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Showing posts from April, 2019

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नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में दो

वैशाख माह में दान का महत्व

20 अप्रैल 2019 से शुरू हुए वैशाख मास पर गुरु का प्रभाव माना जाता है। हिंदी कैलेंडर का ये दूसरा महीना अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अप्रैल - मई में आता है। विशाखा नक्षत्र से सम्बन्ध होने के कारण इसका नाम वैशाख पड़ा। इस महीने में भगवान विष्णु, परशुराम और देवी की उपासना विशेष रूप से की जाती है। कहते हैं कि इस माह विधि विधान से पूजा करने पर धन और पुण्य की प्राप्ति होती है। पूरे साल में केवल एक बार इसी महीने श्री बांके बिहारी जी के चरण दर्शन होते हैं। इस महीने में गंगा या अन्य पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व माना जाता है। ये महीना 20 अप्रैल से 18 मई तक रहेगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वैशाख माह में दान पुण्य का भारी महत्व होता है। दान पुण्य करें- वैशाख को पुण्य प्राप्ति का माह मानते हैं इसीलिए इस महीने में दान करने का बहुत महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि इस महीने दान करने से गरीबी से मुक्ति मिलती है। इस महीने में पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए. मान्यता है कि वैशाख के महीने में पूजा आराधना कर के जीवन की समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकती है. पुराणों में कहा गया है कि न माधवसमो मासो न क

जीवन का मूल्य क्या है?

व्यक्ति की प्रतिष्ठा का आकलन उसके जीवन-मूल्यों से किया जाता है। जीवन-मूल्य सफलता के लिए जरूरी हैं। वैदिक काल से होते हुए, गौतम बुद्ध और महात्मा गांधी तक अनेक महापुरुष जीवन-मूल्यों के कारण इतिहास में अमर हो गए। जीवन मूल्य व्यक्ति को सकारात्मक बनाते हैं। जो व्यक्ति मूल्यहीन जीवन जीते हैं वे समाज में व्यर्थ माने जाते हैं। ऐसे व्यक्ति समाज के लिए बोझ माने जाते हैं। निठल्ले व्यक्ति समाज का कभी भी मार्ग-दर्शन नहीं करते। मूल्यहीन व्यक्ति की जिंदगी पंगु मानी जाती है, जिसमें कोई गति और निरंतरता नहीं होती और सिद्धांतों के अभाव में ऐसे लोग महत्वहीन, अनुपयोगी और परिवार के लिए बोझ स्वरूप होते हैं। सिद्धांत और मूल्य जीवन को ऊर्जा देते हैं। नियम जीवन को अनुशासित करते हैं। ये जीवन के आधारभूत तत्व हैं। अनियमित व्यक्ति जीवन के किसी क्षेत्र में सफल नहीं माना जाता। संसार के सभी महापुरुष या सफलतम व्यक्ति अपने ऊंचे आदर्शों और मान्यताओं के कारण ही समाज में गाथा बनकर अपना नाम रोशन करते हैं। समाज सर्वदा ऐसे लोगों का अनुकरण करता है। जीवन में मूल्यों का क्या स्थान था। इस संदर्भ में एक लघु कथा जिससे जीवन के मूल्य

वैशाख माह की महिमा

वैशाख हिन्दू धर्म का द्वितीय महीना है। विशाखा नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा होने के कारण इसका नाम वैशाख पड़ा। वैशाख मास शुरू हो गया जो कि पुण्यकारी तथा श्रीविष्णु को अत्यंत प्रिय मास है। वैशाख मास का एक नाम माधव मास भी है। इस मास के देवता मधुसूदन हैं। मधु दैत्य का वध होने के कारण उन्हें मधुसूदन कहते हैं। विष्णुसहस्त्रनाम दु:स्वप्ने स्मर गोविन्दं संकटे मधुसूदनम् के अनुसार किसी भी प्रकार के संकट में श्रीविष्णु के नाम मधुसूदन का स्मरण करना चाहिए। स्कन्दपुराणम्, वैष्णवखण्ड के अनुसार- न माधवसमो मासो न कृतेन युगं समम्। न च वेदसमं शास्त्रं न तीर्थं गंगया समम्।। वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। पद्मपुराण, पातालखण्ड के अनुसार- यथोमा सर्वनारीणां तपतां भास्करो यथा। आरोग्यलाभो लाभानां द्विपदां ब्राह्मणो यथा।। परोपकार: पुण्यानां विद्यानां निगमो यथा। मंत्राणां प्रणवो यद्वद्ध्यानानामात्मचिंतनम्।। सत्यं स्वधर्मवर्तित्वं तपसां च यथा वरम्। शौचानामर्थशौचं च दानानामभयं यथा।। गुणानां च यथा लोभक्षयो मुख्यो गुण: स्मृत

मंत्र शक्ति अलौकिक शक्ति

आज के भौतिकवादी युग में मंत्र विधा मात्र कुछ ही व्यक्तियों के प्रयोग की वस्तु बनकर रह गई है। जबकि हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों-हजार साल पूर्व ही इनके प्रयोग कर जीवन को सार्थक बनाया था। अब विज्ञान भी इस बात को मानने लगा है कि शब्दों की ध्वनि ब्रह्मांड तक पहुंचती है। मंत्रों में छुपी अलौकिक शक्ति का प्रयोग कर जीवन को सफल एवं सार्थक बनाया जा सकता है। मंत्र क्या है। इस संदर्भ में यह कहना उचित होगा कि मंत्र का वास्तविक अर्थ असीमित है। किसी देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए प्रयुक्त शब्द समूह मंत्र कहलाता है। जो शब्द जिस देवता या शक्ति को प्रकट करता है उसे उस देवता या शक्ति का मंत्र कहते हैं। मंत्र एक ऐसी गुप्त ऊर्जा है, जिसे हम जागृत कर इस अखिल ब्रह्मांड में पहले से ही उपस्थित इसी प्रकार की ऊर्जा से एकात्म कर उस ऊर्जा के लिए देवता (शक्ति) से सीधा साक्षात्कार कर सकते हैं। ऊर्जा अविनाशिता के नियमानुसार ऊर्जा कभी भी नष्ट नहीं होती है, वरन् एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती रहती है। अत: जब हम मंत्रों का उच्चारण करते हैं तो उससे उत्पन्न ध्वनि एक ऊर्जा के रूप में ब्रह्मांड में प्रेषित होकर जब

