
नमस्कार। किस प्रकार पहने हुए रत्नों का प्रभाव कम होने लगता है तो उन्हें हम अभिमंत्रित कौन सी विधि से करें। इस बारे में अलग-अलग Episodes के माध्यम से जानकारी दी है। जिस तरह चन्द्रमा के मुख्य रत्न है मोती। मंगल का मूंगा, बुध का पन्ना और इसके साथ में सूर्य की यदि बात की जाए तो माणक्य पहनने की सलाह दी जाती है। शनि के लिए नीलम। नीलम पहनते समय सावधानी बरतनी चाहिए। ये अलग-अलग Episodes के माध्यम से मैंने जानकारी दी है। आज जिन ग्रहों के रत्नों को चार्ज करने की विधि बड़ी ही सरल है उसके बारे में मैं एक ही एपिसोड में चर्चा करने जा रहा हूं। शुक्र का जो मुख्य रत्न है Diamond जिसे हीरा कहा जाता है, संस्कृत में वज्र मणि कहते हैं। इसकी सबसे पहले चर्चा कर लेते हैं। जब भी शुक्र कुंडली के 12 भावों में कमजोर पोजिशन में बैठे हुए हों या फिर कोई व्यक्ति मधुमेह नाम के रोग से यानि की डायबिटिज से ग्रसित हो या फिर दांतों की तकलीफ से वो 2-4 हो रहा है तो उसे हीरा पहनने की डायमंड पहनने की सलाह दी जाती है या फिर भौतिक सुख-सुविधाओं में बहुत अधिक कमी यदि व्यक्ति महसूस करे तो उसे भी डायमंड पहनने की सलाह दी जाती है जिससे कि स्थितियां सफलता की ओर प्रवेश करने लगती है। हीरा आप कभी भी लेकर आ सकते हैं और उसके बाद में उसे सोने में आपको जड़वा देना चाहिए यानि की सोने की अंगूठी बना देनी चाहिए। सोने की अंगूठी बना लेने के बाद शुक्रवार के दिन आप किसी पंडित से या विद्वान कर्मकाण्डी व्यक्ति है उनसे रुद्राभिषेक करवाएं और उसके बाद खुद 16 माला ऊँ द्रां द्रीं द्रौं शुक्राय: नम: मंत्र का जाप करें। 16 मालाएं जाप करने के बाद में उसे अभिमंत्रित मान लिया जाता है तो फिर दोपहर के समय उसे धारण कर लीजिये। ये 2 से 3 साल तक फिर चार्ज करने की आवश्यकता नहीं होती। यह विधि आप पहने हुए रत्न के साथ भी दोहरा सकते हैं और जो रत्न आपने शुरुआत में ही पहना है यानि कि आपको सलाह दी गई आपने खुद ने विश्लेषण किया और फिर पहना। तो इन दोनों ही स्थितियों में इस तरह से अभिमंत्रित करके आप डायमंड पहन सकते हैं। यदि कहीं फिनूरल में जाकर आते हैं तो फिर से उसे अभिमंत्रित करने की आवश्यकता होती है। अन्यथा ये 2 से 3 साल तक अभिमंत्रित करने की रिक्वायरमेंट नहीं रहती। तो इस तरह से आप डायमंड धारण करें। पूर्णत: से लाभ होगा। अब इसके बाद जब हम राहू के रत्न गोमेद की बात करते हैं, जिगन की बात करते हैं तो एक बात विशेष तौर पर ध्यान रखनी चाहिए। यदि राहू धनु राशिस्थ स्थिति हो जहां यदि नीचस्थ की संज्ञा दी गई या तृतीय स्थान में बैठे हुए हों तो आप जो है इनका रत्न गोमेद धारण कर सकते हैं। अमूमन दोनों षडो प्लेनेट्स के जो रत्न हैं उन्हें धारण करने से बचना चाहिए और जब राहू के दशा आ जाती है तो ये सलाह दे दी जाती है कि आप गोमेद धारण कर लीजिये। लेकिन मेरा अनुभव और अनुसंधान ये कहता है कि 18 साल की दशा में से शुरुआत के 8 साल का फेज निकल जाने के बाद ही गोमेद धारण करना चाहिए। अन्यथा कई बार विपरीत रिजल्ट भी मिलने लग जाते हैं। तो ये तो रही एक बात। अब राहू की दशा 8 साल की निकल गई और अब गोमेद पहनने की आवश्यकता है जिगन पहनने की आवश्यकता है तो उसे आप किस तरह से पहनें। आप गोमेद खरीद लीजिये इसके बाद लोहे की अंगूठी में या फिर पंच धातु में गोमेद को जड़वा दीजिये। इसके बाद में शनिवार के दिन जो तुम्बे का तेल आता है जिससे सबसे कड़वा तेल कहा जाता है उसको आधी से अधिक कटोरी में वो तेल भर देना चाहिए और तेल भर देने के बाद में वो अंगूठी उसमें डालकर रख देनी चाहिए। दो घंटे तक आप ये प्रक्रिया दोहराएं और उसके बाद जो काले उड़द आते हैं जो कि राहू का मुख्य धान माना गया है। काले उड़द में यह अंगूठी जो है आपको साफ धो कर रख देनी चाहिए दो घंटों के लिए और उसके बाद 18 मालाएं ऊँ राम रावेय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। 