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Showing posts from May, 2019

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नवरात्रि में पाएं आर्थिक समृद्धि

हिन्दू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही अहम माना गया है। भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी मां की पूजा करते हैं। साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है और ये सभी ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। या यूं कहें कि ये सभी ऋतु परिवर्तन के दौरान मनाए जाते हैं। सामान्यत: लोग दो ही नवरात्र के बारे में जानते हैं। इनमें पहला वासंतिक नवरात्र है, जो कि चैत्र में आता है। जबकि दूसरा शारदीय नवरात्र है, जो कि आश्विन माह में आता है। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र के बारे में कई ग्रंथों में लिखा गया है और इसका महत्व भी बताया गया है। इस बार आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। यह अंग्रेजी महीनों के मुताबिक 3 जुलाई से 10 जुलाई तक चलेगा। इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, विशेषकर धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं। धन प्रात्ति के लिए नियमपूर्वक-विधि विधान से की गई आराधना अवश्य ही फलदायी सिद्ध होती है। नौकरी-पेशे वाले धन प्रात्ति के लिए ऐसे करें पूजा-अर्चना- गुप्त नवरात्रि में लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें।  मां को लाल कपड़े में दो

ग्रहों में दोष हो तो करें ये उपाय

कहते-सुनते आए हैं कि अगर मकान की नींव मजबूत होगी तो कंगूरा मजबूत बना रहेगा। ऐसे जीवन में ग्रहों की स्थितियां अनुकूल हो तभी जीवन में खुशियों की सौगात मिलती है। अगर कुंडली में मौजूद ग्रहों की दशा और दिशा बेहतर हो तो यकीनन इसका सकारात्मक प्रभाव हमारी और आपकी दिनचर्या पर पड़ता है। ज्योतिष के जानकार तो यही मानते हैं कि अगर ग्रह मजबूत होंगे और ग्रहों में कोई दोष नहीं होगा तो जिंदगी में खुशियां ही खुशियां आ जाएंगी। लेकिन ग्रहों की कमजोर स्थिति या ग्रहों में दोष आपको परेशानी के भंवर में उलझा सकता है। अगर आपकी कुंडली में मौजूद किसी भी ग्रह में कोई दोष है या फिर कोई ग्रह विशेष पीड़ा दे रहा है तो अब आपको घबराने या परेशान होने की जरूरत नहीं है। 9 ग्रहों को मजबूत करने के यहां कुछ कल्याणकारी मंत्र आपको बताए जा रहे हैं, जिनसे आप दिनचर्या में अपनाकर जीवन में सुख-समृद्धि पा सकते हैं। सूर्य- यह ग्रहों का राजा और व्यक्ति की आत्मा है। सूर्य की कमजोरी से अपयश, ह्रदय रोग और हड्डियों की समस्या होती है। सूर्य को मजबूत बनाये रखने और कृपा पाने के लिए प्रात: या दोपहर में सूर्य के मंत्र की एक माला जाप करें। मंत्

दाम्पत्य जीवन में तनाव हो तो रखें शुक्र प्रदोष का व्रत

अगर आपका शादीशुदा जीवन बेहद निराशाजनक है या आपका अपने पार्टनर के साथ अक्सर झगड़ा होता रहता है तो शुक्र प्रदोष का व्रत आपके जीवन में उम्मींद की नई किरण भर सकता है। शुक्र प्रदोष का व्रत और क्या है इस व्रत की महिमा जिससे दोष निवारण होते हैं। शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत भगवान शिव की विशेष कृपा पाने का दिन है। जो प्रदोष व्रत शुक्रवार के दिन पड़ता है उसे शुक्र प्रदोष कहा जाता है। मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति शुक्र प्रदोष का व्रत रखता है उसकी मनोकामनाएं जल्दी पूरी हो जाती हैं। हर महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। शुक्र प्रदोष व्रत का शुभ मुर्हूत- किसी भी प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा शाम के समय सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती है। शुक्र प्रदोष का व्रत करके दाम्पत्य जीवन की खटास हमेशा के लिए खत्म की जा सकती है। दाम्पत्य जीवन के कष्ट दूर करने के लिए ऐसे करें शुक्र प्रदोष व्रत- शुक्र प्रदोष के दिन सूर्य उदय होने से पहले उठें। नहा धोकर साफ हल्के सफेद या गुलाबी कपड़े पहनें। सारा दिन भगवान शिव के मन्त्र ऊँ नम: शिवाय का मन ही

