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नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में...

दीपावली-2018 से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारियां

नमस्कार। दीपावली महापर्व पर हमें किन बातों का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिये। किस तरह पूजा-पद्धति को आगे बढ़ाना चाहिये। इसकी समग्री जानकारी लेकर मैं आप सभी के समक्ष यहां उपस्थित हूं। जिंदगी की आपाधापी में प्रत्येक व्यक्ति संघर्षशील है और इसके साथ ही नित नए मुकाम खोज रहा है और यही सोचता है कि एक दिन ऐसा आए जब मां श्री की कृपा पूर्ण रूप से मेरे ऊपर बरसे। मैं आरोग्य सहित जीवन जी पाऊं। मेरा बाह्य और आंतरिक आवरण लगातार रूपवान होता चला जाए जिस तरह श्रीकृष्ण को अन्नकूट का भोग लगाया जाता है उसी तरह मेरे जीवन में भी विकास का क्रम लगातार चलता रहे। जब श्री रामचन्द्र जी अयोध्या पधारे थे तो उस समय कैसा प्रकाश उत्सव था। चारों ओर अनन्त प्रकाश। दीये ही दीये जल रहे थे। वैसी ही प्रकाश उत्सव मेरे जीवन में सदैव विद्यमान रहे। ये सारी की सारी कामनाएं और विशिष्टताएं लिए पंच महादिवसीय त्योहार हम सभी के समक्ष उपस्थित होने वाला है, आने वाला है। हमें धनतेरस से लेकर भैय्या दूज तक किस तरह अपनी पूजा-पद्धति को आगे बढ़ाना चाहिए जिससे मां श्री का वास हो। आरोग्य सहित जीवन जी पाएं। रूपवान हो पाएं। पूजा के दिन हमें क्या करना चाहिए ये जानकारियां मैं आपसे यहां साझा करने जा रहा हूं। जिन परम्पराओं के स्वरूप से आप जिस भी क्षेत्र में रहते हैं और जिन परम्पराओं के विशिष्ट स्वरूप से आप जुड़े हुए हैं उन्हें अपने क्रम के साथ लगातार बड़े ही आनंद के साथ जोड़ते चले जाएं मनाते चले जाएं और साथ में हम जब युतियां बता रहे हैं उन्हें विजय मिल पाए तो बहुत ही सुन्दर रहेगा हम सभी के लिए। सर्वप्रथम बात करता हूं मैं धनतेरस की। धनतेरस के दिन सुबह-सुबह सूर्योदय के वक्त महिलाओं को चाहिए कि वो किसी भी समतल मैदान में जाएं और वहां से थोड़ी-सी मिट्टी की खुदाई करके, नवीन जिसे मिट्टी कहते हैं। धरती के नीचे थोड़ी सी जमी हुई होती है उसे आप किसी भी पात्र में ले लें। उनकी पूजा-अर्चना उसी भूमि से जो मिट्टी ली गई है उनकी पूजा-अर्चना करें उन्हें फल चढ़ाएं, पुष्प चढ़ाएं, एक दीप वहां प्रज्जवलित करें और उसके बाद उस धन रूपी मिट्टी को अपने घर पर लेकर आ जाएं सुबह-सुबह के समय ही। घर पर लाकर जो भी आपका देवस्थान है वहां उन्हें स्थापित कर दीजिये। इसके साथ में वहां भी आप दीपक प्रज्जवलित करें। दीप प्रज्जवलित करने के साथ में जो भी आप अपना पूजा क्रम दोहराते हैं उस धन रूपी मिट्टी के साथ में अगले तीन दिन तक दोहराते रहें। धन त्रयोदशी यानि धनतेरस उसमें दीपावली के दिन भी यही क्रम दोहराएं। जिस दिन गोवर्धन पूजा होती है। सुबह-सुबह के