संकट कटे मिटे सब पीरा, जो सुमिरे हनुमन बलवीरा

भगवान शिव जैसे भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न होते हैं, वैसे ही हनुमान जी जो शिव जी का रुद्र अवतार ही माने गए हैं, ये भी भक्तों की पीड़ा हरने में तत्पर रहते हैं। मंगलवार का दिन हनुमान जी की उपासना के लिए सर्वोत्म माना जाता है और इस दिन देवालय में भक्तों का अंबार लगा होता है. बजरंगबली को प्रसन्न करने के लिए कोई मंत्र जाप करता है तो कोई चालीसा या हनुमानाष्टक का पाठ करता नजऱ आता है। कौन से संकट या कष्ट के लिए हनुमान जी के कौन से मंत्र या चौपाई का जाप करना चाहिए और उनकी उपासना का शुभ समय क्या है और किस तरह उपासना करने से सारे संकटों से मुक्ति मिल जाती है। इन चीजों का विशेष ध्यान रखा जाए तो फल प्राप्ति सुगम और शीघ्र हो जाती है। संकट कटे मिटे सब पीरा, जो सुमिरे हनुमत बलबीरा... . यानि जो कोई भक्त महावीर हनुमान का ध्यान करता रहता है, उसके सब संकट स्वयं ही कट जाते है और सभी पीड़ाएं भी नष्ट हो जाती हैं। कहते हैं कि जीवन में संकट कैसा भी आए, हनुमान जी के पास उसका समाधान जरूर होता है। इस धरती पर ऐसा कोई कष्ट और ऐसी कोई पीड़ा नहीं होती है जिसका निदान करने में महावीर हनुमान असमर्थ हों इसलिए अगर आपके जीवन म

वैशाख मास स्नान आरंभ

चैत्र शुक्ल पूर्णिमा से वैशाख मास स्नान आरंभ हो जाता है। यह स्नान पूरे वैशाख मास तक चलता है। इस बार वैशाख मास स्नान 19 अप्रैल, शुक्रवार से प्रारंभ हो रहा है। पूर्णिमा हर माह में मनाई जाती है, इसका व्रत भी किया जाता है लेकिन चैत्र पूर्णिमा का अलग ही महत्व है। पुराणों में वर्णित है कि इस दिन की गई पूजा का विशेष फल मिलता है। इसके पीछे यह भी एक कारण है कि हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र वर्ष का पहला महीना होता है। साथ ही चैत्र पूर्णिमा से शुरू हो जाता है वैशाख महीना, जो कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पुण्य प्राप्ति का महीना कहलाता है। कहा जाता है कि वैशाख का महत्व कार्तिक और माघ महीने की ही तरह है। इन महीनों में जल दान का बड़ा महत्व है। स्कंदपुराण में वैशाख मास को सभी मासों में उत्तम बताया गया है। पुराणों में कहा गया है कि वैशाख मास में सूर्योदय से पहले जो व्यक्ति स्नान करता है तथा व्रत रखता है, वह भगवान विष्णु का कृपापात्र होता है। स्कंदपुराण में उल्लेख है कि महीरथ नामक राजा ने केवल वैशाख स्नान से ही वैकुण्ठधाम प्राप्त किया था। इसमें व्रती को प्रतिदिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व किसी तीर्थस

परेशानियां दूर करने के लिए करें हनुमान जी को प्रसन्न

जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। कभी कोई विरोधी परेशान करता है तो कभी घर के किसी सदस्य को बीमारी घेर लेती है। इनके अलावा भी जीवन में परेशानियों का आना-जाना लगा ही रहता है। ऐसे में हनुमानजी की आराधना करना ही सबसे श्रेष्ठ है। हनुमान जयंती हनुमानजी की कृपा पाने का यह बहुत ही उचित अवसर है। ज्योतिष के अनुसार इस बार हनुमान जयंती पर दो शुभ संयोग का मिलन भी हो रहा है, जो थोड़े से जाप में ज्यादा फल देने वाले साबित हो सकते हैं। इस बार हनुमान जयंती पर गजकेसरी योग और चित्रा नक्षत्र बन रहा है। इस शुभ संयोग में बजरंगबली की आराधना करने और कुछ उपाय करने से भगवान हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्ति होती है। जीवन में कोई संकट न आए तो हनुमान जयंती के दिन से नीचे दिए मंत्र का प्रतिदिन जाप शुरू करें। लगभग एक महीने नित्य प्रतिदिन सुबह-सुबह इस मंत्र का जाप कर लिया जाए तो जीवन में आने वाली परेशानियों से निजात पाई जा सकती है। मंत्र- ऊँ नमो हनुमते रूद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय। सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा।। जप विधि- सुबह जल्दी उठकर सर्वप्रथम स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ  वस्त्र पहनें। इस

हनुमान जी को अर्पित करें ये 5 चीजें

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मंगलवार का दिन हनुमान जी की उपासना के लिए सर्वोत्तम माना जाता है और इस दिन देवालय में भक्तों की भारी भीड़ लगी होती है। बजरंगबली को प्रसन्न करने के लिए कोई मंत्र जाप करता है तो कोई चालीसा या हनुमानाष्टक का पाठ करता नजर आता है। लेकिन इससे भी इतर ये 5 चीजें हनुमान जी को अर्पित करने से जीवन के हर क्षेत्र में लाभ और सुख-समृद्धि मिलती है। 1 सिन्दूर- अगर ग्रहों की बाधा परेशान कर रही हो, खास तौर से शनि की, तो मंगलवार को हनुमान जी को सिन्दूर और चमेली का तेल अर्पित करें। इसके पश्चात हनुमान चालीसा का पाठ करें। 2 तुलसी दल- अगर धन या सम्पन्नता का अभाव हो तो हनुमान जी को तुलसी की माला या तुलसी दल मंगलवार की सुबह अर्पित करें। इसके बाद उसको प्रसाद रूप में ग्रहण करें। 3 ध्वज- ध्वज अर्पित करने से संपत्ति सम्बन्धी सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं। एक नारंगी रंग का तिकोना ध्वज बनायें। इसे एक बार मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में अर्पित कर दें। शीघ्र संपत्ति प्राप्ति की प्रार्थना करें। 4 लड्डू- संतान सम्बन्धी समस्याओं के निवारण के लिए हनुमान जी को लड्डू अर्पित करे। लड्डू, पति-पत्नी एक साथ अर्पित करें। इसक