18 मालाएं जाप कर लेने के बाद में गोमेद को अभिमंत्रित और चार्ज की पोजिशन में मान लिया जाता है। इसके बाद आप गोमेद बड़ी ही आसानी से धारण कर सकते हैं वो पूर्णतया आपको रिजल्ट देने लग जाते हैं। लेकिन मेरी सलाह अनुग्रह आपसे विशेष तौर पर ये है कि जिस तरह दूसरे रत्नों की अंगूठियां पहनी जाती है दोनों षडो प्लेनेट्स से पहले बहुत अधिक इसका सावधानी बरतनी चाहिए। अब हम बात करते हैं केतु की। केतु जिन्हें हम ध्वजा के स्वरूप में भी मानते हैं इनका पर्यायवाची ध्वजा है। जब भी केतु की दशा आती है और वो कमजोर पोजिशन में हो तो कहा जाता है कि आप मंदिर के ऊपर ध्वजा चढ़ाइये। ध्वजा चढ़ाने से केतु संबंधित जो भी व्याधियां हैं वो दूर होने लगती हैं। एक एपिसोड मैंने विशेष तौर पर गुरु और केतु के ध्वज योग पर भी लिया था। गुरु और केतु के बारे में जब चांडाल दोष कहा जाता है। गुरु राहू चांडाल दोष बनाते हैं ये पूरी दुनिया को मालूम है। लेकिन गुरु और केतु ध्वज योग का निर्माण करते हैं यदि आपकी कुंडली में ये युति बन रही है तो आपको एक बार उसके ऊपर गौर जरूर करना चाहिए। ये विषय भटकाव वाली स्थिति थी। लेकिन ये टोपिक कवर करना आवश्यक था। जब आप केतु का रत्न है केडसाइ जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में लहुसनिया भी कहा जाता है। उसे आप किस तरह से चार्ज करें। उसकी एक बड़ी ही साधारण-सी प्रक्रिया है। आप मंदिर के लिए ध्वजा लेकर आएं सर्वप्रथम। हनुमान जी के मंदिर के लिए ध्वजा लेकर आएं तो सबसे बेहतर। आपको सोमवार के दिन इस ध्वजा में लहुसनिया लपेट कर रख देना है। पूरी रात उसी ध्वजा के भीतर आप लहुसनिया को रखें और उसके बाद 17 मालाएं ऊँ कें केतवे: नम: मंत्र करके, स्नानादि से निवृत्त हो जाएं फिर इस बीज मंत्र का जाप करें। 17 मालाएं कर लेने के बाद ये रत्न आपको धारण कर लेना चाहिए। ये बड़े ही अच्छे प्रभाव दिखाने वाला होता है। और जो ध्वजा है उसे किसी भी मंदिर, हनुमान जी के मंदिर पर यदि आप चढ़ा दें तो सबसे बेहतर। क्योंकि केतु को जो मंगलवत करते हैं और मंगल के अधिष्ठात्री यदि देव की बात की जाए तो स्कन्ध है और हनुमन्त उपासना से बड़े ही प्रसन्न होते हैं। तो ये जो ध्वजा है ये आपको किसी भी मंदिर पर चढ़ा देनी चाहिए। अब कई बार क्या होता है कि मंदिर की प्राचीर पर एक ही ध्वजा चढ़ी हुई होती है। लेकिन आसपास कभी भी मना नहीं किया जाता ध्वजा चढ़ाने के लिए तो आप वहां जाकर उस ध्वजा को स्थापित कर सकते हैं। जिस तरह से प्राचीर पर चढ़ाई गई ध्वजा लहराती है उसी तरह से मंदिर के प्रांगण में चढ़ाई गई ध्वजा भी लहराती है और हमारे सारे रुके हुए कामों में एक तरह से विजय पताका फहराने का कार्य करती है। तो इस तरह से आपको केतु के रत्न केडसाई को धारण करना चाहिए। शुक्र के बारे में बताया। राहु के रत्न के बारे में बताया और केतु के रत्न के बारे में आपको जानकारी दी। ये बड़ी ही साधारण विधियां हैं। लेकिन इन्हें यदि इस तरह से पूर्ण प्रक्रिया के साथ दोहरा कर पहना जाए तो ये रत्न बड़े ही अच्छे प्रभावशाली ढंग से हमें रिजल्ट देने वाले होते हैं। तो मैं ऐसी ही कई और जानकारियां जो कि सर्वसुलभ हो और आपके जीवन को आनंदित महसूस करवाने में सहायता प्रदान करती रहे, मैं ऐसी कई जानकारियां आपके समक्ष लेकर आता रहूंगा।
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