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नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में...

काशी नगरी के कोतवाल बाबा काल भैरव

सनातन नगरी कहे जाने वाले बनारस में बाबा विश्वनाथ के बाद यदि किसी का महत्व है, तो वे हैं काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव। बनारस के लोग सदियों से यह मानते आए हैं कि काशी विश्वेश्वर के इस शहर में रहने के लिए बाबा काल भैरव की इजाजत लेनी चाहिए, क्योंकि दैवी विधान के अनुसार वे इस शहर के प्रशासनिक अधिकारी हैं। शायद यही कारण है कि जो भी इस शहर में आता है, वह एक बार बाबा काल भैरव के मंदिर में शीश झुकाने जरूर जाता है।
काशी के कोतवाल कहे जाने वाले बाबा काल भैरव का प्राचीन मंदिर इस शहर के मैदागिन क्षेत्र में स्थित है, जो कि अपनी संकरी गलियों, भीड़ और व्यस्तता के लिए जाना जाता है। इस मंदिर के पास एक कोतवाली है, जिसके बारे में यहां के लोगों का कहना है, आप मानें या न मानें, कि बाबा काल भैरव खुद उस कोतवाली का निरीक्षण करते हैं।
भगवान शंकर की नगरी कही जाने वाली काशी के बारे में कई ग्रन्थों में जिक्र आया है कि विश्वनाथ महादेव इस शहर के राजा हैं और काल भैरव इस शहर के कोतवाल हैं, जहां उनकी मर्जी चलती है, क्योंकि वे शहर की पूरी व्यवस्था देखते हैं।
काल भैरव के काशी में विराजमान होने के बारे में एक बहुत ही रोचक पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार, पहले ब्रह्माजी के पांच मुख हुआ करते थे। एक दिन पंचमुखी ब्रह्मा के एक मुख ने देवाधिदेव शिव की निंदा की तो शिव के अंश काल भैरव क्रोधित हो उठे और उन्होंने ब्रह्मा का मुख अपने नाखून से ही काट दिया। लेकिन काल भैरव के नाखून में ब्रह्मा के मुख का एक अंश चिपका रह गया था, जो हट ही नहीं रहा था। साथ ही काल भैरव को ब्रह्म हत्या का दोष भी लग गया।
भैरवजी ने परेशान होकर सारे लोकों में इसका समाधान ढूंढा, लेकिन उन्हें ब्रह्म हत्या से मुक्ति नहीं मिली। तब जगतपालक भगवान विष्णु ने काल भैरव को काशी भेजा। कहते हैं, यहां पहुंचकर काल भैरव को ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिल गई और उसके बाद वे यहीं स्थापित हो गए और काशी के कोतवाल के रूप में आज भी प्रसिद्धि पाते हैं।

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