
मेष लग्न की कुंडली में योग कारक स्थितियों का निर्माण किस तरह होता है। कौन होते हैं इस कुंडली के बाधक अधिपति। लग्नेश और भाग्येश की दशाएं क्या है। दशाएं जीवन में किस तरह का फलाफल लेकर आती है। ये समग्र चर्चा लेकर मैं आप सभी के समक्ष यहां उपस्थित हूं। सर्वप्रथम मैं बताऊं आपको कि जब भी कोई व्यक्ति खुद की कुंडली के अध्ययन से ऊपर उठकर याद रखियेगा स्वयं की कुंडली से ऊपर उठकर जब भी ज्योतिषीय विश्लेषण में जाना शुरू करता है। अध्ययन शुरू करता है तब उसे सर्वप्रथम काल पुरुष की कुंडली यानि कि मेष लग्न की कुंडली के माध्यम से ही सारी की सारी स्थितियों का ज्ञान दिया जाता है। आंकलन करने की क्षमताएं प्रदान की जाती है और विश्लेषण की तरफ वो व्यक्ति जा पाता है। मैंने यहां लग्न की बात की है। ये एक सक्रीगेशन है। मैं कमेंट बॉक्स में बार-बार देखता हूं इसीलिए आपको बता रहा हूं कि ये सक्रीगेशन है। लग्न कुंडली यानि कि जन्म समय, जन्म तारीख और जन्म स्थान के आधार पर जो फोटोग्राफ आपके सामने आया है वो है लग्न कुंडली और चन्द्रमा जहां विराजित हैं उसे हम चन्द्र कुंडली के माध्यम से जानते हैं। तो यहां चर्चा करेंगे हम लग्न कुंडली की। आप जब भी अपनी जन्म पत्री खोलते हैं यदि आप मेष लग्न के जातक हैं तो ये एपिसोड आपके लिए महत्वपूर्ण है। कुंडली में देखेंगे कि यदि मेष लग्न यहां एक नंबर लग्न स्थान में लिखा हुआ पाते हैं तब ये कुंडली हो जाती है मेष लग्न की। आपकी प्रकृति में अल्प क्रोधी, स्वाभिमानी होता है, स्वाभिमानी के साथ-साथ निर्णय में तेजी होती है और रक्त प्रधान होता है चेहरे पर एक तरह से लालपन होता है। युवावस्था में कील मुंहासे की दिक्कत होती है। यदि बुध के साथ में बैठ जाए जो कि त्वचा संबंधित स्थितियों के मालिक होते हैं। कील मुंहासे दिक्कत से जीवनभर जूझना पड़ता है। उसके लिए उपायों द्वारा जनित व्यवस्थाओं की तरफ जा सकते हैं। पहले लग्नेश की बात की जाए तो लग्नेश मंगल और अष्टमेश भी इस कुंडली में हुए मंगल। जब भी लग्नेश की दशा आएगी तो साथ में अष्टमेश की भी रहेगी। लगभग साढ़ेे तीन साल का अंतर जो फलाफल की प्राप्ति होगी वो लग्नेश के माध्यम से होगी। अष्टमेश की पोजीशन रहेगी तो आधा-आधा सक्रीगेशन रहेगा। अष्टमेश का अंतर वो दशा जरूर भोगेगी। साथ में जो लग्न स्थान है वो केन्द्र भी है और प्रथम त्रिकोण भी है। इसलिए इसकी मजबूती बहुत अधिक होती है। फाफल की दृष्टि से देखा जाए तो ये लग्न स्थान के माध्यम से ही प्रभावी सिद्ध होती है। लग्न यदि मजबूत स्थिति में होगा तो लग्नेश मजबूत स्थिति में बैठ गए यानि दशम स्थान में बैठ गए जहां उच्चस्थ भी होंगे। कुलदीपक योग भी बनाएंगे। रोचक योग भी बनाएंगे तो इस पोजीशन को जबरदस्त कहा जाएगा। कर्मशील