कलियुग केवल नाम आधारा....
रामनवमी पर अंत:करण से संकल्प करें कि भगवान का नाम उच्चारण शुद्ध मन-वचन-कर्म से लेते रहेंगे। नाम उच्चारण से ही भौतिक और परमार्थिक दोनों सुखों का फल मिल जाता है। भगवान ने स्वयं कहा है कि कलियुग में जो भक्त मुझे केवल नाम के आधार पर ही भजता है, उसके सभी मनोरथ पूर्ण होंगे। एक नाम जाप होता है और एक मंत्र जाप होता है . राम नाम मन्त्र भी है और नाम भी। राम राम राम... ऐसे नाम जाप कि पुकार विधिरहित होती है। परमात्मा ने अपनी पूरी पूरी शक्ति राम नाम में रख दी है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह कि नाम जप के लिए कोई स्थान, पात्र विधि की जरुरत नही है। रात दिन राम नाम का जप करो निषिद्ध पापाचरण आचरणों से स्वत: ग्लानी हो जायेगी। अभी अंतकरण मैला है इसलिए मलिनता अच्छी लगती है मन के शुद्ध होने पर मैली वस्तुओं कि अकांक्षा नहीं रहेगी। जीभ से राम राम शुरू कर दो मन की परवाह मत करो। ऐसा मत सोचो कि मन नहीं लग रहा है तो जप निरर्थक चल रहा है। जैसे आग बिना मन के छुएंगे तो भी वह जलायेगी ही। ऐसे ही भगवान् का नाम किसी तरह से लिया जाए, अंतर्मन को निर्मल करेगा ही।
इस प्रकार भगवान को सम्बोधित करने का अर्थ है कि हम भगवान को पुकारे जिससे भगवान कि दृष्टि हमारी तरफ खिंच जाए। जैसे एक बच्चा अपनी माँ को पुकारता है तो उन माताओं का चित्त भी उस बच्चे की ओर आकृष्ट हो जाता है, जिनके छोटे बच्चे होते हैं. पर उठकर वही माँ दौड़ेगी जिसको वह बच्चा अपनी माँ मानता है।
करोड़ों ब्रह्माण्ड भगवान के एक-एक रोम में बसते हैं। दशरथ के घर जन्म लेने वाले भी राम है और जो निर्गुण निराकार रूप से सब जगह रम रहे हैं, उस परमात्मा का नाम भी राम है. नाम निर्गुण ब्रह्म और सगुण राम दोनों से बड़ा है। भगवान स्वयं नामी कहलाते हैं। भगवान परमात्मा अनामय है अर्थात विकार रहित है। उसका न नाम है, न रूप है उसको जानने के लिए उनका नाम रख कर सम्बोधित किया जाता है, क्योंकि हम लोग नाम रूप में बैठे हैं इसलिए उसे ब्रह्म कहते हैं। जिस अनंत, नित्यानंद और चिन्मय परमब्रह्म में योगी लोग रमण करते हैं, उसी राम-नाम से परमब्रह्म प्रतिपादित होता है अर्थात राम नाम ही परमब्रह्म है।
वाल्मीकि जी ने सौ करोड़ श्लोकों की रामायण बनाई, तो सौ करोड़ श्लोकों की रामायण को भगवान शंकर के आगे रख दिया जो सदैव राम नाम जपते रहते हैं. उन्होंने उसका उपदेश पार्वती को दिया। शंकर ने रामायण के तीन विभाग कर त्रिलोक में बाँट दिया. तीन लोकों को तैंतीस -तैंतीस करोड़ दिए तो एक करोड़ बच गया. उसके भी तीन टुकड़े किए तो एक लाख बच गया उसके भी तीन टुकड़े किये तो एक हज़ार बच और उस एक हजार के भी तीन भाग किये तो सौ बच गया। उसके भी तीन भाग किए एक श्लोक बच गया।. इस प्रकार एक करोड़ श्लोकों वाली रामायण के तीन भाग करते-करते एक अनुष्टुप श्लोक बचा रह गया। एक अनुष्टुप छंद के श्लोक में बत्तीस अक्षर होते हैं उसमें दस-दस करके तीनों को दे दिए तो अंत में दो ही अक्षर बचे भगवान् शंकर ने यह दो अक्षर रा और म आपने पास रख लिए। राम अक्षर में ही पूरी रामायण है, पूरा शास्त्र है।
