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Showing posts from January, 2019

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नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में दो

1 फरवरी तिल द्वादशी 2019

तिल दान से मिलेगी कष्टों से मुक्ति माघ मास में स्नान और तिल द्वादशी व्रत से पूर्ण होती है मनोकामनाएं। माघ महीने की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को तिल द्वादशी का व्रत किया जाता है। इस दिन खास तौर पर तिल से भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। तिल द्वादशी के दिन पवित्र नदियों में स्नान व दान करने से मनुष्य को शुभ फल की प्राप्ति होती है। भगवान को अतिप्रिय है माघ का महीना हिन्दू धार्मिक ग्रंथ पद्म पुराण में माघ मास के माहात्म्य का वर्णन किया गया है। कहा गया है कि पूजा करने से भी भगवान श्री हरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी केवल माघ माह में स्नान से होती है। ऐसे में सभी पापों से मुक्ति और भगवान श्री हरि का प्रेम प्राप्त करने के लिए माघ स्नान अवश्य करना चाहिए। कहा जाता है कि जो मनुष्य माघ मास में तपस्वियों को तिल दान करता है, वह कभी नर्क का भागी नहीं होता। इतना ही नहीं माघ मास की द्वादशी तिथि को उपवास कर भगवान की पूजा करने से व्यक्ति को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। माघ स्नान का नियम कार्तिक स्नान की तरह माघ स्नान का भी नियम है। अगर माघ माह की बात करें तो शास्त्रों के मुताबिक इस माह की हर

प्रदोष व्रत का महत्व

कष्टहर्ता-मोक्ष प्रदाता प्रदोष व्रत प्रदोष व्रत को हिन्दू धर्म में बहुत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन पूरी निष्ठा से भगवान शिव की अराधना करने से जातक के सारे कष्ट दूर होते हैं और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार एक प्रदोष व्रत करने का फल दो गायों के दान जितना होता है। इस व्रत के महत्व को वेदों के महाज्ञानी सूतजी ने गंगा नदी के तट पर शौनकादि ऋषियों को बताया था। उन्होंने कहा था कि कलयुग में जब अधर्म का बोलबाला रहेगा, लोग धर्म के रास्ते को छोड़ अन्याय की राह पर जा रहे होंगे उस समय प्रदोष व्रत एक माध्यम बनेगा जिसके द्वारा वो शिव की अराधना कर अपने पापों का प्रायश्चित कर सकेगा और अपने सारे कष्टों को दूर कर सकेगा। सबसे पहले इस व्रत के महत्व के बारे में भगवान शिव ने माता सती को बताया था, उसके बाद सूत जी को इस व्रत के बारे में महर्षि वेदव्यास जी ने सुनाया, जिसके बाद सूत जी ने इस व्रत की महिमा के बारे में शौनकादि ऋषियों को बताया था। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल अक्षत धूप दीप सहित पूज

2 फरवरी को शनि प्रदोष व्रत

इस दिन शनि देव को भी करें प्रसन्न कई लोगों पर शनि की बुरी दशा होती है। शनि की बुरी दृष्टि से हर किसी को भय लगता है। हालांकि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनिदेव को मनाने के ऐसे कई उपाय हैं जिनसे शनि की शांति होती है। शनि को मनाने के लिए भी शनि प्रदोष व्रत भी बहुत फलदायी है। वैसे तो प्रदोष का व्रत शंकर जी को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है। पुराणों के अनुसार एकादशी पर विष्णु भगवान की तो प्रदोष को शिव की आराधना की जाती है। लेकिन शनिवार को पडऩे वाले प्रदोष पर महादेव के साथ-साथ शनिदेव की पूजा भी होती है। इसलिए इस व्रत को शनि प्रदोष कहा जाता है। मान्यता हैं जो भी इस दिन पूरी श्रद्धा से शनि की उपासना करता है। उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। शनि प्रदोष करने से शिव शंभू और शनिदेव दोनों की कृपा बरसती है। शनि प्रदोष व्रत करने से संतान होने में आ रही बाधा भी दूर होती है। 2 फरवरी को शनिवार को साल का दूसरा शनि प्रदोष व्रत और दूसरा प्रदोष है। शनि प्रदोष क्यों हैं खास शनि प्रदोष पर प्रात:काल में भगवान शिवशंकर की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, तत्पश्चात शनिदेव का पूजन करना चाहिए। इस व्रत से शनि का प्रकोप, शनि की

15. वेद : ऋग्वेद

लगातार............... ऋग्वेद सनातन धर्म का सबसे आरंभिक स्रोत है। इसमें 1028 सूक्त हैं, जिनमें देवताओं की स्तुति की गयी है इसमें देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं, यही सर्वप्रथम वेद है। ऋग्वेद को इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की अभी तक उपलब्ध पहली रचनाऔं में एक मानते हैं। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रूप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है। यह एक प्रमुख हिन्दू धर्म ग्रंथ है। ऋक् संहिता में 10 मंडल, बालखिल्य सहित 1028 सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र (7/59/12) वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मंत्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है। विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र (ऋ 3/62/10) भी इसी में वर्णित है। ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सुक्त उदाहरणत: रोग निवारक-सूक्त (ऋ 10/137/1-7), श्री

