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Showing posts from February, 2019

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नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में दो

तुलसी पूजन से घर में रहती सुख-शांति

तुलसी के पौधे में नियमित जल चढ़ाने और शाम के समय दीपक करने से घर-परिवार में सुख-शांति तो बनी ही रहती है साथ ही धन की प्राप्ति के मार्ग भी खुल जाते हैं। क्योंकि तुलसी के पौधे को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। कहा जाता है कि जिन घरों में तुलसी का पौधा लगा होता है, वहां लक्ष्मी का वास होता है। अपने घर में एक तुलसी का पौधा जरूर लगाएं। इसे उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्वी दिशा में लगाएं या फिर घर के सामने भी लगा सकते हैं। प्रतिदिन तुलसी पूजा करने से व्यक्ति को कई लाभ प्राप्त होते हैं। * तुलसी पौधे की प्रतिदिन पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और पूजा करने वाले व्यक्ति को व्रत, यज्ञ और हवन करने के बराबर फल मिलता है। * प्रतिदिन तुलसी पौधे के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के पाप कम हो जाते हैं। * हर दिन तुलसी के पूजन से मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। * घर से बाहर जाने से पूर्व तुलसी के दर्शन करके जाना शुभ होता है। * तुलसी के पौधे में औषधीय गुण भी होते हैं। इसके पत्तों को पानी में डालने से कीटाणु मर जाते हैं। * तुलसी माला से लक्ष्मी मंत्र का नित्य पाठ करने से धन की प्राप्ति होती है और परिवार में स

महाशिवरात्रि 2019 : वेदसारशिवस्तोत्रम्

आज के समय में हर कोई शार्ट-कट अपनाना चाहता है, चाहे वह नौकरी में हो, व्यवसाय में हो या फिर घर-परिवार में। इसके चलते हर मनुष्य तमाम परेशानियों से घिरा हुआ है। ऐसे समय में विचलित हो जाता है और सोचता है कि काश! कोई ऐसा मंत्र या पाठ मिल जाए जिससे उसके जीवन की सभी परेशानियां दूर होकर वो शांतिपूर्ण तरीके से अपना जीवन व्यतीत कर सकें। ऐसे में साक्षात् देवों के देव महादेव ही भक्त की समस्याएं हरने वाले एकमात्र देव के रूप में सामने आते हैं। भगवान की भक्ति के लिए भी समय निकाल पाना आज के समय में बड़ा मुश्किल प्रतीत होता है। ऐसे में शिव की एक ऐसी स्तुति है जो भगवान शंकर के अवतार माने गए आदि शंकराचार्य द्वारा रची गई है। इसलिए इसे साक्षात शंकर द्वारा दिया गया सुख का मंत्र भी माना जाता है, जो वेदसार स्तव के नाम से प्रसिद्ध है। यानि वेदों के सार इसी स्तुति में समाहित करते हुए इसकी रचना की गई जो मनुष्य आधि, दैहिक, भौतिक सभी समस्याओं के समाधान करती नजर आती है। कोई भी मनुष्य प्रतिदिन या सिर्फ प्रति सोमवार सुबह-शाम भगवान शिव की पूजा कर इसका पाठ और स्मरण करता है, वह मनुष्य जीवन के समस्त सुखों को प्राप्त करता

3 मार्च प्रदोष व्रत

अबकी बार प्रदोष व्रत महाशिवरात्रि से ठीक एक दिन पहले यानि 3 मार्च को प्रदोष व्रत है। प्रदोष व्रत में जिस दिन जिस वार को आता है, उसका महात्म्य भी उसी अनुरूप बताया गया है। अब की बार रविवार को प्रदोष व्रत है। इस दिन स्वास्थ्य की दृष्टि से यह लाभकारी माना गया है। वेदों, पुराणों एवम् शास्त्रों के अनुसार वर्ष के प्रत्येक माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत मनाया जाता है। फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी 3 मार्च 2019 को प्रदोष व्रत मनाया जाएगा। कलयुग में प्रदोष व्रत का अतुल्य महत्व है, भगवान शिव जी के भक्त श्री सूत जी का कहना है की जो भक्त प्रदोष व्रत के दिन उपवास रख कर शिव जी की आराधना व पूजा करते है, उनकी सारी मनोकामना पूर्ण होती है तथा सभी प्रकार का दोष दूर होकर परिवार में मंगल ही मंगल होता है। ऐसी मान्यता है की प्रदोष व्रत को करने से सप्ताह के सातो दिन भिन्न-भिन्न प्रकार की मनोकामनाएँ पूर्ण होती है। रविवार को प्रदोष व्रत करने से शरीर निरोग रहता है। प्रदोष व्रत की महिमा धार्मिक ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार गंगा नदी के तट पर भगवान शिव जी के भक्त श्री सूत जी ने प्रदोष व्रत

41. वेद : परोपकाराय

लगातार...... वेदों को सरल भाषा में अपनाने के लिए धर्मग्रंथ में पुराणों की रचना की गई। वैसे प्राचीनतम धर्मग्रंथ की रचना को ही पुराण के नाम से जाना जाता है। इस धर्मग्रंथ में लगभग एक अरब श्लोक हैं। यह बृहत् धर्मग्रंथ पुराण, देवलोक में आज भी मौजूद है। मानवता के हितार्थ महान संत कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने एक अरब श्लोकों वाले इस बृहत् पुराण को केवल चार लाख श्लोकों में सम्पादित किया। इसके बाद उन्होंने एक बार फिर इस पुराण को अठारह खण्डों में विभक्त किया। जिन्हें अठारह पुराणों के रूप में जाना जाता है। पुराण शब्द का शाब्दिक अर्थ है पुराना, लेकिन प्राचीनतम होने के बाद भी पुराण और उनकी शिक्षाएँ पुरानी नहीं हुई हैं, बल्कि आज के सन्दर्भ में उनका महत्त्व और बढ़ गया है। ये पुराण श्वांस के रूप में मनुष्य की जीवन-धड़कन बन गए हैं। ये शाश्वत हैं, सत्य हैं और धर्म हैं। मनुष्य जीवन इन्हीं पुराणों पर आधारित है। पुराण प्राचीनतम धर्मग्रंथ होने के साथ-साथ ज्ञान, विवेक, बुद्धि और दिव्य प्रकाश का खज़ाना हैं। इनमें प्राचीनतम् धर्म, चिंतन, इतिहास, समाज शास्त्र, राजनीति और अन्य अनेक विषयों का विस्तृत विवेचन मिलता है।

