीजिये लाभ स्थान के अंदर बैठकर लाभ स्थान में इतने अच्छे रिजल्ट नहीं देते। लेकिन उच्चस्थ हो जाएंगे तो इसलिए अपने रिजल्ट में कहीं न कहीं बढ़ावा देने का कार्य करेंगे। और इसके साथ में अपने घर से 6-8 का संबंध बनाएंगे। एक से 3-11 का संबंध बनाएंगे दूसरे से 6-8 का संबंध बनाएंगे। रोग पर बहुत अच्छे से नियंत्रण नहीं आ पाएगा। ऐसी पोजीशन में जब भी दशाएं आए तो आपको इस स्थिति के रोग से भी सावधान रहना चाहिए। दशम स्थान में इसी कुंडली में यदि राहू बैठ जाते हैं जो कि दशम स्थान में अकेले बैठे होने पर कला के क्षेत्र से जुड़ते हैं और शुक्र यदि पॉवरफुल पोजीशन के अंदर हों यानि कि त्रिकोण के अंदर बैठे हुए हों, त्रिकोण के साथ लाभ स्थान में या फिर लग्नेश होकर खुद ही लग्न स्थान के अंदर बैठे हुए हों। ऐसी पोजीशन के अंदर कला में वो व्यक्ति पीक एचीव करता है। यानि कि एक बड़ी ही अच्छी पोजीशन को पाने वाला होता है। इस तरह से भी ये स्थिति बड़ी ही अच्छी होती है। अब यदि योग कारी पोजीशन की बात की जाए। हम यहां ज्यादातर क्या बात करते हैं कि योग कारी शनि हुए यहां पर क्योंकि नवमेश भी हुए और साथ में दशमेश भी हो गए तो इस तरह से योग कारी होकर शनि बड़े ही अच्छे रिजल्ट देने वाले होंगे। लेकिन यहां एक बात बहुत अच्छे से ध्यान रखने लायक होती है कि यदि शनि की दशा आ जाए तो शनि बाधक अधिपति भी होते हैं। वृषभ लग्न के लिए शनि नवम स्थान को ही बाधा पहुंचाने वाले होते हैं। जहां मेष लग्न की हम बात करते हैं तो लाभ स्थान को बाधा पहुंचाने वाले होंगे। और वृषभ लग्न की यदि हम बात करें तो शनि नवम स्थान को ही बाधा पहुंचाने वाले होंगे। और बाधक अधिपति की दशा जिंदगी के अंदर इतनी सुदृढ़ नहीं कही जा सकती। उपाय जनित व्यवस्थाओं से व्यक्ति को जरूर चलना चाहिए। क्योंकि नवमेश और दशमेश भले ही हैं, भाग्येश और कर्मेश हैं, इसके साथ-साथ बाधक अधिपति भी होंगे। बाधक अधिपति अपने कार्यों के अंदर कहीं-न-कहीं बाधा पहुंचाने का कार्य करते ही हैं। यदि शनि सोलिड पोजीशन के अंदर बैठ जाएं। ऐसा व्यक्ति मार्केटिंग से जुड़ जाए तो बड़ी ही अच्छी लाइट लाइट पाता है और टॉप लेवल के ऊपर पहुंचने का भी उसका एक तरह से जो सपना है वो साकार होता है। भाग्येश जब भी शनि होते हैं तो भाग्य में दृढ़ता देने का कार्य करते हैं। भाग्य एकदम आसानी के साथ में साथ देता हुआ नहीं प्रतीत होता। यानि कि जहां आपने क्लिक किया और वहां चीजें आपके अनुसार आ गई वैसा नहीं रहता। भाग्य के साथ में थोड़ी सी संघर्ष वाली पोजीशन्स रहती है। लेकिन एंड रिजल्ट के साथ में शनि आपको बड़े ही अच्छे फल प्रतिबिम्बित करने वाले होते हैं। तीसरी दृष्टि से लाभ स्थान को देखते हैं तो ये पोजीशन भी शनि अपने हिसाब से बड़ी ही अच्छी बनाते हैं। लेकिन