ग्रह और रोग
आज की अस्त-व्यस्त भरी जीवनशैली में बीमारी का होना आम बात हो चली है। बीमारी के लक्षण छोटी उम्र से लेकर बड़े-बुजुर्गों तक देखे जा सकते हैं, जिससे शरीर में बीमारियां घर करने लगती हैं। इसके चलते दवा और डॉक्टरों की ओर भागमभाग बनी रहती है। कारण कुछ भी हो सकते हैं, लेकिन ज्योतिष की दृष्टि से देखा जाए तो इसके लिए ग्रह भी एक कारण हो सकते हैं। इसलिए कोई भी बीमारी होने पर किस ग्रह का प्रभाव होता है ये जान लेना भी अति आवश्यक होता है, जिससे बीमारी दूर भगाने में सहायता मिलती है।
क्योंकि ग्रहों का रोग कारकत्व एवं उनका शरीर के विभिन्न अंगों पर प्रभाव प्रत्येक ग्रह में विभिन्न रोगों को उत्पादन करने वाले निहित गुण होते हैं। कौन सा ग्रह किस रोग के लिए जिम्मेदार है या यह कहें किस रोग का कारक है। इस बात को जानना आवश्यक है ताकि किसी व्यक्ति को कौन सी बीमारी होने की संभावना है ये पता लगाया जा सके और उसका उचित उपचार किया जा सके। क्योंकि सूर्य आंखों, चंद्रमा मन, मंगल रक्त संचार, बुध हृदय, बृहस्पति बुद्धि, शुक्र प्रत्येक रस तथा शनि, राहू और केतु उदर का स्वामी है। जिस वजह से इनका हमारे शरीर पर हर तरह का प्रभाव होना संभव है। कौन से ग्रह के चलते कौन सा रोग पनपता है और क्या उपाय किया जा सकता है।
सूर्य- इस ग्रह के प्रभाव से पित्त, वर्ण, जलन, उदर, सम्बन्धी रोग, रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी, न्यूरोलॉजी से संबंधी रोग, नेत्र रोग, ह्रदय रोग, अस्थियों से संबंधी रोग आदि समस्त रोग होते हैं।
चंद्रमा- मानसिक विकार, विकलता, छाती का विकार, पुरुष की बाईं आंख व स्त्री की दाईं आंख, कफ, फेफड़े, रक्ताल्पता, मुख रोग, तरल-बहाव, रक्तविकार गर्भाशय, पाचनक्रिया तथा त्वचा संबंधी आदि रोगों व पीड़ाओं की संभावना चंद्रमा के निर्बल या पीडि़त होने पर रहती है।
मंगल- पित्त ज्वर, तृषा, जानवरों द्वारा काटे जाना, ऑपरेशन, दुर्घटना, उच्चरक्तचाप , गर्भपात, रक्तविकार, मानसिक विचलन, कातरता, फोड़े-फुंसी, मज्जा का रोग, खुजली, देह्भंग, घाव, मृगी, ट्यूमर, अग्निदाह और शस्त्राघात और शरीर के ऊपर के भाग में पीड़ा आदि ये व व्याधियां निर्बल मंगल के कारण होती हैं।
बुध- भ्रान्ति, खराब वचन, अत्यधिक पसीना आना, नसों का दर्द, संवेदनशीलता, बहरापन, नपुंसकता, जीभ, मुंह, गले व नाक से उत्पन्न रोग, चर्मरोग, मस्तिष्क व तंत्रिकाओं संबंधी विकार, दमा, श्वास-नली में अवरोध, नर्वस ब्रेकडाउन, बीमारीयां पीडि़त बुध के कारण होने की कारण होती है।
गुरु- इस ग्रह के प्रभाव से दंतरोग, स्मृतिहीनता, आंतडिय़ों का ज्वर, कर्णपीड़ा, पीलिया, लीवर की बीमारी, सिर का चक्कर, पित्ताशय के रोग, रक्ताल्पता, नींद न आने की बीमारी, शोक, विद्वान गुरु आदि शारीरिक कष्ट-कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है।
शुक्र- इस ग्रह के प्रभावी होने पर मधुमेह, पित्ताशय या गुर्दे में पथरी, मूत्रकृच्छ, प्रमेह, अन्य गुह्यस्थान के रोग, मोतियाबिन्द आदि रोगों को झेलना पड़ेता है।