समय आप को एक लाल रंग की पोटली लेनी चाहिए। इसमें इस मिट्टी को डाल दीजिये, गांठ लगा दीजिये और ऐसे किसी गुप्त स्थान पर रख दीजिये जिसे बार-बार खोलने की आपको आवश्यकता नहीं रहती। ये एक तरह से अक्षय धन संचय का कार्य करने वाली होती है। धन का स्वरूप है, जननी भूमि स्वरूप है। इसी तरह आप इन्हें संचित करके रखिये और अगली धनतेरस के दिन इस पोटली को लीजिये, खोलिये और ये मिट्टी या तो तुलसी के गमले में या फिर कोई गमला उसमें आप डाल दीजिये कोई पवित्र स्थान हो वहां डाल दीजिये। उसके बाद जो क्रम आपको बताया मिट्ट लेकर आने का। एक तरह से धन लेकर आने का। इसे आप दोहराते चले जाएं। प्रतिवर्ष जो हमारे घर में संचित भंडार हैं वो लगातार अक्षुण्ण रहेंगे। इस दिन कुबेर पूजा भी सम्पन्न की जाती है। जो भी घर में गहने हैं वो भी कुबेर स्वरूप हैं। यदि कुबेर यंत्र हो तो बहुत ही बेहतर नहीं तो आप गहनों की पूजा-अर्चना कर सकते हैं वो भी कुबेर स्वरूप हैं। यहां पर एक बात और बता दूं कि RBI का जो Office है उसके बाहर भी कुबेर की प्रतिमा संचरित रूप में एक तरह से संरक्षित रूप में स्थापित है कि जो भी भीतर धन है उसका संरक्षण करने वाले है। वहां भी मान्यता पूर्णरूपेण विद्यमान है। हम भी हमारे जीवन में इसी तरह कुबेर की पूजा-अर्चना करें। जो धन संचय है वो लगातार बढ़ता चला जाए। यहां आप देखें कि यदि आप सौ के कुछ नोट अपने घर के भीतर रख देते हैं कुछ सालों के लिए। वो बढ़ेंगे नहीं, वो बिलकुल फिक्स्ड ही रहेंगे। लेकिन आप जब गहने रखते हैं और कुछ साल बाद वेल्यूएशन कराते हैं तो बढ़ते चले जाते हैं। एक तरह से धातु स्वरूप में कुबेर विद्यमान है हम सभी के घरों में। विशेष तौर पर स्वर्ण और धातु के स्वरूप में उनकी पूजा-अर्चना सभी को करनी चाहिए। तो हमने ये चर्चा की थी कि आप राशि अनुसार क्या खरीदें आपको अपनी राशि के अनुसार वो एपिसोड देखना चाहिये फिर वो सारी की सारी सामग्री उस हिसाब से खरीदनी चाहिए। विशेष तौर पर धातु और Electronics गेजेट्स भी उसमें हो सकते हैं।
इसके अलावा इस दिन यम दीप दान किया जाता है। शाम के समय 5.50 से लेकर 8.14 के बीच में इस बार यम दीप दान का मुहूर्त है। अकाल मृत्यु के जितने भी भय हैं। ये काटने वाला होता है यम दीप दान। सर्वप्रथम आप एक दीपक लीजिये उसमें सरसों का तेल भरिये और फिर लौ लगाने के बाद उसे प्रज्जवलित करके घर के बाहर दक्षिण दिशा की ओर इसकी लौ का मुख करके रख दीजिये। जितने भी अकाल मृत्यु के कष्ट हैं, भय हैं, अज्ञात भय है वो सब दूर होते हैं इनके द्वारा। अगले दिन रूप चतुर्दशी, जिसे हम नरक चौदस भी कहते हैं। इस दिन श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। श्रीकृष्ण जो कि योगेश्वर थे और योगेश्वर के रूप में जिन्होंने गीता ज्ञान दिया उन्होंने ही नरकासुर का वध भी किया था। जब हम श्रीमद्भगवत गीता का