बाधक अधिपति के हिसाब से ध्यान रखना अतिआवश्यक रह जाता है। यदि ऐसी पोजीशन के अंदर शनि जन्मगत अवस्थाओं के अंदर यानि कि लग्न अवस्थाओं के अंदर ही दशम स्थान के अंदर बैठे हुए हों तो विवाह में विलम्ब भी देखा गया है। इसका भी हमें ध्यान रखना चाहिए। अब बुध और सूर्य जो कि लगभग आसपास ही चलते हैं एक से दो घर का। दो घर का तो बहुत ही रेयर डिफरेंस देखा जाता है। आसपास चलने वाली पोजीशन के अंदर बुद्धादित्य योग ज्यादातर कुंडलियों के अंदर परिलक्षित होता ही होता है। लेकिन जब आप वृषभ लग्न की बात करते हैं और बुद्धादित्य योग परिलक्षित होता हुआ देखें तो ये याद रखना चाहिए कि 1 केन्द्र और 1 त्रिकोण का अधिपति जब भी साथ में बैठेगा यानि कि बुद्धादित्य बनाएगा तो बड़े ही शानदार रिजल्ट देगा। नेम फेम वाली पोजीशन्स के अंदर कर्म के साथ पहुंचाएगा। यदि वो व्यक्ति अच्छे से कर्मशील हो गया। शुक्र जहां फलेम ब्लाइंड एप्रोच देता है उसका थोड़ा सा कम किया। और कर्मशीलता की ओर अग्रसर हुआ तो उसका नाम एक प्रखरता के साथ में शीर्ष की ओर पहुंचता हुआ दिखाई देता है। क्योंकि बुद्धादित्य योग चतुर्थेश और पंचमेश के साथ में यहां बन रहा है। हाउसेस की पोजीशन भी देखना हमारे लिए बहुत अधिक लाभदायक होता है। अब जब बुध की बात चल पड़ी है तो यहां एक और स्थिति बड़ी ही सुन्दर बनती है। बुध यहां पर द्वितीयेश भी होते हैं। वाणी का कारक भाव तो है यहां गुरु का। लेकिन जब द्वितीयेश हो जाएंगे तो एक तरह से वाणी के भाव के अधिपति भी हो जाएंगे। सूर्य के साथ में बुद्धादित्य योग बना है और शुक्र अच्छी पोजीशन के अंदर हो तो वोकल के साथ आपको बहुत अच्छा ओरियटल बनाने का काम भी करते हैं। गुरु की यदि कहीं से इनके ऊपर दृष्टि संबंध हो जाए तो आप समझ लीजिये कि शीर्षस्थ स्थितियों के अंदर आप उस व्यक्ति को पहुंचता हुआ देखेंगे। क्योंकि एक तो पंचमेश हो गए और पंचमेश के साथ में द्वितीयेश हो गए। शिक्षा जिससे जो पाया उसको बहुत अच्छे से ग्रहण करने का काम किया। स्मृतियों के अंदर चार चांद लगाने का काम किया। और वाणी के अंदर जो तेज, प्रखरता होनी चाहिए, प्रत्येक शब्द के हमारे पास जब होते हैं तब हम बड़े ही अच्छे वक्ता साबित हो जाते हैं। लेकिन इस स्थिति के अंदर महत्वपूर्ण प्लानेट नपुंसक ग्रह को कोई भी यदि मजबूत ग्रह उसके साथ में बैठा हुआ प्रतीत हो और इसके साथ में दूसरी पोजीशन अंदर मंगल जैसे ग्रह यदि दृष्टि गोचर भी करते हों तो उस पोजीशन को अच्छा नहीं कहा जा सकता। इस समय हमें बुध जनित उपायों की ओर जरूर जाना चाहिए। क्योंकि आप सॉफ्ट हार्टेड हैं, आपकी वाणी के ऊपर आपकी कमांड आपको लगातार आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती रहेगी। कम्युनिकेशन का युग है। जहां भी आप जाएं यदि आपने