महाशिवरात्रि : शिवलिंग पर चढ़ाई जाने वाली चीजों का होता है खास महत्व

भगवान शिव के शिवलिंग पर अभिषेक करने से भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होते हैं। शिवलिंग पर अलग-अलग चीजों से भी अभिषेक किया जा सकता है, जिनका अपना अलग से प्रभाव देखने को मिलता है। जिसके कारण भगवान शिव अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करते हैं। अक्सर भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग का अभिषेक करवाते हैं। शिवलिंग पर विभिन्न सामग्रियों से अभिषेक कराने से सारे बिगड़े काम झट से बन जाते हैं। साथ ही शिव पर जो भी चीजें चढ़ाई जाती हैं, उन सभी का महत्व अलग होता है। शिवलिंग पर उनकी मन की चीजें चढ़ाएं तो वह जल्दी खुश हो जाएंगे। जल- महादेव को जल बहुत प्रिय है। यदि मंत्रों को बोलते वक्त शिव जी को जल चढ़ाया जाए तो आपके स्वभाव में शांति आएगी। गाय का घी- गाय के दूध से बना घी चढ़ाने से आपसे शिव जी खुश हो कर आपको तरक्कीं देगें। भांग- शिव जी को भांग सबसे ज्याादा प्रिय है। आप शिवलिंग पर भांग का लेप या फिर भांग की पत्तियां चढ़ा सकते हैं। इससे आपके जीवन से निगेटिविटी और कोई भी बुरा साया होगा वह चला जाएगा। केसर- हर सोमवार को शिवलिंग पर केसर वाला दूध चढ़ाएंगे तो आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी और शादी होने में

2 मार्च : विजया एकादशी

वैसे तो हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी के रूप में मनाया जाता है जिसका हिन्दू धर्म में बहुत खास महत्व है। माना जाता है एकादशी का व्रत करने से कई गुना पुण्य की प्राप्ति होती है। और जातक को मोक्ष प्राप्त होता है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहा जाता है। मान्यता है, इस एकादशी का व्रत करने से सभी परिस्थितियों में विजय प्राप्त करने का सामथ्र्य प्राप्त होता है। इस व्रत के प्रभाव से हर कार्य में सफलता मिलती है। विजया एकादशी का महत्व फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को बहुत महत्व दिया जाता है। पद्म पुराण के अनुसार, स्वयं महादेव ने नारद जी को उपदेश देते हुए कथा था की, एकादशी महान पुण्य देने वाली होती है। कहा जाता है, जो मनुष्य विजया एकादशी का व्रत रखता है उसके पितृ और पूर्वज कुयोनि को त्याग स्वर्ग लोक जाते हैं। इस व्रत को करने से हर कार्य में सफलता मिलती है और पूर्व जन्म से लेकर इस जन्म के सभी पापों से मुक्ति मिलती है। विजया एकादशी का महत्व रामायण के कुछ भागों में भी पढऩे को मिलता है। नाम के अनुसार ही इस एकादशी का व्रत करने वाला सदा विजय

गलत आदतों से आते हैं कष्ट

व्यक्ति के जीवन में अनुशासन अति आवश्यक है। अनुशासित व्यक्ति जीवन में हमेशा आगे की ओर बढ़ता चला जाता है, जबकि इसके अभाव में समस्याएं मुंह बाएं खड़ी नजर आती हैं और कारण भी समझ नहीं आते। ऐसे ही मनुष्य की रोजमर्रा की जिंदगी की कुछ गलत आदतें स्वाभाविक तौर पर शामिल हो जाती है, जिन्हें जरा सी सावधानी से बचा जा सकता है। क्योंकि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रह-गोचर का प्रभाव हर व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है। मनुष्य की कुछ ऐसी आदतें हैं जिसके कारण ग्रह प्रभावित होते हैं परिणामस्वरूप ग्रह जनित समस्याएं हमेशा बनी रहती हैं। अगर आप रोजमर्रा की इन आदतों को ध्यान से देखें तो शायद ऐसा आपके साथ भी कहीं नहीं हो रहा हो। * घर का मंदिर कभी गंदा नहीं होना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो बृहस्पति ग्रह क्रोधित होते हैं। कोशिश करें कि आपके घर का मंदिर हमेशा साफ-सुथरा रहे। * अगर आप खाना खाने के बाद अपने झूठे बर्तन वहीं छोड़ देते हैं तो चंद्रमा और शनि नाराज होते हैं। ऐसा होने से सफलता में कमी आने लगती है। * कभी भी देर रात तक नहीं जागना चाहिए। ऐसा करने से चंद्रमा कभी शुभ फल प्रदान नहीं कर पाता। * जब भी आपके घर कोई मेहमान आ

40. वेद : श्रीमद्भगवदगीता

लगातार...... अक्षरब्रह्मयोग (भगवत्प्राप्ति) अव्यक्ताद्व्यक्तय: सर्वा: प्रभवन्त्यहरागमे। रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके।। भूतग्राम: स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते। रात्र्यागमेऽवश: पार्थ प्रभवत्यहरागमे।। ब्रह्मा के दिन के शुभारम्भ में सारे जीव अव्यक्त अवस्था से व्यक्त होते हैं और फिर जब रात्रि आती है तो वे पुन: अव्यक्त में विलीन हो जाते हैं, जब-जब ब्रह्मा का दिन आता है तो सारे जीव प्रकट होते हैं और ब्रह्मा की रात्रि होते ही वे असहायवत् विलीन हो जाते हैं। अलपज्ञानी पुरूष, जो इस भौतिक जगत् में बने रहना चाहते हैं, उच्चतर लोकों को प्राप्त कर सकते हैं, किन्तु उन्हें पुन: इस धरालोक पर आना होता है, वे ब्रह्माजी का दिन होने पर इस जगत् के उच्चतर तथा निम्नतर लोकों में अपने कार्यों का प्रदर्शन करते हैं, किन्तु ब्रह्माजी की रात्रि होते ही वे विनष्ट हो जाते हैं, दिन में उन्हें भौतिक कार्यों के लिये नाना शरीर प्राप्त होते रहते हैं, किन्तु रात्रि के होते ही उनके शरीर भगवान् श्रीविष्णु के शरीर में विलीन हो जाते हैं, वे पुन: ब्रह्माजी का दिन आने पर प्रकट होते हैं- भूत्वा-भूत्वा प्रलीयते दिन

महाशिवरात्रि 2019 : शिव अद्र्धनारीश्वर

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* इस मूर्ति में आधा शरीर पुरुष अर्थात् रुद्र (शिव) का है और आधा स्त्री अर्थात् उमा (सती, पार्वती) का है। * दोनों अद्र्ध शरीर एक ही देह में सम्मिलित हैं। * उनके नाम गौरीशंकर, उमामहेश्वर और पार्वती परमेश्वर हैं। * दोनों के मध्य काम संयोजक भाव है। नर (पुरुष) और नारी (प्रकृति) के बीच का संबंध अन्योन्याश्रित है। पुरुष के बिना प्रकृति अनाथ है, प्रकृति के बिना पुरुष क्रिया रहित है। सूक्ष्म दृष्टि से देखें तो स्त्री में पुरुष भाव और पुरुष में स्त्री भाव रहता है और वह आवश्यक भी है। ब्रह्मा की प्रार्थना से स्त्रीपुरुषात्मक मिथुन सृष्टि का निर्माण करने के लिए दोनों विभक्त हुए। शिव जब शक्तियुक्त होता है, तो वह समर्थ होता है। भारतीय कला का यह प्रतीक स्त्री - पुरुष के अद्वैत का सूचक है। भगवान शिव के अनेक स्वरूपों की पूजा सदियों से हो रही है। शिव का एक और रूप है जो है अद्र्र्धनारीश्वर। पुराणों के अनुसार शिव ने यह रूप अपनी मर्जी से धारण किया था। वह इस रूप के जरिए लोगों का संदेश देना चाहते थे कि स्त्री और पुरुष समान है। भगवान शंकर के अद्र्धनारीश्वर अवतार में देखते हैं कि भगवान शंकर का आधा शरीर स्त्री