अध्ययन और वाचन करते हैं तो अंतिम श्लोक में संजय कहते हैं-यत्र योगेश्वर श्रीकृष्णो। तत्र पार्थो धनुर्धर:। तत्र श्री विजयोभूर्ति। यानि कि जहां योगेश्वर श्रीकृष्ण और अर्जुन है वहां नीति की विजय होगी ही होगी। और श्री का वहां पर होना सुनिश्चित है। तो ऐसा है श्रीकृष्ण का विराट स्वरूप। उनका ध्यान अपने मन में रखिये और उसके साथ में जो हमारे भीतर आलस्य विद्यमान है उसका भी दमन करने का कार्य कीजिये। इसके लिए हमने सूर्योदय पूर्व उठ जाना चाहिए तो आलस्य का दमन अपने आप ही हो जाता है। इसका आधुनिक वर्णन है। इसके साथ में हमें तिलक स्नान के लिए जाना चाहिए। तिलक स्नान में पूरे शरीर पर तेल का लैप किया जाता है। और उसके बाद में स्नानादि की जाती है। जिससे व्यक्ति लगातार रूपवान होता चला जाता है, उसका रूप निखरता चला जाता है। उम्र का त्वचा के ऊपर असर दिखाई नहीं देता। तो इस तरह हमें रूप चतुर्दशी मनानी चाहिए। अगले दिन अमावस्या और इसके साथ में महालक्ष्मी का महापर्व। आप जिस भी क्षेत्र में रह रहे हैं उस क्षेत्र की जो भी विशेषता है या जो मिठाई आपको सबसे अच्छे से बनानी आती है इस दिन मिठाई अपने घर में जरूर बनाएं। क्योंकि उसकी खुशबू एक तृप्ति का अहसास देती है पूरे परिवार को। बाजारीकरण का दौर है। बाजार से आप जरूर लेकर आए इसमें कोई दिक्कत नहीं है लेकिन साथ में इस क्रम को आप जरूर दोहराएं। शाम के समय हमें दीप मालिका पूजन करना चाहिए। दीप मालिका पूजन क्या है। एक थाली ले लीजिये उसमें स्वास्तिक बनाइये। जब हम संध्या समय में प्रकाशोत्सव की तैयारी करते हुए होते हैं।। दीये प्रज्जवलित करने की तैयारी करते होते हैं उस समय आप एक थाली लीजिये। स्वास्तिक बनाइये। स्वास्तिक बनाने के बाद में आप उसमें पीले पुष्प के जो पत्ते होते हैं वो चढ़ा दीजिये और उसके बाद में 11-21 या 51 दीपक उस थाल में सजा दीजिये और सजाने के बाद में उनको प्रज्जवलित करके जो-जो विशिष्ट हमारे घर के स्थान है, महत्वपूर्ण स्थान है, वहां दीपक रख दीजिये उसके बाद जो दूसरे दीये हैं जहां भी आप प्रकाशमान करना चाहते हैं प्रकाशमान कीजिये। नए कपड़े उस दिन जरूर पहनने चाहिए। क्योंकि जीवन नवीनता का द्योतक है। लगातार हम नवीन विकास की ओर क्रमबद्ध होते चले जाएं। नई सोच के साथ में हमारी स्वीकार्यता बढ़ती चली जाए। ये इस पावन पर्व के महत्व को और बढ़ाने वाला है। जब हम पूजा की बात करते हैं तो दो लगन विशेष तौर पर महत्वपूर्ण है। वृषभ लगन और सिंह लगन। ये दोनों स्थिर लगन है। हम सभी चाहते हैं कि मां जब हमारे घर में पधारे तो स्थिर कदमों के साथ पधारे और स्थिरता के साथ पधारे, सम्पन्नता भी हो तो वो भी स्थिर, बच्चे विद्याध्ययन में है तो वो भी स्थिरता के साथ में आगे बढ़ें। जब व्यक्ति स्थिर है और उसके बाद में आगे बढऩे की सोचता है तो बड़े ही अच्छे से आगे बढ़ पाता है और सम्पन्नता