कम्युनिकेशन के साथ लोगों को जीत लिया तो बड़ी ही अच्छी पोजीशन रहती है। अब यहां हम देखते हैं कि ये जो स्टेमर करने वाली बच्चों में देखते हैं जो वृषभ लग्न के जातकों में यदि शुक्र द्वितीय घर में बैठ जाएं तो जो अटकना जिसे हम कहते हैं, स्टेमर करने वाली स्थितियां जिसे हम कहते हैं वो बहुत ही अधिक होती है। शुक्र जनित उपायों के लिए हमें जरूर जाना चाहिए। इसे हम रोग नहीं मान सकते। लेकिन हमारे कान्फिडेंश को हनन करने का कार्य करती है ये स्थिति। तो शुक्र जहां यहां बैठकर विनम्रता देंगे, काव्यात्मक शैली देंगे लेकिन स्टेमर करने वाली पोजीशन भी देंगे और वही बुध की राशि में भी जाकर बैठ जाएंगे तो ये स्थिति और अधिक बढ़ सकती है। इसे रोकने के लिए हमें उपाय जनित व्यवस्थाओं के लिए जरूर जाना चाहिए। सूर्य यदि यहां स्वग्रही बैठ जाएं, हृदय को उद्वेलित रखने का कार्य करेंगे। जो ऐश्वर्य भोगने वाली स्थितियां शुक्र प्रधान जातक के लिए होती है वहां सूर्य यहां बैठकर कहीं न कहीं बाधा पहुंचाने का काम करेंगे। ऐसी स्थिति में मधुमेह के यदि रोगी हैं आप तो आप हृदय वाली स्थितियों से भी बहुत अधिक सावधान रहना चाहिए। घूमने-फिरने को सुबह और शाम भ्रमण करने को अपनी आदत में जरूर आपको शुमार करना चाहिए। इसके साथ में यदि हम गुरु की बात करते हैं। गुरु यहां पर लाभेश होंगे। लाभेश होकर लाभ स्थान में बैठ जाएंगे तो कारक भाव का हनन करने वाले होंगे। ये अलग बात है। लेकिन गृहस्थ में बड़ी ही अच्छी पोजीशन रखेंगे। और इसके साथ-साथ जब पंचम स्थान को देखेंगे जो कि शिक्षा का भाव भी है और बुध राशि प्रधान ये घर है तो बड़े ही अच्छे रिजल्ट शिक्षा के हिसाब से प्रतिबिम्बित हो सकते हैं। गुरु भले ही लाभ स्थान के अंदर बैठें। लाभ में हनन करने वाले हो, शिक्षा में बेनिफिट पहुंचाएंगे। इसके साथ में आप यदि सर्विस की पोजीशन्स से जुड़े हुए हैं तो सर्विस से भी लाभ देने का कार्य करेंगे। दशम स्थान के अंदर बैठ जाते हैं शनि की राशि में यदि आकर बैठ जाते हैं। लेकिन यहां पर एक तरह से दशम भाव में वृद्धि करने वाले होंगे। कर्म भाव में वृद्धि करने वाले होंगे। मैनेजमेंट की पोजीशन्स को देखते हुए बुध यहां बैठ जाएं तब भी बहुत अच्छा रिजल्ट देंगे। सूर्य जब यहां बैठ जाते हैं। शनि की राशि में होकर अपने फलों में थोड़ी-सी न्यूनता देते हैं। लेकिन साथ में सुख स्थान को अपने हाउस को देखने का जब भी काम करते हैं तो सुखों में यहां वृद्धि करने का कार्य करेंगे। जब दूसरे जातकों की हम बात करते हैं। दूसरे लग्नों की बात करते हैं तो ये पोजीशन नहीं बैठती। लेकिन जब कोई भी ग्रह अपने भाव को देखता है तो उसमें वृद्धि करने का कार्य करेगा। वहां पर सुखों में वृद्धि होगी। साथ में यदि आप जमीन आदि के सौदें करते हैं। यदि