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नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में...

10. वेद-योग

लगातार..........
भारतीय संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं के हिसाब से योग में वो शक्ति है कि इससे ब्रह्मांड की किसी भी शक्ति को साधा जा सकता है। गीता में योग का कई जगह पर जिक्र मिलता है। कृष्ण ने योग के तीन प्रकार बताए हैं- ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग। जबकि योग प्रदीप में इसके दस प्रकार बताए गए हैं 1. राज योग, 2. अष्टांग योग, 3. हठ योग, 4. लय योग, 5. ध्यान योग, 6. भक्ति योग, 7. क्रिया योग, 8. मंत्र योग, 9. कर्म योग और 10. ज्ञान योग। इसके अलावा धर्म योग, तंत्र योग, नाद योग का भी जिक्र कई ग्रन्थों में आता है। वेद, पुराण आदि ग्रन्थों में भी योग के अनेक प्रकार बताए गए हैं। अब आज के संदर्भ में हम जिस योग की बात करते हैं उसे अष्टांग योग का नाम दिया जाता है। पतंजलि ने भी मुख्य रूप से योग के इसी रूप को महत्व दिया है। अष्टांग योग अर्थात योग के आठ अंग। यह आठ अंग सभी धर्मों का सार माने जाते हैं। ये आठ अंग हैं (1) यम (2) नियम (3) आसन (4) प्राणायम (5) प्रत्याहार (6) धारणा (7) ध्यान और (8) समाधि।
योग की उत्पत्ति तो वैदिक संहिताओं और वेदों में 900 से 500 बीसी के बीच तपस्वियों का वर्णन मिलता है। योग करने वाले साधक को भी योगी ही कहा जाता है। योगी शब्द तपस्वियों के लिए भी इस्तेमाल होता है। धार्मिक मान्यताओं और ग्रन्थों में भी साधुओं और साधकों की तस्वीर में साधना के दौरान उन्हें योग मुद्रा में ही दिखाया जाता है। महात्मा बुद्ध से लेकर महावीर स्वामी को भी पद्मासन मुद्रा में दिखाया जाता है। मान्यताओं के हिसाब से योग का उपदेश सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ ब्रह्मा ने सनकादिकों को और उसके पश्चात विवस्वान यानि कि सूर्य को दिया था। बाद में ये ज्ञान दो शखाओं में विभक्त हो गया। एक ब्रह्मयोग और दूसरा कर्मयोग। ब्रह्मयोग की परम्परा सनक, सनन्दन, सनातन, कपिल, आसुरि, वोढु और पच्चंशिख नारद-शुकादिकों ने शुरू की थी। ये ब्रह्मयोग लोगों के बीच में ज्ञान, अध्यात्म और सांख्य योग नाम से प्रसिद्ध हुआ।
वहीं कर्मयोग की परम्परा विवस्वान की है। विवस्वान ने मनु को, मनु ने इक्ष्वाकु को, इक्ष्वाकु ने राजर्षियों एवं प्रजाओं को योग का उपदेश दिया। उक्त सभी बातों का वेद और पुराणों में उल्लेख मिलता है। वेद को संसार की प्रथम पुस्तक माना जाता है जिसका उत्पत्ति काल लगभग 10000 वर्ष पूर्व बताया जाता है। वहीं पुरातत्ववेत्ताओं की मानें तो योग की उत्पत्ति 5000 ई.पू. में हुई। गुरु-शिष्य परम्परा के द्वारा योग का ज्ञान परम्परागत तौर पर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलता रहा। योग की सबसे आश्चर्यजनक खोज 1920 के शुरुआत में हुई। 1920 में पुरातत्व वैज्ञानिकों ने सिंधु सरस्वती सभ्यता को खोजा था जिसमें प्राचीन हिंदू धर्म और योग की परंपरा होने के सबूत मिलते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता को 3300-1700 बी.सी.ई. पूराना माना जाता है। वेद, उपनिषद, भगवद गीता, हठ योग प्रदीपिका, योग दर्शन, शिव संहिता और विभिन्न तंत्र ग्रंथों में योग विद्या का उल्लेख मिलता है। सभी को आधार बनाकर पतंजलि ने 200 ई.पूर्व योग सूत्र लिखा। ये योग पर लिखा गया सर्वप्रथम सुव्यव्यवस्थित ग्रंथ माना जाता है।
योग यानि की एक या एक से अधिक चीजों का एक दूसरे में समावेश। आमतौर पर भारतीय संस्कृति में जिस योग की बात करते हैं वो सिर्फ शरीर को स्वस्थ और तंदुरुस्त रखने के लिए कुछ शरीरिक आसान हैं। लेकिन असल में योग का अर्थ इससे कहीं ऊपर है। भारत में योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम किया जाता है यानि की वो प्रक्रिया जिसके द्वारा हम शरीर, मन और आत्मा का समारात्मक योग करते है, यानि इन्हें आध्यात्म की प्राप्ति के लिए एक दूसरे के साथ जोड़ते हैं। ईश्वर की आराधना से लेकर गीता के उपदेश तक, शरीर को स्वस्थ और स्फूर्तिवान रखने से लेकर तमाम बीमारियों के समाधान तक, आत्मा से लेकर शरीर और मस्तिष्क की शुद्धि तक हर जगह योग है। प्राचीन काल में तमाम कलाओं को साधने और ईश्वर के तप के लिए साधु सन्यासी योग का ही सहारा लेते थे।
क्रमश:

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