रहेगा व्यक्ति। कर्म के साथ-साथ भागदौड़ में भी एक अलग तरीके की क्षमताएं उसे प्रदान करके रखेगे मंगल। सूर्य की राशि को आठवीं दृष्टि से देखने का कार्य करेंगे तो अकूत और स्टेमना देने का कार्य करेंगे। इस स्थिति में सूर्य की पोजीशन अच्छी हो जाए तो व्यक्ति डाक्टर और सर्जन भी बन सकता है। पुलिस विभाग के अंदर, आयुष विभाग के अंदर इसके साथ सैन्य विभाग में कोई बड़ा अवसर भी हो सकता है। मंगल यदि इस स्थिति में बैठे हों तो। खुद के ही हाउस को देखने का कार्य करेंगे। ये योग कारक स्थिति कही जा सकती है। चतुर्थ स्थान जो कि सुख स्थान की बात करें तो काल पुरुष की कुंडली के हिसाब से ये जनता का स्थान भी है। मंगल यहां बैठ जाएं तो नीचस्थ स्थिति के अंदर रहेंगे। सुखों में कहीं न कहीं हनन करने वाले होंगे। लेकिन साथ में लग्नेश भी है तो कर्मशील पूरी जिंदगी व्यक्ति को रखेंगे। कर्म में थकने नहीं देंगे। कर्म से लाभ वाली स्थितियां भी बनाते हैं। यहां चन्द्रमा जनता के घर के और सुख स्थान के अधिपति होते हैं चन्द्रमा। ऐसी स्थिति में व्यक्ति राजनीतिक क्षेत्र में हस्तक्षेप बढ़ाने की कोशिश करता है, शनि और राहू की पोजीशन बढिय़ा हो और चन्द्रमा यहां केन्द्र स्थान में, द्वितीय केन्द्र स्थान में बैठे हुए हों तो वो सोने में सुगंध देने का कार्य करते हैं। जनता के साथ प्रियता बनाती है। खुद के सुखों में भी अनुभूति महसूस होती है। मंगल और चन्द्रमा वैसे तो प्रसिद्धि देने का काम करते हैं, लेकिन यदि अष्टम स्थान के अंदर ऐसी कुंडली में बैठ जाएं मंगल और चन्द्रमा तो चन्द्रमा एक पोजीशन के अंदर होंगे और लग्नेश खुद कमजोर स्थिति में आ गए, भले ही स्वग्रही है। झटपटाहट वाली स्थिति में आ जाएंगे। इस स्थिति को अच्छा नहीं कहा जा सकता। प्रसिद्धि कई बार मिलती है लेकिन नकारात्मक स्थिति से मिलती है तो इसका हमें बेहद अच्छे से ध्यान रखना चाहिए। भाग्येश होते हैं यहां पर देव गुरु वृहस्पति। साथ में व्ययेश भी होंगे। व्ययेश जब भी वृहस्पति होते हैं तो वो फिजूल के खर्चों की ऊपर रोक लगाने का काम करते हैं। यदि सुदृढ़ अवस्था में बैठ जाए भले ही यहां त्रिकोण में स्वग्रही होकर बैठ जाएं बड़ी अच्छी स्थिति रहेगी। यदि नवमेश और दशमेश का एक्सचेंज हो जाता है। यहां पर दशमेश है शनि जो कि कर्म स्थान के अधिपति होंगे इनका एक्सचेंज हो जाता है यदि ये एक्सचेंज नवम स्थान में हो तो इतना प्रभावशाली नहीं होगा क्योंकि कर्मेश होकर शनि नवम स्थान के अंदर आएंगे जबकि यदि पोजीशन ये बने कि गुरु भी दशम स्थान में चले जाएं और शनि भी दशम स्थान में हों तो ये बड़ी ही शानदार स्थिति कही जा सकती है। नवमेश और दशमेश का एक्सचेंज इसके साथ में दशम स्थान की युति इसके अलावा फलाफल की दृष्टि