हनुमान की आठ सिद्धियों से पाएं समृद्धि
लगभग हम सभी हनुमान चालीसा से परिचित हैं और करते भी हैं, लेकिन कइयों को लगता है कि अपेक्षित फल की प्राप्ति नहीं हो पाती है। हनुमान चालीसा तो एक तरह का सार और स्वयं सिद्ध चालीसा है इसलिए इसमें संशय जैसी बात तो रह ही नहीं जाती। उसी चालीसा की एक लाइन है- 'अष्ट-सिद्धि नवनिधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।' इस पंक्ति के अनुसार हनुमान अष्ट सिद्धियां और नौ निधियों के दाता है। जो कि उन्हें सीता माता ने दी है। जिन लोगों के पास ये सिद्धियां और निधियां आ जाती हैं वे समाज में और घर-परिवार में मान-सम्मान, प्रसिद्धि और हर काम मैं सफलता पाते हैं।
हम सभी जानते हैं कि कोई भी कार्य तभी सिद्ध या पूर्ण हो पाता है जब उसमें व्यक्ति मन, कर्म और वचन से एकाग्रचित्त होकर किया जाता है। वैसे ही आध्यात्मिक क्षेत्र में सफलता पाने के लिए व्यक्ति को मन, कर्म और वचन से संकल्पित होकर विधिपूर्वक कार्य करने की आवश्यकता रहती है। यदि यह ईमानदारी के साथ हो तो फिर सफलता भी दूर नहीं होती है। योग भी तभी लाभदायक होता है जब ध्यानमग्न होकर योग किया जाए, अन्यथा तो वह केवल मात्र एक्सरचाइज ही कही जा सकती है। ऐसे ही भगवान की आराधना करने से पहले शुद्ध चित्त होकर उनको अन्तरमन से पुकारें, उनकी प्रार्थना करें और फिर कोई भी पूजा-अर्चना करनी चाहिए। वह पूजा यथेष्ट लक्ष्य के लिए भी हो सकती है या फिर सुख-समृद्धि और मनोकामना पूर्ति की भी हो सकती है।
ऐसे ही हनुमानजी की पूजा सबसे सरल और शीघ्रफलदायी मानी गई है। यदि पूजा-अर्चना से पहले हनुमान जी से आह्वान या याचना कर उन्हें निमंत्रित करें, फिर उनके सिद्ध मंत्र का जाप करें तो यकीन मानिये हनुमानजी सभी संकटों से मुक्ति दिलाने वाले और शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव कहे गए हैं। आप खुद देख लीजिये जहां कहां भी राम कथा होती है तब वहां सबसे पहले हनुमानजी का आह्वान किया जाता है कि आइये हनुमंत विराजिये। फिर कथा का वाचन हो पाता है। फिर चाहें आप मंत्र जाप करें या हनुमान चालीसा लेकिन पहले आह्वान किया है तो हनुमान जी अवश्य आते हैं और फिर कार्य सिद्धि में तो संशय ही नहीं रह पाता। ऐसे ही हनुमानजी को भी राम जी की भक्ति और कृपा से सिद्धियां-ही-सिद्धियां प्राप्त थीं।
अणिमा सिद्धि- यह ऐसी सिद्धि है जिससे व्यक्ति सूक्ष्म (बहुत छोटा) रूप धरना कर सकता है। इसी सिद्घि से हनुमान जी ने सीता को अपना सूक्ष्म रुप दिखा था। हनुमान चालीसा के दोहा में भी इसका उल्लेख है 'सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा'।
महिमा सिद्धि- अणिमा के विपरीत इस सिद्धि से धारक विशाल रूप धारण कर सकता है। इतना बड़ा कि सारे जगत को ढक ले। जैसे श्रीकृष्णा का विराट स्वरूप।
गरिमा सिद्धि- इस सिद्धि से शरीर को जितना चाहे भारी बनाया जा सकता है। इस सिद्घि से ही हनुमान जी ने अपनी पूंछ को इतना भारी बना दिया था कि भीम उसे हिला भी नहीं सके।
लघिमा सिद्धि- गरिमा के विपरीत इस सिद्धि से अपने आप को इच्छानुरूप हल्का बना सकता है। इतना हल्का जैसे रूई का फाहा फिर इस रूप में वह गगनचारी बन कहीं भी क्षणांश में आ-जा सकता है।
प्राप्ति सिद्धि- यह सिद्धि अपनी इच्छित वस्तु की प्राप्ति में सहायक होती है। जानवरों, पक्षियों और अनजान भाषा को भी समझा सकता है, भविष्य को देख सकता है तथा किसी भी कष्ट को दूर करने की क्षमता पा लेता है। अपनी इस सिद्धि के कारण हनुमान जी परम संतोषी हुए। उन्होंने भगवान राम के द्वारा दिए मोतियों को भी कंकड़ के समान माना और राम की भक्ति में लीन रहे।
प्राकाम्य सिद्धि- इसकी उपलब्धि से इसका धारक इच्छानुसार पृथ्वी में समा और आकाश में उड़ सकता है। चाहे जितनी देर पानी में रह सकता है। इच्छानुरूप देह धारण कर सकता है तथा किसी भी शरीर में प्रविष्ट होने की क्षमता व चिरयुवा रहने की सिद्धि प्राप्त कर लेता है।
ईशित्व सिद्धि- इस सिद्धि से व्यक्ति में ईश्वरत्व का वास हो जाता है। व्यक्ति में ईश्वर की शक्ति आ जाती है और वह पूजनीय हो जाता है। इसी सिद्घि के कारण हनुमान जन-जन के पूजनीय हैं।
वशित्व सिद्धि- यह आठवीं और अंतिम सिद्धि है। इस सिद्धि को प्राप्त करके किसी को भी अपने वश में किया जा सकता है। भयानक जंगली पशू-पक्षियों, इंसानों किसी को भी अपने वश में कर अपनी इच्छानुसार व्यवहार करवाने की शक्ति हासिल हो जाती है। हनुमान जी ने अपनी इस सिद्घि से मन, वचन काम, क्रोध, आवेश, राग-अनुराग वश में कर लिया था। इन्हीं सिद्घियों ने हनुमान जी को महावीर बनाया।
हनुमान चालीसा करने से पूर्व विधिपूर्वक हनुमान जी का आह्वान कर उन्हें आसन पर बैठने को निमंत्रित कर फिर हनुमान चालीसा पाठ या जाप करें तो लाभ अवश्यम्भावी है। जिन्हें आह्वान किया जाता है उनका यथाशक्ति फल-फूल व प्रसाद चढ़ाकर प्रसन्न भी करना जरूरी हो जाता है। अत: पाठ या जाप के पश्चात् हनुमान जी को प्रिय प्रसाद अवश्य चढ़ायें। फिर विनयपूर्वक उन्हें अपने मन की कामना कहनी चाहिए, वैसे तो हनुमानजी के आने के पश्चात किसी चीज को कहने की आवश्यकता नहीं रह जाती, फिर भी कहना चाहें तो कह सकते हैं और उन्हें वापसी के लिए भी विधिपूर्वक और विनयपूर्वक प्रार्थना करनी चाहिए।
Comments
Post a Comment