22 फरवरी, 2019 संकष्टी चतुर्थी
हिन्दु कैलेण्डर में प्रत्येक चन्द्र मास में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर महीने में होता है।
भगवान गणेश के भक्त संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से चन्द्रोदय तक उपवास रखते हैं। संकट से मुक्ति मिलने को संकष्टी कहते हैं। भगवान गणेश जो ज्ञान के क्षेत्र में सर्वोच्च हैं, सभी तरह के विघ्न हरने के लिए पूजे जाते हैं। इसीलिए यह माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से सभी तरह के विघ्नों से मुक्ति मिल जाती है। श्रद्धालु लोग चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद उपवास को तोड़ते हैं।
संकष्टी चतुर्थी के लिए उपवास का दिन चन्द्रोदय पर निर्धारित होता है। जिस दिन चतुर्थी तिथि के दौरान चन्द्र उदय होता है उस दिन ही संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। इसीलिए कभी कभी संकष्टी चतुर्थी का व्रत, चतुर्थी तिथि से एक दिन पूर्व, तृतीया तिथि के दिन पड़ जाता है।
गणेश जी के महत्वपूर्ण पर्वों में एक है संकष्टी गणेश चतुर्थी। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता के रूप में जाना जाता है और वे सभी देवताओं में प्रथम पूजनीय माने जाते हैं। मान्यता है कि सच्ची निष्ठा के साथ गणेश संकष्टी का व्रत एवं पूजन करने से सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं और रुके हुए मांगलिक कार्य पूरे होते हैं। भगवान गणेश हर तरह की सुख-सम्पदा की प्राप्ति का वरदान देते हैं। इस दिन विधि-विधान से षोडशोपचार से गणेश जी का पूजन कर कथा का श्रवण करने का भी महात्म्य है।
पौराणिक कथा
कहा जाता है कि एकबार देवलोक पर भारी मुसीबत आ गयी. इस संकट से मुक्ति पाने के लिए सभी देवतागण शिव जी से मदद मांगने पहुंचे। उस समय शिव जी, पार्वती, गणेश जी एवं कार्तिकेय जी बैठे हुए थे। शिव जी को शांत देख कार्तिकेय और गणेश जी ने कहा पिताश्री आप कहें तो इन देवताओं के सारे संकट मैं जाकर दूर कर दूं। मगर शिव जी गणेश और कार्तिकेय में से किसी एक को ही देवताओं की मदद के लिए भेजना चाहते थे। शिव जी ने कहा कि तुम दोनों में जो भी पृथ्वी की परिक्रमा करके सबसे पहले वापस आ जायेगा वही देवताओं की मदद के लिए जायेगा।
शिव जी के मुख से इस तरह की शर्त सुनते कार्तिकेय मोर पर बैठकर संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा पर निकल पड़े। इधर अपने भारी पेट और नन्हें सवारी चूहे के कारण गणेश जी सोच में पड़ गये कि संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा इतनी जल्दी कैसे पूरी की जा सकती है। अंतत: उन्होंने एक युक्ति निकाली और पास बैठे शिव-पार्वती के इर्द-गिर्द सात परिक्रमा कर वापस उन्हीं के पास आकर बैठ गये। थोड़ी देर में कार्तिकेय जब लौटे तो गणेश जी को उसी मुद्रा में बैठे देख समझे कि उन्होंने स्पर्धा जीत ली है।
उन्होंने शिव जी से कहा कि वह देवताओं की मदद के लिए तैयार हैं। शिव जी ने गणेश जी से पृथ्वी की परिक्रमा नहीं करने की वजह पूछी, तो गणेश जी ने कहा, माता पिता के चरणों में ही समस्त लोक विद्यमान होता है, इसलिए मैंने आप दोनों की परिक्रमा कर ली। गणेश जी का जवाब सुनकर शिव-पार्वती दोनों प्रसन्न हुए। शिव जी ने गणेश जी को आशीर्वाद देते हुए कहा कि चतुर्थी के दिन जो भी तुम्हारा पूजन कर रात्रि में चंद्रमा को अघ्र्य देगा, वह दैहिक, भौतिक एवं दैविक ताप से मुक्ति प्राप्त कर लेगा। कहा जाता है कि इसके पश्चात ही गणेश जी के इस व्रत की परंपरा शुरु हुई. यह व्रत अधिकांशतया विवाहित महिलाएं ही करती हैं।
Comments
Post a Comment