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नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में...

37. वेद : धर्मग्रंथ

लगातार.........
वेद हिन्दू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई। ऐसी मान्यता है कि इनके मन्त्रों को परमेश्वर ने प्राचीन ऋषियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था। इसलिए वेदों को श्रुति भी कहा जाता है। वेद प्राचीन भारत के वैदिक काल की वाचिक परम्परा की अनुपम कृति है जो पीढ़ी दर पीढ़ी पिछले चार-पाँच हजार वर्षों से चली आ रही है। वेद ही हिन्दू धर्म के सर्वोच्च और सर्वोपरि धर्मग्रन्थ हैं। वेद के असल मन्त्र भाग को संहिता कहते हैं।
सनातन धर्म एवं भारतीय संस्कृति का मूल आधार स्तम्भ विश्व का अति प्राचीन और सर्वप्रथम वाड्मय वेद माना गया है। मानव जाति के लौकिक (सांसारिक) तथा पारमार्थिक अभ्युदय-हेतु प्राकट्य होने से वेद को अनादि एवं नित्य कहा गया है। अति प्राचीनकालीन महा तपा, पुण्यपुञ्ज ऋषियों के पवित्रतम अन्त:करण में वेद के दर्शन हुए थे, अत: उसका वेद नाम प्राप्त हुआ। ब्रह्म का स्वरूप सत-चित-आनन्द होने से ब्रह्म को वेद का पर्यायवाची शब्द कहा गया है। इसीलिये वेद लौकिक एवं अलौकिक ज्ञान का साधन है। तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये- तात्पर्य यह कि कल्प के प्रारम्भ में आदि कवि ब्रह्मा के हृदय में वेद का प्राकट्य हुआ।
श्रुति भगवती बतलाती है कि अनन्ता वै वेदा:। वेद का अर्थ है ज्ञान। ज्ञान अनन्त है, अत: वेद भी अनन्त हैं। तथापि मुण्डकोपनिषद की मान्यता है कि वेद चार हैं-ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद अथर्ववेद। इन वेदों के चार उपवेद इस प्रकार हैं—
आयुर्वेदो धनुर्वेदो गान्धर्वश्र्चेति ते त्रय:।
स्थापत्यवेदमपरमुपवेदश्र्चतुर्विध:॥

उपवेदों के कर्ताओं में-
आयुर्वेद के कर्ता धन्वन्तरि, धनुर्वेद के कर्ता विश्वामित्र,
गान्धर्ववेद के कर्ता नारद मुनि और स्थापत्यवेद के कर्ता विश्वकर्मा हैं।
मनुस्मृति कहती है- श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेय:। आदिसृष्टिमारभ्याद्यपर्यन्तं ब्रह्मादिभि: सर्वार्: सत्यविद्या: श्रुयन्ते सा श्रुति:। वेदकालीन महातपा सत्पुरुषों ने समाधि में जो महाज्ञान प्राप्त किया और जिसे जगत के आध्यात्मिक अभ्युदय के लिये प्रकट भी किया, उस महाज्ञान को श्रुति कहते हैं।
श्रुति के दो विभाग हैं- वैदिक और तान्त्रिक- श्रुतिश्च द्विविधा वैदिकी तान्त्रिकी च।
मुख्य तन्त्र तीन माने गये हैं- महानिर्वाण-तन्त्र,  नारदपाञ्चरात्र-तन्त्र और कुलार्णव-तन्त्र।
वेद के भी दो विभाग हैं- मन्त्र विभाग और ब्राह्मण विभाग- वेदो हि मन्त्रब्राह्मणभेदेन द्विविध:।
क्रमश:

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