हनुमान जी के 12 नामों की स्तुति

धर्म ग्रंथों में हनुमानजी के 12 नाम बताए गए हैं, जिनके द्वारा उनकी स्तुति की जाती है। हनुमानजी के इन 12 नामों का जो रात में सोने से पहले व सुबह उठने पर अथवा यात्रा प्रारंभ करने से पहले पाठ करता है, उसके सभी भय दूर हो जाते हैं और उसे अपने जीवन में सभी सुख प्राप्त होते हैं। वह अपने जीवन में अनेक उपलब्धियां प्राप्त करता है। हनुमानजी की 12 नामों वाली स्तुति- स्तुति हनुमानअंजनीसूनुर्वायुपुत्रो महाबल:। रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिंगाक्षोअमितविक्रम:।। उदधिक्रमणश्चेव सीताशोकविनाशन:। लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।। एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:। स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत। तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत। राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन।। हनुमान जी के इन 12 नामो की महिमा धर्म ग्रंथों में भी गाई गई है। हनुमान- हनुमानजी का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि एक बार क्रोधित होकर देवराज इंद्र ने इनके ऊपर अपने वज्र प्रहार किया था यह वज्र सीधे इनकी ठोड़ी (हनु) पर लगा। हनु पर वज्र का प्रहार होने के कारण ही इनका नाम हनुमान पड़ा। लक्ष्मणप्राणदाता- जब रावण के पुत्र इंद्रजीत ने शक

बीमारी से निजात के लिए करें हनुमान बाहुक पाठ

महाबली हनुमान भक्ति और शक्ति के अद्भुत प्रतीक हैं। हनुमान सरल भक्ति और प्रेम से प्रसन्न होते हैं। इन्होंने ही लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की थी। हनुमान जी के विशेष मन्त्र और स्तुतियों के पाठ से सेहत उत्तम हो सकती है। अगर विशेष तरीके से हनुमान बाहुक का पाठ किया जाय तो हर बीमारी से निजात पाई जा सकती है। इसके लिए हनुमान जी की आशीर्वाद मुद्रा के चित्र या प्रतिमा की स्थापना करें साथ में प्रभु श्री राम की प्रतिमा की भी स्थापना जरूर करें। उनके सामने घी का दीपक जलाएं और एक पात्र में जल भरकर रखें। पहले श्री राम की स्तुति करें और फिर हनुमान जी का ध्यान करें। इसके बाद हनुमान बाहुक का पाठ करें। पाठ के बाद पात्र का थोड़ा सा जल रोगी को पिला दें, बाकी बचा हुआ जल शरीर के रोगग्रस्त हिस्से पर लगाएं। हनुमान बाहुक के पाठ की शुरुआत मंगलवार से करें। हनुमान बाहुक पाठ से मंगल से संबंधित समस्याओं का भी निवारण हो जाता है। एक बार गोस्वामी तुलसीदासजी बहुत बीमार हो गये। भुजाओं में वात-व्याधि की गहरी पीड़ा और फोड़े-फुंसियों के कारण उनका शरीर वेदना का स्थान-सा बन गया था। उन्होंने औषधि, यन्त्र, मन्त्र, टोटके आदि अने

ब्रह्म मुहूर्त का महत्व

ब्रह्म मुहूर्त को धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों तरह से बहुत महत्व दिया जाता है। धार्मिक रूप से जहां वेद शास्त्रों तक में ब्रह्म मुहूर्त में उठने के फायदे बताये गये हैं वहीं विज्ञान भी इस समय को शारीरिक और बौद्धिक विकास के लिये बहुत अच्छा बताता है। ऋग्वेद में कहा गया है कि- प्रातारत्नं प्रातरिष्वा दधाति तं चिकित्वा प्रतिगृह्यनिधत्तो। तेन प्रजां वर्धयुमान आय रायस्पोषेण सचेत सुवीर:॥ अर्थात् सूर्योदय से पहले उठने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है, इस कारण समझदार लोग इस समय को व्यर्थ नहीं गंवाते। जो सुबह जल्दी उठते हैं वे स्वस्थ, सुखी, ताकतवार और दीर्घायु होते हैं। इसी तरह सामवेद में भी लिखा है कि- यद्य सूर उदितोऽनागा मित्रोऽर्यमा। सुवाति सविता भग:॥ अर्थात् सूर्योदय से पहले उठकर शौच व स्नानादि से निवृत हो कर भगवान की पूजा अर्चना करनी चाहिये। इस समय की शुद्ध और स्वच्छ हवा स्वास्थ्य, संपत्ति में वृद्धि करने वाली होती है। इसी प्रकार अथर्ववेद में भी कहा गया है कि सूर्योदय के बाद भी जो नहीं उठते उनका तेज खत्म हो जाता है। वैज्ञानिक महत्व वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि ब्रह्म मुहूर्त के समय वायुमंडल प्रदूषण रहि

