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Showing posts from June, 2019

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नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में दो

गुरुवार को करें छोटे उपाय-पाएं बड़ी समस्याओं का समाधान

भगवान बृहस्पति सभी देवताओं के गुरू हैं, कैसी भी समस्या हो ये सभी का समाधान करते हैं। अगर आपकी कुंडली में गुरु ग्रह का दोष है जिसके कारण आपकी शादी और भाग्य जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और यदि आपके अनूकुल स्थितियां होते हुए भी आपके विवाह में समस्या उत्पन्न हो रही है तो गुरुवार का दिन आपके लिए शुभ हो सकता है। गुरु दोष के शान्ति के लिए गुरुवार को कुछ उपाय करें जिससे आपको अपने काम में सफलता जरुर मिलेगी, क्योंकि गुरुवार का दिन देवताओं के गुरु ब्रहस्पति देव का होता है। गुरु आपके वैवाहिक और भाग्य का कारक ग्रह है। गुरुवार के दिन ये उपाय करने से गुरु ग्रह के दोष दूर हो जाएगे साथ ही आपको धन-धान की प्राप्ति होगी। गुरूवार को भगवान बृहस्पति देव की पूजा का विधान माना गया है। इस दिन पूजा करने से धन, विद्या, पुत्र तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। परिवार में सुख और शांति का समावेश होता है। ज्योतिषों का मानना है कि जिन जातकों के विवाह में बाधाएं उत्पन्न हो रही हो उन्हें गुरूवार का व्रत करना चाहिए। इस दिन बृहस्पतेश्वर महादेव जी की भी पूजा होती है। दिन में एक समय ही भोजन करें। पीले वस्त्र धा

बृहस्पतिवार व्रत पूजन विधि

गुरुवार हो या कोई अन्य व्रत, सभी व्रत का पूजन विधि-विधान के अनुसार ही किया जाना चाहिए। अन्य व्रत की ही भांति बृहस्पतिवार व्रत के लिए भी विशेष विधि अपनायी जाती है। कहा जाता है विधिवत पूजन के बाद ही व्रत सम्पूर्ण माना जाता है। गुरुवार के व्रत को आप 7, 11, 21, 40, 48, 51, और 108 दिन या पूरी जिंदगी के लिए भी रख सकते है। लेकिन हां, व्रत करने की अवधि अपनी सामथ्र्य अनुसार ही तय करनी चाहिए। इस दिन सुबह जल्दी जागकर स्नान आदि से निवृत होकर घर की साफ-सफाई कर लें। इसके बाद बृहस्पति यंत्र की स्थापना करके उसका पूजन करें। पूजन के लिए पीली वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए पीले फूल, चने की दाल, पीली मिठाई, पीले चावल, और हल्दी का प्रयोग उचित रहेगा। व्रत के दौरान पूरे दिन उपवास रखा जाता है। आप चाहे तो दिन में एक बार भोजन कर सकते है। भोजन करने के लिये चने की दाल या पीले रंग के खाद्य पदार्थो का चयन करें। लेकिन एक बात याद रखे की नमक इस व्रत में निषेध है अर्थात इस दिन नमक का सेवन नहीं किया जाता। नहाने के बाद ही पीले रंग के वस्त्र पहन लें और पूजा के दौरान भी इन्हीं वस्त्रों को पहन कर पूजा करें। खाने और

हनुमान की आठ सिद्धियों से पाएं समृद्धि

लगभग हम सभी हनुमान चालीसा से परिचित हैं और करते भी हैं, लेकिन कइयों को लगता है कि अपेक्षित फल की प्राप्ति नहीं हो पाती है। हनुमान चालीसा तो एक तरह का सार और स्वयं सिद्ध चालीसा है इसलिए इसमें संशय जैसी बात तो रह ही नहीं जाती। उसी चालीसा की एक लाइन है- 'अष्ट-सिद्धि नवनिधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।' इस पंक्ति के अनुसार हनुमान अष्ट सिद्धियां और नौ निधियों के दाता है। जो कि उन्हें सीता माता ने दी है। जिन लोगों के पास ये सिद्धियां और निधियां आ जाती हैं वे समाज में और घर-परिवार में मान-सम्मान, प्रसिद्धि और हर काम मैं सफलता पाते हैं। हम सभी जानते हैं कि कोई भी कार्य तभी सिद्ध या पूर्ण हो पाता है जब उसमें व्यक्ति मन, कर्म और वचन से एकाग्रचित्त होकर किया जाता है। वैसे ही आध्यात्मिक क्षेत्र में सफलता पाने के लिए व्यक्ति को मन, कर्म और वचन से संकल्पित होकर विधिपूर्वक कार्य करने की आवश्यकता रहती है। यदि यह ईमानदारी के साथ हो तो फिर सफलता भी दूर नहीं होती है। योग भी तभी लाभदायक होता है जब ध्यानमग्न होकर योग किया जाए, अन्यथा तो वह केवल मात्र एक्सरचाइज ही कही जा सकती है। ऐसे ही भगवान की

