2 फरवरी को शनि प्रदोष व्रत
इस दिन शनि देव को भी करें प्रसन्न
कई लोगों पर शनि की बुरी दशा होती है। शनि की बुरी दृष्टि से हर किसी को भय लगता है। हालांकि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनिदेव को मनाने के ऐसे कई उपाय हैं जिनसे शनि की शांति होती है। शनि को मनाने के लिए भी शनि प्रदोष व्रत भी बहुत फलदायी है। वैसे तो प्रदोष का व्रत शंकर जी को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है। पुराणों के अनुसार एकादशी पर विष्णु भगवान की तो प्रदोष को शिव की आराधना की जाती है। लेकिन शनिवार को पडऩे वाले प्रदोष पर महादेव के साथ-साथ शनिदेव की पूजा भी होती है। इसलिए इस व्रत को शनि प्रदोष कहा जाता है।
मान्यता हैं जो भी इस दिन पूरी श्रद्धा से शनि की उपासना करता है। उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। शनि प्रदोष करने से शिव शंभू और शनिदेव दोनों की कृपा बरसती है। शनि प्रदोष व्रत करने से संतान होने में आ रही बाधा भी दूर होती है। 2 फरवरी को शनिवार को साल का दूसरा शनि प्रदोष व्रत और दूसरा प्रदोष है।
शनि प्रदोष क्यों हैं खास
शनि प्रदोष पर प्रात:काल में भगवान शिवशंकर की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, तत्पश्चात शनिदेव का पूजन करना चाहिए। इस व्रत से शनि का प्रकोप, शनि की साढ़ेसाती या ढैया का प्रभाव कम हो जाता है। शनिवार को पडऩे वाला प्रदोष संपूर्ण धन-धान्य, समस्त दुखों से छुटकारा देने वाला होता है। इस दिन दशरथकृत शनि स्त्रोत का पाठ करने जीवन में शनि से होने वाले दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। जो भी व्यक्ति व्रत करे उसको यह पाठ कम से कम 11 बार अवश्य करना चाहिए।
इसके अलावा शनि चालीसा, शनैश्चरस्तवराज, शिव चालीसा का पाठ तथा आरती भी करनी चाहिए। प्रदोष रखने से आपका चंद्र ठीक होता है। अर्थात् शरीर के चंद्र तत्व में सुधार होता है। माना जाता है कि चंद्र के सुधार होने से शुक्र भी सुधरता है और शुक्र से सुधरने से बुध भी सुधर जाता है। मानसिक अशांति दूर होती है। संध्या का वह समय जब सूर्य अस्त हो रहा होता है एवं रात्रि का आगमन हो रहा होता है उस समय को 'प्रदोष काल' कहा जाता है। माना जाता है कि प्रदोष काल में शिव जी साक्षात् शिवलिंग पर अवतरित होते हैं और इसीलिए इस समय शिव का स्मरण करके उनका पूजन किया जाए तो उत्तम फल मिलता है।
शनि प्रदोष की विधि
शनि प्रदोष व्रत के दिन व्रती को प्रात:काल उठकर नित्य क्रम से निवृत हो स्नान कर भगवान शंकर, पार्वती और नंदी जी को पंचामृत व गंगाजल से स्नान कराकर बेल पत्र, गंध, अक्षत (चावल), फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), फल, पान, सुपारी, लौंग व इलायची अर्पित करनी चाहिए। पूरे दिन मन ही मन 'ऊँ नम: शिवाय' का जाप करना चाहिए। निराहार इस व्रत का पालन किया जाता है। शनि प्रदोष व्रत की पूजा शाम 4.30 बजे से लेकर शाम 7.00 बजे के बीच की जाती है। व्रती को सायंकाल में दोबारा स्नान करके स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण करना चाहिए।
यदि व्रती चाहे तो शिव पूजा साम्रगी लेकर मंदिर जा कर भी पूजा कर सकते हैं। 5 रंगों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार करें। आसन पर बैठ कर शिव जी की पूजा विधि-विधान से करें। 'ऊँ नम: शिवाय' कहते हुए शिव जी को जल अर्पित करें। इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर शिव जी का ध्यान करें। ध्यान के बाद, शनि प्रदोष व्रत की कथा सुने अथवा सुनाएं। कथा समाप्ति के बाद हवन सामग्री मिलाकर 11 या 21 या 108 बार 'ऊँ ह्रीं क्लीं नम: शिवाय स्वाहा' मंत्र से आहुति देनी चाहिए। उसके बाद शिव जी की आरती करनी चाहिए। सभी को प्रसाद बांटकर भोजन करना चाहिए।
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