से देखा जाए इनकी युति कहीं भी बनें तो व्यक्ति को उच्च पदासीन करती है। आब्जर्वेशन विश्लेषण की क्षमताएं बढ़ाती है। निर्णय लेने से पहले भले ही मेष लग्न का व्यक्ति हो, पहले सोचेगा विचारेगा जरूर उसके बाद में ही आगे बढ़ेगा। ये सुदृढ़ व्यवस्था रहती है। मेष लग्न की कुंडली में शनि के एक साथ एक स्थिति बनती है। शनि यहां लाभेश है। साथ में बाधक अधिपति है। मंगल और शनि आपस में शत्रु। हनुमान जी सूर्य को ग्रसित कर लिया था तो मंगल और शनि ये दो ही ऐसे ग्रह थे जो उनसे लडऩे के लिए जाते हैं। एक कहता है कि मेरे पिता है और दूसरा कहता है मेरे राजा है। इन्हें इनसे छुड़वाना जरूरी है। हनुमानजी बंधक बना लेते हैं। ऐसे दोनों ही ग्रह हैं। अपने-अपने क्षेत्रों में पूर्णरूपेण अग्रसर लेकिन प्रकृति में विपरीत होने से शत्रुवत संबंध रखते हैं तो मेष लग्न की कुंडली होगी तो लाभेश यानि कि ग्यारहवें हाउस बाधक अधिपति यहां का होगा शनि का होगा। भले ही हम देखेंगे कि शनि दशमेश और एकादशेश है उनकी दशा आई है। बड़ी ही जबरदस्त आनी चाहिए। किन्तु साथ में बाधक अधिपति है तो उस दशा के न्यून रिजल्ट देंगे। शुक्र की बात करते हैं, द्वितीय हाउस के अधिपति होकर यदि सैकिंड हाउस में बैठ जाएं तो पैसा देते हैं, लक्षाधिपति योग बनाते हैं। साथ-साथ वाणी में काव्यात्मक शैली भी देते हैं। यदि बुध पराक्रम स्थान के अंदर ही बैठ जाएं तो एक इम्पोर्टेड प्लेनेट यानि कि पुरुष कारक गुण भी है स्त्री कारक गुण भी है। आवाज के अंदर बेस भी होगा साथ-साथ शब्दों में समागम करने की अद्भुत क्षमता देंगे। कारण कि बुध यहां बैठ गए और शुक्र यहां बैठ गए ऐसा व्यक्ति कविताओं को गाने वाला हो सकता है। अच्छे गीतों को गाने वाला हो सकता है। जिसको खुद को लिखने की आदत हो साथ में गाने की आदत भी हो यानि कि जो खुद ने लिखा उसी का एक अद्भुत तौर पर प्रस्तुतिकरण वो व्यक्ति कर सकता है। यदि एक्सचेंज हो जाए इस पोजीशन के अंदर तब भी उसे हम अच्छा परिणाम देने वाला मानेंगे। शुक्र द्वादश में बैठ जाए तब भी लक्षाधिपति देंगे। साथ में यदि स्वग्रही बैठ गए सप्तम स्थान में गृहस्थ से न्यूनाधिक परेशानियां भले ही स्वग्रही है। व्यापार के अंदर अच्छे से लेकर जाएंगे, होटल इंडस्ट्रीज से जुड़ा हुआ है, फैशन डिजाइनिंग से जुड़ा हुआ है तो अच्छा परिणाम लेकिन साथ में सप्तम में बैठेंगे तो हो सकता है एक्स्ट्रा स्थिति में ले जाए। इस बात को गृहस्थ के हिसाब से कमजोर करे इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। पंचम स्थान की बात करें। पंचमेश होते हैं सूर्य और यदि ये लग्न स्थान के अंदर चले जाएं सूर्य पंचमेश होकर लग्न स्थान में जाएं। ललाट बड़ी होगी। राजनीतिक क्षेत्र में हस्तक्षेप रखने वाला