12. वेद और निर्भयता
लगातार...........
वेदों में संसार के कल्याण और शान्ति का संदेश छुपा है। प्राणी मात्र की भलाई और निर्भयता की प्रार्थना वेदों में ही सन्निहित की गई है।
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खमाप्नुयात्।
सम्पूर्ण जीवों को सुख प्राप्त हो। सब प्राणी निरोग हों। सबका कल्याण हो। किसी को भी दु:ख न हो। जब मनुष्य अपने अंदर से समस्त शत्रुता के विचार निकालकर सारे संसार के लिए भलाई और सुख की प्रार्थना करता है तब उसको उसके बदले में विश्व मात्र का प्रेम प्राप्त होता है और तब संसार का कोई पदार्थ उसके लिए त्रासोत्पादक नहीं रहता।
ऊँ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष: शान्ति: पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा शान्तिब्र्रह्म शान्ति सर्वं शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरोधित।
ऊँ शान्ति: शान्ति: शान्ति:।
द्युलोक शान्ति दे, अन्तरक्षि शान्ति दे, पृथ्वीलोक शान्ति दे, जल प्राण शान्ति दें, रोगनाशक औषधियां शान्ति दें, भोज्य वनस्पतियां शान्ति दें। सब के सब देव शान्तिदायक हों, ज्ञान शान्ति दें। सब कुछ शान्ति ही दे, शान्ति भी सचमुच शान्ति ही हो, वह ऐसी शान्ति मुझे प्राप्त हो।
घृणा का प्रत्येक विचार जो मनुष्य के अंदर से बाहर आता है, वह वापस पूरे बल के साथ उसी के पास लौट आता है और ऐसा करने में उसे कोई वस्तु रोक नहीं सकती। इसी प्रकार कोई मनुष्य अनुमान नहीं कर सकता कि अज्ञानता से विचारे हुए घृणा, प्रतीकार और कामी तथा अन्य घातक विचारों के भेजने से कितने जीवन नष्ट होंगे और कितनों की हानि होगी। इसलिए विचार शक्ति के महत्व को समझो और उसको सर्वदा पवित्र तथा निर्मल रखने का प्रयत्न करो और प्रतिदिन समस्य जीव मात्र के कल्याण के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, इससे सबका भला होगा।
अत: प्रतिदिन प्रतिक्षण मनुष्य को चाहिए कि वह निराश न हो, वरं सदैव सकारात्मक, आशाजनक प्रसन्नता, स्वास्थ्य और सफलता के विचारों को मन में धारण करे। सुख और आशा की तरंगें रक्त की गति पर ही उत्तम प्रभाव डालेगी और उसको शुद्ध तथा लाल करके स्वास्थ्य के सुप्रभाव को सम्पूर्ण देह में बांट देगी जिससे स्वास्थ्य को अच्छा और शरीर को व्याधियों से सुरक्षित रख सकते हैं।
प्रत्येक मनुष्य सुन्दरता, स्वास्थ्य और सुखमय जीवन की इच्छा करता है। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि वह सौ वर्ष तक जीवित रहे। वह सौ वर्ष तक उस प्रकार का जीवन नहीं चाहता जो दुखमय हो। वरन वह ऐसा जीवन चाहता है जो काम करते हंसते-हंसते हुए बीते। वह ईश्वर से इसी कामना से प्रार्थना करता है-
पश्येम शरदश्शतं जीवेम शरदश्शतं श्रृणुयाम शरदश्शतम्।
प्रब्रवाम शरदश्शतमदीना: स्याम शरदश्शतम्।
मं सौ वर्ष तक देखूं, सौ वर्ष जीवित रहूं, सौ वर्ष तक सुनूं, सौ वर्ष पर्यन्त बोलूं,े सौ वर्ष तक सुखी और स्वतन्त्र जीवन भोगूं।
क्रमश:
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