जीवन में जब से गुगल ने अपनी गुगली फेंकी है, तब से प्रत्येक समस्या का समाधान, हर छोटे से छोटे प्रश्न का उत्तर मिलना नितांत आवश्यक हो गया है। यदि उत्तर मिला और लॉजिक हमें सही लगा और अपने मन के मुफीद लगा तो उसे मान लेंगे और यदि हमारे मन के मुफीद नहीं लगा तो उसे वहीं ड्राप कर देंगे और संशय के बस्ते में डालकर हमेशा के लिए उसे नकार देंगे। हमारे मंत्र विज्ञान के साथ, श्लोक विज्ञान के साथ और ध्वनि विज्ञान के साथ में भी यही स्थितियां उत्पन्न होने लगी। लोगों के मन में बार-बार ये प्रश्न उठने लगे कि क्या मंत्र विज्ञान में वो ताकत है कि चमत्कारिक रूप से सब कुछ परिवर्तित हो सकता है। ध्वनि विज्ञान में वो ताकत है कि इस ब्रह्माण्ड के जो क्रॉसमॉस है वहां तक हमारे संदेश पहुंच सकते हैं। इस बात को पूफ्र करने के लिए कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है इस उदाहरण का उत्तर या इस प्रश्न का उत्तर हम सभी के पास मौजूद है। जब आप सुबह उठते हैं और कोई एक आइडिया आपके दिमाग में क्लिक करता है और आप उस आइडिया को लेकर पूरे जोश के साथ अपने दोस्त के पास पहुंचते हैं और उसे कहते हैं कि यार ये आइडिया मेरे दिमाग में आया है और मैं इस पर काम करना चाहता हूं, वो उसे वहीं सिरे से खारिज कर देता है, और कहता है कि ये आइडिया कुछ भी काम का नहीं है इस पर कुछ नहीं किया जा सकता और आप नकारात्मक हो जाते हैं और उस आइडिया को ठंडे बस्ते में बंद करके अपने घर पहुंच जाते हैं। लेकिन फिर भी वो आइडिया आपका दामन नहीं छोड़ता, आपका पीछा नहीं छोड़ता। शाम को आप एक और दोस्त के पास पहुंचे उसने कहा यार क्या जबरदस्त आइडिया है हम दोनों मिलकर इस आइडिया पर काम करके धूम मचा सकते हैं। आप प्रेरित हो गए पूरे तरीके से जोश के अतिरेक में आ गए। ये स्थितियां क्या थी। सुबह किसी ने आपको शब्दों के समूह में बांधकर भावनाओं का एक सम्प्रेषण दिया और आप नकारात्मक हो गए और शाम तक आप बिलकुल सकारात्मक हो गए। ये दो पहलू क्या थे। दो अलग-अलग हृदय से निकली दो अलग-अलग बातों ने आप पर नितान्त रूप से अलग-अलग प्रभाव डाला। उसी तरह जब आप शिवजी को प्रसन्न करने के लिए स्तुति करते हैं तो कहते हैं- जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्। डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु न: शिवो शिवम्। और जब अभयदान मांगते हैं अपने जीवन की सुरक्षा मांगते हैं तो कहते हैं- रत्नसानु शरासनं रजताद्रि शृंग निकेतनं शिञ्जिनीकृत पन्नगेश्वर मच्युतानल सायकम्। क्षिप्रदज्ध पुरत्रयं त्रिदिशालयै रभिवन्दितं चन्द्रशेखरमाश्रये मम् किं करिष्यते वे यम:। मम करिष्यते वे यम:। हे चन्द्रशेखर! यदि आप मेरे साथ हैं तो इस जगत में कोई मेरा कुछ कैसे बिगाड़ सकता है। ये उदाहरण क्या है। जब आप वहीं उनके पुत्र विनायक की स्तुति करते हैं तो कहते हैं- तदेव लग्नं सुदिनं तदेव, ताराबलं चंद्रबलं तदेव। विद्याबलं दैवबलं तदेव, लक्ष्मीपते तेंघ्रियुगं स्मरामि। लक्ष्मीपते तेंघ्रियुगं स्मरामि। ये सारे उदाहरण ध्वनि विज्ञान से जुड़े हुए हैं। जैसी जैसी कामना वैसे वैसे श्लोक और वैसे ही हृदय के स्पंदन उत्पन्न करती ये स्तुतियां। एक और साधारण से उदाहरण से इसे समझा जा सकता है। कि जब एक मोटिवेशनल स्पीकर अपनी पोजिटिविटी की आहुतियां किसी सेमिनार हॉल में लगाता है तो वहां बैठा प्रत्येक व्यक्ति ऊर्जावान महसूस करने लगता है खुद को। शब्दों का क्या सम्प्रेषण ऐसा आया है कि उसने ऊर्जा का इस तरह का प्रवाह उत्पन्न कर दिया। जब एक मोबाइल वाइब्रेशन मोड के ऊपर जमीन रखा जाता है तो वो नोर्मल मोड से ज्यादा आवाज करता है। क्योंकि वो वाइब्रेशन पर है। लेकिन यदि उसी मोबाइल को बैड पर रख दिया जाए, आपके पलंग पर रख दिया जाए तो वह बिलकुल आवाज नहीं करेगा। साइलेंट मोड की तरह वो फोन हो जाएगा वो मोबाइल हो जाएगा। क्या कारण है इसका। कारण सिर्फ इतना ही है कि यदि उस प्रवाह को संतुलित रूप सेे बढ़ाया गया तो प्रवाह हमारे जीवन को बदल कर रख देगा। और यदि उस रूप से नहीं बढ़ाया गया तो फिर कुछ हो नहीं पाएगा। यही मंत्र विज्ञान और ध्वनि विज्ञान के साथ कार्य करने वाली स्थितियां है हम इसे समझें अपने जीवन में उतारें और सकारात्मक सोच के साथ मंत्र विज्ञान के साथ आगे बढऩा शुरू करें तो जीवन सरल, सफल और सुगम हो सकता है।
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