9. वेद और ज्योतिष विज्ञान
लगातार.........
ग्रहों का जीवन पर प्रत्यक्ष प्रभाव
ज्योतिष विज्ञान भारत की ऐसी प्राचीन विद्या है जो यह प्रमाणित करती है कि हमारे सौरमंडल में सूर्य के साथ-साथ सभी 9 ग्रहों का प्रत्यक्ष रूप से मानव जीवन पर प्रभाव पड़ता है। भारतीय सभ्यता में लगभग 4000 वर्ष से भी अधिक पुराना यह ज्योतिष विज्ञान आज के समय में बहुत से विद्वानों के लिए वरदान सिद्ध हुआ है।
ज्योतिष विज्ञान में भविष्य का अनुमान
एक व्यक्ति के जन्म के समय सौरमंडल में ग्रहों की स्थिति उस व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन पर प्रभाव डालती है। एक व्यक्ति की लग्न कुंडली व चन्द्र कुंडली में ग्रहों का स्थान उसके सम्पूर्ण जीवन में सुख-दुखों से जुड़ा हुआ है। ज्योतिष शास्त्र जातक की कुंडली में होने वाले ग्रहों की स्थिति से उसके भविष्य में होने वाली घटनाओं का कुछ हद तक अनुमान लगाने में सहायक सिद्ध होता है किन्तु इसका अभिप्राय यह बिल्कुल नहीं कि लग्न कुंडली में ग्रहों की स्थिति द्वारा जातक के भविष्य का पूर्ण और 100 प्रतिशत प्रमाणित अनुमान लगाना संभव है।
हमारे सौरमंडल में सूर्य के साथ-साथ चंद्रमा व अन्य ग्रहों से निकलने वाली प्रकाश की किरणें अलग-अलग रूप में दिखाई देती है व पृथ्वी को प्रभावित करती है। प्राचीन काल से ही भारत के साथ-साथ अन्य देशों के भी विद्वानों ने इन ग्रहों के पृथ्वी पर पडऩे वाले प्रभावों से अवगत कराया है। ज्योतिष विज्ञान भी अपनी गणितीय आंकड़ों से सौरमंडल के सभी ग्रहों की चाल का अध्ययन कर इनका पृथ्वी के जीवित प्राणियों पर पडऩे वाले शुभ और अशुभ संकेतों को विश्लेषण करने वाली विद्या है।
ज्योतिष विज्ञान
आज का वैज्ञानिक युग जब तक पूर्ण रूप से किसी विषय को प्रमाणित नहीं कर देता तब तक विश्वास नहीं करता। ज्योतिष विज्ञान इतना विस्तृत है कि इसका पूर्ण ज्ञान किसी के पास नहीं है। सौरमंडल का मानव जीवन पर प्रत्यक्ष रूप से अनुकूल और प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है यहाँ तो ज्योतिष शास्त्र, विज्ञान की द्रष्टि से खरा उतरता है। ज्योतिष विज्ञान को यदि ज्योतिष के जानकार अपने स्वार्थ को सिद्ध करने हेतु प्रयोग न करके केवल मानव हित में प्रयोग करे तो ज्योतिष मानव जीवन से उनके दुखों का निवारण करने में सहायक सिद्ध हो सकता है। ज्योतिष शास्त्र किसी भी मनुष्य की लग्न कुंडली में वर्तमान में चल रही ग्रहों की स्थिति से उसके भविष्य में होने घटनाओं की रूप-रेखा को एक हद तक समझने में कारगर सिद्ध होता है।
