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नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में...

शिवजी के श्राप से हुआ पांडवों का पुनर्जन्म

शिव वैसे तो भोले भंडारी माने गए हैं, लेकिन जब क्रोधित हो जाए तो श्राप भी दे देते हैं। ऐसे ही एक प्रसंग आता है जिसमें पांडवों को भी पुनर्जन्म का श्राप दे दिया था। महाभारत युद्ध के पश्चात पांडवों ने 36 सालों तक हस्तिनापुर में राज किया। इसके बाद पांडवों ने द्रौपदी और एक कुत्ते के साथ अपनी अंतिम यात्रा के रूप में स्वर्ग की सीढिय़ां चढऩा शुरू किया। इस दौरान धीरे-धीरे सभी युधिष्ठिर को छोड़कर हर किसी का निधन हो गया। युधिष्ठर  कुत्ते के साथ हिमालय के पार स्वर्ग के दरवाजे पर पहुंच सके।
अश्वस्थामा से प्रसन्न थे भगवान शिव 
भविष्यपुराण के मुताबिक, महाभारत युद्ध के दौरान आधी रात के समय अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्य ये तीनों पांडवों के शिविर के पास गए और उन्होंने मन ही मन भगवान शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। इस पर भगवान शिव ने उन्हें पांडवों के शिविर में प्रवेश करने की आज्ञा दे दी। जिसके बाद अश्वत्थामा ने पांडवों के शिविर में घुसकर शिवजी से प्राप्त तलवार से पांडवों के सभी पुत्रों का वध कर दिया और वहां से चले गए।
भगवान शिव ने दिया था श्राप
पांडवों को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने बिना विचारे भगवान शिव से ही युद्ध करने चले गए। पांडव और शिवजी का आमना-सामना हुआ तो युद्ध करने के लिए उनके सामने पहुंचे उनके सभी अस्त्र-शस्त्र शिवजी में समा गए। क्रोधित शिवजी बोले तुम सभी श्रीकृष्ण के भक्त हो। ऐसे में इस  अपराध का फल तुम्हें इस जन्म में  नहीं बल्कि कलियुग में मिलेगा। लेकिन इसका फल तुम्हें कलियुग में फिर से जन्म लेकर भोगना पड़ेगा। पांडव जब श्रीकृष्ण के पास पहुंचे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि कौन-सा पांडव कलियुग में कहां और किसके घर जन्म लेगा।
यहां जन्मे थे पांचों पांडव
कलियुग में अर्जुन का जन्म परिलोक नाम के राजा के यहां हुआ था। उनका नाम ब्रह्मानंद था। वहीं, युधिष्ठर का जन्म वत्सराज नाम के राजा के यहां हुआ। उनका नाम मलाखान था। कलियुग में भीम वनरस राज्य के राजा बने। उनका नाम वीरण था। नकुल का जन्म कान्यकुब्ज के राजा रत्नभानु के यहां हुआ। उनका नाम लक्षण था। कलियुग में सहदेव का जन्म भीमसिंह नाम के राजा घर में हुआ। उनका नाम देवसिंह था।

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