
दर्शकों घर में किसी भी मंगल कार्य की शुरुआत हो चाहे वो विवाह का कार्यक्रम हो या यात्रा का प्रस्थान हो या बच्चा स्टीडिज की शुरुआत कर रहा है, हर जगह, हर क्षण ऐसे मांगलिक कार्य के समय देवाधिदेव गणपति को, विनायक को याद किया जाता है, उनकी स्तुति की जाती है, उन्हें प्रसन्न किया जाता है और उन्हें प्रसन्न करने के बाद उस कार्य की शुरुआत की जाती है। कितना अच्छा हो कि हमारे घर के बच्चे और सारे सदस्य देवाधिदेव गणपति की यह स्तुति याद कर लें, कंठस्थ कर लें, हृदयस्थ कर लें और उसके बाद जब भी कोई ऐसा कार्य हो तो किसी और की आवश्यकता ही नहीं हो। इस स्तुति के साथ मैं भगवान विनायक को हृदय में स्थापित करके उस कार्य की विजयश्री का खुद के भीतर वरण किया जाये। स्तुति कुछ इस प्रकार है। और यही स्तुति आप यू-ट्यूब के नीचे जो डिस्क्रीप्सन बॉक्स होता है वहां पर लिखी हुई पाएंगे, तो कंठस्थ करने में बहुत ही आसानी रहेगी। स्तुति इस प्रकार है- ऊँ सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णक:। लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशोविनायक:।। धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन:। द्वादशैतानि नामानि य: पठेच्छृणुयादपि।। विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा। संग्रामे संङ्कटेचैव विघ्नस्तस्य नजायते।। शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् । प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्व विघ्नोपशांतये।। अभीप्सितार्थ सिद्ध्यर्थं पूजितोय: सुरासुरै:। सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नम:।। सर्वमंगल मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तुते।। सर्वदा सर्व कार्येषु नास्ति तेषाममङ्गलम्। येषां हृदिस्थो भगवान्मङ्गलायनतो हरि:।। तदेव लग्रं सुदिनं तदेव, ताराबलं चन्द्रबलतदेव।
विद्याबलं दैवबलं तदेव, लक्ष्मीपति तेऽङ्ध्रियुगं स्मरामि। लाभस्तेषां जगस्तेषां कुतस्तेषां पराजय:। येषामिन्दोवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दन:।। यत्र योगेश्वर: कृष्णो तत्रपार्थोधनुर्धर:। तत्र श्रीर्विजयो भूति ध्रुर्वानीतिर्मंतिर्मम।। वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ, निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा। ये स्तुति है जिसे हम गणपति स्तुति के नाम से जानते हैं, पहचानते हैं, समझते हैं, हृदयस्थ करते हैं और उसे वन्दना में उपयोग लाके प्रत्येक कार्य में विजयश्री का वरण करते हैं। विनायक की ऐसी ही कई स्तुतियां लेकर मैं आपके समक्ष उपस्थित होता रहूंगा। ये स्तुति विद्याध्ययन के हिसाब से बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण है। आप इसे अपने बच्चों को कंठस्थ करवायें और हृदयस्थ करावें उनके प्रत्येक कार्य में विजयश्री की ओर अग्रसर करें।
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