हनुमान जी की उपासना से सर्वसंकटों से मुक्ति

श्रीरामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरित मानस लिखने से पहले हनुमान चालीसा लिखी थी और फिर हनुमान की कृपा से ही वे श्रीरामचरित मानस लिख पाए। हनुमान चालीसा को ध्यान से पढऩे और समझने के बाद पता चलेगा कि हनुमान ही इस कलियुग के जागृत देवता हैं, जो भक्तों के सभी तरह के कष्ट को दूर करने के लिए तुरंत ही प्रसन्न हो जाते हैं। आपको विशेष कार्य सिद्धि, मनोकामना की पूर्ति करनी हो तो सबसे सरल और सुविधाजनक हनुमान चालीसा के अलावा और कोई साधन नहीं मिल सकता। इसके अलावा भी संकट मुक्ति के लिए बजरंग बाण, हनुमान बाहुक या हनुमानजी के सिद्ध मंत्रों का नित्य प्रति शुद्ध चित्त से हनुमान जी का विधिपूर्वक आह्वान कर नियमित सुबह-शाम इसके पाठ या जाप से शीघ्र ही फल की प्राप्ति होती प्रतीत होगी। हनुमान चालीसा- जो व्यक्ति नित्य सुबह और शाम हनुमान चालीसा पढ़ता रहता है उसे कोई भी व्यक्ति बंधक नहीं बना सकता। उस पर कारागार का संकट कभी नहीं आता। यदि किसी व्यक्ति को अपने कर्मों के कारण जेल हो गई है, तो उसे संकल्प लेकर क्षमा-प्रार्थना करना चाहिए और आगे से कभी किसी भी प्रकार के काम नहीं करने का वचन देते हुए

गरुड़ पुराण: मरने के बाद कौन सी योनि मिलती है

गरुड़ पुराण के अनुसार हर जीव का पुनर्जन्म होता है यानि वह फिर से जन्म लेता है। हिन्दू धर्म शास्त्रों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि जो इंसान जन्म लेता है उसकी मृत्यु अवश्य होती है। गरुड़ पुराण के मुताबिक मृत्यु के बाद मनुष्य को कौन सा जन्म मिलेगा, यह उसके कर्म पूर्व जन्म के कर्मों पर निर्भर करता है। मनुष्य मरने के बाद अपने कर्म के अनुसार ही अगली योनि में जन्म पाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार दूसरे की पत्नी से संबंध बनाने वाला व्यक्ति घोर नरक में जाता है। फिर वहां उसे पहले भेडिय़ा फिर कुत्ता, गिद्ध, सियार, सांप, कौआ और अंत में बगुला की योनि प्राप्त होती है। इन सब जन्मों के बाद अंत में उसे मनुष्य योनि मिलती है। साथ ही बड़े भाई का अपमान करने वाले व्यक्ति को कौंच नामक पक्षी के रूप में जन्म लेना पड़ता है। इतना ही नहीं, 10 वर्षों तक उसे इसी योनि में रहना होता है। फिर उसे मनुष्य तन की प्राप्ति होती है। सोने की चोरी करने वाला व्यक्ति कीड़े-मकोड़े की योनि में जन्म लेता है। वहीं जो व्यक्ति चांदी की वस्तु चोरी करता है उसे कबूतर की योनि मिलती है। इसके अलावा देवताओं और पूर्वजों को संतुष्ट किए बिना मरने व