एकादशी व्रत के लाभ

महीने में 15-15 दिन में  एकादशी आती है एकादशी का व्रत पाप और रोगों को स्वाहा कर देता है लेकिन वृद्ध, बालक और बीमार व्यक्ति एकादशी न रख सके तभी भी उनको चावल का तो त्याग करना चाहिए। शास्त्रों में एकादशी व्रत की महिमा का बखान किया गया है जिसे करने से समस्त तापों से मुक्ति के साथ मोक्ष का गामी बनता है। * 30 जनवरी 2019 बुधवार को शाम 03.33 से 31 जनवरी 2019 गुरुवार को शाम 05.02 तक एकादशी है। * विशेष- 30 जनवरी को भी एकादशी के आने के बावजूद  31 जनवरी 2018 गुरुवार को ही एकादशी का व्रत उपवास रखें। * एकादशी व्रत के पुण्य के समान और कोई पुण्य नहीं है। * जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान से होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है। * जो पुण्य गौ-दान सुवर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है। * एकादशी करने वालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं और अपने परिवारवालों पर प्रसन्नता बरसाते हैं। इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है। * धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है। * कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन रसमय बनता है

नित-नियम-पूजा-आराधना

मन की शांति और सुख-समृद्धि के लिए प्रत्येक के जीवन में नित्य पूजा-आराधना का नियम जरूर होना चाहिए। सुबह उठने से लेकर नित्य-कर्म पूजा-आराधना तक प्रत्येक को निम्नलिखित क्रम अपनाना चाहिए। शुद्ध उच्चारण के साथ किए गए इस तरह के कर्म से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का स्थायी वास होता है। प्रात: कर दर्शनम कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती। करमूले तू गोविन्द: प्रभाते करदर्शनम्॥ पृथ्वी क्षमा प्रार्थना समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते। विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च। गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्।। ऊँ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ स्नान मन्त्र गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥ सूर्यनमस्कारमन्त्र ऊँ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च, आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने। दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्। सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्।। ऊँ मित्राय नम:, ऊँ रवये नम:, ऊँ सूर्याय नम

रुद्राष्टकम

शिव की महिमा अपरम्पार है। शिव की कई स्तुतियां हैं जिनमें रुद्राष्टकम स्रोत का पाठ नियमित करने से भक्त के सभी कार्य सफल होते हैं और आने वाली कठिनाइयों का समाधान भी होता है। इसे नित्य नियमपूर्वक करने से मनुष्य के जीवन में शांति और सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है। रुद्राष्टकम स्रोत अर्थ सहित दिया जा रहा है। नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्। हे भगवन ईशान को मेरा प्रणाम ऐसे भगवान जो कि निर्वाण रूप हैं जो कि महान ऊँ के दाता हैं जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं जो अपने आपको धारण किये हुए हैं जिनके सामने गुण अवगुण का कोई महत्व नहीं, जिनका कोई विकल्प नहीं, जो निष्पक्ष हैं जिनका आकर आकाश के सामान हैं जिसे मापा नहीं जा सकता उनकी मैं उपासना करता हूँ। निराकारमोङ्करमूल तुरीयं गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्। करालं महाकालकालं कृपालं गुणागारसंसारपारं नतोहम्। जिनका कोई आकार नहीं, जो ऊँ के मूल हैं, जिनका कोई राज्य नहीं, जो गिरी के वासी हैं, जो कि सभी ज्ञान, शब्द से परे हैं, जो कि कैलाश के स्वामी हैं, जिनका रूप भयावह हैं, जो क

14. वेद के चार परम सत्य

लगातार....... वेद की चार घोषणाएं हैं- 'प्रज्ञानाम ब्रह्माÓ अर्थात् ब्रह्मन परम चेतना है, यह ऋग्वेद का कथन है। यजुर्वेद का सार है 'अहम् ब्रह्मास्मिÓ अर्थात् मैं ब्रह्म हूं। सामवेद का कथन है 'तत्वमसिÓ अर्थात् वह तुम हो। अथर्ववेद का सारतत्व कहता है 'अयम आत्म ब्रह्मÓ अर्थात् यह आत्मा ब्रह्म है। ये सारे महान कथन भिन्न-भिन्न हैं और भिन्न-भिन्न प्रकार से उनकी व्याख्या की गई है, किंतु वे सब एक ही दिव्यता की ओर इशारा करते हैं और उनका विषय केवल दिव्यता है। पहला कथन है, प्रज्ञानाम ब्रह्म, प्रज्ञान क्या होता है? क्या वह केवल बुद्धि और चातुर्य है? प्रज्ञान शरीर में, मन में, बुद्धि में, अहम में, सब में विद्यमान होता है। प्रज्ञान जड़ और चेतन दोनों में रहता है। उसे हम निरंतर संपूर्ण चेतना कहते हैं। चेतना क्या होती है? चेतना का अर्थ है जानना। क्या जानना? थोड़ा कुछ या टुकड़े टुकड़े में जानने को चेतना नहीं कहते हैं। यह संपूर्ण ज्ञान होता है। यह उस दिव्य तत्व जो जड़ और चेतना दोनों में निहित है, उसका ज्ञान होना ही संपूर्ण चेतना है। वास्तव में प्रज्ञान और ब्रह्म एक दूसरे के पर्यायवाची हैं,

षटतिला एकादशी के दिन करें तिल का दान

तिल दान से आरोग्यता माघ मास में कृष्ण पक्ष एकादशी को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाता है। यह व्रत तिलों से जुड़ा हुआ है। इस दिन तिल दान करने का विशेष महत्व है। इस दिन तिल और तिल से बनी हुई वस्तुओं का जरूरतमंदों को दान करना चाहिए। हिंदू धर्म में तिल बहुत पवित्र माने जाते हैं। पूजा में इनका विशेष महत्व होता है। षटतिला एकादशी के व्रत से शारीरिक शुद्धि और आरोग्यता प्राप्त होती है। अन्न, तिल आदि दान करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है। इस दिन किसी पवित्र नदी सरोवर में स्नान करने से आरोग्यता में वृद्धि होती है साथ ही पापों का नाश होकर पुण्य फलों की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। स्नान पश्चात् एक माला या संभव हो जितनी संख्या में ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। षटतिला एकादशी के दिन तिलों का छह प्रकार से उपयोग किया जाता है। इसमें तिल से स्नान, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन, तिल से तर्पण करना, तिल का भोजन करना और तिलों का दान करना शामिल है। इसलिए इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत रखने के बाद रात को भगवान विष्ण