आप वाहन आदि के सौदे करते हैं तो बड़ा ही अच्छा रिजल्ट आपके लिए प्रतिबिम्बित होता है। मंगल की यदि बात की जाए तो मंगल द्वादेश होकर साथ में सप्तमेश भी होंगे। इसलिए जो फ्लेम वर्ट एप्रोच है यदि मंगल यहां सप्तम स्थान के अंदर आकर बैठ गए तो गृहस्थ के अंदर न्यूनाधिक कलह मंगल-शुक्र साथ में बैठ जाएं तो एक तरह से व्यक्ति लव अफेयर्स के साथ में आगे बढ़ता है। कई बार कन्वर्ट करने की पोजीशन होती है लेकिन जब फेसिनेशन खत्म हुई और एक हासिल करने वाली प्रवृति जो हमारे अंदर थी कि हमें ये अचीव करना है, वो बिलकुल खत्म होकर नेराश्रय वाली स्थितियों के अंदर पहुंचाने का कार्य भी कर देते हैं। एक बात और ध्यान रखनी चाहिए कि जब हम भोग और विलास की तरफ जाते हैं तो एक पीक पर पहुंच कर नेराश्रय आने लगता है। नलीफाइड एप्रोच आने लगती है अब आगे क्या। इतना कुछ देख लिया, इतना कुछ घूम लिया, फिर लिया। भोग की स्थितियों में बहुत अच्छे से चले गए, लेकिन अब आगे क्या। जब ऐसा नेराश्रय आता है तो व्यक्ति कर्म की तरफ प्रवृत्त होता है। आध्यात्म की मार्ग की तरफ बहुत अच्छे से प्रवृत्त होता है। सेल्फ एनेलेसिस लगातार बढ़ता चला जाता है। खुद के साथ में जो विश्लेषण करने की क्षमताएं हैं वो लेटर ऐज के ऊपर जाकर हम बढ़ती हुई प्रतीत करते हैं ऐसे व्यक्ति के साथ। जब मैंने राहू की यहां बात की थी कि कला के क्षेत्र में वृद्धि करेंगे केतु यहां बैठकर। मान, सम्पत्ति और इसके साथ-साथ जो भी भूमि वाली स्थितियां हैं उनसे लालायित भी रखने का कार्य करेंगे। प्रत्येक सुख के लिए केतु लालायित रखने का कार्य करेंगे। तो एक डिस्टरबेंस वाला फेक्टर भी देंगे। कला के साथ में राहू ने जोड़ा और केतु यहां यदि बैठ गए तो इस पोजीशन के अंदर हमें विशेष तौर पर ये ध्यान रखना चाहिए कि खुद के मन को संतुलित बनाकर हम लगातार आगे चलते चले जाएं। अब इसके साथ में यदि राहू और केतु दूसरे और आठवें की पोजीशन ले ले तो घात देने का काम करते हैं। बचपन में या तो कहीं न कहीं किसी डिस्टेंस से गिराएंगे। ऊपर से नीचे गिराने का काम। या फिर बचपन में बहुत अधिक बीमार रखने का कार्य भी करेंगे। तो इस पोजीशन में हमें सावधान रहने की आवश्यकता होती है। ये दोनों विच्छेदीकारक ग्रह हैं। यदि लग्न स्थान में और सप्तम के अंदर बैठ जाएं तो विच्छेद देने का कार्य भी करते हैं। यानि कि अपने घर-परिवार से दूरी दिलाने का काम भी करते हैं। शुक्र यदि यहां केतु के साथ बैठ जाएं। शुक्र यदि यहां राहू के साथ बैठ जाएं। अपने घर-परिवार से न चाहते हुए भी विच्छेद वाली स्थितियां बनाएंगे। इसके साथ में चन्द्रमा जैसे सौम्य ग्रह पराक्रमेश होते हैं। भाई-बहनों का बहुत ही अधिक दुलारा और लाडला होता है ऐसा व्यक्ति। पराक्रमेश होकर यदि लग्न स्थान के अंदर बैठ जाएं तो चार्मिंग पर्सनेलटी होगी। हीरो जैसी जो पोजीशन्स होती है, ऐक्टर जैसी जो पोजीशन्स होती है। ऐसी लाइफ स्टाइल में चार चांद लगाने का काम करते हैं यहां बैठकर चन्द्रमा कि उस व्यक्ति का भाग्य और उस व्यक्ति का औरा देखते हुए ही बनता है। आकर्षित करने वाली स्थितियां जहां सूर्य व्यक्ति के औरा को एक तरह से चमकृत करने का काम करते हैं। एक तरह से लोग डिस्टेंट मेंटन करके चलते हैं कि ये तो बड़ा ही प्रखर व्यक्ति है, लेकिन जब ऐसे सौम्य ग्रह लग्न स्थान के अंदर उच्चस्थ आकर बैठ जाएं तो आप देखिये कि उस व्यक्ति में एक मैग्नेटिक एप्रोच होती है लोगों को खींचने की। जबरदस्त तरीके से वो खींचेगा। यदि आपकी कुंडली में भी ऐसी स्थितियां बन रही हैं तो आप उससे लगातार खुद को जोडिय़े और उसी स्तर के साथ में आगे बढऩे का काम करिये। बड़े ही अच्छे रिजल्ट आपके सामने प्रतिबिम्बित होंगे। मुख्यतर बात की जाए तो चतुर्थेश और पंचमेश की स्थितियां बड़ी ही जबरदस्त। इसके साथ में नवमेश और दशमेश की स्थितियां। शनि हो गए ये बड़ी ही शानदार। बाधक अधिपति के हिसाब से ध्यान रखने की हमें आवश्यकता है। मंगल का ऐसी पोजीशन्स के अंदर हमें बहुत अच्छे से विचार कर ही फलाफल देना चाहिए। अष्टमेश जब गुरु होंगे और किसी मजबूत पोजीशन के अंदर जाकर बैठ जाएंगे तो मोटापा देने का कार्य भी करेंगे। खान-पान के ऊपर नियंत्रण ऐसे व्यक्ति को रखना चाहिए। नवमांश आदि की स्थितियां भी आप जरूर देखें। आनंद एटरनल ब्लेस आपकी प्रवृति है उसको कभी मत छोडिय़े। उसके साथ में ही लगातार आगे बढ़ते चले जाइये। तो ये एक रहा समग्र विश्लेषण वृषभ लग्न के जातकों के लिए। कहां, कौन से क्षेत्र में वो विकासशील हो सकते हैं। ये सब कुछ हम इस तरह से यदि ध्यान रखकर आगे बढ़ें तो हमारे लिए जीवन सुफल और सुगम हो सकता है और जीवन का एक अद्भुत लक्ष्य वो है आत्मा का आनंद। जीवन का एक जो अद्भुत परिलक्षण हम कह सकते हैं उसे कह सकते हैं आत्मा का आनंद। इस तरफ व्यक्ति बढ़ पाता है। इसी तरफ आप जिंदगी को बिताइये। इसी तरह आगे चलिये। सपने और लक्ष्य आपके इंतजार में है।

Comments

  1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद गुरुजी। आपने बहुत गहराई से वर्णन किया है।🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️

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  2. Bahoot badhiya, aapke sampark sutra kya hai, aapse bat karni hai

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  3. Sir aapse kundli prediction karna ho to kese sampark kare

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  4. Very good prediction. Thank you for your

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