15 जनवरी मकर संक्रांति को पहला शाही स्नान
सनातन धर्म में यूं तो बहुत से पर्वों को शुभता और उत्साह के साथ मनाने की परंपरा रही है किंतु जब भी बात होती है कुंभ की तो उत्साह दोगुना और अध्यात्म चरम पर होता है। मकर संक्रांति को अर्ध कुंभ का पहला स्नान होगा। आस्था की डुबकी के लिए करोड़ों की संख्या में भक्त कुंभ मेले में पहुंचते हैं और लगभग दो महीने तक अध्यात्म और आस्था का महामेला गंगा के पावन तट पर यूं ही बना रहेगा।
कुंभ के महत्व को ब्रह्म पुराण एवं स्कंध पुराण के 2 श्लोकों से समझा जा सकता है-
'विन्ध्यस्य दक्षिणे गंगा गौतमी सा निगद्यते उत्त्रे सापि विन्ध्यस्य भगीरत्यभिधीयते।
'एव मुक्त्वाद गता गंगा कलया वन संस्थिता, गंगेश्वेरं तु य: पश्येत स्नात्वा शिप्राम्भासि प्रिये
मकर संक्रांति को शुरू होने वाले अद्र्ध कुंभ की शुरुआत ही शाही स्नान के साथ होगी तथा इसी महीने एक और शाही स्नान होगा 21 जनवरी 2019 की पौष पूर्णिमा पर।
वेद, पुराण, धर्म, शास्त्रों में कुंभ के महत्व को गाया गया है और युगों युगों से पतित पावनी गंगा में आस्था की डुबकी लगाकर श्रद्धालु मोक्ष की प्राप्ति कर रहे हैं।
प्रयागराज और कुंभ की महिमा
प्रयागराज में दुनिया का सबसे बड़ा मेला कुंभ मेला लग रहा है। मकर संक्रांति के साथ कुंभ मेले की शुरुआत हो जाएगी। हिंदू धर्म के अनुसार मान्यता है कि कुंभ में किसी भी नदी में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। यही वजह है कि कुंभ में देश-विदेश से लोग पवित्र नदी में डुबकी लगाने पहुंचते हैं। तीर्थ राज प्रयाग की देव भूमि पर गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है इसलिए इस स्थान का महत्व और महिमा सर्वोपरि है। तीर्थराज प्रयाग का उल्लेख धर्मशास्त्रों में भी मिलता है। कहते हैं कि यही वो स्थान है, जहां से प्रभु राम को केवट ने गंगा पार कराया था।
12 वर्षों में लगता है कुंभ
कुंभ मेले का आयोजन प्राचीन काल से हो रहा है. कुंभ मेले का आयोजन चार जगहों पर होता है. हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में कुंभ का मेला होता है. इन चार स्थानों पर प्रत्येक 3 वर्ष के अंतराल में कुंभ का आयोजन होता है इसीलिए किसी एक स्थान पर प्रत्येक 12 वर्ष बाद ही कुंभ का आयोजन होता है।
अर्धकुंभ क्या है?
हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच 6 वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का आयोजन होता है। पौराणिक ग्रंथों में भी कुंभ एवं अर्ध कुंभ के आयोजन को लेकर ज्योतिषीय विश्लेषण हैं। कुंभ पर्व हर 3 साल के अंतराल पर हरिद्वार से शुरू होता है। हरिद्वार के बाद कुंभ पर्व प्रयाग नासिक और उज्जैन में मनाया जाता है. प्रयाग और हरिद्वार में मनाए जाने वाले कुंभ पर्व में और प्रयाग और नासिक में मनाए जाने वाले कुंभ पर्व के बीच में 3 सालों का अंतर होता है।
कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक बहुत ही श्रद्धेय पर्व है जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व वाले स्थानों हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं। शास्त्रों के मुताबिक, चार विशेष स्थानों पर ही कुंभ मेला लग सकता है। नासिक में गोदावरी नदी के तट पर, उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर, हरिद्वार और प्रयागराज में गंगा नदी के तट पर ही कुंभ का आयोजन हो सकता है। इनमें से प्रत्येक स्थान पर हर 12वें साल में, हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह साल के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है।
कुंभ पर्व का सीधा सम्बन्ध तारों से है। अमृत कलश को स्वर्गलोक तक ले जाने में जयंत को 12 दिन लगे। देवों का एक दिन मनुष्यों के 1 वर्ष के बराबर है। इसीलिए तारों के क्रम के अनुसार हर 12वें वर्ष कुंभ पर्व विभिन्न तीर्थ स्थानों पर आयोजित होता है। युद्ध के दौरान सूर्य, चंद्र और शनि आदि देवताओं ने कलश की रक्षा की थी। उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं तब कुंभ का योग होता है, चारों पवित्र स्थलों पर प्रत्येक 3 वर्ष के अंतराल पर क्रमानुसार कुंभ मेले का आयोजन होता है।
अमृत की बूंदे छलकने के समय जिन राशियों में सूर्य, चंद्रमा, बृहस्पति की स्थिति के विशिष्ट योग के अवसर रहते हैं वहां कुंभ पर्व का इन राशियों में गृहों के संयोग पर आयोजन होता है। इस अमृत कलश की रक्षा में सूर्य, गुरु और चन्द्रमा के विशेष प्रयत्न रहे थे।
कुंभ में स्नान के लाभ-
* कुंभ में स्नान करने से इंसान के पापों का प्रायश्चित हो जाता है।
* कुंभ का मेला मकर संक्रांति के दिन शुरु होता है।
* इस दिन जो योग बनता है उसे कुंभ स्नान-योग कहते हैं।
* कुंभ स्नान से मनुष्य को मोक्ष और सद्गति की प्राप्ति होती है।
पृथ्वी का सबसे बड़ा मेला
ब्रिटिश और भारतीय शोधकर्ताओं ने चार साल के अध्ययन के बाद कहा है कि इलाहाबाद में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर होने जा रहा महाकुंभ विश्व के सबसे विशालतम धार्मिक जमावड़े में से एक है और यह 'पृथ्वी पर सबसे बड़ा मेला हैÓ।
महाकुंभ मेले में पूरी दुनिया के लोग आते हैं और लाखों श्रद्धालू गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं। महाकुंभ के दौरान धर्म गुरूओं जुलूस तथा राख लपेटे नगा साधू सभी के आकषर्ण का केंद्र होते हैं।
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