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नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में...

26 फरवरी, 2019 : मां सीता का जन्मदिवस

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को माता सीता का जन्मदिन मनाया जाता है। ये तिथि इस वर्ष 26 फरवरी मंगलवार को पड़ रही है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन मिथिला नरेश राजा जनक और रानी सुनयना को सीता नाम की कन्या प्राप्त हुई थी। इस तिथि को जानकी जयंती या सीता अष्टमी के नाम से बुलाते हैं। बाद में यही देवी सीता अयोध्या के राजा दशरथ के बड़े पुत्र और विष्णु जी के अवतार श्री राम की पत्नी बनीं। राम से विवाह के बाद सीता जी ने उनके और देवर लक्ष्मण के साथ 14 साल का वनवास भी भोगा था। इसी अवधि में लंका के राजा रावण ने उनका अपहरण भी कर लिया था। वनवास से वापसी के बाद भी वह हमेशा अयोध्या में नहीं रह पाई थीं। उनको पति राम ने त्याग दिया और अपने पुत्रों के साथ उन्हें वाल्मीकि आश्रम में ही अपना जीवन व्यतीत करना पड़ा और अंत में धरती में समा गर्इं।
सीता जी के जन्म की कथा
पौराणिक कथाओं और रामायण के अनुसार सीता जी का जन्म मिथिला के एक खेत में हुआ था। कहते हैं एक बार भयानक अकाल को दूर करने के लिए किए गए एक यज्ञ के अनुष्ठान के लिए राजा जनक को खेत जोतने के लिए कहा गया। उसी खेत में हल चलाते हुए एक क्यारी बनाते समय बने स्थान में एक कन्या उत्पन्न हुई। उस समय राजा जनक की कोई संतान नहीं थी, इसीलिए इस कन्या को पा कर वे अत्यंत प्रसन्न हो गए और उसे गोद ले लिया। मैथिली भाषा में हल को सीता कहा जाता है यही कारण है कि हल चलाते हुए मिली इस कन्या का नाम उन्होंने सीता रख दिया। इसी कन्या को भूमि में पाए जाने की वजह से भूमिपुत्री या भूसुता, राजा जनक की पुत्री होने की वजह से जानकी, जनकात्मजा और जनकसुता, और मिथिला की राजकुमारी होने के कारण मैथिली नाम से भी बुलाया जाता है।
जानकी जयंती की पूजा
इस दिन माता सीता जी पूजा की शुरुआत गणेश जी और अंबिका जी की अर्चना से की जाती है। इसके बाद सीता जी की मूर्ति या तस्वीर पर पीले फूल, कपड़े और श्रृंगार का सामान चढ़ा कर पूजन किया जाता है। साथ ही 108 बार नीचे लिखे मंत्र का जाप करते हैं-
श्री जानकी रामाभ्यां नम:, जय श्री सीता राम, श्री सीताय नम:।
ऐसी मान्यता है कि यह पूजा विवाहित महिलाओं के लिए विशेष रूप से लाभकारी होती है, और इस दिन पूजा करने से वैवाहिक जीवन की समस्याएं दूर होती हैं।

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