मान-सम्मान में वृद्धि के लिए प्रतिदिन सूर्य देव को करें जल अर्पित

हिन्दू धर्म में पंचदेव बताए गए हैं। इनकी पूजा हर काम की शुरुआत में की जाती है। ये पंचदेव हैं- श्रीगणेश, शिवजी, विष्णुजी, देवी दुर्गा और सूर्य देव। सूर्य देव एक मात्रा साक्षात् दिखाई देने वाले देवता हैं। शास्त्रों के अनुसार रोज सुबह इनकी पूजा करने से घर-परिवार और समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। इसके लिए सर्वोत्तम रहता है प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व बिस्तर का त्याग कर दें और स्नान आदि कर रोज सुबह सूर्योदय के समय सूर्य देव को सूर्य के मंत्रों का जाप करते हुए अघ्र्य अर्पित करना चाहिए। भविष्य पुराण के अनुसार सूर्य पूजा से जुड़ी कुछ खास बातें- * रोज सुबह सूर्य को पहली बार देखते समय सूर्य के मंत्रों का जाप करना चाहिए। मंत्र- ऊँ सूर्याय नम:, ऊँ आदित्याय नम:, ऊँ भास्कराय नम: आदि। जो लोग सूर्य देव को जल चढ़ाते हैं, उन्हें सूर्योदय से पहले बिस्तर छोड़ देना चाहिए। वैसे भी वैज्ञानिक कारणों से भी जानें तो सूर्योदय से पहले बिस्तर का त्याग करना शरीर की स्वस्थता की निशानी माना गया है। * घर से बाहर कहीं जाते समय जब भी सूर्य मंदिर दिखाई दे तो सूर्यदेव को प्रणाम जरूर करें। सूर्य को जल चढ़ाने के ल

20 जून 2019 कृष्ण पक्ष की संकष्ट चतुर्थी

विघ्न, बाधाएं और कष्ट जीवन में आना एक सतत प्रक्रिया है, लेकिन इनके निवारण के भी उपाय उपस्थित होते हैं, जिन्हें विश्वासपूर्वक करने से निश्चित ही इनसे छुटकारा पाया जा सकता है। शिव पुराण में आता है कि हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (पूनम के बाद की) के दिन सुबह के समय में गणपतिजी का पूजन करें और रात को चन्द्रमा में गणपतिजी की भावना करके अघ्र्य दें और ये मंत्र बोलें- ऊँ गं गणपते नम: ऊँ सोमाय नम: चतुर्थी तिथि के स्वामी भगवान गणेशजी हैं। हिन्दू कैलेण्डर में प्रत्येक मास में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्ट चतुर्थी कहते हैं। अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। शिवपुराण के अनुसार- महागणपते: पूजा चतुर्थ्यां कृष्णपक्षके। पक्षपापक्षयकरी पक्षभोगफलप्रदा ॥ अर्थात प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को की हुई महागणपति की पूजा एक पक्ष के पापों का नाश करने वाली और एक पक्ष तक उत्तम भोग रूपी फल देने वाली होती है। हमारे जीवन में बहुत समस्याएँ आती रहती हैं, मिटती नहीं हैं, कभी कोई कष्ट, कभी कोई समस्या।  ऐसे लोग शिव

ज्येष्ठ पूर्णिमा- वट पूर्णिमा व्रत का महत्व

वैसे तो प्रत्येक माह की पूर्णिमा का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व माना जाता है लेकिन ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तो और भी पावन मानी जाती है। धार्मिक तौर पर पूर्णिमा को स्नान दान का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान के पश्चात पूजा-अर्चना कर दान दक्षिणा देने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कुछ क्षेत्रों में ज्येष्ठ पूर्णिमां को वट पूर्णिमा व्रत के रूप में भी मनाया जाता है जो कि वट सावित्री व्रत के समान ही होता है। कुछ पौराणिक ग्रंथों (स्कंद पुराण व भविष्योत्तर पुराण) के अनुसार तो वट सावित्रि व्रत ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को रखा जाता है। गुजरात, महाराष्ट्र व दक्षिण भारत में विशेष रूप से महिलाएं ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट सावित्रि व्रत रखती हैं। उत्तर भारत में यह ज्येष्ठ अमावस्या को रखा जाता है। ज्येष्ठ पूर्णिमा का महत्व- ज्येष्ठ पूर्णिमा का स्नान-दान आदि के लिये तो महत्व है ही साथ ही यह पूर्णिमा एक खास बात के लिये और जानी जाती है। दरअसल भगवान भोलेनाथ के नाथ अमरनाथ की यात्रा के लिये गंगाजल लेकर आज के दिन ही शुरुआत करते हैं। वट पूर्णिमा व्रत पूजा विधि- ज्येष्ठ पूर्णिमा क