अलग-अलग दान और उनके लाभ

दान करने से जीवन की तमाम परेशानियों का अंत खुद-ब-खुद होने लगता है। दान करने से कर्म सुधरते हैं और अगर कर्म सुधर जाएं तो भाग्य संवरते देर नहीं लगती है। दान को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है. ये मात्र रिवाज के लिए नहीं किया जाता बल्कि दान करने के पीछे विभिन्न धार्मिक उद्देश्य छिपे हैं। जन्म कुण्डली में कुछ ग्रहों को मजबूत और दुष्ट ग्रहों को शांत करने के लिए तो हम दान-पुण्य करते ही हैं लेकिन ग्रहों की कैसी स्थिति में हमें कैसा दान नहीं करना चाहिए, ये भी जानना जरूरी है। जरूरतमंद व्यक्ति को दान देने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कई बार ग्रहों के दोषों का निवारण भी दान देकर किया जा सकता है। लेकिन, दान देते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। अगर सभी बातों का ध्यान रखकर दान किया जाए, तो उसका शुभ फल जरूर मिलता है। दान करने से मन और कर्म दोनों उत्तम होते हैं। इसका सीधा असर इंसान के भाग्य पर पड़ता है। दान का आपके जीवन पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ता है। अन्नदान, वस्त्रदान, विद्यादान, अभयदान और धनदान। ये सारे दान भी इंसान को पुण्य का भागी बनाते हैं। किसी भी वस्तु का दान करने से मन को स

शुभ संकेत : सकारात्मकता के प्रतीक

हमारे शास्त्रों के अन्दर वर्णित ऐसे संकेतों के बारे में बताया गया है जो जीवन में सकारात्मकता ला सकते हैं। विश्वास और सांकेतिक भाषाओं को समझ लेने से कार्य में उत्साह और सफलता की संभावनाएं दृष्टिगोचर होने लगती है। 1. सफेद गाय सनातन धर्मियों की गौ माता आर्थिक सुदृढ़ीकरण का भी प्रतीक है। आपके खेत में या गार्डन में गाय आ कर चरने लग जाये, तो समझ जाइएगा साक्षात लक्ष्मी जी ने संदेशा भेजा है। 2. नारियल नारियल को वैसे भी भारतीय सामाजिक परम्परा में शुभ माना जाता है। अगली बार जब भी कभी आपको सुबह उठते ही इस श्रीफल के दर्शन हों, तो समझ जाना अच्छी खबर आने वाली है। 3. यात्रा के दौरान मिलने वाले संकेत जब कभी भी यात्रा करते समय आपको अपनी दायीं तरफ कोई बन्दर, कुत्ता, सांप दिखे तो, समझ जाना यह भी आपके पास आने वाले धन का संकेत दे रहे हैं। 4. सुनहरा सांप अगर रात को आपको सोते समय सपने में सफेद या सुनहरे रंग का सांप नजर आये, तो यह भी खुलने वाली किस्मत का इशारा होता है। 5. हरियाली सपने में हरे-भरे प्राकृतिक नजारे दिखना भी सुभ संकेत माना जाता है। हरियाली अगर पानी के किसी स्रोत के पास हो तो यह उससे भी अच्छा संके

13. वेदों में शिवस्तव : वेदसार

लगातार........ वेदसार शिवस्तव- आदिगुरू श्री शंकराचार्य द्वारा रचित यह शिवस्तव वेद वर्णित शिव की स्तुति प्रस्तुत करता है। शिव के रचयिता, पालनकर्ता एव विलयकर्ता विश्वरूप का वर्णन करती यह स्तुति वेदों के सार स्वरूप है। पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम् जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम्। (हे शिव आप) जो प्राणिमात्र के स्वामी एवं रक्षक हैं, पाप का नाश करने वाले परमेश्वर हैं, गजराज का चर्म धारण करने वाले हैं, श्रेष्ठ एवं वरण करने योग्य हैं, जिनकी जटाजूट में गंगा जी खेलती हैं, उन एक मात्र महादेव को बारम्बार स्मरण करता हूँ। महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम् विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्। हे महेश्वर, सुरेश्वर, देवों (के भी) दु:खों का नाश करने वाले विभुं विश्वनाथ (आप) विभुति धारण करने वाले हैं, सूर्य, चन्द्र एवं अग्नि आपके तीन नेत्र के सामान हैं। सदा आनन्द प्रदान करने वाले पञ्चमुख वाले महादेव मैं आपकी स्तुति करता हूँ। गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम् भवं भास्वरं भ

