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नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में...

17 फरवरी : विश्वकर्मा जयंती

देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा की जयंती 17 फरवरी को मनाई जा रही है। ऐसी मान्यता है कि माघ माह की त्रयोदशी के दिन विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ था। हालांकि उनके जन्म दिन को लेकर कुछ भ्रांतियां भी हैं।
निर्माण और सृजन के देव हैं भगवान विश्वकर्मा
भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का शिल्पी यानी इंजीनियर कहा जाता है। निर्माण और सृजन के देवता के रूप में इनकी प्रतिष्ठा है। शास्त्रों में वर्णित है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही ब्रह्मा के निर्देशानुसार इस पृथ्वी को मनुष्यों के रहने लायक बनाया। यहां तक कि देवताओं के रहने के लिए स्वर्ग लोक, कृष्ण की नगरी द्वारिका, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, महादेव का त्रिशूल आदि अस्त्र-शस्त्र भी विश्वकर्मा ने ही बनाए। इसके अलावा रावण की स्वर्ण नगरी लंका, महाभारत काल में हस्तिनापुर, पांडवों की नगरी इंद्रप्रस्थ और जगन्नाथ पुरी के मुख्य मंदिर का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था। यही वजह है कि निर्माण और कौशल के कर्म से जुड़े लोग बड़े पैमाने पर भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं।
विश्वकर्मा पूजा का महत्व
ऐसी मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही सतयुग के स्वर्ग लोक, त्रेता युग की लंका, द्वापर की द्वारिका और कलयुग की हस्तिनापुर की रचना की. यहां तक कि सुदामापुरी का निर्माण भी उन्होंने ही किया। ऐसे में यह पूजा उन लोगों के ज्यादा महत्वपूर्ण है, जो कलाकार, बुनकर, शिल्पकार और व्यापारी हैं।
पूजा विधि
विश्वकर्मा पूजा के दिन सुबह स्नान-ध्यान करने के बाद पत्नी के साथ पूजा के स्थान पर बैठ जाएं। अगर किसी फैक्ट्री या वर्कशॉप या ऑफिस में पूजा होने जा रही हो तो वहां के प्रमुख व्यक्ति को यह काम करना चाहिए। भगवान विश्वकर्मा की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह में ही होता है। इसलिए कोशिश करें कि सुबह में ही स्नान-ध्यान के बाद भगवान की पूजा करें।
भगवान की पूजा के लिए सभी जरूरी सामग्री पहले ही पूजा के स्थान पर रख लें। जैसे कि विश्वकर्मा की मूर्ति या तस्वीर, जल से भरा कलश, अक्षत (चावल), माला, फूल, चंदन, धूप, सुपारी, पीली सरसों आदि। पूजा करते समय बीच में किसी चीज के लिए उठना न पड़े, इसका अवश्य ध्यान रखना चाहिए।
पूजा शुरू करने से पहले भगवान विष्णु का ध्यान करें और अब हाथ में फूल, अक्षत लेकर मंत्र पढ़ें- ऊं आधार शक्तपे नम: ऊं कूमयि नम: ऊं अनंतम नम: ऊं पृथिव्यै नम: ऊं श्री सृष्टतनया सर्वसिद्धया विश्वकर्माया नमो नम:. मंत्र पढऩे के बाद हाथ में रखे अक्षत को चारों तरफ छिड़क दें और इसके बाद पीली सरसों लेकर चारों दिशाओं को बांध लें।
पीली सरसों से सभी दिशाओं को बांधने के बाद अपने हाथ में रक्षा सूत्र (पत्नी हों तो उनके हाथ में भी) बांध लें और हाथ में जो फूल रखा था उसे जल पात्र में रख दें। इसके बाद हृदय में देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करते हुए विधिवत पूजा शुरू करें।
विश्वकर्मा पूजन के साथ-साथ जाप भी कर सकते हैं। अगर किसी बड़े प्रतिष्ठान या कारखाने में पूजा हो रही हो तो इसके लिए ब्राह्मण (पंडित/पुरोहित) की मदद ली जा सकती है।

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