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Showing posts from March, 2019

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नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में दो

महाशिवरात्रि : आरती से करें अमंगल दूर

महाशिवरात्रि पर शिव पूजा-आराधना के पश्चात शिव जी की आरती विधि पूर्वक करने से सारे अमंगल दूर होते हैं। भगवान शिव को जीवन का संचालक और संहारक माना गया है और कहा जाता है कि इन्हें प्रसन्न करना बहुत ही आसान है। अगर भक्त सच्चे मन से इनका नाम भी पुकार ले तो भोले भंडारी उसकी हर मनोकामना पूरी कर देते हैं। भगवान शिव को कोई रुद्र तो कोई भोलेनाथ के नाम से पुकारता है। भगवान शिव की पूजा में विशेष नियम नहीं होते और इनकी पूजा विधि के मंत्र भी बेहद आसान होते हैं। भगवान शिव की आराधना करते समय उनकी आरती का गान करने से पूजा संपन्न मानी जाती है। आरती से पूर्व इस मंत्र का करें उच्चारण- कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारं। सदा वसन्तं ह्रदयाविन्दे भंव भवानी सहितं नमामि॥ जय शिव ओंकारा हर ऊँ शिव ओंकारा। ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्र्धांगी धारा॥ फिर शिव जी की आरती- ऊँ जय शिव ओंकारा.... एकानन चतुरानन पंचांनन राजे। हंसासंन, गरुड़ाासन, वृषवाहन साजे॥ ऊँ जय शिव ओंकारा... दो भुज चारु चतुर्भज दस भुज अति सोहें। तीनों रुप निरखता त्रिभुवन जन मोहें॥ ऊँ जय शिव ओंकारा... अक्षमाला, बनमाला, रुण्डमालाधारी। चंदन, मृदमग

महाशिवरात्रि 2019 : उपायों से पाएं शिव कृपा

शिव जी का वार सोमवार, 04 मार्च को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन की गई शिव पूजा से पिछले समय से चली आ रही परेशानियां खत्म हो सकती हैं और धन लाभ भी मिल सकता है। इसके लिए शास्त्रों में महाशिवरात्रि वाले दिन पूजा-आराधना के साथ सरल उपाय भी बताये गए हैं। यदि कई भक्त इन 8 में से कोई 1 उपाय भी कर ले तो दिक्कत-परेशानियों से निजात पा सकता है। * महाशिवरात्रि पर रात में किसी शिव मंदिर में दीपक जलाएं। शिव पुराण के अनुसार कुबेर देव ने पूर्व जन्म में रात के समय शिवलिंग के पास रोशनी की थी इसी वजह से अगले जन्म में वे देवताओं के कोषाध्यक्ष बने। * महाशिवरात्रि पर छोटा सा पारद (पारा) शिवलिंग लेकर आएं और घर के मंदिर में इसे स्थापित करें। शिवरात्रि से शुरू करके रोज इसकी पूजा करें। इस उपाय से धर की दरिद्रता दुर होती है और लक्ष्मी कृपा बनी रहती है। * यदि आप चाहें तो शिवरात्रि पर स्फटिक के शिवलिंग की भी पूजा कर सकते हैं। घर के मंदिर में जल, दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर से इस शिवलिंग को स्नान कराएं। मंत्र- ऊँ नम: शिवाय।  मंत्र जप कम से कम 108 बार करें। * हनुमानजी भगवान शिव के ही अंशावतार माने गए हैं।

महाशिवरात्रि : पंचमुख भगवान श्री सदाशिव

मान्यता है कि भगवान शिव संसार के समस्त मंगल का मूल हैं। यजुर्वेद में उनकी स्तुति रुद्री के मंत्र से इस प्रकार की गई है- ''नम: शंभवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च॥'' इस वैदिक ऋचा में परमात्मा को शिव, शंभु और शंकर नाम से नमन किया गया है। शिव शब्द बहुत छोटा है, पर इसके अर्थ इसे गंभीर बना देते हैं। शिव का व्यावहारिक अर्थ है कल्याणकारी। शंभु का भावार्थ है मंगलदायक। शंकर का तात्पर्य है आनंद का स्रोत। यद्यपि ये तीनों नाम भले ही भिन्न हों, लेकिन तीनों का संकेत- कल्याणकारी, मंगलदायक, आनंदघन परमात्मा की ओर ही है। वे देवाधिदेव महादेव, सबके अधिपति महेश्वर सदाशिव ही हैं। परंतु यह ध्यान रहे कि भगवान शिव त्रिदेवों के अंतर्गत रुद्र (रौद्र रूप वाले)- नहीं हैं। भगवान शिव की इच्छा से प्रकट रजोगुण रूप धारण करने वाले ब्रह्मा, सत्वगुणरूप विष्णु एवं तमोगुण रूप रुद्र है, जो क्रमश: सृजन, रक्षण (पालन) तथा संहार का कार्य करते हैं। ये तीनों वस्तुत: सदाशिव की ही अभिव्यक्ति हंै, इसलिए ये शिव से पृथक भी नहीं हैं। ब्रह्मा-विष्णु-महेश तात्विक दृष्टि से एक ही हंै। इनमें भेद