डिप्रेशन और उपाय

इस आर्थिक युग में जहां चारों ओर आपाधापी पसरी हुई नजर आती है, वहां स्वास्थ्य संबंधी विकारों का होना आश्चर्य की बात नहीं है। लगभग हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी रोग से ग्रसित नजर आता है। आज से कुछ सालों पहले शायद इतनी बीमारियां या चिंताएं नहीं थी, जहां व्यक्ति समूह कहें या संयुक्त परिवार की धुरी पर घूमता था। लेकिन आज सब तरफ एकल परिवार और धन की अंधाधुंध दौड़ ही नजर आती है। ऐसे में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए मन का संतुलित होना बेहद जरूरी है। अगर व्यक्ति का मन असंतुलित होता है तो शरीर बहुत प्रभावित होता है और कई तरह की समस्या पैदा हो जाती हैं। मन के संतुलित ना रहने से ही आज की सबसे बड़ी समस्या डिप्रेशन की  शुरुआत होती है जो अंतत: एक बीमारी का रूप धारण कर लेती है। अगर कुंडली में नजर दौड़ाएं तो इसके कारण और उपाय नजर आ सकते हैं। क्योंकि मन के संतुलन में ना रहने के पीछे चंद्रमा और बुध ग्रह को वजह माना जाता है। अगर कुंडली में चंद्रमा की स्थिति सही नहीं है तो आप डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं। डिप्रेशन की वजह- चंद्रमा को मन का स्वामी बताया जाता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार डिप्रेशन में सबसे बड़ी भू

39. वेद : उपवेद

लगातार.......... ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गान्धर्ववेद, अथर्ववेद का अर्थशास्त्र। आयुर्वेद- इसके आठ अंग है- सूत्र-शरीर-इंद्रियां-चिकित्सा-निदान-विमान-कल्प-सिद्धि। इनके उपदेशक प्रजापति ब्रह्मा, अश्विनी कुमार, धन्वन्तरि, इंद्र, भारद्वाज, आत्रेय, अग्निवेश्य, पतञ्जलि हैं। धनुर्वेद- यह चारों पादों से युक्त हैं। इसके कर्ता विश्वामित्र हैं। इसके चार पाद हैं- दीक्षा पाद, संग्रह पाद, सिद्धि पाद, प्रयोग पाद। पहले पाद में धनुष के लक्षण और अधिकार का निरूपण है। धनुष को आयुध कहते हैं। धनुर्वेद के चार भेद हैं- मुक्त-अमुक्त-मुक्तामुक्त-यन्त्रमुक्त। मुक्त- जिसका हाथ से प्रहार किया जाता है, जैसे चक्र, हथगोला आदि। अमुक्त- जिसको हाथ से नहीं छोड़ा जाता जैसे तलवार आदि। मुक्तामुक्त- शल्य आदि। यन्त्रमुक्त- वाण आदि। मुक्तों को अस्त्र और अमुक्तों को शस्त्र कहते हैं। जैसे- ब्रह्मास्त्र, वैष्णवास्त्र, पाशुपत अस्त्र। धनुर्वेद के संग्रह पाद में देवताओं के मंत्रों सहित चारों प्रकार के आयुधों का वर्णन है। इसमें क्षत्रियों का ही अधिकार है। दीक्षा पाद में शस्त्रों के विशेषण तथा लक्षण

शिवजी के श्राप से हुआ पांडवों का पुनर्जन्म

शिव वैसे तो भोले भंडारी माने गए हैं, लेकिन जब क्रोधित हो जाए तो श्राप भी दे देते हैं। ऐसे ही एक प्रसंग आता है जिसमें पांडवों को भी पुनर्जन्म का श्राप दे दिया था। महाभारत युद्ध के पश्चात पांडवों ने 36 सालों तक हस्तिनापुर में राज किया। इसके बाद पांडवों ने द्रौपदी और एक कुत्ते के साथ अपनी अंतिम यात्रा के रूप में स्वर्ग की सीढिय़ां चढऩा शुरू किया। इस दौरान धीरे-धीरे सभी युधिष्ठिर को छोड़कर हर किसी का निधन हो गया। युधिष्ठर  कुत्ते के साथ हिमालय के पार स्वर्ग के दरवाजे पर पहुंच सके। अश्वस्थामा से प्रसन्न थे भगवान शिव   भविष्यपुराण के मुताबिक, महाभारत युद्ध के दौरान आधी रात के समय अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्य ये तीनों पांडवों के शिविर के पास गए और उन्होंने मन ही मन भगवान शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। इस पर भगवान शिव ने उन्हें पांडवों के शिविर में प्रवेश करने की आज्ञा दे दी। जिसके बाद अश्वत्थामा ने पांडवों के शिविर में घुसकर शिवजी से प्राप्त तलवार से पांडवों के सभी पुत्रों का वध कर दिया और वहां से चले गए। भगवान शिव ने दिया था श्राप पांडवों को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने ब

ग्रह और रोग

आज की अस्त-व्यस्त भरी जीवनशैली में बीमारी का होना आम बात हो चली है। बीमारी के लक्षण छोटी उम्र से लेकर बड़े-बुजुर्गों तक देखे जा सकते हैं, जिससे शरीर में बीमारियां घर करने लगती हैं। इसके चलते दवा और डॉक्टरों की ओर भागमभाग बनी रहती है। कारण कुछ भी हो सकते हैं, लेकिन ज्योतिष की दृष्टि से देखा जाए तो इसके लिए ग्रह भी एक कारण हो सकते हैं। इसलिए कोई भी बीमारी होने पर किस ग्रह का प्रभाव होता है ये जान लेना भी अति आवश्यक होता है, जिससे बीमारी दूर भगाने में सहायता मिलती है। क्योंकि ग्रहों का रोग कारकत्व एवं उनका शरीर के विभिन्न अंगों पर प्रभाव प्रत्येक ग्रह में विभिन्न रोगों को उत्पादन करने वाले निहित गुण होते हैं। कौन सा ग्रह किस रोग के लिए जिम्मेदार है या यह कहें किस रोग का कारक है। इस बात को जानना आवश्यक है ताकि किसी व्यक्ति को कौन सी बीमारी होने की संभावना है ये पता लगाया जा सके और उसका उचित उपचार किया जा सके। क्योंकि सूर्य आंखों, चंद्रमा मन, मंगल रक्त संचार, बुध हृदय, बृहस्पति बुद्धि, शुक्र प्रत्येक रस तथा शनि, राहू और केतु उदर का स्वामी है। जिस वजह से इनका हमारे शरीर पर हर तरह का प्रभाव ह