सभी एकादशियों का फल देने वाली निर्जला एकादशी

निर्जला एकादशी को पूरे वर्ष में आने वाली सभी 24 एकादशियों में सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण माना जाता है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। इस साल निर्जला एकादशी 13 जून को आ रही है। इस त्योहार के महत्व का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि किसी व्यक्ति से साल की सभी एकादशियों का व्रत छूट जाए और अगर वह सिर्फ निर्जला एकादशी का व्रत ही कर ले तो उसे समस्त सभी एकादशियों का पुण्य फल मिल जाता है। निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। निर्जला एकादशी व्रत के बारे में विशेष- इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अराधना का विशेष महत्व है। साथ ही एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक निर्जल (बिना पानी के) व्रत रखने का महत्व है। कहते हैं कि निर्जला एकादशी पर उपवास रखकर आप पूरे वर्ष में आने वाली सभी 24 एकादशी का फल प्राप्त कर सकते हैं। 1. यह व्रत मन में जल संरक्षण की भावना को उजागर करता है। व्रत से जल की वास्तविक अहमियत का भी पता चलता है। इस उपवास में सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक पानी भी नहीं पिया जाता है। निर्जल यानी बिना पानी का ये व्रत निर्जला एकाद

गुरुमंत्र का प्रभाव

वैसे तो मंत्र का प्रभाव कितना गहरा होता है यह व्यक्ति के विश्वास और मंत्र की क्रियान्विति पर ही निर्भर करता है। जितने अटल विश्वास के साथ मंत्र का जाप किया जाए तो बड़े से बड़ा संकट-कष्ट निवारण होकर सुख-समृद्धि व्याप्त होकर जीवन कल्याणकारी मार्ग की ओर अग्रसर हो जाता है। यह बात हमारे ऋषि-मुनियों ने वर्षों तप-साधना कर इसे सिद्ध भी किया है। स्कन्द पुराण के ब्रह्मोत्तर खण्ड में कथा आती है: काशी नरेश की कन्या कलावती के साथ मथुरा के दाशार्ह नामक राजा का विवाह हुआ। विवाह के बाद राजा ने अपनी पत्नी को अपने पलंग पर बुलाया परंतु पत्नी ने इन्कार कर दिया। तब राजा ने बल-प्रयोग की धमकी दी। पत्नी ने कहा: स्त्री के साथ संसार-व्यवहार करना हो तो बल-प्रयोग नहीं, स्नेह-प्रयोग करना चाहिए। नाथ! मैं आपकी पत्नी हूँ, फिर भी आप मेरे साथ बल-प्रयोग करके संसार-व्यवहार न करें। आखिर वह राजा था। पत्नी की बात सुनी-अनसुनी करके नजदीक गया। ज्यों ही उसने पत्नी का स्पर्श किया त्यों ही उसके शरीर में विद्युत जैसा करंट लगा। उसका स्पर्श करते ही राजा का अंग-अंग जलने लगा। वह दूर हटा और बोला: क्या बात है? तुम इतनी सुन्दर और कोमल हो

वर्षभर की एकादशियों का फल देने वाली निर्जला एकादशी

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष में चौबीस एकादशियां होती हैं। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी कहते हैं। इस व्रत में भोजन करना और पानी पीना वर्जित है। धर्मग्रंथों के अनुसार, इस एकादशी पर व्रत करने से वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य मिलता है। निर्जला एकादशी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले शेषशायी भगवान विष्णु की पंचोपचार पूजा करें। इसके बाद मन को शांत रखते हुए ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। शाम को पुन: भगवान विष्णु की पूजा करें व रात में भजन कीर्तन करते हुए धरती पर विश्राम करें। दूसरे दिन किसी योग्य ब्राह्मण को आमंत्रित कर उसे भोजन कराएं तथा जल से भरे कलश के ऊपर सफेद वस्त्र ढक कर और उस पर शर्करा (शक्कर) तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दान दें। इसके अलावा यथाशक्ति अन्न, वस्त्र, आसन, जूता, छतरी, पंखा तथा फल आदि का दान करना चाहिए। इसके बाद स्वयं भोजन करें। इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर की एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी का व्रत करने से अन्य तेईस एकादशियों