महाशिवरात्रि 2019 : शिव पुराण कथा के लाभ

पुराने जमाने में जहां धार्मिक आस्थाएं बहुलता से मिलती थी, इसके उलट आज के समय में व्यक्ति इनसे दूरियां करने लगा है। क्योंकि आज की भौतिक चकाचौंध की जिंदगी में पृथ्वी पर हर व्यक्ति किसी भी काम को करने से पहले उसके लाभ और हानि के बारे में सोचता है। हर व्यक्ति कार्य को करने से प्राप्त लक्ष्य के बारे में सोचकर तभी कार्य करता है। शिवपुराण के आरंभ में पुराण विशेष की महिमा और उसके पढऩे की विधि के बारे में जानकारी दी गयी है। पहले घरों में वेद, गीता और पुराणों को पढ़ा जाता था, जिनका अप्रत्यक्ष लाभ घर-परिवार में खुशहाली के रूप में परिलक्षित भी होता था। बताते हैं शिव पुराण को पढऩे से होने वाले लाभों के बारे में। * जो व्यक्ति शिवपुराण को पढ़ता है उससे भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। * अगर किसी व्यक्ति से अनजाने या जान-बूझकर कोई पाप हो जाए तो तो अगर वो शिवपुराण को पढऩे लगता है तो उसका घोर से घोर पाप से छुटकारा मिल जाता है। * जो व्यक्ति शिवपुराण को पढऩे लगते है उनके मृत्यु के बाद शिव के गण लेने आते हैं। * सावन में शिव पुराण का पाठ करने से उसका फल बहुत ही सुखदायी होता है। शिव पुराण का सम्बन्ध

महाशिवरात्रि : भाव के भूखे शिव

रुद्र यानि शिव। महाशिवरात्रि जैसे मौकों पर शिवलिंग पर विशेष प्रकार के अभिषेक किये जाते हैं, जिनसे मनोवांछित फल की प्राप्ति की जा सकती है। ऐसे ही रुद्राभिषेक का ऐसे मौके पर धर्मग्रंथों में विशेष महात्म्य बताया गया है। धरती पर शिवलिंग को शिव का साक्षात स्वरूप माना जाता है तभी तो शिवलिंग के दर्शन को स्वयं महादेव का दर्शन माना जाता है और इसी मान्यता के चलते भक्त शिवलिंग को मंदिरों में और घरों में स्थापित कर उसकी पूजा अर्चना करते हैं। यूं तो भोले भंडारी एक छोटी सी पूजा से प्रसन्न हो जाते हैं, लेकिन शिव आराधना की सबसे महत्वपूर्ण पूजा विधि रूद्राभिषेक को माना जाता है। रूद्राभिषेक- क्योंकि मान्यता है कि जल की धारा भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है और उसी से हुई है रूद्रभिषेक की उत्पत्ति। रूद्र यानी भगवान शिव और अभिषेक का अर्थ होता है स्नान करना। शुद्ध जल या फिर गंगाजल से महादेव के अभिषेक की विधि सदियों पुरानी है मान्यता है कि भोलभंडारी भाव के भूखे हैं। वह जल के स्पर्श मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं। वो पूजा विधि जिससे भक्तों को उनका वरदान ही नहीं मिलता बल्कि हर दर्द हर तकलीफ से छुटकारा भी मिल जाता

42. वेद : वैदिक काण्ड

लगातार..... वेद में धार्मिक क्रियाओं को सम्पन्न करने के लिए अलग-अलग भागों में विभक्त किया गया है। ऐसे ही वेद में वैदिक काण्ड को तीन भागों में विभक्त किया गया है। सम्पूर्ण वैदिक धर्म तीन काण्डों में विभक्त माना जाता है- 1. ज्ञान काण्ड 2. उपासना काण्ड और 3. कर्म काण्ड। कर्मकाण्ड का मूलत: सम्बन्ध मानव के सभी प्रकार के कर्मों से है, जिनमें धार्मिक क्रियाएँ भी सम्मिलित हैं। स्थूल रूप से धार्मिक क्रियाओं को ही कर्मकाण्ड कहते हैं, जिससे पौरोहित्य का घना सम्बन्ध है। कर्मकाण्ड के भी दो प्रकार हैं- इष्ट और पूर्त। यज्ञ-यागादि, अदृष्ट और अपूर्व के ऊपर आधारित कर्मों को इष्ट कहते हैं। लोक-हितकारी दृष्ट फल वाले कर्मों को पूर्त कहते हैं। इस प्रकार कर्मकाण्ड के अंतर्गत लोक-परलोक-हितकारी सभी कर्मों का समावेश है। कर्मकाण्ड वेदों के सभी भाष्यकार इस बात से सहमत हैं कि चारों वेदों में प्रधानत: तीन विषयों; कर्मकाण्ड, ज्ञान- काण्ड एवं उपासनाकाण्ड का प्रतिपादन है। कर्मकाण्ड अर्थात् यज्ञकर्म वह है जिससे यजमान को इस लोक में अभीष्ट फल की प्राप्ति हो और मरने पर यथेष्ट सुख मिले। यजुर्वेद के प्रथम से उनतालीसवें अध्