38. वेद : अपौरुषेय

लगातार......... वेद के मन्त्र विभाग को संहिता भी कहते हैं। संहितापरक विवेचन को आरण्यक एवं संहितापरक भाष्य को ब्राह्मणग्रन्थ कहते हैं। वेदों के ब्राह्मणविभाग में आरण्यक और उपनिषद- का भी समावेश है। ब्राह्मणविभाग में आरण्यक और उपनिषद- का भी समावेश है। ब्राह्मणग्रन्थों की संख्या 13 है, जैसे ऋग्वेद के 2, यजुर्वेद के 2, सामवेद के 8 और अथर्ववेद के 1। मुख्य ब्राह्मणग्रन्थ पाँच हैं- ऐतरेय ब्राह्मण, तैत्तिरीय ब्राह्मण, तलवकार ब्राह्मण,  शतपथ ब्राह्मण और ताण्डय ब्राह्मण। उपनिषदों की संख्या वैसे तो 108 हैं, परंतु मुख्य 12 माने गये हैं, जैसे- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य,  बृहदारण्यक, कौषीतकि और श्वेताश्वतर। वेद पौरुषेय (मानवनिर्मित) है या अपौरुषेय (ईश्वरप्रणीत)। वेद का स्वरूप क्या है? इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न का स्पष्ट उत्तर ऋग्वेद में इस प्रकार है-वेद परमेश्वर के मुख से निकला हुआ परावाक है, वह अनादि एवं नित्य कहा गया है। वह अपौरुषेय ही है। इस विषय में मनुस्मृति कहती है कि अति प्राचीन काल के ऋषियों ने उत्कट तपस्या द्वारा अपने तप:पूत हृदय में परावाक वेदवाड

फाल्गुन में करें चन्द्र देव की उपासना

हिंदू पंचांग का आखिरी मास फाल्गुन चल रहा है। वैसे तो शास्त्रों में सभी मास की अपनी-अपनी विशेषता और गुण होते हैं। माघ मास की समाप्ति के पश्चात फाल्गुन की शुरुआत हो गई है। यह पूरा महीना चंद्र देव की आराधना के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है, क्योंकि इस माह को चंद्रमा का जन्म माह माना जाता है। इस माह की समाप्ति 21 मार्च 2019 गुरुवार को होगी। हिंदू धर्म के अनेक देवताओं में से एक हैं चंद्र देवता। चंद्र के देवता भगवान शिव हैं। शिव जी ने उन्हें अपने सिर पर धारण कर रखा है। चंद्रमा का गोत्र अत्रि और दिशा वायव्य है। चंद्र का दिन सोमवार है और उन्हें जल तत्व का देव भी कहा जाता है। चंद्रमा का जन्म फाल्गुन मास में होने के कारण इस महीने चंद्रमा की उपासना करने का विशेष महत्व है। इस पूरे महीने भर में चंद्रदेव के साथ-साथ भोलेनाथ, भगवान श्री कृष्ण की उपासना विशेष फलदायी होती है। ज्योतिष शास्त्र इसके संबंध में कहता है कि चंद्रमा का आकर्षण पृथ्वी पर भूकंप, समुद्री आंधियां, तूफानी हवाएं, अतिवर्षा, भूस्खलन आदि लाता है। रात को चमकता पूरा चांद मानव सहित जीव-जंतुओं पर भी गहरा असर डालता है। शास्त्रों के अनुसार '

महाशिवरात्रि 2019 : करें व्रत और पूजा

महाशिवरात्रि पर सभी को व्रत-उपवास करना चाहिए, जिससे भोलेनाथ प्रसन्न होकर हर बाधा हर लेते हैं। महाशिवरात्रि पर पुरुष, स्त्री, कन्या सभी को व्रत का विधान शास्त्रों में कहा गया है। देवों के देव महादेव को खुश करने का सबसे बड़ा दिन यानी महाशिवरात्रि आगामी चार मार्च को है। महाशिवरात्रि की पूजा का बड़ा महत्व है। इस दिन अगर कोई पूरे विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करे तो उसके जीवन में सुख-समृद्धि आती है और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही ऐसा कहा गया है कि अगर महाशिवरात्रि का व्रत कोई पुरुष करें तो उसे धन-दौलत, यश की प्राप्ति होती है, साथ ही अगर कोई महिला इस व्रत को करें तो उसे सुख-सौभाग्य एवं संतान की प्राप्ति होती है। इसके अलावा अगर कोई कुंवारी कन्या इस व्रत को करती है तो सुन्दर एवं सुयोग्य पति पाने की उसकी कामना पूर्ण होती है। भगवान शंकर की पूजा के समय शुद्ध आसन पर बैठकर पहले आचमन करें। यज्ञोपवित धारण कर शरीर शुद्ध करें। तत्पश्चात आसन की शुद्धि करें। पूजन-सामग्री को यथास्थान रखकर रक्षादीप प्रज्ज्वलित कर लें। अब स्वस्ति

37. वेद : धर्मग्रंथ

लगातार......... वेद हिन्दू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई। ऐसी मान्यता है कि इनके मन्त्रों को परमेश्वर ने प्राचीन ऋषियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था। इसलिए वेदों को श्रुति भी कहा जाता है। वेद प्राचीन भारत के वैदिक काल की वाचिक परम्परा की अनुपम कृति है जो पीढ़ी दर पीढ़ी पिछले चार-पाँच हजार वर्षों से चली आ रही है। वेद ही हिन्दू धर्म के सर्वोच्च और सर्वोपरि धर्मग्रन्थ हैं। वेद के असल मन्त्र भाग को संहिता कहते हैं। सनातन धर्म एवं भारतीय संस्कृति का मूल आधार स्तम्भ विश्व का अति प्राचीन और सर्वप्रथम वाड्मय वेद माना गया है। मानव जाति के लौकिक (सांसारिक) तथा पारमार्थिक अभ्युदय-हेतु प्राकट्य होने से वेद को अनादि एवं नित्य कहा गया है। अति प्राचीनकालीन महा तपा, पुण्यपुञ्ज ऋषियों के पवित्रतम अन्त:करण में वेद के दर्शन हुए थे, अत: उसका वेद नाम प्राप्त हुआ। ब्रह्म का स्वरूप सत-चित-आनन्द होने से ब्रह्म को वेद का पर्यायवाची शब्द कहा गया है। इसीलिये वेद लौकिक एवं अलौकिक ज्ञान का साधन है। तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये- तात्पर्य यह कि कल्प के प्रारम्भ में आदि कव

