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नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में...

38. वेद : अपौरुषेय

लगातार.........
वेद के मन्त्र विभाग को संहिता भी कहते हैं। संहितापरक विवेचन को आरण्यक एवं संहितापरक भाष्य को ब्राह्मणग्रन्थ कहते हैं। वेदों के ब्राह्मणविभाग में आरण्यक और उपनिषद- का भी समावेश है। ब्राह्मणविभाग में आरण्यक और उपनिषद- का भी समावेश है। ब्राह्मणग्रन्थों की संख्या 13 है, जैसे ऋग्वेद के 2, यजुर्वेद के 2, सामवेद के 8 और अथर्ववेद के 1।
मुख्य ब्राह्मणग्रन्थ पाँच हैं- ऐतरेय ब्राह्मण, तैत्तिरीय ब्राह्मण, तलवकार ब्राह्मण,  शतपथ ब्राह्मण और ताण्डय ब्राह्मण।
उपनिषदों की संख्या वैसे तो 108 हैं, परंतु मुख्य 12 माने गये हैं, जैसे- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य,  बृहदारण्यक, कौषीतकि और श्वेताश्वतर।
वेद पौरुषेय (मानवनिर्मित) है या अपौरुषेय (ईश्वरप्रणीत)। वेद का स्वरूप क्या है? इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न का स्पष्ट उत्तर ऋग्वेद में इस प्रकार है-वेद परमेश्वर के मुख से निकला हुआ परावाक है, वह अनादि एवं नित्य कहा गया है। वह अपौरुषेय ही है।
इस विषय में मनुस्मृति कहती है कि अति प्राचीन काल के ऋषियों ने उत्कट तपस्या द्वारा अपने तप:पूत हृदय में परावाक वेदवाड्मय का साक्षात्कार किया था, अत: वे मन्त्रद्रष्टा ऋषि कहलाये-ऋषयो मन्त्रद्रष्टार:।
बृहदारण्यकोपनिषद में उल्लेख है- अस्य महतो भूतस्य निश्वसितमेतद्यदृग्वेदो यजुर्वेद: सामवेदोऽथर्वाग्डिरस। अर्थात उन महान परमेश्वर के द्वारा (सृष्टि- प्राकट्य होने के साथ ही)- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद नि:श्वास की तरह सहज ही बाहर प्रकट हुए। अर्थात् परमात्मा का नि:श्वास ही वेद है।
यस्य नि:श्वसितं वेदा यो वेदेभ्योऽखिलं जगत्।
निर्ममे तमहं वन्दे विद्यातीर्थं महेश्वरम्॥
यानि वेद परमेश्वर का नि:श्वास है, अत: परमेश्वर द्वारा ही निर्मित है। वेद से ही समस्त जगत का निर्माण हुआ है। इसीलिये वेद को अपौरुषेय कहा गया है।
विश्व का प्राचीनतम वाड्मय वेद ही है, जो दैविक एवं आध्यात्मिक विचारों को काव्यमय भाषा में अद्भुत रीति से प्रकट करने वाला कल्याणप्रदायक है। वेद परावाक है। नि:संदेह परमेश्वर ने ही परावाक (वेदवाणी) का निर्माण किया है- ऐसा महाभारत में स्पष्ट कहा गया है-अनादिनिधना विद्या वागुत्सृष्टा स्वयम्भुवा। अर्थात जिसमें से सर्वजगत उत्पन्न हुआ, ऐसी अनादि वेद-विद्यारूप दिव्य वाणी का निर्माण है।
क्रमश:

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