भगवान श्रीकृष्ण के कुछ प्रचलित नाम व उनका भावार्थ

भगवान के नाम अनन्त हैं, उनकी गणना कर पाना किसी के लिए भी सम्भव नहीं। यहां कुछ थोड़े से प्रचलित नामों का अर्थ दिया जा रहा है- कृष्ण- कृष्ण शब्द की महाभारत में व्याख्या विलक्षण है। भगवान ने इस सम्बन्ध में स्वयं कहा है-मैं काले लोहे की बड़ी कील बनकर पृथ्वी का कर्षण करता हूँ और मेरा वर्ण भी कृष्ण है-काला है, इसीलिए मैं 'कृष्णÓ नाम से पुकारा जाता हूँ। परमात्मा- सृष्टि का जो मूल कारण है; जिसके संसर्ग के बिना प्रकृति में सृजन-क्रिया सम्भव नहीं, उस सर्वव्यापक चित् तत्त्व को परमात्मा कहते हैं। हरि- इस प्रसिद्ध नाम की व्युत्पत्ति दो प्रकार से दी गयी है (1) जो यज्ञ में हवि के भाग को ग्रहण करते हैं वे प्रभु यज्ञभोक्ता होने से हरि कहलाए। (2) हरिन्मणि (नीलमणि) के समान उनका रूप अत्यन्त सुन्दर एवं रमणीय है। अच्युत- जिनके स्वरूप, शक्ति, सौन्दर्य, ऐश्वर्य, ज्ञानादि का कभी किसी काल में, किसी भी कारण से ह्रास नहीं होता, वे भगवान अच्युत कहे जाते हैं। भगवान- ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य–भगवान इन छहों ऐश्वर्यों से पूर्णतया युक्त हैं। माधव- मायापति अथवा लक्ष्मीपति होने से भगवान का नाम माधव

31 जनवरी : षट्तिला एकादशी

हिंदू धर्म में माघ का महीना पवित्र माना जाता है। इस माह में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षटतिला एकादशी कहा जाता है। षट्तिला एकादशी के दिन मनुष्य को भगवान विष्णु के निमित्त व्रत रखना चाहिए। पद्म पुराण के अनुसार, इस दिन उपवास करके तिलों से ही स्नान, दान, तर्पण और पूजा की जाती है। इस बार ये एकादशा 31 जनवरी को है। इस दिन तिल का इस्तेमाल स्नान. प्रसाद, भोजन, दान, तर्पण आदि सभी चीजों में किया जाता है। तिल के कई प्रकार के उपयोग के कारण ही इस दिन को षटतिला एकादशी कहा जाता है। भक्त षट तिल एकदशी पर उपवास रखते हैं और पूरे दिन खाते पीते नहीं है। भगवान विष्णु शट तिला एकादशी के मुख्य देवता हैं। भगवान की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराया जाता है। जिसमें तिल के बीज निश्चित रूप से मिश्रित करने चाहिए। बाद में भगवान विष्णु को खुश करने के लिए भिन्न प्रकार से प्रसाद तैयार किए जाते हैं। माघ कृष्ण (षटतिला) एकादशी व्रत कथा एक समय नारदजी ने भगवान श्रीविष्णु से षटतिला एकादशी का माहात्म्य पूछा तो भगवान ने नारदजी से कहा कि हे नारद! मैं तुमसे सत्य घटना कहता हूँ। प्राचीनकाल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थ

12. वेद और निर्भयता

लगातार........... वेदों में संसार के कल्याण और शान्ति का संदेश छुपा है। प्राणी मात्र की भलाई और निर्भयता की प्रार्थना वेदों में ही सन्निहित की गई है। सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खमाप्नुयात्। सम्पूर्ण जीवों को सुख प्राप्त हो। सब प्राणी निरोग हों। सबका कल्याण हो। किसी को भी दु:ख न हो। जब मनुष्य अपने अंदर से समस्त शत्रुता के विचार निकालकर सारे संसार के लिए भलाई और सुख की प्रार्थना करता है तब उसको उसके बदले में विश्व मात्र का प्रेम प्राप्त होता है और तब संसार का कोई पदार्थ उसके लिए त्रासोत्पादक नहीं रहता। ऊँ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष: शान्ति: पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा शान्तिब्र्रह्म शान्ति सर्वं शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरोधित। ऊँ शान्ति: शान्ति: शान्ति:। द्युलोक शान्ति दे, अन्तरक्षि शान्ति दे, पृथ्वीलोक शान्ति दे, जल प्राण शान्ति दें, रोगनाशक औषधियां शान्ति दें, भोज्य वनस्पतियां शान्ति दें। सब के सब देव शान्तिदायक हों, ज्ञान शान्ति दें। सब कुछ शान्ति ही दे, शान्ति भी सचमुच शान्ति ही हो, वह

देवताओं को आकर्षित करता प्रयागराज

कुंभनगरी प्रयाग धार्मिक दृष्टि से दुनिया का प्राचीनतम स्थल है। पतित पावनी गंगा व यमुना की धाराओं के तीरे बसे तीर्थराज प्रयागराज की महिमा अपरंपार है। वेद-पुराणों में इसकी महिमा का काफी गुणगान है। प्रयाग अर्थात प्र+याग यानी यज्ञों की बाहुल्यता का स्थल जहां अत्यधिक यज्ञ होते हैं। परमपिता ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण से पूर्व प्रयाग की पावन धरा पर यज्ञ किया था। यज्ञ के बाद उन्होंने सृष्टि का निर्माण किया। ब्रह्मा जी ने यज्ञ किया तो सारे देवी-देवता इसके साक्षी बने। प्राचीनकाल में प्रयाग महर्षि भारद्वाज के साथ अनेक ऋषियों की तपोभूमि रहा है। मानव तो दूर, यह पावन भूमि देवताओं को भी अपनी ओर आकर्षित करती रही है। गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती ऋग्वेद में कहा कि है कि गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती के पावन संगम में स्नान करने से इंसान को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मत्स्य पुराण में तीर्थराज का दर्शन, कीर्तन, स्पर्श मुक्तिदायक बताया गया है, जबकि रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने प्रयागराज की महिमा का बखान- को कहि सकई प्रयाग प्रभाऊ। कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ। के रूप में किया है। माधव 12 रूपों में विराजमान