वेदों को अपौरूषेय अर्थात बिना पुरुष के, ईश्वर कृत माना जाता है, इन्हें श्रुति भी कहते हंै। हिन्दुओं में अन्य ग्रन्थ स्मृति भी कहलाते हैं अर्थात मानव बुद्धि या श्रुति पर आधारित ज्ञान। ज्योतिष संबंधी ज्ञान वेदों में हैं, जिसमें ऋग्वेद में करीब 30 श्लोक। वेद शब्द संस्कृत भाषा के विद् धातु से बना है। विद् का आशय विदित अर्थात जाना हुआ, विद्या अर्थात ज्ञान, विद्वान अर्थात ज्ञानी। वेद भारतीय संस्कृति में सनातन धर्म के मूल अर्थात प्राचीनतम और आधारभूत धर्म ग्रन्थ हंै, जिन्हें ईश्वर की वाणी समझा जाता है। वेद ज्ञान के भंडार हैं एवं वेदों से अन्य शास्त्रों, पुराणों की उत्पत्ति मानी जाती है। यजुर्वेद में करीब 45 श्लोक एवं अथर्ववेद में करीब 165 श्लोक एवं प्राचीन वास्तु ग्रन्थ स्थापत्यवेदज् भी अथर्ववेद से लिया गया है जिसमें वास्तु से सम्बंधित ज्ञान संकलित हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात जो कि वेदों में ज्योतिष सम्बन्धी श्लोक वर्णित है उनका सम्बन्ध भविष्य से नहीं है अर्थात फलित ज्योतिष सम्बन्धी विवरण वेदों में नहीं है लेकिन नक्षत्रों, ग्रहों व राशियों सम्बन्धी प्रार्थनाएं वर्णित हैं क्योंकि वेद कहते हंै कि आपके विचार, आपकी ऊर्जा, आपकी योग्यता, आपके कर्म, आपकी प्रार्थना से ही शुभ वर्तमान व शुभ भविष्य का निर्माण होता है। इस प्रकार वैदिक ऋषि उस परम शक्ति परम ब्रह्म अर्थात ईश्वर, परमात्मा, खुदा, परमेश्वर के साथ-साथ प्रकृति के पंच तत्वों व अन्य कारकों की प्रार्थना को महत्व देते हैं।
बल्लित्था पर्वतानां खिद्रं बिभर्षि पृथिवि। प्र या भूमिं प्रवत्वति मह्रा जिनोषी महिनि।
हे प्रकृष्ट गुणवती और महिमावती पृथ्वी देवी! आप भूमिचर प्राणियों को अपनी सामथ्र्य से पुष्ट करती हैं और साथ ही अत्यंत विस्तृत पर्वत समूहों को भी धारण करती हैं। निम्न वेद मन्त्र में अग्नि, सोम, इन्द्र, पृथ्वी, अन्तरिक्ष, द्युलोक, दिशाओं, उपदिशाओं, उध्र्व व अधो दिशा के निमित्त आहुतियां प्रदान करने का उल्लेख है।
आग्नेय स्वाहा सोमाय स्वाहेन्द्राय स्वाहा पृथिव्यै स्वाहान्तरिक्षाय स्वाहा दिवेस्वाहा दिग्भय: स्वाहाशभ्य: स्वाहोवर्ये दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहा। अग्नि, सोम, इन्द्र, पृथ्वी, अन्तरिक्ष, द्युलोक, दिशाओं, उपदिशाओं, उध्र्व व अधो दिशा के निमित्त आहुतियां प्रदान करते हैं। निम्न वेद मन्त्र में नक्षत्रों के लिये नक्षत्रों के देवताओं के लिये, दिन रात्रि के लिये, पक्षों के लिये, मास, ऋतु व ऋतु से उत्पन्न पदार्थ, संवत्सर, धावा व पृथ्वी, चन्द्रमा, सूर्य, सूर्य की किरणें, वसुओं, रुदों, आदित्यों, मरुदगणों, जड़ों, शाखाओं, वनस्पतियों, पुष्पों, फलों एवं औषधियों के निमित्त आहुतियों का वर्णन है।
पृथ्वी, अन्तरिक्ष, द्युलोक (अन्तरिक्ष), सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र (27 नक्षत्र), जल, औषधियों, वनस्पतियों, भ्रमणशील ग्रहों (नव ग्रह), रेंगने वाले प्राणियों एवं चराचर के निमित्त ये आहुतियां प्रदान करते हंै। अर्थात हमारे प्राचीन वेद सर्वप्रथम माँ पृथ्वी को महत्व देते हैं एवं तत्पश्चात अन्तरिक्ष, द्युलोक (अन्तरिक्ष), सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र (27 नक्षत्र), जल, औषधियों, वनस्पतियों, भ्रमणशील ग्रहों (नव ग्रह), रेंगने वाले प्राणियों एवं चराचर जगत की बात करते हैं।
क्रमश:
Comments
Post a Comment