17 फरवरी : रवि प्रदोष व्रत
आयु वृद्धि आरोग्यता, या चाहो सन्तान।
शिव पूजन विधिवत् करो, दु:ख हरे भगवान॥
यह व्रत हिंदू तिथि के अनुसार तेरहवें दिन यानी त्रयोदशी को होता है। त्रयोदशी अथवा प्रदोष व्रत हर महीने में दो बार आता है- एक शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष। इस व्रत में भगवान महादेव की पूजा की जाती है। यह प्रदोष व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें शिव धाम की प्राप्ति होती है।
त्रयोदशी अर्थात् प्रदोष का व्रत करने वाला मनुष्य सदा सुखी रहता है। उसके सम्पूर्ण पापों का नाश इस व्रत से हो जाता है। इस व्रत के करने से सुहागन नारियों का सुहाग सदा अटल रहता है, बंदी कारागार से छूट जाता है। जो स्त्री पुरुष जिस कामना को लेकर इस व्रत को करते हैं, उनकी सभी कामनाएं कैलाशपति शंकर जी पूरी करते हैं। सूत जी कहते हैं- त्रयोदशी व्रत करने वाले को सौ गऊ दान का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को जो विधि विधान और तन, मन, धन से करता है उसके सभी दु:ख दूर हो जाते हैं।
रवि प्रदोष व्रत की विधि
प्रदोष व्रत के दिन व्रती को प्रात:काल उठकर नित्य क्रम से निवृत हो स्नान कर शिव जी का पूजन करना चाहिये। पूरे दिन मन ही मन ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करें। पूरे दिन निराहार रहें। त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त से तीन घड़ी पूर्व, शिव जी का पूजन करना चाहिये। प्रदोष व्रत की पूजा शाम 4.30 बजे से लेकर शाम 7.00 बजे के बीच की जाती है। पूजा स्थल अथवा पूजा गृह को शुद्ध कर लें। यदि व्रती चाहे तो शिव मंदिर में भी जा कर पूजा कर सकते हैं। पांच रंगों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार करें। पूजन की सभी सामग्री एकत्रित कर लें। कलश अथवा लोटे में शुद्ध जल भर लें। कुश के आसन पर बैठ कर शिव जी की पूजा विधि-विधान से करें। ऊँ नम: शिवाय कहते हुए शिव जी को जल अर्पित करें। इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर शिव जी का ध्यान करें। इसके बाद रवि प्रदोष की कथा सुने अथवा सुनायें।
रवि प्रदोष कथा
एक समय सर्व प्राणियों के हितार्थ परम पावन भागीरथी के तट पर ऋषि समाज द्वारा विशाल गोष्ठी का आयोजन किया गया। विज्ञ महर्षियों की एकत्रित सभा में व्यास जी के परम शिष्य पुराणवेत्ता सूत जी महाराज हरि कीर्तन करते हुए पधारे। सूत जी को आते हुए देखकर शौनकादि अ_ासी हजार ऋषि मुनियों ने खड़े होकर दंडवत प्रणाम किया। महाज्ञानी सूतजी ने भक्ति भाव से ऋषियों को ह्रदय से लगाया तथा आशीर्वाद दिया। विद्वान ऋषिगण और सब शिष्य आसनों पर विराजमान हो गये।
मुनिगण विनीत भाव से पूछने लगे कि हे परम दयालु! कलिकाल में शंकर की भक्ति किस आराधना द्वारा प्राप्त होगी, हम लोगों को बताने की कृपा कीजिए। कलियुग में जहां चारों ओर आपाधापी होगी वहां किस तरह भगवान भोलेनाथ की कृपा पाई जा सकती है।
