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नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में...

36. वेद : सफलता के अचूक मंत्र

लगातार........
आज के आर्थिक युग में हर कोई सफल होना चाहता है, लेकिन भागदौड़ के पश्चात भी विफलता ही हाथ मिलती है। कर्म के साथ आध्यात्मिक का भी साथ ले ले तो सफलता से कोई वंचित नहीं कर सकता। शास्त्रों में कर्म, काल, आत्मा, स्वास्थ्य आदि मानव जीवन से जुड़े लगभग हर पहलू को बेहतर बनाने के रहस्य बताए गए हैं। वेद और पुराण जहां जीवन जीने के आदर्श तरीके बताते हैं, वहीं इसे आसान बनाने के मंत्र भी इन्हीं में छिपे हैं।
वेद-पुराणों में ऐसे कई रहस्यमयी मंत्र हैं जो जीवन में आश्चर्यजनक बदलाव ला सकते हैं। वास्तव में ये रहस्य वो मार्ग हैं जो आपको जीवन में सुख,संपत्ति,समृद्धि और शांति पाने की ओर लगातार निर्बाधित रूप से आगे बढ़ाते हैं।
गीता- एक ऐसा वेद है जिसमें जीवन का सार छिपा है। भगवान श्रीकृष्ण के बातये भक्ति और कर्म के मार्ग का अनुसरण करने पर मनुष्य एक अलग ही कोटि हासिल करता है। कहा जाता है कि गीता में जीवन की सभी समस्याओं का समाधान है। इसलिए जीवन में कभी भी अगर  खुद को विचलित या संकटों में घिरा महसूस करें, तो गीता का पाठ करें। यह अवश्य ही आपको सही और सटीक मार्ग बताएगा।
योग- अध्यात्म और स्वास्थ्य का सम्मिश्रण है। यह आपके शरीर को मस्तिष्क और आत्मा से जोड़ता है। योग मुख्य रूप से ब्रह्मयोग और कर्मयोग में बंटा हुआ है। आत्मिक और शारीरिक लाभ के लिए 'योग सूत्रÓ का अध्ययन आवश्यक है। यह योग के ग्रंथों में सर्वश्रेष्ठ है और इससे जुड़ा ज्ञान आपके स्वास्थ्य और आंतरिक क्षमता को बढ़ाता है।
यज्ञ- यजुर्वेद में 5 प्रकार के यज्ञों का वर्णन है -1. ब्रह्मयज्ञ, 2. देवयज्ञ, 3. पितृयज्ञ, 4. वैश्वदेव यज्ञ और 5. अतिथि यज्ञ। देवयज्ञ को ही अग्निहोत्र कर्म कहते हैं। यज्ञ कोई कर्मकांड नहीं है बल्कि यह मन और वातावरण को शुद्ध करने का काम करता है। इसलिये खुद की और घर की शुद्धि के लिए इससे जुड़ा ज्ञान आपके लिए आवश्यक है।
तंत्र शास्त्र का वर्णन अथर्ववेद में है। तंत्र शास्त्र 3 भागों में बंटा है आगम तंत्र, यामल तंत्र और मुख्यआ तंत्र। तंत्र विद्या के माध्ययम से  अपनी आत्मशक्ति का विकास कर सकते हैं और साथ ही कई अद्भुत शक्तियों के मालिक भी बन सकते हैं।
मंत्र- मंत्र एक साधना है जिसकी सिद्धि के लिए आपको अपने मन को इसके अधीन करना होगा। मंत्र 3 प्रकार के होते हैं- 1. वैदिक मंत्र, 2. तांत्रिक मंत्र और 3. शाबर मंत्र। मंत्रों में जीवन की सभी परेशानियों, दु:ख और बुरी शक्तियों से लडऩे की ताकत है। इसलिये इसका ज्ञान आपको समृद्ध और सफल बना सकता है।
वास्तुशास्त्र- दक्षिण भारत में वास्तु विज्ञान की नींव 'मय दानवÓ ने और उत्तर भारत में 'विश्वकर्माÓ ने रखी थी। वास्तुदोष बहुत हद तक जीवन और इससे जुड़ी गतिविधियों को प्रभावित करते हैं। अगर कोई इसका ज्ञानी हो तो वह वास्तु के अनुसार घर या आलय का निर्माण कर अपने जीवन को सुखी और खुशियों भरा बना सकता है।
ज्योतिष- ज्योतिष को वेदों का नेत्र कहा गया है। ज्योतिष शास्त्र के कई अंग हैं; जैसे - सामुद्रिक शास्त्र, हस्तरेखा विज्ञान, अंक शास्त्र, अंगूठा शास्त्र, ताड़पत्र विज्ञान, नंदी नाड़ी ज्योतिष, पंचपक्षी सिद्धांत, नक्षत्र ज्योतिष, वैदिक ज्योतिष आदि। ज्योतिष विद्या का ज्ञान ना केवल स्वयं तथा दूसरों का व्यक्तित्व समझने में आपकी मदद करती है, बल्कि इससे जुड़ी भविष्यवाणियां आगे के जीवन में भी आपके लिए सफलता के मार्ग प्रशस्त करती हैं।
षड्दर्शन- दर्शन उस विद्या को कहा जाता है जिसके द्वारा तत्व का साक्षात्कार हो सके। भारतीय ऋषियों ने इसमें जगत के रहस्य को अनेक कोणों से समझने की कोशिश की है। इसके मूल में यह माना जा सकता है कि हृदय की गाँठ तभी खुलती है और शोक तथा संशय तभी दूर होते हैं जब एक सत्य का दर्शन होता है। वैदिक दर्शनों में षड्दर्शन (षड् अर्थात् 6) अधिक प्रसिद्ध और प्राचीन हैं जिनमें दुनिया के सारे धर्म तथा दर्शन सिद्धांत निहित माने जाते हैं। इसलिए इन्हें जानने वाला जीवन के हर हाल में खुशी और सफलता के मार्ग ढूंढ़ ही लेता है। ये षड्दर्शन हैं- 1. न्याय, 2. वैशेषिक, 3. सांख्य, 4. योग, 5. मीमांसा, 6. वेदांत।
आयुर्वेद- यह ध्वनंतरी ऋषि का दिया वह वरदान है, जिसे जानने वाला हर प्रकार से निरोगी काया पा सकता है। शास्त्रों के अनुसार निरोग शोकमुक्त रहने का मार्ग है। इसलिए आयुर्वेद का ज्ञान रखने वाला तथा दिनचर्या में आयुर्वेद के सिद्धांतों का पालन करने वाला जीवन में कभी असफलता का मुंह नहीं देखता।
क्रमश:

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