भय से मुक्ति के लिए करें बजरंग बाण पाठ

हनुमान जी की कृपा पाने हेतु सभी भक्तजन भिन्न-भिन्न प्रकार से हनुमान जी की पूजा करते है जिनमें नियमित रूप से हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करना हनुमान जी को अति प्रिय है। हनुमान चालीसा और बजरंग बाण के पाठ हमेशा बोलकर करने चाहिए जबकि मंत्र द्वारा आराधना में मंत्र को मन ही मन उच्चारण करना चाहिए। हनुमान जी के बजरंग बाण की महिमा अपार है। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त नियमित रूप से बजरंग बाण का पाठ करते है उनके लिए यह अचूक बाण का कार्य करता है। किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए बजरंग बाण पाठ का प्रयोग करने से कार्य अवश्य ही सिद्ध होता है। नियमित रूप से बजरंग बाण का पाठ करने से सभी प्रकार से भय आदि से मुक्ति मिलती है और आत्मविश्वास बढ़ता है। यदि आप अपने शत्रुओं से परेशान हैं तो बजरंग बाण का नियमित 7 बार पाठ करें और मात्र 21 दिन में ही आपके शत्रु परास्त होने लगेंगे। अपने व्यापार और कारोबार में वृद्धि के लिए अपने ऑफिस (कार्य स्थल ) पर पाँच मंगलवार तक  7 बार बजरंग बाण का पाठ करें। जिनके बने-बनाये कार्य बिगड़ जाते हों उन्हें अपनी दैनिक पूजा में बजरंग बाण का पाठ अवश्य करना चाहिए। नियमित रूप से बजरंग

17 अप्रैल, 2019 को प्रदोष व्रत

प्रदोष व्रत को हम त्रयोदशी व्रत के नाम से भी जानते हैं। यह व्रत माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है। पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से बेहतर स्वास्थ और लम्बी आयु की प्राप्ति होती है। यह व्रत महीने में दो बार महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी मनाते है। प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है। सूर्यास्त के बाद और रात्रि के आने से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस व्रत में भगवान शिव कि पूजा की जाती है। मान्यता है कि सच्चे मन से व्रत रखने पर व्यक्ति को मनचाहे वस्तु की प्राप्ति होती है। वैसे तो हिन्दू धर्म में हर महीने की प्रत्येक तिथि को कोई न कोई व्रत या उपवास होते हैं लेकिन लेकिन इन सब में प्रदोष व्रत की बहुत मान्यता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव प्रदोष के समय कैलाश पर्वत स्थित अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं। इसी वजह से लोग शिव जी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन प्रदोष व्रत रखते हैं। इस व्रत को करने से सारे कष्ट और हर प्रकार के दोष मिट जाते हैं। कलयुग में प्रदोष व्रत को करना बहुत मंगलकारी होता है और शिव कृपा प्रदान करता है। प्रदोष व्रत से मिलने

संकट मोचन हनुमान अष्टक

हनुमान जी हर तरह के संकट से मुक्ति दिलाने वाले माने गए हैं इसीलिए इनका नाम संकटमोचन हनुमान जी भी कहा गया है। हनुमान जी की आराधना में हनुमान चालीसा, बजरंग बाण और संकटमोचन हनुमान अष्टक के पाठ का बड़ा ही महत्व है। संकटमोचन हनुमान अष्टक के नियमित पाठ से भक्त पर आये घोर से घोर संकट भी दूर होने लगते हैं। बचपन में हनुमान जी बहुत ही शरारती थे। शुरू से असीमित शक्तियों के स्वामी हनुमान जी, देवताओं और ऋषि-मुनियों को अपनी क्रीडाओं द्वारा परेशान भी करते है जिस कारण उन्हें बचपन में ही श्राप मिला था वे कि वे अपनी शक्तियों को भूल जायेंगे व दूसरों द्वारा याद दिलाने पर ही उन्हें अपनी शक्तियों का आभास होगा। संकटमोचन हनुमान अष्टक के पाठ द्वारा भक्त उन्हें उनकी शक्तियों का स्मरण कराते हैं व उनसे अपने सभी संकट दूर करने का आग्रह करते हैं। हनुमान जी की आराधना के समय हनुमान जी से अपने संकटों को दूर करने के लिए बार-बार आग्रह करना चाहिए। संकटमोचन हनुमान अष्टक- बाल समय रवि भक्षि लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों ताहि सो त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात  न टारो देवन आनि करी विनती तब, छाडि़ दियो रवि कष्ट निवार

हनुमान जयंती : ऐसे पाएं हनुमान जी का आशीर्वाद

19 अप्रैल शुक्रवार को चैत्र पूर्णिमा है. यह दिन बहुत ही शुभ और पवित्र माना जाता है. इस दौरान कोई भी नया काम शुरू करना बहुत शुभ होता है। चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जी के जन्मदिन के रूप में मनाते हैं। इस बार हनुमान जयंती शुक्रवार को है। इस दौरान मंगल का चित्रा नक्षत्र भी है। हनुमान जयंती साल में दो बार मनाई जाती है। इस दिन हनुमान जी का आशीर्वाद पाने के लिए भक्त खासतौर पर मंदिर में जाकर पूजा करते हैं। हनुमान जी की पूजा करने के लिए- - शाम को लाल वस्त्र बिछाकर हनुमान जी की मूर्ति या फोटो को दक्षिण मुंह करके स्थापित करें। - खुद लाल आसान पर लाल वस्त्र पहनकर बैठ जाएं। - घी का दीपक और चंदन की अगरबत्ती या धूप जलाएं। - चमेली तेल में घोलकर नारंगी सिंदूर और चांदी का वर्क चढ़ाएं। - इसके बाद लाल फूल से पुष्पांजलि दें। - लड्डू या बूंदी के प्रसाद का भोग लगाएं। - केले का भोग भी लगा सकते हैं। - दीपक से  9 बार घुमाकर आरती करें। - मन्त्र ऊँ  मंगलमूर्ति  हनुमते नम: का जाप करें। धन-दौलत पाने के लिए हनुमान जी की खास पूजा - हनुमान जी की पूजा कोई भी स्त्री-पुरुष कर सकते हैं। - हनुमान जी पर जल चढ़ाने के बाद पंचा