महाशिवरात्रि 2019 : महासंयोग पर पाएं मनोवांछित फल

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व ग्रह-नक्षत्रों के तो विशेष संयोग बन ही रहे हैं साथ ही भोलेनाथ का वार सोमवार भी इसी दिन होने से इस बार की शिवरात्रि महासंयोग वाली मानी जा रही है। इस महासंयोग पर कोई भी साधक भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए थोड़े से प्रयासों से ज्यादा फल प्राप्ति का पुण्य लाभ कमा सकता है। वैसे भी शिव जी को जल्दी प्रसन्न होने वाले भगवान के रूप में जाना जाता है। ऐसे में शिव जी के शिव लिंग पर पूर्ण श्रद्धा भाव से पूजा-अर्चना करने पर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करना बड़ा ही आसान माना जा रहा है। वैसे अलग-अलग समस्याओं के लिए अलग-अलग तरीके से शिवलिंग पर की गई पूजा का फल उसी स्वरूप में परिलक्षित होता है। शिव भक्त भलीभांति परिचित ही है कि पूजा में शिवलिंग का बहुत खास महत्व होता है। लेकिन महाशिवरात्रि के खास पर्व पर इस पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है। माना जाता है इस दिन जो भक्त पूरी श्रद्धा के साथ शिवलिंग पूजा करता है उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। पूजन के साथ-साथ इस दिन शिवलिंग पर विशेष चीजें चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और जातक को मनोवांछित फल देते हैं। श

36. वेद : सफलता के अचूक मंत्र

लगातार........ आज के आर्थिक युग में हर कोई सफल होना चाहता है, लेकिन भागदौड़ के पश्चात भी विफलता ही हाथ मिलती है। कर्म के साथ आध्यात्मिक का भी साथ ले ले तो सफलता से कोई वंचित नहीं कर सकता। शास्त्रों में कर्म, काल, आत्मा, स्वास्थ्य आदि मानव जीवन से जुड़े लगभग हर पहलू को बेहतर बनाने के रहस्य बताए गए हैं। वेद और पुराण जहां जीवन जीने के आदर्श तरीके बताते हैं, वहीं इसे आसान बनाने के मंत्र भी इन्हीं में छिपे हैं। वेद-पुराणों में ऐसे कई रहस्यमयी मंत्र हैं जो जीवन में आश्चर्यजनक बदलाव ला सकते हैं। वास्तव में ये रहस्य वो मार्ग हैं जो आपको जीवन में सुख,संपत्ति,समृद्धि और शांति पाने की ओर लगातार निर्बाधित रूप से आगे बढ़ाते हैं। गीता- एक ऐसा वेद है जिसमें जीवन का सार छिपा है। भगवान श्रीकृष्ण के बातये भक्ति और कर्म के मार्ग का अनुसरण करने पर मनुष्य एक अलग ही कोटि हासिल करता है। कहा जाता है कि गीता में जीवन की सभी समस्याओं का समाधान है। इसलिए जीवन में कभी भी अगर  खुद को विचलित या संकटों में घिरा महसूस करें, तो गीता का पाठ करें। यह अवश्य ही आपको सही और सटीक मार्ग बताएगा। योग- अध्यात्म और स्वास्थ्य क

महाशिवरात्रि : भगवान शिव ने बताया मानव कल्याण का मार्ग

भगवान शिव ने कई अवसरों पर कभी माता पार्वती को तथा कभी ऋषि-मुनियों को मानव जीवन से जुड़े कई रहस्य बताए थे। भगवान शिव ने जो पाठ पढ़ाए, वे मानव जीवन, परिवार, और शादीशुदा जिंदगी के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। सदियों पूर्व बताए कल्याण के मार्ग मानव जीवन के लिए आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने पुराने काल में रहते थे। भगवान शिव के चमत्कारिक राज जीवन में अपनाए जाएं तो जिंदगी की दशा और दिशा बदल सकती है। भगवान शिव ने समय-समय पर बताया- * शिव ना प्रकाश है और ना ही अंधकार। वह शून्य भी है और पदार्थ भी। वह समस्त ब्रह्माण्ड हैं। वह शक्ति के स्त्रोत हैं। वह शक्ति का हिस्सा है और खुद ही शक्ति भी हैं। शिव पुराण के अनुसार, शिव-शक्ति का संयोग ही परमात्मा है। * शिव पुराण के मुताबिक, पार्वती मां सती का ही अवतार हैं। राजा हिमावत और रानी मैना की पुत्री पार्वती बचपन से ही शिवभक्त थीं। पार्वती के जन्म पर नारद मुनि ने भविष्यवाणी की थी कि वह भगवान शिव से ही विवाह करेगी। बड़ी होने पर पार्वती की शिव के प्रति भक्ति बढ़ती ही गई। कई सालों की तपस्या और कई बाधाओं को पार करने के बाद शिव और पार्वती का विवाह हुआ। * एक बार मा

महाशिवरात्रि 2019 : शिव महिम्न स्तोत्रम्

शिव महिम्न स्तोत्रम की महिमा अपरम्पार है। शिव भक्तों को महिम्न स्तोत्र सर्वाधिक प्रिय होता है। महाशिवरात्रि पर इस स्तोत्र के उच्चारण के साथ शिवलिंग पर अभिषेक विशेष फलदायी माना गया है। 40 छन्दों के इस स्तोत्र में शिव के दिव्य स्वरूप एवं उनकी सादगी का वर्णन है। स्तोत्र का सृजन एक अनोखे असाधारण परिपेक्ष में किया गया था तथा शिव को प्रसन्न कर के उनसे क्षमा प्राप्ति की गई थी। कथा- एक समय में चित्ररथ नाम का राजा था। वो परं शिव भक्त था। उसने एक अद्भुत सुंदर बाग का निर्माण करवाया। जिसमें विभिन्न प्रकार के पुष्प लगे थे। प्रत्येक दिन राजा उन पुष्पों से शिव जी की पूजा करते थे। फिर एक दिन पुष्पदंत नामक के गन्धर्व उस राजा के उद्यान की तरफ से जा रहा था। उद्यान की सुंदरता ने उसे आकृष्ट कर लिया। मोहित पुष्पदंत ने बाग के पुष्पों को चुरा लिया। अगले दिन चित्ररथ को पूजा हेतु पुष्प प्राप्त नहीं हुए। बाग के सौंदर्य से मुग्ध पुष्पदंत प्रत्येक दिन पुष्प की चोरी करने लगा। इस रहस्य को सुलझाने के राजा के प्रत्येक प्रयास विफल रहे। पुष्पदंत अपनी दिव्य शक्तियों के कारण अदृश्य बना रहा। राजा चित्ररथ ने एक अनोखा समाधा

