17 अप्रैल, 2019 को प्रदोष व्रत
प्रदोष व्रत को हम त्रयोदशी व्रत के नाम से भी जानते हैं। यह व्रत माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है। पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से बेहतर स्वास्थ और लम्बी आयु की प्राप्ति होती है। यह व्रत महीने में दो बार महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी मनाते है। प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है। सूर्यास्त के बाद और रात्रि के आने से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस व्रत में भगवान शिव कि पूजा की जाती है। मान्यता है कि सच्चे मन से व्रत रखने पर व्यक्ति को मनचाहे वस्तु की प्राप्ति होती है। वैसे तो हिन्दू धर्म में हर महीने की प्रत्येक तिथि को कोई न कोई व्रत या उपवास होते हैं लेकिन लेकिन इन सब में प्रदोष व्रत की बहुत मान्यता है।
ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव प्रदोष के समय कैलाश पर्वत स्थित अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं। इसी वजह से लोग शिव जी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन प्रदोष व्रत रखते हैं। इस व्रत को करने से सारे कष्ट और हर प्रकार के दोष मिट जाते हैं। कलयुग में प्रदोष व्रत को करना बहुत मंगलकारी होता है और शिव कृपा प्रदान करता है।
प्रदोष व्रत से मिलने वाले लाभ
प्रदोष व्रत का अलग-अलग दिन के अनुसार अलग-अलग महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन यह व्रत आता है उसके अनुसार इसका नाम और इसके महत्व बदल जाते हैं।
- जो उपासक रविवार को प्रदोष व्रत रखते हैं, उनकी आयु में वृद्धि होती है अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।
- सोमवार के दिन के प्रदोष व्रत को सोम प्रदोषम या चन्द्र प्रदोषम भी कहा जाता है और इसे मनोकामनाओं की पूर्ति करने के लिए किया जाता है।
- जो प्रदोष व्रत मंगलवार को रखे जाते हैं उनको भौम प्रदोषम कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने से हर तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ सम्बन्धी समस्याएं नहीं होती। बुधवार के दिन इस व्रत को करने से हर तरह की कामना सिद्ध होती है।
- बृहस्पतिवार के दिन प्रदोष व्रत करने से शत्रुओं का नाश होता है।
- वो लोग जो शुक्रवार के दिन प्रदोष व्रत रखते हैं, उनके जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होती है और दांपत्य जीवन में सुख-शांति आती है।
- शनिवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोषम कहा जाता है और लोग इस दिन संतान प्राप्ति की चाह में यह व्रत करते हैं। अपनी इच्छाओं को ध्यान में रख कर प्रदोष व्रत करने से फल की प्राप्ति निश्चित हीं होती है।
प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत को हिन्दू धर्म में बहुत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन पूरी निष्ठा से भगवान शिव की अराधना करने से जातक के सारे कष्ट दूर होते हैं और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार एक प्रदोष व्रत करने का फल दो गायों के दान जितना होता है। इस व्रत के महत्व को वेदों के महाज्ञानी सूतजी ने गंगा नदी के तट पर शौनकादि ऋषियों को बताया था। उन्होंने कहा था कि कलयुग में जब अधर्म का बोलबाला रहेगा, लोग धर्म के रास्ते को छोड़ अन्याय की राह पर जा रहे होंगे उस समय प्रदोष व्रत एक माध्यम बनेगा जिसके द्वारा वो शिव की अराधना कर अपने पापों का प्रायश्चित कर सकेगा और अपने सारे कष्टों को दूर कर सकेगा। सबसे पहले इस व्रत के महत्व के बारे में भगवान शिव ने माता सती को बताया था, उसके बाद सूत जी को इस व्रत के बारे में महर्षि वेदव्यास जी ने सुनाया, जिसके बाद सूत जी ने इस व्रत की महिमा के बारे में शौनकादि ऋषियों को बताया था।
इस व्रत में कई व्रती निर्जल रहकर व्रत रखते हैं। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल अक्षत धूप दीप सहित पूजा करें। संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करना चाहिए। इस प्रकार प्रदोषम व्रत करने से व्रती को पुण्य मिलता है।
प्रदोष व्रत की विधि
शाम का समय प्रदोष व्रत पूजन समय के लिए अच्छा माना जाता है क्यूंकि हिन्दू पंचांग के अनुसार सभी शिव मन्दिरों में शाम के समय प्रदोष मंत्र का जाप करते हैं।
- प्रदोष व्रत करने के लिए सबसे पहले आप त्रयोदशी के दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं।
- स्नान आदि करने के बाद आप साफ वस्त्र पहन लें।
- उसके बाद आप बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें।
- इस व्रत में भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है।
- पूरे दिन का उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से कुछ देर पहले दोबारा स्नान कर लें और सफेद रंग का वस्त्र धारण करें।
- आप स्वच्छ जल या गंगा जल से पूजा स्थल को शुद्ध कर लें।
- अब आप गाय का गोबर ले और उसकी मदद से मंडप तैयार कर लें।
- पांच अलग-अलग रंगों की मदद से आप मंडप में रंगोली बना लें।
- पूजा की सारी तैयारी करने के बाद आप उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुशा के आसन पर बैठ जाएं।
- भगवान शिव के मंत्र ऊँ नम: शिवाय का जाप करें और शिव को जल चढ़ाएं।
- व्रत का उद्यापन आप त्रयोदशी तिथि पर ही करें।
- उद्यापन करने से एक दिन पहले श्री गणेश की पूजा की जाती है। और उद्यापन से पहले वाली रात को कीर्तन करते हुए जागरण करते हैं।
- अगले दिन सुबह जल्दी उठकर मंडप बनाना होता है और उसे वस्त्रों और रंगोली से सजाया जाता है।
- ऊँ उमा सहित शिवाय नम: मंत्र का 108 बार जाप करते हुए हवन करते हैं।
- खीर का प्रयोग हवन में आहूति के लिए किया जाता है।
- हवन समाप्त होने के बाद भगवान शिव की आरती और शान्ति पाठ करते हैं।
- और अंत में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और अपने इच्छा और सामथ्र्य अनुसार दान दक्षिणा देते हुए उनसे आशीर्वाद लेते हैं।
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