
कई बार हम अपनी जिंदगी में ऐसे लोगों से मिलते हैं जिनके पास में नॉलेज का बहुत ही अच्छा स्तर हासिल था। एक तरह से नॉलेज के पीक पर थे वो किसी स्पेसीफिक्स फिल्ड में, लेकिन फिर भी अपनी पूरी जिन्दगी में वो मुकाम हासिल नहीं कर पाए। वो जगह हासिल नहीं कर पाए। जहां तक पहुंचने की उनकी भीतर क्षमता थी वो बहुत थी। इसके विपरीत कई लोगों के पास में नॉलेज का बिलकुल बेसिक लेवल होता है। लेकिन फिर भी वो लोग लगातार आगे बढ़ते चले जाते हैं और कई बार वहां तक पहुंच जाते हैं जहां तक पहुंचने की उम्मीद उनको खुद को भी नहीं थी और इस रेफरेन्स के पास जो कारण गिनवाया जाता है वो है कम्युनिकेशन और कन्वेसिंग स्कील। यदि आपके पास बेहतर कम्युनिकेशन है और अच्छी कन्वेसिंग स्कील्स है तो आप लगातार आगे बढ़ सकते हैं और इस कन्टेम्पररी वल्र्ड, आधुनिक युग में जो कम्युनिकेशन के बारे में डेफिनेशन दी जाती है उसमें कहा जाता है कि आपके पास में शब्दकोश अच्छा होना चाहिये। व्हीट होनी चाहिए, ह्यूमर होनी चाहिए। वाक्पटुता होनी चाहिए और प्रसेन्टेशन बहुत ही अच्छा होना चाहिए। यानि सिर्फ और सिर्फ बोलने के ऊपर ध्यान दिया गया कैसा बोलते हैं कैसा प्रजेंट करते हैं। इसके विपरीत श्रीमद भगवत गीता जो कि आध्यात्मिक ज्ञान से परिपूर्ण है वो कम्युनिकेशन के बारे में एक अलग ही डेफिनेशन देती हुई नजर आती है। श्रीकृष्ण, योगेश्वर श्रीकृष्ण एक नई ही ऊर्जावान डिफेनशन हम सभी के सामने रखते हैं कम्युनिकेशन की। जब आप श्रीमद भगवत गीता का वाचन, अध्ययन, मनन, पठन शुरू करते हैं और उसे जिंदगी में उतारना शुरू करते हैं तो एक अलग डेफिनेशन, एक अलग स्पंदन मिलता है। इसमें से एक डेफिनेशन कम्युनिकेशन के बारे में है कि हमारा कम्युनिकेशन कैसा हो। जब प्रथम अध्याय जिसका नाम अर्जुन विशाद योग है उसमें अर्जुन पूर्णतया चिंतित होकर उस कर्म क्षेत्र कुरु क्षेत्र रूपी मैदान में खड़े होते हैं और गांडीव एक तरफ रखकर कहते हैं कि श्री कृष्ण मेरा ये रथ दोनों सेनाओं के मध्य ले चलिए मैं देखना चाहता हूं कि मुझसे युद्ध करने कौन-कौन आया है। श्रीकृष्ण चुपचाप वो रथ दोनों सेनाओं के मध्य ले लेते हैं। और उसके बाद अर्जुन अपनी सारी मनोस्थितियां श्रीकृष्ण को बताना शुरू करते हैं क्या किन परेशानियों से अर्जुन घिरे हुए हैं और क्या व्याधियां सता रही है। श्रीकृष्ण बड़े ही शांत चितभाव से अर्जुन को सुनते जाते हैं और एक बार भी न रोकते हैं न टोकते हैं उसके बाद सिर्फ इतना ही कहते हैं कि अर्जुन तुम्हारे मन में कलमष आया कहां से, ये विपदाएं पनपी कहां से वीरों को ये कतई शोभा नहीं देती उसके बाद फिर से शांत हो जाते हैं और बोलने का मौका देते हैं अर्जुन को। यानि पहले बहुत अच्छे से लिसन किया प्रोबलम को समझा और फिर उसके बाद समझाया। समस्या के समाधान की ओर गये। और समझाया भी ऐसा कि जो अर्जुन युद्ध भूमि में उद्घोष के बाद गांडीव एक तरफ रख चुके थे वो फिर गांडीव उठाते हैं कि कहते हैं कि मैं युद्ध करूंगा और शत्रुओं का संहार करूंगा। ये कम्युनिकेशन और है ये कन्वेसिंग स्कील्स की ताकत। जो श्रीकृष्ण हमें श्रीमद भगवत गीता के माध्यम से समझाते हैं। यानि पहले समझो उसके बाद समझाओ। जरूरी नहीं है कि सिर्फ शब्दों का खेल ही रचा जाए। ये है कम्युनिकेशन और ये है आध्यात्मिक के लिहाज से कम्युनिकेशन की एक नितांत नई डेफिनेशन। मैं बार-बार कहता रहा हूं कि श्रीमद भगवत गीता के श्लोकों में जितने अर्थ छिपे हुए है उससे कहीं ज्यादा अर्थ उसके भीतर महसूस किए जा सकते हैं।
Comments
Post a Comment