11. वेद और तप

तप का अर्थ है तपाना या अग्निपथ से गुजरना। जैसे भट्टी में गलाने के पश्चात ही स्वर्ण में प्रखरता आती है शुद्धता के उपरांत कैसे भी आकार दिया जा सकता है, इसी प्रकार अपने जीवन को विशेष आकार व आयाम देने की सामर्थ्य तप, श्रम से ही प्राप्त होती है. तपस्वी वह है जिसने अपनी मानवीय दुर्बलताओं या कमजोरियों पर विजय पायी हो । अपनी इंद्रियों का निग्रह करना ही तप है। हम अपनी कर्मेंद्रियों-ज्ञानेंद्रियों पर संयम करें, तभी तपस्वी कहलाने के अधिकारी हैं। उत्तम तप है सात्विक जो श्रद्धापूर्वक फल की इच्छा से विरक्त होकर किया जाता है। हमारे जीवन की सार्थकता श्रम व तप में ही है। किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए जो कर्म हम करते हैं, शरीर व मन की कठिनाइयों की चिंता किये बिना जुटे रहते हैं वही तप है। वेदों में तीन प्रकार के तप का महत्व बताया गया है उसमें भी सात्विक तप को उत्तम कहा गया है। इसके विपरीत सत्कार, मान और पूजा के लिये दंभपूर्वक किया जाने वाला राजस तप अथवा मूढ़तावश अपने को अनेक कष्ट देकर; दूसरे को कष्ट पहुँचाने के लिये जो भी तप किया जाता है, वह आदर्श नहीं हो सकता। वन में 10 वर्ष रहना या शरीर को गलाना

नाम स्मरण की शक्ति

भगवान मनुष्यों पर अनुग्रह करने के लिए युग-युग में अवतार लेते हैं। अपने परिकरों के साथ आते हैं और कार्य हो जाने पर अपने गणों के साथ नित्यधाम को लौट जाते हैं। दु:खी जीवों के लिए वे छोड़ जाते हैं अपना अभय और अमृतप्रद नाम-चिन्तामणि। केवल यही नहीं, नाम के भीतर वे अपनी भारी शक्ति का आधान कर जाते हैं। नाम की शक्ति तो थी ही, प्रभु की शक्ति को पाकर नाम नामी (भगवान) की अपेक्षा महान बन जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के नाम की महिमा का प्रसंग प्राचीन कथाओं पर विश्वास करना यद्यपि कठिन होता है परन्तु भक्ति हृदय से (श्रद्धा और विश्वास से) की जाती है, तर्क से नहीं। भगवन्नाम की महिमा से सम्बन्धित प्रसंग- एक बार भगवती पार्वती ने भगवान शंकर से कहा-Óदेव! आज किसी भक्त श्रेष्ठ का दर्शन कराने की कृपा करें। भगवान शंकर तत्काल उठ खड़े हुए और कहा-जीवन के वही क्षण सार्थक हैं जो भगवान के भक्तों के सांनिध्य में व्यतीत हों। भगवान शंकर पार्वतीजी को वृषभ पर बैठाकर चल दिए। पार्वतीजी ने पूछा-हम कहां चल रहे हैं? शंकरजी ने कहा-हस्तिनापुर चलेंगे। जिनके रथ का सारथि बनना श्रीकृष्ण ने स्वीकार किया। उन महाभाग अर्जुन के अतिरिक्त श्रे

माघमास- माहात्म्य

शास्त्र कहता है संकल्प ही सिद्धियों का मूल है। माघ मास का माहात्म्य बड़ा ही दिव्य है। इस माह का प्रत्येक दिवस एक पर्व व व्रत के रूप में जाना जाता है। उनका जीवन धन्य हो जाता है जो माघ मास के नियम व व्रतादि का आचरण करते हैं। माघ मास प्रारंभ होते ही साधक को व्रतादि एवं तीर्थादि गमन का विशुद्ध भाव से कामना परक या फिर निष्काम संकल्प अवश्य ही करना चाहिए, क्योंकि बिना संकल्प के कार्य सिद्ध नहीं होता। इस महीने में मघा नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा होने से इसका नाम माघ पड़ा। धार्मिक दृष्टिकोण से इस मास का बहुत अधिक महत्व है। इस मास में शीतल जल के भीतर डुबकी लगाने वाले मनुष्य पापमुक्त हो स्वर्गलोक में जाते हैं। माघे निमग्ना: सलिले सुशीते विमुक्तपापस्त्रिदिवं प्रयान्ति। माघ मास में प्रयाग में स्नान, दान, भगवान् विष्णु के पूजन और हरिकिर्तन के महत्व का वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में लिखा है। माघ मकरगत रवि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई॥ देव दनुज किंनर न श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं॥ पूजहि माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहि गाता॥ पद्मपुराण के उत्तरखंड में माघ मास के माहात्म्

