15. वेद : ऋग्वेद
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ऋग्वेद सनातन धर्म का सबसे आरंभिक स्रोत है। इसमें 1028 सूक्त हैं, जिनमें देवताओं की स्तुति की गयी है इसमें देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं, यही सर्वप्रथम वेद है। ऋग्वेद को इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की अभी तक उपलब्ध पहली रचनाऔं में एक मानते हैं। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रूप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है। यह एक प्रमुख हिन्दू धर्म ग्रंथ है।
ऋक् संहिता में 10 मंडल, बालखिल्य सहित 1028 सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र (7/59/12) वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मंत्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है। विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र (ऋ 3/62/10) भी इसी में वर्णित है। ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सुक्त उदाहरणत: रोग निवारक-सूक्त (ऋ 10/137/1-7), श्री सूक्त या लक्ष्मी सूक्त (ऋग्वेद के परिशिष्ट सूक्त के खिलसूक्त में), तत्त्वज्ञान के नासदीय-सूक्त (ऋ 10/129/1-7) तथा हिरण्यगर्भ सूक्त (ऋ 10/121/1-10) और विवाह आदि के सूक्त (ऋ 10/85/1-47) वर्णित हैं, जिनमें ज्ञान विज्ञान का चरमोत्कर्ष दिखलाई देता है।
इसमें भौगोलिक स्थिति और देवताओं के आवाहन के मंत्रों के साथ बहुत कुछ है। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियां और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है। इसमें जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकित्सा, मानस चिकित्सा और हवन द्वारा चिकित्सा का आदि की भी जानकारी मिलती है। ऋग्वेद के दसवें मंडल में औषधि सूक्त यानी दवाओं का जिक्र मिलता है। इसमें औषधियों की संख्या 125 के लगभग बताई गई है, जो कि 107 स्थानों पर पाई जाती है। औषधि में सोम का विशेष वर्णन है। ऋग्वेद में च्यवनऋषि को पुन: युवा करने की कथा भी मिलती है।
ब्राह्मण ग्रंथो में ऋग्वेद ब्रह्म, वाक, प्राण, अमृत तक कहा गया है। इसका अभिप्राय है कि ऋग्वेद के मंत्र ब्रह्म की प्राप्ति करवाने वाले हैं, इनसे वाक, प्राण और तेज की प्राप्ति होती है, यह अमरत्व प्राप्ति का साधन भी हैं। ऋग्वेद में मौजूद वैदिक मंत्र मानव मात्र के कल्याण के लिये ही हैं। वैदिक ज्योतिष भी वेदों का ही अंग माना जाता है। ऋग्वेद ज्ञान के अपार भंडार से भरा पड़ा है जिसके बारे में विस्तृत रूप से वर्णन करना संभव नहीं है।
क्रमश:
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