श्रीरामरक्षा स्त्रोत

श्री राम रक्षा स्त्रोत सभी तरह की विपत्तियों से रक्षा करता है। इसका पाठ करने से मनुष्य भय रहित हो जाता है।  इसके नित्य पाठ से कष्ट दूर होते हैं, जो इसका पाठ करता है वह दीर्घायु, सुखी, संततिवान, विजयी तथा विनयसंपन्न होता है। इसके अलावा इससे मंगल का कुप्रभाव समाप्त होता है। मान्यता है कि इसके प्रभाव से व्यक्ति के चारों और सुरक्षा कवच बनता है, जिससे हर प्रकार की विपत्ति से रक्षा होती है। इसके पाठ से भगवान राम के साथ पवनपुत्र हनुमान भी प्रसन्न होते हैं। श्री राम रक्षा स्त्रोत करने से पूर्व हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़ें- अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषि:। श्री सीतारामचंद्रो देवता। अनुष्टुप छंद:। सीता शक्ति:। श्रीमान हनुमान कीलकम। श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोग:। अब जल को जमीन पर छोड़ दें और फिर भगवान राम का ध्यान करें। ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपदमासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमल दल स्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम। वामांकारूढ़ सीता मुखकमलमिलल्लोचनम् नीरदाभम् नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलम् रामचंद्रम।। फिर स्त्रोत का वाचन करें। स्त्रोत- चरितं रघुनाथस्य शत

कलियुग केवल नाम आधारा....

रामनवमी पर अंत:करण से संकल्प करें कि भगवान का नाम उच्चारण शुद्ध मन-वचन-कर्म से लेते रहेंगे। नाम उच्चारण से ही भौतिक और परमार्थिक दोनों सुखों का फल मिल जाता है। भगवान ने स्वयं कहा है कि कलियुग में जो भक्त मुझे केवल नाम के आधार पर ही भजता है, उसके सभी मनोरथ पूर्ण होंगे। एक नाम जाप होता है और एक मंत्र जाप होता है . राम नाम मन्त्र भी है और नाम भी। राम राम राम... ऐसे नाम जाप कि पुकार विधिरहित होती है। परमात्मा ने अपनी पूरी पूरी शक्ति राम नाम में रख दी है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह कि नाम जप के लिए कोई स्थान, पात्र विधि की जरुरत नही है। रात दिन राम नाम का जप करो निषिद्ध पापाचरण आचरणों से स्वत: ग्लानी हो जायेगी। अभी अंतकरण मैला है इसलिए मलिनता अच्छी लगती है मन के शुद्ध होने पर मैली वस्तुओं कि अकांक्षा नहीं रहेगी। जीभ से राम राम शुरू कर दो मन की परवाह मत करो। ऐसा मत सोचो कि मन नहीं लग रहा है तो जप निरर्थक चल रहा है। जैसे आग बिना मन के छुएंगे तो भी वह जलायेगी ही। ऐसे ही भगवान् का नाम किसी तरह से लिया जाए, अंतर्मन को निर्मल करेगा ही। इस प्रकार भगवान को सम्बोधित करने का अर्थ है कि हम भगवान को पुक

कलश विसर्जन

नवरात्रि के प्रारंभ में कलश की स्थापना की जाती है। जैसे कलश की विधिवत स्थापना की जाती है वैसे ही कलश विसर्जन के समय में विधि-विधान से किए गए कलश विसर्जन से पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। इसके लिए ऊं श्रीं श्रीं क्लीं हूं मंत्र का जाप करते हुए करना चाहिए और इसी मंत्र के साथ कलश विसर्जित करना चाहिए। अंत में, देवी सूक्तम का पाठ करके भगवती से क्षमा याचना करें। व्रत का परायण करने के लिए पहले हवन करें। कन्याओं को भोग लगाएं। उनको दान-दक्षिणा दें। सवेरे दुर्गा सप्तशती का पाठ करें ( देवी सूक्तम) मां भगवती से क्षमा याचना करें कि व्रत में जो भूल हो गई हो, उसको क्षमा करें। ऊं श्रीं श्रीं क्लीं हूं या ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै का जाप करते हुए कलश उठाएं। कलश का जल पहले अपने अपने ऊपर छिड़कें और फिर घर के अन्य सदस्यों पर। कलश का जल घर के चारों कोनों पर छिड़कें और अपनी मनोकामना करते रहें। कलश में पड़े सिक्के को तिजोरी में रखें और जल तुलसी या किसी फूल वाले गमले में चढा दें। कलश पर बंधा कलावा बाजू या गले में धारण कर सकते हैं (यह कवच का काम करेगा)। कलश पर रखा नारियल अपनी पत्नी और बहन की गोद में

अष्टमी और नवमी को करें मां को प्रसन्न

चैत्र शुक्लपक्ष की अष्टमी  तिथि को नवरात्रि अष्टमी तिथि मनाई जाती है। वहीं चैत्र शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को नवमी तिथि को रामनवमी मनाई जाती है। इस दिन कन्याओं का पूजन कर नवरात्रि के नौ दिनों के व्रत का पारण किया जाता है।  इस बार राम नवमी पुष्य नक्षत्र के योग में है। पुष्य नक्षत्र सभी 27 नक्षत्रों में सबसे सर्वश्रेष्ठ नक्षत्र माना गया है। भगवान राम का जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ था। वैसे तो नवरात्र में की गई साधना सुख-समृद्धि की कारक होती है, फिर भी पूरे नवरात्र में अगर किसी कारण से पूजा नहीं की गई हो तो सिर्फ दो दिन अष्टमी और नवमी की ही पूजा विधि-विधान से कर ली जाए तो मां की प्रसन्नता प्राप्त की जा सकती है। नवरात्रि के आखिरी दो दिन अष्टमी और नवमी मनाई जाती है। नवरात्र के आठवें दिन मां महागौरी और नौवे दिन सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है अष्टमी और नवमी को मां की पूजा और हवन आदि का विशेष महत्व होता है। ऐसा करने से सालभर घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। इस दिन किए कुछ उपाय भी आपको आने वाले समय धनवान बना सकते हैं। अष्टमी और नवमी पूजा के दिन आप जिन कन्यायों को भोजन करा र

नवरात्र में रात्रि का महत्व

भारत के प्राचीन ऋषियों-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है, इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है। यदि रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता, तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता। लेकिन नवरात्र के दिन, नवदिन नहीं कहे जाते। मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है। विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से नौ दिन अर्थात नवमी तक। और इसी प्रकार ठीक छह मास बाद आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक। परंतु सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। इन नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग साधना आदि करते हैं। कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। नवरात्रों में शक्ति के 51 पीठों पर भक्तों क