सप्ताह के वारों का महत्व

सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी-देवताओं का पूजन किया जाता है। दैवीय शक्तियों को विधाता ने मनुष्य की अलग-अलग इच्छाओं को पूरा करने का काम सौंपा है। हर दिन का अपना खास महत्व होता है लेकिन कुछ दिनों में विशेष देवी-देवताओं का पूजन करने से सांसारिक कामनाओं की पूर्ति होती है। सप्ताह के सात दिन भी सात देवों को समर्पित हैं। रविवार- रविवार को सूर्य देव का वार कहा जाता है। इस रोज व्रत रखना, घी-तेल और नमक से परहेज करना शुभ फल देता है। रविवार को लाल रंग के कपड़े पहनें, लाल चंदन का टीका लगाएं और लाल रंग के फल-फूल सूर्यनारायण को अर्पित करके गरीबों में बांट दें। सोमवार- सोमवार का दिन देवों के देव महादेव और चन्द्र ग्रह को समर्पित है। कुंवारी कन्याएं मनचाहा जीवनसाथी पाने के लिए यह व्रत करती हैं। इस दिन सफेद रंग के कपड़े पहनना और इसी रंग की चीजों का दान करना विशेष फलदाई है। मंगलवार- मंगलवार का दिन हनुमान जी और मंगल ग्रह का है। इस दिन व्रत रखने से जीवन में कभी भी अमंगल प्रवेश नहीं करता।  इस दिन लाल वस्त्र पहनने चाहिए। हनुमान जी को गुड़, चने और लाल रंग की मिठाईयों का भोग लगाने से शनि और मंगल ग्रह की शुभता मि

प्रदोष व्रत : 31 मई को

शिव की कृपा पाने और भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रदोष व्रत किया जाता है। प्रदोष व्रत चन्द्र मास की दोनों त्रयोदशी के दिन किया जाता है जिसमे से एक शुक्ल पक्ष के समय और दूसरा कृष्ण पक्ष के समय होता है। प्रदोष का दिन जब सोमवार को आता है तो उसे सोम प्रदोष कहते हैं, मंगलवार को आने वाले प्रदोष को भौम प्रदोष कहते हैं और जो प्रदोष शनिवार के दिन आता है उसे शनि प्रदोष कहते हैं। जिस दिन त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल के समय व्याप्त होती है उसी दिन प्रदोष का व्रत किया जाता है। प्रदोष काल सूर्यास्त से प्रारम्भ हो जाता है। जब त्रयोदशी तिथि और प्रदोष साथ-साथ होते हैं (जिसे त्रयोदशी और प्रदोष का अधिव्यापन भी कहते हैं) वह समय शिव पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है। ऐसा माना जाता है कि प्रदोष के समय शिवजी प्रसन्नचित मनोदशा में होते हैं। प्रदोष व्रत कथा स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया, लेकिन वह नहीं जानती थी कि वह बालक कौ

वट सावित्री अमावस्या

ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या वट सावित्री अमावस्या कहलाती है। इस दिन सौभाग्यवती महिलाएं अखंड सौभाग्य प्राप्त करने के लिए वट सावित्री व्रत रखकर वटवृक्ष और यमदेव की पूजा करती हैं। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक एवं पर्याय बन चुका है। वट सावित्री व्रत में वट और सावित्री, दोनों का विशेष महत्व है। वट-सावित्री व्रत कथा सावित्री राजा अश्वपति की पुत्री थी, जिसे राजा ने बहुत कठिन तपस्या करने के उपरांत देवी सावित्री की कृपा से प्राप्त किया था। इसलिए राजा ने उनका नाम सावित्री रखा था। सावित्री बहुत गुणवान और रूपवान थी, लेकिन उसके अनुरूप योग्य वर न मिलने के कारण सावित्री के पिता दुखी रहा करते थे। इसलिए उन्होंने अपनी कन्या को स्वयं अपना वर तलाश करने भेज दिया और इस तलाश में एक दिन वन में सावित्री ने सत्यवान को देखा और उसके गुणों के कारण मन में ही उसे वर के रूप में वरण कर लिया। सत्यवान साल्व देश के राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे, लेकिन उनका राज्य किसी ने छीन लिया था और काल के प्रभाव के कारण सत्यवान के माता- पिता अंधे हो गये थे। सत्यवान व सावित्री के विवाह से पूर्व ही नारद मुन