वेदों का प्राण भी राम नाम ही है
राम नाम वेदों के प्राण के सामान है। शास्त्रों का और वर्णमाल का भी प्राण है। प्रणव को वेदों का प्राण माना जाता है। प्रणव तीन मात्र वाल ऊँ कार पहले ही प्रगट हुआ, उससे त्रिपदा गायत्री बनी और उससे वेदत्रय . ऋक, साम और यजु: - ये तीन प्रमुख वेद बने। इस प्रकार ऊँ कार [प्रणव] वेदों का प्राण है. राम नाम को वेदों का प्राण माना जाता है, क्योंकि राम नाम से प्रणव होता है जैसे प्रणव से र निकाल दो तो केवल पणव हो जाएगा अर्थात ढोल हो जायेगा। ऐसे ही ऊँ में से म निकाल दिया जाए तो वह शोक का वाचक हो जाएगा। प्रणव में र और ऊँ में म कहना आवश्यक है, इसलिए राम नाम वेदों का प्राण भी है।
राम नाम अविनाशी है
राम नाम अविनाशी और व्यापक रूप से सर्वत्र परिपूर्ण है। सत् है, चेतन है और आनंद राशि है। उस आनंद रूप परमात्मा से कोई जगह खाली नही, कोई समय खाली नहीं, कोई व्यक्ति खाली नही कोई प्रकृति खाली नहीं ऐसे परिपूर्ण, ऐसे अविनाशी वह निर्गुण है। वस्तुएं नष्ट जाती है, व्यक्ति नष्ट हो जाते हैं, समय का परिवर्तन हो जाता है, देश बदल जाता है, लेकिन यह सत् - तत्व ज्यों का त्यों ही रहता है इसका विनाश नही होता है इसलिए यह सत् है।
राम नाम कि महिमा
जीभ वागेन्द्रिय है उससे राम राम जपने से उसमें इतनी अलौकिकता आ जाती है की ज्ञानेन्द्रिय और उसके आगे अंत:करण और अन्त: कारण से आगे प्रकृति और प्रकृति से अतीत परमात्मा तत्व है, उस परमात्मा तत्व को यह नाम जाना दे ऐसी उसमें शक्ति है। यानी भक्ति को यदि ह्रदय में बुलाना हो तो, राम नाम का जप करो इससे भक्ति दौड़ी चली आएगी।
अनेक जन्मों से युग युगांतर से जिन्होंने पाप किये हों उनके ऊपर राम नाम की दीप्तिमान अग्नि रख देने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। राम के दोनों अक्षर मधुर और सुन्दर हैं। मधुर का अर्थ रचना में रस मिलता हुआ और मनोहर कहने का अर्थ है की मन को अपनी ओर खींचता हुआ। राम राम कहने से मुंह में मिठास पैदा होती है दोनों अक्षर वर्णमाल की दो आँखें हैं।
जगत में सूर्य पोषण करता है और चन्द्रना अमृत वर्षा करता है। राम नाम विमल है जैसे सूर्य और चंद्रमा को राहु - केतु ग्रहण लगा देते हैं, लेकिन राम नाम पर कभी ग्रहण नहीं लगता है। चन्द्रमा घटता बढता रहता है लेकिन राम तो सदैव बढता रहता है। यह सदा शुद्ध है अत: यह निर्मल चन्द्रमा और तेजश्वी सूर्य के समान है।
अमृत के स्वाद और तृप्ति के सामान राम नाम है। राम कहते समय मुंह खुलता है और म कहने पर बंद होता है। जैसे भोजन करने पर मुख खुला होता है और तृप्ति होने पर मुंह बंद होता है। इसी प्रकार रा और म अमृत के स्वाद और तोष के सामान हैं।
राम जाप से रोम-रोम पवित्र हो जाता है। साधक ऐसा पवित्र हो जाता है उसके दर्शन, स्पर्श भाषण से ही दूसरे पर असर पड़ता है। अनिश्चिता दूर होती है शोक - चिंता दूर होते हैं, पापों का नाश होता है। वे जहां रहते हैं वह धाम बन जाता है वे जहां चलते हैं वहां का वायुमंडल पवित्र हो जाता है।
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