महाशिवरात्रि 2019 : शिव पंचाक्षर स्तोत्र

शिव पंचाक्षर स्तोत्र की रचना आदि शंकराचार्य ने की थी। नम: शिवाय के पहले पांचों अक्षरों न, म, शि, वा और य से एक-एक अक्षर के श्लोक बनाए। इस प्रकार पांच श्लोकों की रचना की गई है। इसके जरिए शंकराचार्य ने शिव की महिमा का बखान किया है, जो शिवस्वरूप है। यह मंत्र सिद्ध मंत्र की श्रेणी में आता है, जिसके उच्चारण मात्र से आनन्दानुभूति का अनुभव होता है। मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि पर इस मंत्र से की गई पूजा-अर्चना से समस्त संकटों से मुक्ति मिलती है और सुख-समृद्धि का वास बनता है। शिव पंचाक्षर स्तोत्र न- नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय। नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै न काराय नम: शिवाय:॥ म- मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय। मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै म काराय नम: शिवाय:॥ शि- शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय। श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥ वा- वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय। चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नम: शिवाय:॥ य- यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय। दिव्याय देवाय दिगंबरा

35. वेद : निंदा एक बुराई

लगातार.......... ऋग्वेद में दिए गए श्लोकों से जहां शिक्षा, स्वास्थ्य और ज्ञान-विज्ञान की जानकारी मिलती है, वहीं निंदा के बारे में भी ऐसे कई श्लोकों का वर्णन मिलता है, जिनके दूरगामी परिणाम अन्तत: बुराई की ओर ले जाते हैं। अत: निंदा जैसे भाव मन में भी नहीं आने देना चाहिए। ऋग्वेद में दी गई कथा और श्लोक- निन्दावादरतो न स्यात् परेषां नैव तस्कर:। निन्दावादाद्धि गोहर्ता शक्रेणाभिहतो वल:।। कथा- बलासुर नाम का एक राक्षस था। वह हर समय देवताओं की निंदा करता और उनका अपमान करता था। एक बार देवताओं को अपमानित करने के लिए उसने देवलोक की सारी गायों का अपरहण करके उन्हें एक गुफा में छिपा दिया। जब भगवान इन्द्र को इस हरकत के बारे में पता चला तो वे अपनी देवसेना लेकर गायों को छुड़वाने के लिए गए। उस गुफा में पहुंच कर भगवान इन्द्र ने सभी गायों को बलासुर की कैद से मुक्त किया और बलासुर का वध कर दिया। इसलिए मनुष्य को कभी भी दूसरों की निंदा का भाव अपने मन में नहीं आने देना चाहिए। दूसरों की निंदा करने का स्वभाव बना था शिशुपाल की मृत्यु का कारण- शिशुपाल भगवान कृष्ण की बुआ का पुत्र था। शिशुपाल हमेशा से ही भगवान कृष्ण औ

26 फरवरी, 2019 : मां सीता का जन्मदिवस

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को माता सीता का जन्मदिन मनाया जाता है। ये तिथि इस वर्ष 26 फरवरी मंगलवार को पड़ रही है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन मिथिला नरेश राजा जनक और रानी सुनयना को सीता नाम की कन्या प्राप्त हुई थी। इस तिथि को जानकी जयंती या सीता अष्टमी के नाम से बुलाते हैं। बाद में यही देवी सीता अयोध्या के राजा दशरथ के बड़े पुत्र और विष्णु जी के अवतार श्री राम की पत्नी बनीं। राम से विवाह के बाद सीता जी ने उनके और देवर लक्ष्मण के साथ 14 साल का वनवास भी भोगा था। इसी अवधि में लंका के राजा रावण ने उनका अपहरण भी कर लिया था। वनवास से वापसी के बाद भी वह हमेशा अयोध्या में नहीं रह पाई थीं। उनको पति राम ने त्याग दिया और अपने पुत्रों के साथ उन्हें वाल्मीकि आश्रम में ही अपना जीवन व्यतीत करना पड़ा और अंत में धरती में समा गर्इं। सीता जी के जन्म की कथा पौराणिक कथाओं और रामायण के अनुसार सीता जी का जन्म मिथिला के एक खेत में हुआ था। कहते हैं एक बार भयानक अकाल को दूर करने के लिए किए गए एक यज्ञ के अनुष्ठान के लिए राजा जनक को खेत जोतने के लिए कहा गया। उसी खेत में हल चलाते हुए एक क्यारी बनाते सम

महाशिवरात्रि 2019 : धन लाभ के मिलेंगे अवसर

हिन्दू धर्म के अनुसार जो भी व्यक्ति शिव जी की पूजा-आराधना करता है उस व्यक्ति को अपनी मृत्यु का भी कोई डर नहीं होता। ऐसे व्यक्ति मृत्यु के मुँह से भी बच कर सरलता से वापिस आ जाता है। भगवान् शिव जी आराधना में बोला जाता है शिव चालीसा का मन्त्र ऊँ नम: शिवाय भगवान् शिव की अराधना में सबसे ज्यादा उपयोग किये जाने वाला और सिद्ध मन्त्र है। भगवान् शिव को खुश करने का शिव चालीसा  एक सरल और आसान उपाय है। जिसको पढऩे से आपको आनंद की अनुभूति होती है। नित्य प्रति की पूजा-उपासना में शिव चालीसा का पाठ किया जाए तो जीवन में सुख-समृद्धि और धन लाभ के अवसर मिलते हैं। हिन्दू मान्यता में भगवान की प्रार्थना को ही सरल शब्दों में चालीसा कहा गया है। चालीसा का पाठ करने से किसी भी व्यक्ति के जीवन में बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ता है। इसे चालीसा इसलिए कहा जाता है क्योकि इसमें चालीस लाइन होती है। सरल भाषा में होता है इसे पढऩा बहुत आसान होता है। सबसे अच्छी बात ये है कि इसे पढऩे के लिए किसी नियम का पालन काने की जररूत नहीं होती। शिव चालीसा- जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल ना

34. वेद : पाक शिक्षा

लगातार........... महिलाओं के लिए वेद ने जिन शिक्षाओं को आवश्यक माना है, उनमें पाक शिक्षा प्रमुख है। वास्तव में स्त्री शिक्षा के वैदिक आधार में पाक शिक्षा को अत्यावश्यक माना गया है। एक उत्तम गृहिणी अथवा एक उत्तम माता बनने के लिए महिलाओं के लिए पाक विद्या का उत्तम अभ्यास होना ही आधार होता है। इसके बिना वह न तो सफल गृहिणी ही बन पाती है और न ही सफल व उत्तम माता ही बन सकती है। इसलिए इस विद्या को जानने के लिए हमें वेद की शरण में जाना पड़ता है। वेद में अनेक मन्त्र स्त्रियों की शिक्षा विशेष रूप में पाक शिक्षा पर प्रकाश डालते हैं। सिनीवाली सुकपर्दा सुकुरीरा स्वोपाशा। सा तुभ्यमदिते मह्योखां दधातु हस्तयो।। यजुर्वेद 11.56 77 यह चार मन्त्र यजुर्वेद में आये हैं। इन मन्त्रों में स्त्रियों की पाक विद्या सम्बन्धी शिक्षा पर विषद प्रकाश डाला गया है। इन चारों मंत्रों में उखा शब्द अनेक बार आया हुआ मिलता है। उखा सहबद का अर्थ खोजने पर ज्ञात होता है कि उखा का अर्थ है वह वास्तु जिस में कुछ पकाया जाता है, जिसे हम खाना पकाने की बटलोई के नाम से भी जनाते हैं। अत: उखा का अर्थ हुआ खाना पकाने की बटलोई। यजुर्वेद के ह