3 जून, 19 को शनि जयंती

ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को भगवान शनि का जन्म हुआ था। इस बार 3 जून, 19, सोमवार को शनि जंयती है। अगर आप के ऊपर भी शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रकोप चल रहा है तो शनि जयंती पर शनिदेव की पूजा करने पर शनि महाराज प्रसन्न हो सकते हैं। शनि देव के कुछ रोचक तथ्य इस प्रकार हैं- 1- शनिदेव काले क्यों- शनिदेव के पिता का नाम सूर्यदेव और माता का नाम छाया है। छाया भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थीं और वह अपने गर्भ में पल रहे शनि की चिंता किए बगैर हमेशा भगवान शिव की तपस्या में लीन रहती थीं। इस कारण से ना तो वह खुद अपना और ना ही गर्भ में पल रहे अपने बच्चे का ध्यान रख पाती थीं। जिसके कारण से शनि काले और कुपोषित पैदा हुए। 2- बच्चों पर क्यों नहीं पड़ती शनि छाया - 12 साल तक के बच्चों पर शनि का प्रकोप कभी नहीं रहता है। इसके पीछे पिप्पलाद और शनि के बीच हुए युद्ध का कारण है। पिप्पलाद ने युद्ध में शनि को परास्त कर दिया और इस शर्त पर छोड़ा कि वे 12 वर्ष तक की आयु के बच्चों को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं देंगे। 3- सभी ग्रहों में श्रेष्ठ शनि- शनिदेव सभी नौ ग्रहों में सबसे श्रेष्ठ होने का भगवान शिव से

काशी नगरी के कोतवाल बाबा काल भैरव

सनातन नगरी कहे जाने वाले बनारस में बाबा विश्वनाथ के बाद यदि किसी का महत्व है, तो वे हैं काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव। बनारस के लोग सदियों से यह मानते आए हैं कि काशी विश्वेश्वर के इस शहर में रहने के लिए बाबा काल भैरव की इजाजत लेनी चाहिए, क्योंकि दैवी विधान के अनुसार वे इस शहर के प्रशासनिक अधिकारी हैं। शायद यही कारण है कि जो भी इस शहर में आता है, वह एक बार बाबा काल भैरव के मंदिर में शीश झुकाने जरूर जाता है। काशी के कोतवाल कहे जाने वाले बाबा काल भैरव का प्राचीन मंदिर इस शहर के मैदागिन क्षेत्र में स्थित है, जो कि अपनी संकरी गलियों, भीड़ और व्यस्तता के लिए जाना जाता है। इस मंदिर के पास एक कोतवाली है, जिसके बारे में यहां के लोगों का कहना है, आप मानें या न मानें, कि बाबा काल भैरव खुद उस कोतवाली का निरीक्षण करते हैं। भगवान शंकर की नगरी कही जाने वाली काशी के बारे में कई ग्रन्थों में जिक्र आया है कि विश्वनाथ महादेव इस शहर के राजा हैं और काल भैरव इस शहर के कोतवाल हैं, जहां उनकी मर्जी चलती है, क्योंकि वे शहर की पूरी व्यवस्था देखते हैं। काल भैरव के काशी में विराजमान होने के बारे में एक बहुत ही रोचक

30 मई : अपरा एकादशी

अपरा एकादशी- एकादशी तो सभी पावन मानी जाती हैं लेकिन ज्येष्ठ मास की कृष्ण एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की उपासना की जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अपरा एकादशी का त्यौहार 30 मई को है। एकादशी व्रत को करने से न सिर्फ हमें पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है, बल्कि जीवन से जुड़े तमाम प्रकार के कष्टों से छुटकारा मिलता है। ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष में पडऩे वाली इस एकादशी से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति और सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु के आशीर्वाद से व्रत करने वाले साधक का पारिवारिक जीवन सुखमय बीतता है। इस दिन व्रत रखने वाले लोगों को अपार धन की प्राप्ति होती है। इस एकादशी को करने से धन की देवी लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं और साधक को अपार धन से संपन्न बनाती हैं, इसलिए इस एकादशी को अपरा एकादशी कहते हैं। अपरा एकादशी अपार पुण्य फल प्रदान करने वाली पावन तिथि है। इस तिथि के दिन व्रत करने से व्यक्ति को उन सभी पापों से भी मुक्ति मिल जाती है, जिसके लिए उसे प्रेत योनि में जाना पड़ सकता है। पद्मपुराण में बताया गया है कि इस एकादशी के व्रत से व्यक्ति