सूतजी कहने लगे कि आयु, वृद्धि, स्वास्थ्य लाभ हेतु त्रयोदशी का व्रत करें। इसकी विधि इस प्रकार है- प्रात: स्नान कर निराहार रहकर, शिव ध्यान में मग्न हो, शिव मंदिर में जाकर शंकर जी की पूजा करें। पूजा के पश्चात् अद्र्ध पुण्य त्रिपुण्ड का तिलक धारण करें। बेल पत्र चढ़ावें, धूप, दीप, अक्षत से पूजा करें। ऋतु फल चढ़ावें तथा ऊँ नम: शिवाय मंत्र का रुद्राक्ष की माला से जप करें। ब्राह्मणों को भोजन कर सामथ्र्यानुसार दक्षिणा दें। तत्पश्चात् मौन व्रत धारण करें। व्रती को सत्य वचन बोलना आवश्यक है। हवन और आहुति भी देनी चाहिये।
ऊँ ह्रीं क्लीं नम: शिवाय स्वाहा मंत्र से आहुति दें। इससे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। व्रती को पृथ्वी पर शयन करना चाहिये। दिन में एक बार ही भोजन करे, इससे सर्व कार्य सिद्ध होते हैं। श्रावण मास में तो इसका विशेष महत्व है। यह सर्वसुख धन, आरोग्यता देने वाला एवं सब मनोरथों को पूर्ण करने वाला व्रत है। सूत जी बोले-
एक गाँव में अति दीन ब्राह्मण निवास करता था। उसकी साध्वी स्त्री प्रदोष व्रत किया करती थी, उसे एक ही पुत्र रत्न था। एक समय की बात है वह पुत्र गंगा स्नान करने के लिये गया। दुर्भाग्यवश मार्ग में चोरों ने उसे घेर लिया और वे कहने लगे कि हम तुम्हें मारेंगे, नहीं तो तुम अपने पिता के गुप्त धन के बारे में हमें बतला दो। बालक दीन भाव से कहने लगा कि बंधुओं! हम अत्यंत दु:खी दीन हैं। हमारे पास धन कहाँ है? तब चोरों ने कहा- तेरे इस पोटली में क्या बंधा है? बालक ने नि:संकोच कहा- मेरी माँ ने मेरे लिये रोटियाँ दी हैं। यह सुनकर चोर ने अपने साथियों से कहा-साथियों! यह बहुत ही दीन दु:खी मनुष्य है। अत: हम किसी और को लूटेंगे। इतना कहकर चोरों ने उस बालक को जाने दिया। बालक वहाँ से चलते हुए एक नगर में पहुँचा। नगर के पास एक बरगद का पेड़ था। वह बालक उसी बरगद के वृक्ष की छाया में सो गया। उसी समय, उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उस बरगद के वृक्ष के पास पहुँचे और बालक को चोर समझकर बंदी बना राजा के पास ले गये। राजा ने उसे कारावास में बंद करने का आदेश दिया। ब्राह्मणी का लड़का जब घर नहीं लौटा, तब उसे अपने पुत्र की बड़ी चिता हुई। अगले दिन प्रदोष व्रत था, ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया और भगवान शंकर से मन-ही-मन अपने पुत्र के कुशलता की प्रार्थना करने लगी। भगवान शंकर ने उस ब्राह्मणी की प्रार्थना स्वीकार कर ली। उसी रात भगवान शंकर ने उस राजा को स्वप्न में आदेश दिया कि वह बालक चोर नहीं है, उसे प्रात: काल छोड़ दें, अन्यथा उसका सारा राज्य-वैभव नष्ट हो जायेगा। प्रात:काल राजा ने शिव जी की आज्ञानुसार उस बालक को कारावास से मुक्त कर दिया। बालक ने अपनी सारी कहानी राजा को सुनाई। सारा वृतांत सुनकर, राजा ने अपने सिपाहियों को उस बालक के घर भेजा और उसके माता-पिता को राज दरबार में बुलाया। उसके माता पिता बहुत हीं भयभीत थे। राजा ने उन्हें भयभीत देखकर कहा-आप भयभीत न हो। आपका बालक निर्दोष है । राजा ने ब्राह्मण को पांच गाँव दान में दिये, जिससे वे सुख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सके। भगवान शिव की कृपा से ब्राह्मण परिवार आनंद से रहने लगे। जो भी इस प्रदोष व्रत को करता है, वह सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करता है। इसमें कोई संदेह नहीं।
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