भगवान के नाम की महिमा

गोविन्द माधव मुकुन्द हरे मुरारे, शम्भो शिवेश शशिशेखर शूलपाणे। दामोदराच्युत जनार्दन वासुदेव, त्याज्या भटा य इति संततमामनन्ति।। स्कन्दपुराण में यमराज नाम महिमा के विषय में कहते हैं-जो गोविन्द, माधव, मुकुन्द, हरे, मुरारे, शम्भो, शिव, ईशान, चन्द्रशेखर, शूलपाणि, दामोदर, अच्युत, जनार्दन, वासुदेव- इस प्रकार सदा उच्चारण करते हैं, उनको मेरे प्रिय दूतों! तुम दूर से ही त्याग देना। यदि जगत् का मंगल करने वाला श्रीकृष्ण-नाम कण्ठ के सिंहासन को स्वीकार कर लेता है तो यमपुरी का स्वामी उस कृष्णभक्त के सामने क्या है? अथवा यमराज के दूतों की क्या हस्ती है? भगवन्नाम महिमा भगवान का नाम उन परमात्मा का वाचक है जो अखिल ब्रह्माण्ड के नायक, परिचालक, उत्पादक और संहारक हैं। भगवान शब्द समस्त ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य का संकेत करता है। अत: भगवान में अनन्त ब्रह्माण्डों के अनन्त जीवों का ज्ञान, उनके अनन्तानन्त कर्मों का ज्ञान, अनन्तानन्त कर्मों के फलों का ज्ञान और उन कर्मफलों को देने की सामथ्र्य है। वे भगवान एक ही हैं; किन्तु उन्हें ब्रह्मा, विष्णु, महेश, प्रजापति, इन्द्र, वरुण, अग्नि, राम, कृष्ण, गोविन

10. वेद-योग

लगातार.......... भारतीय संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं के हिसाब से योग में वो शक्ति है कि इससे ब्रह्मांड की किसी भी शक्ति को साधा जा सकता है। गीता में योग का कई जगह पर जिक्र मिलता है। कृष्ण ने योग के तीन प्रकार बताए हैं- ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग। जबकि योग प्रदीप में इसके दस प्रकार बताए गए हैं 1. राज योग, 2. अष्टांग योग, 3. हठ योग, 4. लय योग, 5. ध्यान योग, 6. भक्ति योग, 7. क्रिया योग, 8. मंत्र योग, 9. कर्म योग और 10. ज्ञान योग। इसके अलावा धर्म योग, तंत्र योग, नाद योग का भी जिक्र कई ग्रन्थों में आता है। वेद, पुराण आदि ग्रन्थों में भी योग के अनेक प्रकार बताए गए हैं। अब आज के संदर्भ में हम जिस योग की बात करते हैं उसे अष्टांग योग का नाम दिया जाता है। पतंजलि ने भी मुख्य रूप से योग के इसी रूप को महत्व दिया है। अष्टांग योग अर्थात योग के आठ अंग। यह आठ अंग सभी धर्मों का सार माने जाते हैं। ये आठ अंग हैं (1) यम (2) नियम (3) आसन (4) प्राणायम (5) प्रत्याहार (6) धारणा (7) ध्यान और (8) समाधि। योग की उत्पत्ति तो वैदिक संहिताओं और वेदों में 900 से 500 बीसी के बीच तपस्वियों का वर्णन मिलता है। योग

24 जनवरी : संकट चतुर्थी, तिलकुट चौथ तथा गौरी चतुर्थी

विघ्न हरते भगवान गणेश पुराणों और धर्म ग्रंथों में माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, जो 24 जनवरी को है, का महात्म्य विशेष बताया गया है। इस दिन विधि विधान से गणेश जी की पूजा-अर्चना विघ्नों को हरने तथा पापों का नाश करने वाली मानी गई है। इस मास की चतुर्थी शीघ्र फलदायी भी कहलाती है। - चतुर्थी तिथि के स्वामी भगवान गणेशजी हैं। - हिन्दू कैलेण्डर में प्रत्येक मास में दो चतुर्थी होती है। - पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्ट चतुर्थी कहते हैं। अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। - शिवपुराण के अनुसार महागणपते: पूजा चतुर्थ्यां कृष्णपक्षके। पक्षपापक्षयकरी पक्षभोगफलप्रदा। अर्थात प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को की हुई महागणपति की पूजा एक पक्ष के पापों का नाश करने वाली और एक पक्ष तक उत्तम भोग रूपी फल देने वाली होती है। कष्ट-समस्या का निवारण हमारे जीवन में बहुत समस्याएँ आती रहती हैं, मिटती नहीं हैं। कभी कोई कष्ट, कभी कोई समस्या। ऐसे में शिवपुराण में बताये अनुसार माघ मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (मतलब पूर्णिमा के बाद की चतुर्थी) आती

9. वेद और ज्योतिष विज्ञान

लगातार......... ग्रहों का जीवन पर प्रत्यक्ष प्रभाव ज्योतिष विज्ञान भारत की ऐसी प्राचीन विद्या है जो यह प्रमाणित करती है कि हमारे सौरमंडल में सूर्य के साथ-साथ सभी 9 ग्रहों का प्रत्यक्ष रूप से मानव जीवन पर प्रभाव पड़ता है। भारतीय सभ्यता में लगभग 4000 वर्ष से भी अधिक पुराना यह ज्योतिष विज्ञान आज के समय में बहुत से विद्वानों के लिए वरदान सिद्ध हुआ है। ज्योतिष विज्ञान में भविष्य का अनुमान एक व्यक्ति के जन्म के समय सौरमंडल में ग्रहों की स्थिति उस व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन पर प्रभाव डालती है। एक व्यक्ति की लग्न कुंडली व चन्द्र कुंडली में ग्रहों का स्थान उसके सम्पूर्ण जीवन में सुख-दुखों से जुड़ा हुआ है। ज्योतिष शास्त्र जातक की कुंडली में होने वाले ग्रहों की स्थिति से उसके भविष्य में होने वाली घटनाओं का कुछ हद तक अनुमान लगाने में सहायक सिद्ध होता है किन्तु इसका अभिप्राय यह बिल्कुल नहीं कि लग्न कुंडली में ग्रहों की स्थिति द्वारा जातक के भविष्य का पूर्ण और 100 प्रतिशत प्रमाणित अनुमान लगाना संभव है। हमारे सौरमंडल में सूर्य के साथ-साथ चंद्रमा व अन्य ग्रहों से निकलने वाली प्रकाश की किरणें अलग-अलग रूप