22 फरवरी, 2019 संकष्टी चतुर्थी

हिन्दु कैलेण्डर में प्रत्येक चन्द्र मास में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर महीने में होता है। भगवान गणेश के भक्त संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से चन्द्रोदय तक उपवास रखते हैं। संकट से मुक्ति मिलने को संकष्टी कहते हैं। भगवान गणेश जो ज्ञान के क्षेत्र में सर्वोच्च हैं, सभी तरह के विघ्न हरने के लिए पूजे जाते हैं। इसीलिए यह माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से सभी तरह के विघ्नों से मुक्ति मिल जाती है। श्रद्धालु लोग चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद उपवास को तोड़ते हैं। संकष्टी चतुर्थी के लिए उपवास का दिन चन्द्रोदय पर निर्धारित होता है। जिस दिन चतुर्थी तिथि के दौरान चन्द्र उदय होता है उस दिन ही संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। इसीलिए कभी कभी संकष्टी चतुर्थी का व्रत, चतुर्थी तिथि से एक दिन पूर्व, तृतीया तिथि के दिन पड़ जाता है। गणेश जी के महत्वपूर्ण पर्वों में एक है संकष्टी गणेश चतुर्थी। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता क

महाशिव रात्रि : शिव तांडव स्तोत्र

देवों के देव महादेव की उपासना इंसान को जीवन-मृत्यु के काल चक्र से मुक्ति दिला देती है। शिव की अराधना में तांडव स्तोत्र का पाठ करने से भोलेनाथ का आशीर्वाद आजीवन संकट से बचाने के लिए कवच का काम करता है। शिव ताण्डव स्तोत्र (शिवताण्डवस्तोत्रम्) परम शिवभक्त लंकापति रावण द्वारा रचा गया स्तोत्र है। भगवान शंकर को खुश करने और उनकी कृपा पाने के लिए यह स्त्रोत अचूक है- जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्। डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु न: शिवो शिवम्॥1॥ जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि। धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रति: प्रतिक्षणं ममं ॥2॥ धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे। कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥ जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे। मदांधसिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूतभर्तरि ॥4॥ सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभू:। भुजंगराजमालयानिब

नींबू-मिर्च लगाने के फायदे

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार आज भी कुछ ऐसी परम्पराएं प्रचलित हैं, जिन्हें आज की भागमभाग की जिंदगी में अपनाने से लोग कतराते हैं। इन परम्पराओं का केवल धार्मिक रूप से ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्व होता है। ऐसी ही एक परम्परा सदियों से चली आ रही घर के दरवाजे या दुकान के बाहर नींबू मिर्च लगाना। धार्मिक मान्यता के अनुसार - दरवाजे पर नींबू-मिर्च लगाने से जहां वास्तु दोष दूर होता है वहीं स्वच्छ वातावरण मिलता है। मान्यता के अनुसार इससे नजर से बचा जा सकता है तो साथ ही कीड़े-मकोड़ों को दूर रखा जा सकता है। घर के बाहर नींबू-मिर्च लटकाना घर को और परिवार को नकारात्मक शक्तियों से बचाता है। नींबू मिर्च का टोटका केवल शनिवार के दिन किया जाता है। किसी भी शनिवार को प्रात:काल नहाकर एक नींबू और सात मिर्च को काले धागे से बांधकर घर या दूकान के दरवाजे पर लटकाया जाता है। हरेक सप्ताह इस नींबू मिर्च को इसी तरह बदलना होता है। द रवाजे पर नींबू-मिर्च लगाने के फायदे- घर में वास्तु दोष को दूर करने के लिए नींबू-मिर्च बहुत इस्तेमाल किया जाता है। माना जाता है, जिस घर में नींबू का पेड़ होता है वहां किसी

33. वेद : चिकित्सा विज्ञान

लगातार....... अथर्ववेद के 4.12. सूक्त में रोहिणी नामक औषधि का वर्णन है । यह औषधि तलवार आदि से कटी हुई हड्डियों को मांसपेशियों को, त्वचा को, नस-नाडिय़ों को, जोड़ सकती है और व्रण से बहते रुधिर को बंद कर सकती है। इसके अतिरिक्त इसी काण्ड के 17वें सूक्त में अपामार्ग औषधि का वर्णन है, यह औषधि अत्यधिक भूख लगने रूप रोग तथा अत्यधिक प्यास लगने रूपी रोग में काम आती है। अथर्व. 6.43. में दर्भ नामक औषधि का वर्णन है, यह औषधि क्रोधशील व्यक्ति के क्रोध को शमन करने में समर्थ है। अथर्व. 5.4. सूक्त में कुष्ठ औषधि का वर्णन है, जो कि प्राण और व्यान के कष्टों को शान्त करती है। पुत्रदा औषधि- अथर्ववेद 6.11. सूक्त में एक ऐसी औषधि का वर्णन है जिसके सेवन से उस स्त्री को पुत्र हो सकता है जिसकी पुत्रियाँ ही होती हों और पुत्र न होता हो। इस सूक्त में लिखा है कि शमी अर्थात् जंड (जांडी) नामक वृक्ष के ऊपर पीपल का वृक्ष उगा हुआ हो तो उस पीपल को औषधि रूप में खिलाने से उस स्त्री को पुत्र हो सकता है। सामान्यत: वृक्ष के फूल, पत्ते, छाल, और जड़े छाया में सुखा कर उसका बारीक चूर्ण बनाकर पानी या गौ के दूध के साथ सेवन कराया जाता

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम

इस स्तोत्र का जप जो भी व्यक्ति प्रतिदिन करता है उसे बारह ज्योतिर्लिंगों जैसे दर्शन करने के समान फल की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र नित्य-प्रतिदिन करने से कुछ दिनों में ही कंठस्थ याद भी हो जाता है। केवल यही एक स्तोत्र है जिसका जाप करने से व्यक्ति को शिव भगवान की कृपा तो प्राप्त होती ही है साथ ही अन्य सभी देवी देवताओ की कृपा भी प्राप्त होती है। साथ ही साथ मां लक्ष्मी की कृपा भी ऐसे भक्तों पर बनी रहती है। सुबह-शाम नियमपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करने से सात जन्मों के पापों से भी मुक्ति मिलती है। सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं ममलेश्वरम्म् ॥1॥ परल्यां वैजनाथं च डाकिनन्यां भीमशंकरम्। सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥2॥ वारणस्यां तु विश्वेशं त्रयम्बकं गौतमी तटे। हिमालये तु केदारं घुषमेशं च शिवालये ॥3॥ एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रात: पठेन्नर:। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरेण विनश्यति ॥4॥ इति द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति संपूर्णम् ॥ ये हैं बारह ज्योतिर्लिंग - 1. सौराष्ट्र में 'सोमनाथ', 2. श्रीशैल में 'मल्लिकार्जुन', 3. उज्जयिनी में 'महाक

