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नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में...

32. वेद : चिकित्सा विज्ञान

लगातार........
जल चिकित्सा- वेद में अनेक स्थानों पर जल को एक गुणकारी औषध के रूप में वर्णित किया गया है । अथर्ववेद के 1.4. सूक्त में कहा गया है कि जालों में अमृत का निवास है। जिस प्रकार अमृत शारीरिक और मानसिक रोगों को दूर करके निरोगता, स्वास्थ्य, शान्ति और दीर्घ जीवन प्रदान करता है, उसी प्रकार शुद्ध जालों के सम्यक सेवन से भी ये सब लाभ प्राप्त होते हैं । भिषजां सुभिषक्तमा: (अथर्व. 6.24) में जलों को चिकित्सकों से भी बड़ा चिकित्सक बताया गया है और कहा गया है कि जलों के द्वारा हृदय के रोगों का और आँखों के रोगों का भी निवारण होता है तथा पैर के तलवे और पंजों के रोगों का भी शमन होता है। अथर्ववेद के 6.57 सूक्त में कहा गया है कि जल में वह सामथ्र्य है कि बाण आदि के द्वारा कट जाने से हुए घावों को भरने की शक्ति भी रखता है। (अथर्व. 19.2.5) मन्त्र में कहा गया है कि (आप:) जलों के द्वारा यक्ष्मा (टी.बी.) रोग की भी चिकित्सा की जा सकती है।
सूर्य किरणों से चिकित्सा- वेद में सूर्य की किरणों से चिकित्सा करके पीलिया आदि रोगों के निवारण का उपदेश भी किया गया है। अथर्ववेद में कहा गया है कि सूर्य किरणों के सेवन से हृदय के रोग और उनसे जन्य हृदय की पीड़ा भी शान्त हो जाती है तथा सूर्य की लाल किरणों के (गो- रोहितेन) सेवन से पीलिया रोग भी दूर हो सकता है ।
वेद में रोग निवारक ओषधियों का वर्णन- वेद में अनेक औषधियों का वर्णन किया गया है, जो कि नाना प्रकार के रोगों के निवारण के लिए प्रयुक्त हो सकती हैं । उदाहरणार्थ- अथर्ववेद 10.3. सूक्त में वरुण नामक ओषधि का वर्णन मिलता है। यह औषधि यक्ष्मा रोग और नींद न आना तथा इसके कारण बुरे-बुरे स्वप्न आते रहना रूपी रोग की चिकित्सा के रूप में प्रयुक्त की जा सकती है। (अथर्व. 2.25) में 'पृश्नि पर्णी' औषधि का वर्णन है। जो रोग शरीर का रक्त पीकर दुर्वलता उत्पन्न कर देते हैं, शरीर के सौंदर्य को नष्ट कर देते हैं, स्त्रियों में गर्भ बनने नहीं देते हैं या गर्भ असमय में गिर जाने का कारण बनते हैं, ऐसे रोगों के उपचार के लिए यह औषधि प्रयुक्त होती है।
क्रमश:

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