26 जनवरी को शीतला षष्ठी

इस व्रत को 26 जनवरी माघ माह में कृष्ण पक्ष की षष्ठी को किया जाता है। इस व्रत को करने से आयु तथा संतान कामना का फल मिलता है। कई स्थानों पर इस दिन कुत्ते को टीका लगाकर पूजने का और पकवान खिलाने का रिवाज भी है। इस दिन जो स्त्रियाँ व्रत रखती हैं उन्हें गर्म पानी से स्नान नहीं करना चाहिए और ना ही गर्म भोजन करना चाहिए। इस दिन शीतला माता का पूजन षोडशोपचार से करने पर पापों का शमन होता है। सुबह स्नानादि से निवृत होकर शीतला माता का पूजन कर प्रसाद चढ़ाना चाहिए। शीतला षष्ठी की कथा प्राचीन समय में एक वैश्य था जिसके सात विवाहित पुत्र थे लेकिन सातों में से किसी को भी संतान सुख नहीं था। एक बार किसी वृद्धा के कहने पर सातों बहुओं ने शीतला माता का व्रत किया जिसके प्रभाव से वह सभी गर्भवती हो गई और सभी ने पुत्र को जन्म दिया। एक बार उस वैश्य की पत्नी ने शीतला माता की उपेक्षा कर गर्म जल से स्नान किया और अपनी बहुओं को भी कराया। माता की अवहेलना करने से उसी रात वैश्य की पत्नी एक भयानक सपना देखती है कि उसके पति की मृत्यु हो गई है और उसकी पुत्रवधु व पोतें बिलख-बिलखकर रो रहे हैं। वह चिल्लाते हुए स्वप्न से जाग जाती

गाय की ज्योतिष शास्त्र में महिमा

गाय के 11 शुभ शकुन गाय बेहद शांत और सौम्य पशु है। हिन्दू धर्म में यह पवित्र और पुजनीय मानी गई है। यहां तक कि ज्योतिष के कई बड़े शास्त्रों में गाय की विशेष महिमा बताई गई है। गाय के 11 शुभ शकुन- 1. ज्योतिष में गोधूलि का समय विवाह के लिए सर्वोत्तम माना गया है। 2. यदि यात्रा के प्रारंभ में गाय सामने पड़ जाए अथवा अपने बछड़े को दूध पिलाती हुई सामने आ जाए तो यात्रा सफल होती है। 3. जिस घर में गाय होती है, उसमें वास्तुदोष स्वत: ही समाप्त हो जाता है। 4. जन्मपत्री में यदि शुक्र अपनी नीच राशि कन्या पर हो, शुक्र की दशा चल रही हो या शुक्र अशुभ भाव (6, 8, 12) में स्थित हो तो प्रात:काल के भोजन में से एक रोटी सफेद रंग की गाय को खिलाने से शुक्र का नीचत्व एवं शुक्र संबंधी कुदोष स्वत: समाप्त हो जाता है। 5. पितृदोष से मुक्ति- सूर्य, चंद्र, मंगल या शुक्र की युति राहु से हो तो पितृदोष होता है। यह भी मान्यता है कि सूर्य का संबंध पिता से एवं मंगल का संबंध रक्त से होने के कारण सूर्य यदि शनि, राहु या केतु के साथ स्थित हो या दृष्टि संबंध हो तथा मंगल की युति राहु या केतु से हो तो पितृदोष होता है। इस दोष से जीव

8. वेद और यज्ञ प्रेरणा

लगातार............ यज्ञीय प्रेरणाएँ यज्ञ आयोजनों के पीछे जहाँ संसार की लौकिक सुख-समृद्धि को बढ़ाने की विज्ञान सम्मत परंपरा सन्निहित है-जहाँ देव शक्तियों के आवाहन-पूजन का मंगलमय समावेश है, वहाँ लोकशिक्षण की भी प्रचुर सामग्री भरी पड़ी है। जिस प्रकार बाल फ्रेम में लगी हुई रंगीन लकड़ी की गोलियाँ दिखाकर छोटे विद्यार्थियों को गिनती सिखाई जाती है, उसी प्रकार यज्ञ का दृश्य दिखाकर लोगों को यह भी समझाया जाता है कि हमारे जीवन की प्रधान नीति यज्ञ भाव से परिपूर्ण होनी चाहिए। हम यज्ञ आयोजनों में लगें-परमार्थ परायण बनें और जीवन को यज्ञ परंपरा में ढालें। हमारा जीवन यज्ञ के समान पवित्र, प्रखर और प्रकाशवान् हो। गंगा स्नान से जिस प्रकार पवित्रता, शान्ति, शीतलता, आदरता को हृदयंगम करने की प्रेरणा ली जाती है, उसी प्रकार यज्ञ से तेजस्विता, प्रखरता, परमार्थ-परायणता एवं उत्कृष्टता का प्रशिक्षण मिलता है। यज्ञ की प्रक्रिया को जीवन यज्ञ का एक रिहर्सल कहा जा सकता है। अपने घी, शक्कर, मेवा, औषधियाँ आदि बहुमूल्य वस्तुएँ जिस प्र्रकार हम परमार्थ प्रयोजनों में होम करते हैं, उसी तरह अपनी प्रतिभा, विद्या, बुद्धि, समृद्धि,