की ओर अग्रसर हो पाता है। तो इन दोनों लगनों में ही पूजा-अर्चना सम्पन्न करनी चाहिए। वृषभ और सिंह लगन का विशेष तौर पर ध्यान रखें। यदि आपका कोई व्यापारिक प्रतिष्ठान है तो वहां पर एक लगन में कर सकते हैं जिसमें आप कनवीनेंट हो दूसरा आप घर में महालक्ष्मी पूजन कर सकते हैं। रजत धातु, सिल्वर के जो कोइनस होते हैं या फिर दूसरे जो भी सिल्वर है आपको पूजा में जरूर रखनी चाहिए। इसके साथ में जो भी करेंसीज है उन्हें भी स्थान देना चाहिए इसमें। यदि आप बाहर रह रहे हैं तो वहां की करेंसी। इंडिया में रह रहे हैं तो इंडियन करेंसी पूजा में जरूर रखनी चाहिए। मां कमल पर स्थिर चित्त के साथ में विराजी हुई हों ऐसी आप फोटोग्राफ या प्रतिमा है वो स्थापित कीजिये। सर्वप्रथम विनायक की पूजा कीजिये। विनायक की पूजा के बाद में महालक्ष्मी पूजन की ओर बढिय़े। ये साधना की रात भी है। इस दिन साधना भी की जाती है। तो आप श्रीसूक्त का  वाचन या पाठ कर सकते हैं। पुरुषसूक्त का भी पाठ कर सकते हैं। यजुर्वेदीय रुद्राष्टध्यायी की जब हम बात करते हैं तो द्वितीय अध्याय पुरुषसूक्त है। उसका भी आपको वाचन और पाठ कर सकते हैं। सिद्धियां आपके भीतर आने लगती है और इसके साथ में मन में एक शीतलता का वास भी नितांत रूप से बना रहता है। जब हम छोटे थे तो हमारे पिताजी एक प्रयोग छोटा-सा करवाया करते थे। लगातार हमारी एकाग्र चित्तता को बढ़ाने के लिए। ये प्रक्रिया बहुत लम्बे समय से आज भी दोहराते चले आ रहे हैं। जब भी आप लक्ष्मी पूजन कर लेते हैं तो बच्चों से कहिये कि जो लौ प्रज्जवलित है मां के सामने। तकरीबन 5 मिनट के लिए उनके सामने बैठ जाएं और जितनी देर तक पलकें नहीं झपका सकें उतनी बेहतर। ये रुटिन प्रोसेस है। जब भी आप पलकें झपकाएं। जब लगने लगेगा पलकें झपकानी जरूरी है उस समय झपकाएं अन्यथा लगातार उस लौ को देखते चले जाएं एकाग्रचित्तता में वृद्धि होने लगती है। Concentration बढऩे लगता है उस लौ को लगातार देखने से। तो दीपावली के दिन बच्चों से ये प्रयोग आप जरूर करवाएं बहुत ही अच्छे और सुलभ परिणाम हम सभी के सामने आने लगेंगे। ये साधना की रात भी है। इस दिन हम जो भी चाहते हैं वो प्राप्त होता है। इसीलिए मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। अपने जो भी कार्य क्षेत्र में आप लगातार कार्यरत हैं यदि विद्यार्थी है या फिर किसी Office में कार्यरत हैं, किसी Business या कि C.E.O. है, जो भी हैं आप। आपको पांच मिनट अपने कार्य क्षेत्र में मंथन के लिए जरूर देने चाहिए। ये आनंद का दिन है, उल्लास का दिन है, लेकिन सिर्फ पांच मिनट आत्म मंथन के लिए दीजिये। देखिये आपके कार्य क्षेत्र में एक नवीन ऊर्जा का प्रवाह आप पाते हैं। अब अगले दिन आता है गोवर्धन पूजा का त्यौहार। श्रीकृष्ण ने कनिष्क के ऊपर गोवर्धन पर्वत उठा लिया था इन्द्र के प्रकोप से सभी को बचाने