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नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में...

12 फरवरी को नर्मदा जयंती

नर्मदा नदी मध्यप्रदेश और गुजरात राज्य की मुख्य नदी हैं दोनों राज्य की पूरी आबादी इसी नदी के पानी पर आश्रित रहती हैं. इसी कारण इस नदी को माँ तुल्य माना जाता हैं। कहते हैं जो पुण्य की प्राप्ति गंगा नदी के पावन जल में नहाने से होता हैं वही पुण्य नर्मदा में नहाने से भी मिलता हैं। इसी नदी के पास भगवान महादेव का एक ज्योतिर्लिंग ओमकारेश्वर स्थित हैं इसी कारण इस नदी का सामाजिक के साथ-साथ धार्मिक महत्व भी हैं।
हिन्दू रीति-रिवाजों में माघ माह को अत्यंत ही शुभ माना जाता है। इसीलिए वेदों में इसे ब्रह्मा मुहूर्त भी कहते हैं। इसी माह में कई व्रत और त्योहार भी आते हैं इसी कारण इस माह में दान करने की भी परंपरा हैं। पुराणों की मान्यताओं के अनुसार इसी माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को भगवान शिव के पसीने से 12 वर्ष की एक कन्या ने जन्म लिया था। वह कन्या माँ नर्मदा थी। इसी कारण इस दिवस को नर्मदा जयंती यानी नर्मदा का जन्म पर्व के रूप में मनाया जाता हैं।
नर्मदा नदी के अवतरण तिथि को नर्मदा जयंती महोत्सव के रूप में पूरे देश में धूमधाम से मानते हैं, लेकिन मध्यप्रदेश राज्य के अमरकंटक (नर्मदा का उद्गम स्थल) में इस त्यौहार की भव्यता देखते ही बनती हैं। इस साल यह पर्व फरवरी महीने की 12 तारीख को मंगलवार के दिन मनाया जायेगा।
नर्मदा जयंती महोत्सव पर नर्मदा के किनारे वाले मुख्य शहरों जैसे महेश्वर, उज्जैन आदि जगहों पर धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता हैं। नदी के किनारों को सजाया जाता हैं, महायज्ञ किये जाते हैं और शाम के समय प्रसादी के रूप में भंडारे किये जाते हैं। यह त्यौहार पूरे एक सप्ताह तक इसी प्रकार मनाया जाता हैं। बसंत पंचमी से पर्व की शुरुआत हो जाती है जो नर्मदा जयंती तक मनाया जाता हैं।
कथा- अंधकासुर
वामन पुराण की एक कथा के अनुसार अंधकासुर भगवान शिव और पार्वती का पुत्र था। एक दैत्य हिरण्याक्ष ने भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हीं की तरह बलवान पुत्र पाने का वरदान माँगा। भगवान शिव ने एक क्षण भी गंवाए अपना पुत्र 'अन्धक' हिरण्याक्ष को दे दिया। अंधकासुर भगवान शिव का परम भक्त था। उसने भगवान शिव की भक्ति कर उनसे से 2000 हाथ, 2000 पांव, 2000 आंखें, 1000 सिरों वाला विकराल स्वरुप प्राप्त किया। लेकिन जैसे ही जैसे हिरण्याक्ष की ताकत बढती चली गई उसके अत्याचार बढ़ते चले गए। भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध कर दिया। पिता की मृत्यु की खबर सुनते ही अंधकासुर के मन में बदले की भावना जल उठी। वह विष्णु और महादेव को अपना शत्रु मानने लग गया।
अंधकासुर ने अपने बल और पराक्रम से देवलोक पर अपना आधिपत्य जमा लिया। ऐसा कहा जाता हैं राहू और केतु के बाद अंधकासुर एकलौता ऐसा दैत्य था जिसने अमृत का पान किया था। देवलोक पर आधिपत्य करने के बाद अंधकासुर ने कैलाश की ओर अपना रुख किया। कैलाश में अंधकासुर और महादेव के बीच घोर युद्ध होता हैं। जिसमे शिवजी अंधकासुर का वध करते हैं।
अंधकासुर के वध होने के बाद देवताओं को भी अपने द्वारा किये गए पापों का ज्ञात होता हैं। सभी देवता, भगवान विष्णु और ब्रह्मा, भगवान शिव के पास आते हैं जो कि मेकल पर्वत (अमरकंटक) पर समाधिस्थ थे। शिव अंधकासुर राक्षस का वध कर शांत-सहज समाधि में बैठे थे। अनेकों स्तुतियाँ, वंदना और प्रार्थना करने के बाद भगवान शिव अपनी आँखे खोलते हैं। सभी देवता निवेदन करते हैं- हे भगवन, अनेकों प्रकार के विलास, भोगों और असंख्य दैत्यों के वध से हमारी आत्मा पापी हो चुकी हैं, इसका निवारण कैसे किया जाए। कैसे हमें पुण्य की प्राप्ति होगी। जिसके बाद भगवान शिव के सिर से पसीने की एक बूंद धरती पर गिरती हैं। कुछ ही क्षणों में वह बूंद तेजोमय कन्या के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं। उस कन्या का नाम नर्मदा (नर्म का अर्थ है- सुख और दा का अर्थ है- देने वाली) रखा गया और अनेकों वरदानों से कृतार्थ किया।
भगवान शिव ने नर्मदा को माघ मास की शुक्ल सप्तमी से नदी के रूप में बहने और लोगों के पापों को हरने का आदेश दिया। नर्मदा के अवतरण की इसी तिथि को नर्मदा जयंती मनाई जाती हैं।
नर्मदे त्वें माहभागा सर्व पापहरि भव,
त्वदत्सु या: शिला: सर्वा शिव कल्पा भवन्तु ता:।

अर्थात- नर्मदा तुम्हारे अंदर संसार के सभी पापों को हरने की क्षमता होगी। तुम्हारे जल से शिव का अभिषेक किया जायेगा। भगवान शिव ओमकारेश्वर के रूप में सदैव तुम्हारे तट पर विराजमान रहेंगें और उनकी कृपा तुम पर बन रहेगी। जिस प्रकार स्वर्ग से अवतरित होकर गंगा प्रसिद्ध हुई थी उसी प्रकार तुम भी जानी जाओगी।

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