3 जून, 2019 को सोमवती अमावस्या के व्रत से मिलता है शुभ फल

इस साल यानी 2019 में पूरे साल में केवल तीन सोमवती अमावस्या तिथि पड़ रही है। इसमें पहली सोमवती अमावस्या 4 फरवरी, दूसरी 3 जून और तीसरी 28 अक्टूबर 2019 को पड़ रही है। इसे मौनी अमावस्या भी कहा जाता है। मौनी अमावस्या के दिन स्नान के बाद मौन व्रत रखकर जाप करने से मन की शुद्धि होती है। कुंभ मेले का एक स्नान मौनी अमावस्या का भी होता है। प्रत्येक हिंदी मास के कृष्ण पक्ष की पंद्रहवी तिथि को अमावस्या होती है। अमावस्या का बहुत खास महत्व होता है। इस दिन को पितृ तर्पण से लेकर स्नान-दान आदि कार्यों के लिए काफी शुभ माना जाता है। इसे मौनी अमावस्या या माघी अमावस्या भी कहते हैं। माघ अमावस्या धार्मिक रूप काफी खास होता है। वैसे तो किसी कार्य के लिए अमावस्या की तिथि शुभ नहीं मानी जाती, लेकिन तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान आदि कार्यों के लिए अमावस्या तिथि काफी शुभ होती है। इस दिन पितृ दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए उपवास और पूजा भी की जाती है। सोमवती अमावस्या से दूर होते हैं अशुभ योग किसी भी माह में सोमवार को पडऩे वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है। इस दिन खासकर पूर्वजों को तर्पण किया जाता है। इस दिन

नारद पुराण के सूत्रों से पाएं सुख-समृद्धि

भगवान ब्रह्मा के पुत्र मुनि नारद धर्म के प्रचार-प्रसार और लोक कल्याण के तीनों लोकों में विचरण किया करते थे। देवर्षि नारद को ईश्वर का मन बताया गया है। नारद मुनि का न सिर्फ देवता बल्कि दानव भी पूरा सम्मान करते थे। भूत, वर्तमान एवं भविष्य-तीनों कालों के ज्ञाता श्री नारद जी द्वारा रचित पुराण में जीवन से जुड़े ऐसे बड़े सूत्र बनाए गए हैं, जिनका पालन करने पर इंसान कभी भी दु:खी या दरिद्र नहीं हो सकता है। 1. नारद पुराण के अनुसार अपने केशों को कभी भी मुंह से नहीं दबाना चाहिए। ऐसा करने पर अशुभ फल प्राप्त होते हैं और जातक न सिर्फ निरोगी होता है बल्कि उसके सुख में भी कमी आती है। केशों की पवित्रता का न सिर्फ हिंदू धर्म में बल्कि सिख धर्म में भी काफी महत्व है। 2. नारद मुनि का कहना है कि सिर में लगाने के बाद बचे हुए तेल को शरीर पर नहीं मलना चाहिए यह दुखकर होता है। यह मृत्यु शोक के समान कष्टकारी होता है। इससे शरीर अशुद्ध होता है और धन की बरकत नहीं रहती है। 3 . नारद पुराण में सदाचार और संयम पर विशेष जोर दिया गया है। देवर्षि नारद के अनुसार व्यक्ति को सदैव पर पुरुष और स्त्री के साथ संबंध बनाने से बचना च

खड़ाऊ का धर्म से ही नहीं सेहत से भी है नाता

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खड़ाऊ यानि लकड़ी की चप्पल का चलन हमारे वैदिक काल से चला आ रहा है। लेकिन हमारी आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में इसे शुमार नहीं किया जा सकता, अब तो यह केवल साधुु-संतों के पास ही देखने को मिल पाती है। और अब तो धीरे-धीरे इसका लोप होता हुआ नजर आने लगा है। हालांकि कुछ साधु-संत आज भी खड़ाऊ पहनते हैं। धार्मिक ग्रंथों में लकड़ी की चप्पलों का उल्लेख किया गया है। खड़ाऊ पहनने के पीछे की मान्यता धार्मिक होने के साथ-साथ वैज्ञानिक भी है। शास्त्रों में वर्णित तथ्यों के अनुसार शरीर को स्वस्थ रखने में भी इनका योगदान महत्वपूर्ण होता था। यजुर्वेद में बताया गया  है कि खड़ाऊ पहनने से कई बीमारियों से हमारी रक्षा होती है। हमारे ऋषि-मुनि क्यों पहनते थे खड़ाऊ? 1- गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी हर एक चीज को अपनी ओर खींचती है। ऐसे में हमारे शरीर से निकलने वाली विद्युत तरंगें जमीन में चली जाती हैं। इन तरंगों को बचाने के लिए खड़ाऊ पहनने की व्यवस्था की गई। 2- खड़ाऊ पहनने से तलवे की मांसपेशियां मजबूत बनती हैं। 3- खड़ाऊ पहनने से शरीर का संतुलन सही रहता है जिसकी वजह से रीढ़ की हड्डी पर इसका सकारात्मक प्रभाव