14 अप्रैल रामनवमी

रामनवमी का त्यौहार देशभर में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। राम नवमी का संबंध भगवान विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम से है। भगवान विष्णु ने अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करने के लिये हर युग में अवतार धारण किये। इन्हीं में एक अवतार उन्होंने भगवान श्री राम के रूप में लिया था। जिस दिन भगवान श्री हरि ने राम के रूप में राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या की कोख से जन्म लिया वह दिन चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी का दिन था। यही कारण है कि इस तिथि को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। वैसे तो इस बार नवमी तिथि का आरंभ 11 बजकर 41 मिनट पर 13 अप्रैल से 14 अप्रैल 11 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान राम त्रेता युग में अवतरित हुए। उनके जन्म का एकमात्र उद्देश्य मानव मात्र का कल्याण करना, मानव समाज के लिये एक आदर्श पुरुष की मिसाल पेश करना और अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना था। राजा दशरथ जिनका प्रताप दशों दिशाओं में व्याप्त रहा। तीन-तीन विवाह उन्होंने किये थे लेकिन किसी भी रानी से उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। ऋषि मुनियों से जब इस बारे में विमर्श किया तो उन्हो

नवरात्रि में व्रत रखने पर कराएं कन्या भोजन

नवरात्र में मां की विशेष कृपा पाने के लिए भक्त 9 दिनों का व्रत करते हैं। कहा जाता है कि यह 9 दिनों का व्रत कन्या पूजन से ही संपन्न होता है इसलिए कन्याओं को मां दुर्गा का प्रतीक मानकर उनका पूजन किया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि कन्याओं का पूजन करने से मातारानी प्रसन्न होती हैं। साथ ही भक्तों को खुश रहने का आर्शीवाद भी देती हैं। लेकिन कन्या पूजन का लाभ तभी मिलता है जब विधि-विधान से इसका पालन किया जाता है। नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन का बड़ा महत्व है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है। अपने सामथ्र्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं। नवरात्र में सप्तमी तिथि से कन्या पूजन शुरू हो जाता है और इस दौरान कन्याओं को घर बुलाकर उनकी आवभगत की जाती है। दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर इनका स्वागत किया जाता है। माना जाता है कि कन्याओं का देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज कराने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को सुख समृद्धि का वरदान देती ह

हिन्दू धर्म के चमत्कारिक मंत्र

मंत्रोच्चार एक ऐसी शक्ति है जिससे व्यक्ति इच्छित सुखों को प्राप्त कर सकता है। इसका आधार वैज्ञानिक और तथ्यों पर आधारित होता है। वैज्ञानिक आधार इसलिए कि इसका संबंध मंत्र के उच्चारण का सीधा संबंध ब्रह्मांड से स्थापित मानने लगे हैं। इसीलिए आदि काल से ही ऋषि-मुनियों ने मंत्रों को सिद्ध कर इसका प्रमाण दे दिया था। यह शक्ति आज भी विधिवत चलती आ रही है। बस, इसके लिए सिर्फ विश्वास के साथ किया गया कार्य अवश्य ही परिणाम रूप में सामने आने लगता है। शुरू-शुरू में व्यक्ति खुद अपने आप में शरीर और इन्द्रियों में होने वाले बदलाव से इसका साक्षात अनुभव कर सकता है। मंत्र का अर्थ होता है मन को एक तंत्र में बांधना। यदि अनावश्यक और अत्यधिक विचार उत्पन्न हो रहे हैं और जिनके कारण चिंता पैदा हो रही है, तो मंत्र सबसे कारगर औषधि है। आप जिस भी ईष्ट की पूजा, प्रार्थना या ध्यान करते हैं उसके नाम का मंत्र जप सकते हैं। हिंदू धर्म में पूजा की प्रक्रिया में तीन बुनियादी तकनीकों अर्थात् मंत्र, तंत्र और यंत्र का इस्तेमाल होता है। मनुष्य की हमेशा जिज्ञासा रहती है तंत्र-मंत्र को जानने की। इनमें में हिंदू धर्म में मंत्रों का बड

मनोकामना पूर्ति और शक्ति प्राप्ति के लिए करें मां की साधना

दुर्गा माँ एक ऐसी देवी हैं जो साधक को बहुत जल्दी अपनी कृपा प्रदान कर देती है। जो उनकी साधना करता है उसके लिए तो संसार में कुछ भी असंभव नहीं रहता। माँ की पूजा से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सबकी प्राप्ति हो जाती है। माँ हमेशा अपने साधक पर अपनी कृपा दृष्टि बनाएं रखती है और हमेशा अपने साधक का कल्याण करती रहती है! उनके साधक और उपासक का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। देवी माँ की शीघ्र कृपा के साथ मनोकामना पूर्ति और शक्ति प्राप्ति का यह सिद्ध मंत्र है, जो भक्त को विधिपूर्वक करने पर शीघ्र फलदायी साबित होता है। दुर्गा माँ का जप मंत्र- ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे,ऊँ ग्लौं हूं क्लीं जूं स:,ज्वालय-ज्वालय,ज्वल-ज्वल,प्रज्वल-प्रज्वल, ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ,ज्वल हं सं लं क्षं फट स्वाहा। कुंजिका स्तोत्रं- नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि। नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन॥ नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन। जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।। ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका। क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तुते।। चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी। विच्चे