शनि- जिस पर शनि का प्रभाव पड़ जाए उसे पैर की पीड़ा, कुक्षिरोग, लकवा, गठिया, अस्थमा, यक्ष्मा, आतंरिक उष्णता, गिल्टी सम्बन्धी रोग, पागलपन, शठता शरीर के किसी अंग में दर्द, हृदय में परिताप-जलन, दीर्घ काल के रोग आदि से पीडि़त होना पड़ता है।
राहू- हृदय में ताप, अशांति, कृत्रिम जहर का भय, पैर की पीड़ा, अशुभ बुद्धि, कुष्ट रोग, पिशाच और सर्प दंश का भय, इत्यादि रोगों से जूझना पड़ता है।
ये तो रही एक बात जिसके कारण पता चलता है कि किस ग्रह के कारण कौन सी पीड़ा सता रही है। अब जान लेते हैं क्या करने से इनसे लाभ पाया जा सकता है। क्योंकि किसी समस्या का समाधान उसके उपचार में ही निहित होता है। भगवान शिव की पूजा सरल होने के साथ-साथ शुभ फलदायक है। यदि ग्रह संबंधित विघ्न-बाधाओं से मुक्ति पानी हो तो अलग-अलग पदार्थों से भोलेनाथ का पूजन लाभप्रद हो सकता है। शास्त्रानुसार सभी देवों में भगवान शिव की पूजा को सबसे सरल बताया गया है। श्रद्धावान भक्त मात्र एक लोटा शुद्ध जल से शिवलिंग की पूजा करके इन्हें प्रसन्न कर सकता है और इनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। यह सम्पूर्ण जगत ग्रहों के अधीन है। अत: ग्रह अपने शुभ-अशुभ प्रभावों से इस चराचर जगत को सदैव प्रभावित करते हैं। अत: ग्रह जनित विघ्न-बाधाओं को भी भगवान शिव की पूजा से दूर किया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि शिव पूजा से भक्तों को ग्रहों की पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है।
सूर्य- यदि किसी जातक की कुंडली में सूर्य से संबंधित बाधा है तो शिवलिंग का विधिवत पंचोपचार अथवा षोड्शोपचार पूजन करें। लाल पुष्पों-पत्तों तथा बिल्व पत्र आदि चढ़ा कर अभिषेक सम्पन्न करने से हर समस्या का समाधान होता है।
चन्द्रमा- चंद्रमा के प्रभाव से ग्रसित जातक को सोमवार का व्रत करना और साथ ही गाय का दूध शिवलिंग पर चढ़ाना लाभदायक है।
मंगल- मंगल ग्रह की परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए जातक को गिलोय की जड़ का रस शिवलिंग पर अर्पित करना चाहिए।
बुध- बुध ग्रह से संबंधित परेशानी हो तो जातक को विधारा की जड़ के रस से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए।
गुरु- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बृहस्पति अनुकूल न होने पर मनुष्य को अनेक प्रकार के मानसिक रोगों के साथ-साथ आर्थिक संकटों से गुजरना पड़ता है। अत: बृहस्पति ग्रह को अपने अनुकूल बनाने के लिए हल्दी मिश्रित दूध से शिवलिंग का पूजन करना चाहिए।
शुक्र- कुंडली में शुक्र ग्रह अशुभ होने पर जातक को पंचामृत एवं चीनी मिश्रित दूध और घृत से शिवलिंग की पूजा-अर्चना करना श्रेयस्कर माना जाता है।
शनि- शनि जनित पीड़ा से ग्रस्त होने पर जातक को गन्ने के रस एवं छाछ से शिवलिंग की पूजा विशेष लाभदायक है।
राहू-केतु- कुंडली में अशुभ राहू या केतु की दशा चल रही हो या राहू केतू अशुभ स्थिति में हों तो जातक को कुश या दूर्वा के रस में जल मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करना विशेष फलदायक है। ऐसा करने से मानसिक परेशानियों से छुटकारा मिलता है।
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