शंख को विधि-विधान से पूजित कर पाएं लक्ष्मीजी की कृपा

शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि तंत्र प्रयोगों में शंख का उपयोग भी किया जाता है। तंत्र शास्त्र के अनुसार दक्षिणावर्ती शंख को विधि-विधान पूर्वक जल में रखने से कई प्रकार की बाधाएं शांत हो जाती है और धन की भी कभी कमी नहीं होती। दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। इसका शुद्धिकरण इस प्रकार करना चाहिए-लाल कपड़े के ऊपर दक्षिणावर्ती शंख को रखकर इसमें गंगाजल भरें और कुश के आसन पर बैठकर इस मंत्र का जप करें- ऊँ श्री लक्ष्मी सहोरदया नम: इस मंत्र की कम से कम 5 माला जप करें और इसके बाद शंख को पूजा स्थान पर स्थापित कर दें। इस प्रकार स्थापित करने से होने वाले लाभ- दक्षिणावर्ती शंख जहां भी रहता है, वहां धन की कोई कमी नहीं रहती। दक्षिणावर्ती शंख को अन्न भण्डार में रखने से अन्न, धन भण्डार में रखने से धन, वस्त्र भण्डार में रखने से वस्त्र की कभी कमी नहीं होती। शयन कक्ष में इसे रखने से शांति का अनुभव होता है। इसमें शुद्ध जल भरकर, व्यक्ति, वस्तु, स्थान पर छिड़कने से दुर्भाग्य, अभिशाप, तंत्र-मंत्र आदि का प्रभाव समाप्त हो जाता है। किसी भी प्रकार के टोने-टोटके इस शंख के आगे निष्फल हो जाते हैं

मंत्र का महत्व और फायदे

हिंदू धर्म के अंतर्गत मंत्रों का विशेष महत्व है। इन मंत्रों के माध्यम से कई विशेष सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं। धर्म शास्त्रों में एक ऐसे मंत्र का उल्लेख है जो केवल एक अक्षर का है। इसे एकाक्षर मंत्र भी कहते हैं। इस मंत्र में संपूर्ण सृष्टि समाई हुई है। यह मंत्र है- ऊँ । इसे ओंकार मंत्र भी कहते हैं। ऊँ प्रणव अक्षर है। इसमें तीन देव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु व महेश की शक्ति समाहित है। ऊँ को निराकार ब्रह्म का    स्वरूप माना गया है। ऊँ की ध्वनि एक ऐसी ध्वनि है जिसकी तरंग बहुत प्रभावशाली होती है। ऊँ के उच्चारण से कई सारे फायदे हैं, जैसे- लाभ- विभिन्न ग्रहों से आने वाली अत्यंत घातक अल्ट्रावायलेट किरणों का प्रभाव ओम की ध्वनि की गूंज से समाप्त हो जाता है। मतलब बिना किसी विशेष उपाय के भी सिर्फ ऊँ के जप से भी अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव को कम किया जा सकता है। ऊँ का उच्चारण करने वाले के शरीर का विद्युत प्रवाह आदर्श स्तर पर पहुंच जाता है। इसके उच्चारण से इंसान को वाक्सिद्धि प्राप्त होती है। नींद गहरी आने लगती है। साथ ही अनिद्रा की बीमारी से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। मन शांत होने के साथ ही दि