मां दुर्गा के मंत्र जाप से पाएं सुख-समृद्धि

चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा-उपासना जहां सिद्धियों की प्राप्ति की जा सकती है, वहीं मां दुर्गा के कई ऐसे मंत्र हैं जिनका जाप नित्य नियमपूर्वक किया जाए तो सभी मुसीबतें दूर होकर सुख-समृद्धि का स्थाई वास हो सकता है। मंत्र शक्ति का ब्रह्मांड से सीधा जुड़ाव होता है, इसलिए मंत्र का जाप सही व शुद्ध उच्चारण करने पर मंत्र की सिद्धि पाई जा सकती है। इच्छा पूर्ति का मंत्र-  ऊँ ह्रींग डुंग दुर्गायै नम: का जाप करना चाहिए। सभी प्रकार की सिद्धि पाने के लिए ऊँ अंग ह्रींग क्लींग चामुण्डायै विच्चे मंत्र का जाप करना चाहिए। दुर्गासप्तशी के शक्तिशाली मंत्र जो सब प्रकार के कल्याण के लिये किया जा सकता है- सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥ धन प्राप्ति के लिए मंत्र- दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि। दारिद्रदु:खभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाऽरचित्ता॥ विपत्ति नाश के लिए मंत्र- शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे। सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥ शक्ति प्राप्ति के लिए मंत्र- सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातन

नवरात्र में मां दुर्गा के साथ शक्ति संपन्न देवता की भी पूजा करें

एक वर्ष में चार नवरात्र आते हैं। दो मुख्य और दो गुप्त नवरात्र। जिन लोगों को शक्ति की उपासना करनी हो, उन्हें शारदीय नवरात्र में मां की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इन दिनों शक्ति की उपासना के साथ ही अपने इष्ट की भी आराधना श्रद्धालुओं को शुभ फल देती है। इसलिए नवरात्र में शक्ति संपन्न देवता जैसे हनुमान जी और भैरव जी की पूजा भी बहुत फलदायी होती है, क्योंकि ये देवता भी देवी के साथ-साथ ही शक्तिशाली माने गए हैं, जो पूजा से जल्दी ही प्रसन्न होते हैं। नौ दिनों तक होने वाली नौ दुर्गा उपासना में सूर्य और चंद्रमा सहित अन्य नवग्रहों का भी विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। गृहस्थ जीवन में समृद्धि के लिए शास्त्रों में गृहस्थ आश्रम को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है, क्योंकि इसी आश्रम से सृष्टि का विकास होता है और संस्कारों का विस्तार होता है। इसी आश्रम में व्यक्ति सबसे अधिक व्यस्त रहता है। वह अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारियों में ही इतना उलझा रहता है कि ईश्वर की ओर भी पूरी तरह से ध्यान नहीं दे पाता। इसके बावजूद गृहस्थ को थोड़ा समय निकाल कर नवरात्र स्थापना कर उपासना करनी चाहिए। इससे उसके गृहस्थ जीवन में सुख-शांति

मंत्र जाप से मिलते हैं शुभ फल

विक्रम सम्वत् 2076, अंग्रेजी दिनांक 06 अप्रैल, शनिवार से चैत्र मास के नवरात्रि हैं जो कि 14 अप्रैल, रविवार तक चलेंगे। देवी मां को प्रसन्न करने के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए। अगर आप पूरी दुर्गा सप्तसती का पाठ नहीं कर सकते हैं तो इसके कुछ मंत्रों का जप करने से भी शुभ फल मिल सकते हैं। दुर्गा सप्तसती के मंत्र बहुत ही चमत्कारी हैं, अगर विधि-विधान से इनका जप किया जाए तो भक्त को देवी की कृपा मिल सकती है। ये मंत्र और मंत्र जप भी सामान्य विधि से किए जा सकते हैं। हिन्दू धर्म में मां दुर्गा का बेहद महत्व है। उन्हें अन्य देवताओं से भी ऊपर माना गया है। कहते हैं कि देवी 'आदिशक्ति' हैं, उन्हीं से ही इस संसार की रचना हुई है। इस संसार को बनाने वाली आदिशक्ति ही हैं। इसलिए हिन्दू धर्म में किसी भी अन्य देवता की तुलना में शक्ति के रूप की पूजा करना अति फलदायी माना गया है। आदिशक्ति के कई रूप हैं, इन्हीं में से एक मां दुर्गा के रूप से जुड़े कुछ उपाय हैं जिनको सच्चे मन से यदि विधिवत मां दुर्गा की पूजा की जाए, तो वह भक्त की मनोकामना अवश्य पूर्ण करती हैं। मां दुर्गा की पूजा के नियम कठिन अवश्य ह

चैत्र नवरात्रि पर बन रहे विशेष संयोग से पाएं समृद्धि

चैत्र नवरात्रि कलश स्थापना 2019, 6 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि पर्व का शुभारम्भ हो रहा है। देवी आराधना का यह पर्व नवरात्रि साल में चार बार मनाई जाती है। परंतु दो नवरात्र गुप्त होती है। आम तौर पर दो नवरात्रियां जनमानस में प्रचलन हैं पहला चैत्र और दूसरा शारदीय नवरात्रि। नौ दिनों तक शक्ति की उपासना देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों के रूप में की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना होती है फिर नौ दिनों तक देवी के नौ रूपों की विशेष पूजा और आराधना होती है। कलश स्थापना कर नवरात्रि पर समस्त देवीय शक्तियों का आह्रान कर उन्हें सक्रिय किया जाता है। कलश स्थापना विधि नवरात्रि पर कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है। कलश स्थापना करते ही नवरात्रि का पवित्र पर्व शुरू हो जाता है। घटस्थापना करते समय मिट्टी में धान बोए जाते हैं। इसके बाद गंगाजल, चंदन, फूल, दूर्वा, अक्षत, सुपारी और सिक्के  कलश में रखें। कलश स्थापना के लिए एक लकड़ी का पाटा लें और उस पर नया लाल कपड़ा बिछाएं। इसके बाद नारियल और कलश पर मौली बांधे, रोली से कलश पर स्वास्तिक बनाएं। वहीं कलश में शुद्ध जल और गंगा जल रखें। घटस्थापना शुभ मूहूर्त में ही करनी