होगा व्यक्ति। पर्सनलटी का औरा में चमक दमक उसके प्रभुत्व से प्रभावित होने वाली स्थिति में खुद को महसूस करेंगे। ये स्थिति अच्छी है। बुध की पोजीशन, स्मृतियों की जब भी बात करते हैं तो अच्छा योगदान होता है बुध का। सुना और याद कर लिया यथार्थ के अंदर खुद को अच्छे से ढाल दिया उस स्थिति में लेकर जाते हैं बुध। बुध यदि इस स्थिति में कहीं भी बुद्धादित्य बनाते हैं तो बड़ा ही अच्छा परिणाम देते हैं। लेकिन जब षष्टेश होंगे तो विशेष ध्यान रखना चाहिए कमजोर पोजीशन में हुए तो त्वचा संबंधी रोग मंगल के साथ हुए तो रक्त विकार को बढ़ाने का काम करेंगे। मेधा और स्मृति होनी चाहिए उसमें कमी लाते हैं। थाइराइड का आपको ध्यान रखना चाहिए। यदि बुध कमजोर स्थिति में हो। गुरु भाग्येश होंगे, द्वादेश होंगे इस स्थिति को अच्छा कहा जा सकता है। यदि गुरु की दशा 55-60 साल के आसपास आ जाए तो व्यक्ति के नाम की शिलाएं और पत्थर लगाने का काम करती है क्योंकि व्यय स्थान के अधिपति होते हैं गुरु और धार्मिक, सामाजिक कार्यों के अंदर प्रभुत्व जमाकर आगे बढऩे की शुरुआत भी करता है। ये स्थिति अच्छी कही जा सकती है। शनि यदि यहां सप्तम के अधिपति हो जाते हैं यानि कि उच्चस्थ स्थितियों के अंदर आ जाते हैं तो ईगो की समस्या। सिर्फ अपनी पारिवारिक स्थिति विशेष कर गृहस्थ भाव में देने का काम करते हैं इसे हमें बचने की आवश्यकता है। संभलकर चलें। बुध जहां के अधिपति होते हैं वहां बैठ जाएंगे तो बुद्धि में क्षमताओं का विकास कम करने का कार्य भी करेंगे। नवमांश की स्थितियां भी बड़े ही अच्छे से देख लेनी चाहिए। दो ग्रह जो शैडो प्लेनेटस है नकारात्मक रूप से हमारे चिंतन को, हमारे आत्म विश्लेषण को प्रभावित करने का कार्य करते हैं यदि सारे के सारे ग्रह कमजोर हो जाएं, सातों ग्रह कमजोर हो जाएं लेकिन यदि मेष लग्न की कुंडली में राहू पराक्रम स्थान के अंदर जाकर अकेले बैठ गए तो व्यक्ति के जीवन को तारने का कार्य करते हैं। सफल करेंगे। राहू की पोजीशन मिथुन राशि के अंदर देखें तो समझ लेना चाहिए भले ही दूसरी स्थिति कमजोर है। राहू अकेले बैठे हुए हैं तो बड़े सटीक और शानदार परिणाम देने वाले होंगे। द्वितीय त्रिकोण की बात में पंचमेश होकर सूर्य लग्न स्थान में चले गए तब भी बढिय़ा। दशम स्थान के अंदर आ जाते हैं भले ही शनि की राशि के अंदर आएंगे लेकिन परिणाम बड़े ही अच्छे देंगे। आपकी कुंडली में इस तरह की स्थिति निर्मित हो रही है तो उसी अनुसार आपको आगे बढऩा चाहिए।
मेष लग्न की कुंडली में यदि मंगल छठे घर में 23 डिग्री अंश पर कुमार अवस्था में और उसी घर में शनि 27 डिग्री वृद्धावस्था में साथ में हो तो क्या परिणाम होगा दोनों की युति कैसी होगी मंगल योगकारक होंगे या मारक
ReplyDelete