के लिए। गो धन की रक्षा की थी और उसके जीव धन की भी रक्षा की थी। इसलिए गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है और श्रीकृष्ण को अन्नकूट का भोग चढ़ाया जाता है। तो इस दिन आप भी अन्नकूट का भोग जरूर चढ़ाएं। छछिया भरी छाछ पे नाच नचाये। ये सुन्दर पंक्तियां है कि जहां शेष, गणेश, दिनेश नहीं पा सकते श्री कृष्ण को वहीं अहीर की छोरियां उन्हें छछिया भरी छाछ पर नाच नचा रही है। तो ये है श्रीकृष्ण का विराट स्वरूप। हम इसका आनंद लें और उन्हीं ठाकुरजी को अन्नकूट का भोग चढ़ाएं। अगले दिन भैय्या दूज को अपने भाई को घर पर आमंत्रित करें। उनके भाल पर, ललाट, माथे पर तिलक लगाएं। इसके साथ में उन्हें खाना खिलाएं और साथ में एक अच्छा वक्त बितायें और भाई के द्वारा बहन को पूर्ण रूप से नेह रूपी आशीर्वाद दिया जाता है और उसमें सौभाग्य की, अखंड सौभाग्य की कामना भी की जाती है। तो एक तरह से सौहार्द का पर्व है। भैय्या दूज जिस का भाई बहुत दूर है बहन से। वहां पर हम चन्द्रमा को प्रतीकात्मक तौर पर भाई मानते हैं। उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। और एक तरह से ऐसा माना जाता है कि रश्मियां रिफलेक्ट होकर भाई तक पहुंचती है और उसका प्रभाव भाई तक पड़ता है। तो इसी वजह से हमारे यहां छोटे छोटे बच्चे आज भी चन्द्रमा को 'मामा कहते हैं क्योंकि जो भी शादीशुदा महिलाएं हैं उनके लिए चन्द्रमा एक तरह से भ्राता हो जाते हैं। तो ये सारी की सारी गणनाएं हमारे यहां पर विद्यमान है और लगातार चलती चली आ रही है। इसके साथ हम भी आज जुड़े हुए हैं। तो ये है पंच दिवसीय इस त्योहार का स्वरूप। श्री रामचन्द्रजी अमावस्या के दिन ही अयोध्या पधारे थे। और लगातार अनंत दीये लगाकर उनका स्वागत किया गया था। रघुनंद आनंद कंद कौश चंद दशरथ नंद नम:। तो जब श्री रामचन्द्रजी पधारें तो ये प्रकाशोत्सव मनाया गया। क्योंकि उनके राम फिर से वापस आ चुके थे। हम सभी के भीतर भी एक लौ विद्यमान रहे जो लगातार हमें प्रकाशित करती रहे, ऊर्जावान करके चलती रहे। मुझे एक छोटा सा वाक्या यहां और याद आता है जो मेरे स्मृति में आज भी बड़े ही अच्छे से मौजूद है और जब भी दीपावली आती है तो ये फिर से सामने बड़े ही तरोताजा रूप में सामने आ जाता है। अस्ताचल गामी होते हुए सूर्य ने कहा कि है किसी में इतनी हिम्मत जो मेरे द्वारा फैलाए इस अंधकार को रोक सके। एक छोटे से दीपक ने खड़े होकर कहा कि मैं रत्ति भर कोशिश जरूर करूंगा। यानि कोशिशों का नाम है जिंदगी। इसी सकारात्मक सोच का नाम है जिंदगी। हम लगातार इसी ऊर्जा के साथ कितनी ही परेशानियां आए, कितनी ही तकलीफ आए लेकिन मन में एक ऊर्जा रखें, उमंग रखें और लगातार आगे बढ़ते चले जाएं। मेरी यही कामनाएं हैं हम इस त्योहार को बड़े ही उमंग और उत्साह के साथ मनाएं।

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