12 जून, 2019 को गंगा दशहरा को पाएं पापों से मुक्ति

प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस वर्ष गंगा दशहरा 12 जून 2019, के दिन मनाया जाएगा। स्कंदपुराण के अनुसार गंगा दशहरे के दिन व्यक्ति को किसी भी पवित्र नदी पर जाकर स्नान, ध्यान तथा दान करना चाहिए। इससे वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है। यदि कोई मनुष्य पवित्र नदी तक नहीं जा पाता तब वह अपने घर के आस-पास की किसी नदी पर ध्यान, स्नान व दान करें। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को संवत्सर का मुख कहा गया है। इसलिए इस इस दिन दान और स्नान का ही अत्यधिक महत्व है। वराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, बुधवार के दिन, हस्त नक्षत्र में गंगा स्वर्ग से धरती पर आई थी। इस पवित्र नदी में स्नान करने से दस प्रकार के पाप नष्ट होते है। इन दस पापों में तीन पाप कायिक, चार पाप वाचिक और तीन पाप मानसिक होते हैं। इन सभी से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है। गंगा दशहरे के दिन श्रद्धालुजन जिस भी वस्तु का दान करें उनकी संख्या दस होनी चाहिए और जिस वस्तु से भी पूजन करें उनकी संख्या भी दस ही होनी चाहिए। ऐसा करने से शुभ फलों में और अधिक वृद्धि होती है। भगीरथी की तपस्या के बाद जब गंगा माता

श्री गंगा स्तोत्रम्

गंगा दशहरा के दिन किसी भी पवित्र नदी में खड़े होकर गंगा स्तोत्रम् पढऩे से मां गंगा जी प्रसन्न होती हैं और व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। श्री शङ्कराचार्य कृतं गंगा स्तोत्रम्- श्री गंगा जी की स्तुति गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम्। त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम्॥ माँ गंगा स्तोत्रम्- देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे, त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे। शङ्करमौलिविहारिणि विमले, मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥1॥ भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव, जलमहिमा निगमे ख्यात:। नाहं जाने तव महिमानं, पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥ 2॥ हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे, हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे। दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं, कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥ 3॥ तव जलममलं येन निपीतं, परमपदं खलु तेन गृहीतम्। मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्त:, किल तं द्रष्टुं न यम: शक्त: ॥ 4॥ पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे, खण्डितगिरिवरमण्डितभङ्गे । भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये, पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये ॥ 5॥ कल्पलतामिव फलदां लोके, प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके । पारावारविहारिणि गङ्गे, विमुखयुवतिकृततरलापाङ्गे ॥ 6॥ तव चेन्मात: स्रोत:स्नात:, पुनरपि जठरे सोऽपि न जात: । नरकनि

परम पुण्य फल प्रदाता है निर्जला एकादशी

हिंदू धर्म में व्रत का एक अलग महत्व है। उपवास करने की आध्यात्मिक और वैज्ञानिक विशेषताएं हैं। सभी व्रतों में एकादशी के व्रत की बहुत मान्यता है। माना जाता है कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का उपवास करने से परम पुण्य का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी का व्रत करना सभी तीर्थों में स्नान करने के समान है। निर्जला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्ति पाता है। इस व्रत को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि भूखे न रहने वाले पांच पाण्डवों में एक भीमसेन ने इस व्रत का पालन कर फलस्वरूप मृत्यू के बाद स्वर्ग प्राप्त किया था। इसलिए इसका नाम भीमसेनी एकादशी भी हुआ। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित होता है। इस दिन जल कलश, गाय का दान बहुत पुण्य देने वाला माना गया है। वहीं निर्जला एकादशी के दिन खाने के साथ ही जल का संयम भी जरूरी है। इस व्रत में पानी भी नहीं पिया जाता है यानी निर्जल रहकर व्रत का पालन किया जाता है। व्रत विधि जल पिए बिना व्रत करने के कारण ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। पौराणिक मान्यता क