आरती का महत्व

आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से प्रकाशित करना। यानी कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है। स्कंद पुराण में भगवान की आरती के संबंध में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता हो, पूजा की विधि भी नहीं जानता हो। लेकिन भगवान की आरती की जा रही हो और उस पूूजन कार्य में श्रद्धा के साथ शामिल होकर आरती करें, तो भगवान उसकी पूजा को पूरी तरह से स्वीकार कर लेते हैं। 1. आरती दीपक से क्यों-  रुई के साथ घी की बाती जलाई जाती है। घी समृद्धि प्रदाता है। घी रुखापन दूर कर स्निग्धता प्रदान करता है। भगवान को अर्पित किए गए घी के दीपक का मतलब है कि जितनी स्निग्धता इस घी में है। उतनी ही स्निग्धता से हमारे जीवन के सभी अच्छे कार्य बनते चले जाएं। कभी किसी प्रकार की रुकावटों का सामना न करना पड़े। 2. आरती में शंख ध्वनि और घंटा ध्वनि क्यों- आरती में बजने वाले शंख और घंटी के स्वर

गाय को रोटी खिलाने का महत्व

हिन्दू धर्मग्रंथों और शास्त्रों के अनुसार पशु-पक्षियों को रोटी खिलाना और पानी पिलाने शुभता का द्योतक माना गया है। शास्त्रों के अनुसार पशु-पक्षियों को रोटी या अन्न खिलाना बहुत ही शुभ माना गया है। शास्त्रों के अनुसार ये माना  जाता है की यदि मछली को आटे की  गोलियां, कबूतर को बाजरा, कुत्ते को आखिरी रोटी खिलाने और चिडिय़ा को दाना डालने से घर में सुख-शांति और आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी हो जाती है। इसी प्रकार हमारे शास्त्रों में सबसे ऊँचा स्थान गाय को दिया गया है। गाय को बहुत पवित्र  माना गया है और कहा जाता है की गाय में 33 कोटि देवी-देवता वास करते है। इसलिए गाय को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है। मान्यता अनुसार गाय में कोटि देवी-देवताओं का वास होने के कारण रोटी खिलाना जहां शुभ माना गया है वहीं नियमितता पूर्वक किए जाने से इसे पूजा करने के समान भी माना गया है, क्योंकि इससे देवी-देवता प्रसन्न होते हैं। गाय 33 कोटि देवताओं से सीधा सम्बन्ध का माध्यम होता है। हिन्दू धर्म में गाय को माँ का दर्जा देते है और गाय को गौ माता कहकर पुकारते हैं। गाय की पूजा भी करते है। इसलिए हिन्दू धर्म ग्रंथो में कहा जाता ह

तांबा दूर कर सकता हर बीमारी

तांबा पहनने के फायदे रविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित है, इसलिए इस दिन इनसे संबंधित चीजों का दान आदि करना बहुत अच्छा माना जाता है। सूर्य देव को लोहा और तांबा अति प्रिय है। इसलिए कहा जाता है जिनकी कुंडली में सूर्य की स्थिति कमजोर हो या जो चाहते हों कि उन पर सूर्य देव की कृपा बनी रहे उनको इनसे सबंधित चीजों को जरूर पहना चाहिए। सूर्य देव से संबंधित तांबे की चीजों को पहनना चाहिए और इन्हें पहनने से फायदा होता है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो तांबे को बहुत ही फायदेमंद माना जाता है। ज्योतिषशास्त्र में भी इसके कई फायदे हैं। ज्योतिषशास्त्र की मानें तो तांबा व्यक्ति के जीवन की बहुत सी परेशानियों को दूर कर सकता है। बहुत से लोग हाथ में तांबे से बनी वस्तुओं को हाथ में पहनते हैं, पंरतु ये ध्यान जरूर रखना चाहिए कि वह तांबा शुद्ध हो। तांबे की बनी किसी वस्तु को हाथ में पहनने का प्रभाव अगर आपकी कुंडली में सूर्य दोष हो तो इसके लिए आपको तांबे की अंगूठी पहननी चाहिए। कहा जाता है कि इससे व्यक्ति की कुंडली में मौजूद सभी दोष खत्म होते हैं और सूर्य के शुभ प्रभाव से जीवन रोशन हो जाता है। गुस्से से छुटकारा पाने

भाग्य और भाग्य का स्थान

भाग्य ज्योतिषी पक्ष भाग्य क्या है और क्या है भाग्य स्थान। या कर्म जीवन में अधिक महत्व रखता है या भाग्य अपने प्रखरता के साथ जीवन को आगे चलायमान रखने का कार्य करता है। संचित कर्म लेकर आए हैं क्या वे ही कर्म के रूप में आगे भी परिलक्षित होते हैं। क्या वही भाग्य का द्वार खोलने का काम करते हैं। ज्योतिषीय माध्यम से बात करें तो भाग्य निर्बल हो तो व्यक्ति जीवन के अंदर कैसे आगे बढ़े। क्या निर्बल हो तो कर्म की ओर बढऩा ही नहीं चाहिए। ज्योतिषीय माध्यम के अनुसार नवम् स्थान भाग्य स्थान होता है। आध्यात्म का स्थान है। भूतकाल का स्थान है। जीवन के विकास क्रम को देखने का स्थान है। साथ ही उच्च शिक्षा के स्तर को देखने का स्थान भी नवम स्थान ही है। पंचम स्थान जहां पर शिक्षा को देखने का स्थान है साथ ही मानसिक चेतनाओं का सुदृढ़ होते चले जाना। प्रत्येक क्षेत्र में विश्लेषण की क्षमताएं प्राप्त कर लेना। नवम से शिक्षा की उन्नत विधाओं को देखा जाता है। उन्नत विद्या से किसी बड़ी डिग्री या इंस्टीट्यूट से मतलब नहीं है। जीवन के अनुभवों की पाठशाला के साथ व्यक्ति जब आगे बढऩा शुरू करता है उससे अनुभव के बैंक को विकास क्रम मे