सर्वप्रथम पूज्य आदि-अनादि गणेश जी

बुद्धि व विद्या के दाता गणेश जी परमात्मा का विघ्ननाशक स्वरूप है। हमारे सभी देवताओं में श्रीगणेश का महत्व सबसे विलक्षण है। अत: प्रत्येक कार्य के आरंभ में, किसी भी देवता की आराधना के पूर्व, किसी भी सत्कर्मानुष्ठान में, किसी भी उत्कृष्ट से उत्कृष्ट एवं साधारण से साधारण लौकिक कार्य में भी भगवान गणेश का स्मरण, अर्चन एवं वंदन किया जाता है। गणेश शब्द की व्युत्पत्ति है। 'गणानां जीवजातानां य: ईश: स्वामी स: गणेश: अर्थात, जो समस्त जीव जाति के ईश-स्वामी हैं वह गणेश हैं। इनकी पूजा से सभी विघ्न नष्ट होते हैं। 'गणेशं पूजयेद्यस्तु विघ्नस्तस्य न जायते'। पद्म पुराण में गणेश जी के जन्म से संबंधित कथाएं विभिन्न रूपों में प्राप्त होती हैं। इस संबंध में शिवपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, लिंग पुराण, स्कंद पुराण, पद्म पुराण, गणेश पुराण, मुद्गल पुराण एवं अन्य ग्रंथों में विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। कथाओं में भिन्नता हाने के बाद भी इनका शिव-पार्वती के माध्यम से अवतार लेना सिद्ध है। गणेश जी के बारे में शंकाओं का समाधान गोस्वामी तुलसीदास निम्नलिखित दोहे में करते हैं। मुनि अनुशासन गनपति हि पूजेहु शंभु भ

सिद्धकुंजिका स्रोत से करें मनोकामना पूरी

भुवनेश्वरी संहिता में कहा गया है- जिस प्रकार से वेद अनादि है, उसी प्रकार सप्तशती भी अनादि है। श्री व्यास जी द्वारा रचित महापुराणों में मार्कण्डेय पुराण के माध्यम से मानव मात्र के कल्याण के लिए इसकी रचना की गई है। जिस प्रकार योग का सर्वोत्तम ग्रंथ गीता है उसी प्रकार दुर्गा सप्तशती शक्ति उपासना का श्रेष्ठ ग्रंथ है। इसमें भी सिद्ध कुंजिका स्रोत का पाठ नित्य-नियमपूर्वक करने से मनोकामनाएं पूर्ण होकर सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में समय की कमी होना एक आम बात है। कम समय में संपूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए दुर्गा सप्तशती में एक आसान सा उपाय बताया गया है। जिसको करने से दुर्गा सप्तशती के 13 अध्याय कवच, कीलक, अर्गला, न्यास के पाठ का पुण्य का फल प्राप्त होता है। पुराणों में बताया गया है कि एक बार यह उपाय भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया था। उन्होंने बताया था कि कुंजिकास्त्रोत का पाठ करने से जातक को दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ का फल प्राप्त हो जाता है। उन्होंने माता पार्वती को यह भी बताया था कि कुंजिकास्त्रोत के सिद्ध किए हुए मंत्र को कभी किसी का अहित करने के लिए नही

5 अप्रैल चैत्र अमावस्या को सुख-समृद्धि के लिए करे सरल उपाय

अमावस्या हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह का अंतिम दिन होता है। यह तिथि पितरों की  तिथि कहलाती है। तंत्र व ज्योतिष शास्त्र में इस तिथि का अत्यधिक महत्व होता है। इस तिथि पर चंद्र उदित नहीं होता अर्थात चन्द्र दिखाई नहीं देता। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन दान व उपाय करने से पितृ दोष, छाया दोष, मानसिक समस्यायें आदि दूर होती हैं। तंत्र शास्त्र के अनुसार अनेक तांत्रिक क्रियाओं हेतु अमावस्या श्रेष्ट मानी गई  है। मारण मोहन, भूत-प्रेत दोष शांति कर्म, अनेक सिद्धियां आदि अमावस्या को प्राप्त की जाती है। अमावस्या के दिन किये जाने वाले कुछ सहज-सरल-सुलभ कार्यो को करने से आसानी से आप अनेक समस्याओं से निजात पा सकते हो। 1- अमावस्या के दिन पितरों के निमित दान करना चाहिये जिससे की सूर्य, चंद्र आदि के दोष दूर होते हैं। भोजन से पूर्व गाय, कुत्ता और पक्षी हेतु भोजन का कुछ अंश निकाल कर इन्हे खिला दें। यह उपाय रोजगार प्राप्ती हेतु भी किया जा सकता है। 2- एक सूखा नारियल लें तथा उसमे एक छोटा सा छेद करके उसे भूरे से भर दें, उसके पश्चात किसी निर्जन स्थान पर जहां चिंटियों की बॉम्बी बनी हो वहां पर गाढ़ दे।

नवरात्रि में पाएं आदिशक्ति का वरदहस्त

नवरात्रि पर्व का हिंदू धर्म में बहुत ही विशेष स्थान है। नवरात्रि का पर्व हर्ष उल्लास और अपने सभी सपनों को पूर्ण करने के साथ माता आदिशक्ति की कृपा पाने का पर्व है। शक्ति आराधना के इन दिनों में आप कुछ बातों का ध्यान रखते हुए भक्त अपने जीवन के सभी संकटों को दूर करके अपना जीवन असीम आनंद से भर सकते हैं। यदि आप नवरात्र के सभी व्रत न भी रख पायें तो भी कम से कम पहला और आखिरी व्रत अवश्य ही रखें। प्याज़, लहसुन, मांस, मदिरा, बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू और पान मसाले आदि व्यसनों का बिलकुल भी प्रयोग न करें। इन दिनों यह विशेष ध्यान दें कि आप क्रोध बिलकुल भी ना करें और घर में भूल कर भी कलह-कलेश न हो क्योंकि जिस घर में कलह होती है वहां पर माता को आप कैसे बुला सकते हैं। जिस भी घर में नवरात्रि को श्री सूक्त का पाठ प्रतिदिन होता है उस घर में कभी भी आर्थिक संकट नहीं आता है। यदि किसी व्यक्ति के जीवन में बहुत परेशानी, अस्थिरता रहती है तो वह या उसकी पत्नी नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का प्रतिदिन सम्पूर्ण अथवा एक या एक से अधिक पाठ करके माता की कपूर और लौंग से आरती करें तो उसके सभी संकट कटने लगते हैं। यदि आप या आपके घ