महाशिवरात्रि 2019 : शिव के अवतार

ब्रह्मा, विष्णु और शिव में विष्णु और शिव के दर्जनों अवतारों के बारे में पुराणों में मिलता है। विष्णु के 24 अवतार हैं तो शिव के 28 अवतार। लेकिन उनमें भी जो प्रमुख हैं जैसे विष्णु के 10 अवतार और शिव के 10 अवतार। वेदों में शिव का नाम 'रुद्र' रूप में आया है। रुद्र का अर्थ होता है भयानक। रुद्र संहार के देवता और कल्याणकारी हैं। विद्वानों के मत से उक्त शिव के सभी प्रमुख अवतार व्यक्ति को सुख, समृद्धि, भोग, मोक्ष प्रदान करने वाले एवं व्यक्ति की रक्षा करने वाले हैं। 1. महाकाल- शिव के दस प्रमुख अवतारों में पहला अवतार महाकाल को माना जाता है। इस अवतार की शक्ति मां महाकाली मानी जाती हैं। उज्जैन में महाकाल नाम से ज्योतिर्र्लिंग विख्यात है। उज्जैन में ही गढ़कालिका क्षेत्र में मां कालिका का प्राचीन मंदिर है और महाकाली का मंदिर गुजरात के पावागढ़ में है। 2. तारा- शिव के रुद्रावतार में दूसरा अवतार तार (तारा) नाम से प्रसिद्ध है। इस अवतार की शक्ति तारादेवी मानी जाती हैं। पश्चिम बंगाल के वीरभूम में स्थित द्वारका नदी के पास महाश्मशान में स्थित है तारा पीठ। पूर्वी रेलवे के रामपुर हॉल्ट स्टेशन से 4 मी

32. वेद : चिकित्सा विज्ञान

लगातार........ जल चिकित्सा- वेद में अनेक स्थानों पर जल को एक गुणकारी औषध के रूप में वर्णित किया गया है । अथर्ववेद के 1.4. सूक्त में कहा गया है कि जालों में अमृत का निवास है। जिस प्रकार अमृत शारीरिक और मानसिक रोगों को दूर करके निरोगता, स्वास्थ्य, शान्ति और दीर्घ जीवन प्रदान करता है, उसी प्रकार शुद्ध जालों के सम्यक सेवन से भी ये सब लाभ प्राप्त होते हैं । भिषजां सुभिषक्तमा: (अथर्व. 6.24) में जलों को चिकित्सकों से भी बड़ा चिकित्सक बताया गया है और कहा गया है कि जलों के द्वारा हृदय के रोगों का और आँखों के रोगों का भी निवारण होता है तथा पैर के तलवे और पंजों के रोगों का भी शमन होता है। अथर्ववेद के 6.57 सूक्त में कहा गया है कि जल में वह सामथ्र्य है कि बाण आदि के द्वारा कट जाने से हुए घावों को भरने की शक्ति भी रखता है। (अथर्व. 19.2.5) मन्त्र में कहा गया है कि (आप:) जलों के द्वारा यक्ष्मा (टी.बी.) रोग की भी चिकित्सा की जा सकती है। सूर्य किरणों से चिकित्सा- वेद में सूर्य की किरणों से चिकित्सा करके पीलिया आदि रोगों के निवारण का उपदेश भी किया गया है। अथर्ववेद में कहा गया है कि सूर्य किरणों के सेवन

महाशिवरात्रि 2019 : शिव है दयालु

महाशिवरात्रि 4 मार्च, 2019 को मनाई जाएगी। शिव जिनका कोई आदि है न अन्त। शिव परम दयालु भी है। शिव यानि कल्याणकारी, शिव यानि बाबा भोलेनाथ, शिव यानि शिवशंकर, शिवशम्भू, शिवजी, नीलकंठ, रूद्र आदि। हिंदू देवी-देवताओं में भगवान शिव शंकर सबसे लोकप्रिय देवता हैं, वे देवों के देव महादेव हैं तो असुरों के राजा भी उनके उपासक रहे। आज भी दुनिया भर में हिंदू धर्म के मानने वालों के लिये भगवान शिव पूज्य हैं। शिव जी की नित्य प्रतिदिन आराधना सुख-समृद्धि और सभी विघ्नों से दूर करने वाली होती है, साथ ही विशेष मौकों पर की गई पूजा-उपासना से साधक मोक्ष तक को प्राप्त कर सकता है। इनकी लोकप्रियता का कारण है इनकी सरलता। इनकी पूजा आराधना की विधि बहुत सरल मानी जाती है। माना जाता है कि शिव को यदि सच्चे मन से याद कर लिया जाये तो शिव प्रसन्न हो जाते हैं। उनकी पूजा में भी ज्यादा ताम-झाम की जरुरत नहीं होती। ये केवल जलाभिषेक, बिल्वपत्रों को चढ़ाने और रात्रि भर इनका जागरण करने मात्र से मेहरबान हो जाते हैं। वैसे तो हर सप्ताह सोमवार का दिन भगवान शिव की आराधना का दिन माना जाता है। हर महीने में मासिक शिवरात्रि भी मनाई जाती है लेक

वसंत ऋतु का आगमन संदेश

वसंत ऋतु का आगमन हो चुका है। इस ऋतु में खान-पान और स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना हितकर होता है क्योंकि ऋतुराज वसंत शीत व उष्णता का संधिकाल है। इसमें शीत ऋतु का संचित कफ सूर्य की संतप्त किरणों से पिघलने लगता है, जिससे जठराग्नि मंद हो जाती है और सर्दी-खाँसी, उल्टी-दस्त आदि अनेक रोग उत्पन्न होने लगते हैं। अत: इस समय आहार-विहार की विशेष सावधानी रखनी चाहिए। आहार- अष्टांग हृदय ग्रंथ के अनसार इस ऋतु में देर से पचने वाले, शीतल पदार्थ, दिन में सोना, स्निग्ध अर्थात घी-तेल में बने तथा अम्ल व रसप्रधान पदार्थो का सेवन न करें क्योंकि ये सभी कफ वर्धक हैं। वसंत में मिठाई, सूखा मेवा, खट्टे-मीठे फल, दही, आईसक्रीम तथा गरिष्ठ भोजन का सेवन वर्जित है। इन दिनों में शीघ्र पचने वाले, अल्प तेल व घी में बने, तीखे, कड़वे, कसैले, उष्ण पदार्थों जैसे- लाई, मुरमुरे, जौ, भुने हुए चने, पुराना गेहूँ, चना, मूँग, अदरक, सौंठ, अजवायन, हल्दी, पीपरामूल, काली मिर्च, हींग, सूरन, सहजन की फली, करेला, मेथी, ताजी मूली, तिल का तेल, शहद, गौमूत्र आदि कफनाशक पदार्थों का सेवन करें। भरपेट भोजन ना करें। नमक का कम उपयोग तथा 15 दिनों में ए