Featured Post

नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में...

35. वेद : निंदा एक बुराई

लगातार..........
ऋग्वेद में दिए गए श्लोकों से जहां शिक्षा, स्वास्थ्य और ज्ञान-विज्ञान की जानकारी मिलती है, वहीं निंदा के बारे में भी ऐसे कई श्लोकों का वर्णन मिलता है, जिनके दूरगामी परिणाम अन्तत: बुराई की ओर ले जाते हैं। अत: निंदा जैसे भाव मन में भी नहीं आने देना चाहिए। ऋग्वेद में दी गई कथा और श्लोक-
निन्दावादरतो न स्यात् परेषां नैव तस्कर:।
निन्दावादाद्धि गोहर्ता शक्रेणाभिहतो वल:।।

कथा- बलासुर नाम का एक राक्षस था। वह हर समय देवताओं की निंदा करता और उनका अपमान करता था। एक बार देवताओं को अपमानित करने के लिए उसने देवलोक की सारी गायों का अपरहण करके उन्हें एक गुफा में छिपा दिया। जब भगवान इन्द्र को इस हरकत के बारे में पता चला तो वे अपनी देवसेना लेकर गायों को छुड़वाने के लिए गए। उस गुफा में पहुंच कर भगवान इन्द्र ने सभी गायों को बलासुर की कैद से मुक्त किया और बलासुर का वध कर दिया। इसलिए मनुष्य को कभी भी दूसरों की निंदा का भाव अपने मन में नहीं आने देना चाहिए।
दूसरों की निंदा करने का स्वभाव बना था शिशुपाल की मृत्यु का कारण- शिशुपाल भगवान कृष्ण की बुआ का पुत्र था। शिशुपाल हमेशा से ही भगवान कृष्ण और पांडवों से जलता था। शिशुपाल भगवान कृष्ण और पांडवों की निंदा करता रहता था, लेकिन भगवान कृष्ण ने शिशुपाल की माता को उसके 100 अपराध माफ करने का वचन दिया था। इंद्रप्रस्थ के निर्माण के बाद युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ का आयोजन किया गया, जिसमें सभी राजाओं को बुलाया गया था। उस यज्ञ सभा में शिशुपाल ने भगवान कृष्ण, पांडवों सहित द्रौपदी की भी बहुत निंदा की। जब शिशुपाल ने अपनी हद पार कर दी तब भगवान कृष्ण ने भरी सभा में अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया।
क्रमश:

Comments

Popular Posts

हरे कृष्ण महामंत्र की महिमा

22. वेद : रोग निवारण सूक्तियां

लघु बीजात्मक दुर्गा सप्तशती