गीता में गुणातीत पुरुष के लक्षण

गुणातीत पुरुष दु:खों से मुक्त होकर अमरता को प्राप्त कर लेता है—ऐसा सुनकर अर्जुन के मन में गुणातीत मनुष्य के लक्षण जानने की जिज्ञासा हुई। अत: वे श्लोक में भगवान से प्रश्न करते हैं। अथ चतुर्दशोस्ध्याय: गुणत्रयविभागयोग भगवत्प्राप्तिका उपाय एवं गुणातीत पुरुषके लक्षण (19-27)श्लोक- (14/20) गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान्। जन्ममृत्युजरादु:खैॢवमुक्तोऽमृतमश्नुते ॥ 20॥ भावार्थ- देहधारी (विवेकी मनुष्य) देह को उत्पन्न करने वाले इन तीनों गुणों का अतिक्रमण करके जन्म, मृत्यु और वृद्धावस्थारूप दु:खों से रहित हुआ अमरता का अनुभव करता है। 'गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान्'— यद्यपि विचार-कुशल मनुष्य का देह के साथ सम्बन्ध नहीं होता, तथापि लोगों की दृष्टि में देहवाला होने से उसको यहाँ 'देही' कहा गया है। देह को उत्पन्न करने वाले गुण ही हैं। जिस गुण के साथ मनुष्य अपना सम्बन्ध मान लेता है, उसके अनुसार उसको ऊँच-नीच योनियों में जन्म लेना ही पड़ता है (गीता— तेरहवें अध्याय का इक्कीसवाँ श्लोक)। अभी इसी अध्याय के पाँचवें श्लोक से अठारहवें श्लोक तक जिनका वर्णन हुआ है, उन्हीं तीनों गुणों

विघ्नहर्ता श्रीगणेश गायत्री मंत्र

जीवन के किसी भी तरह के मुश्किल कामों में कामयाबी, बाधाओंं को दूर करने तथा बुद्धि लाभ के लिए प्रथम पूज्य देव विघ्नहर्ता श्रीगणेश की पूजा सर्वफलदायी साबित होती है। विशेषकर श्रीगणेश जी के इस गणेश गायत्री मंत्र का स्मरण करने से निश्चय ही सफलताओं का परम चारों ओर फहरा सकते हैं। श्री गणेश के गणेश गायत्री मंत्र- ऊँ एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो बुद्धि: प्रचोदयात्।। नृसिंह- शत्रु को हराने, बहादुरी, भय व दहशत दूर करने, पुरुषार्थी बनने व किसी भी आक्रमण से बचने के लिए नृसिंह गायत्री असरदार साबित होता है। ऊँ नृसिंहाय विद्महे, वज्रनखाय धीमहि। तन्नो नृसिंह: प्रचोदयात्।। विष्णु- पालन-पोषण की क्षमता व काबिलियत बढ़ाने या किसी भी तरह से सबल बनने के लिए विष्णु गायत्री का महत्व है। नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।। शिव- दायित्वों व कर्तव्यों को लेकर दृढ़ बनने, अमंगल का नाश व शुभता को बढ़ाने के लिए शिव गायत्री मंत्र बड़ा ही प्रभावी माना गया है। ऊँ पञ्चवक्त्राय विद्महे, महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।। कृष्ण- सक्रियता, समर्पण, निस्वार्थ व मोह से दूर रहकर क

सर्वग्रह पीड़ा निवारक उपाय

जिस भी जातक को किसी विशेष ग्रह जैसे गुरु, शुक्र, शनि, राहू और केतु जैसे ग्रह से पीड़ा-बाधा महसूस हो रही हो तो उसे उसके निवारण के लिए उसी तदनुरूप उपाय करने से बाधाओं का निवारण होकर सुखी-समृद्धि की ओर अग्रसर होने लगता है। गुरु- -  व्यक्ति को अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लेना चाहिए। - सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए। - मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर नि:शुल्क सेवा करनी चाहिए। - किसी भी मन्दिर के सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए। -  परस्त्री/परपुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए। - गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए। - गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए। - गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे उपायों हेतु गुरुवार का दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद) तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते ह

सर्वग्रह पीड़ा निवारक उपाय

जिस भी जातक को किसी विशेष ग्रह जैसे सूर्य, चन्द्रमा, मंगल या बुध ग्रह से पीड़ा-बाधा महसूस हो रही हो तो उसे उसके निवारण के लिए उसी तदनुरूप उपाय करने से बाधाओं का निवारण होकर सुखी-समृद्धि की ओर अग्रसर होने लगता है। सूर्य- - सूर्य को बली बनाने के लिए व्यक्ति को प्रात:काल सूर्योदय के समय उठकर लाल पूष्प वाले पौधों एवं वृक्षों को जल से सींचना चाहिए। - रात्रि में ताँबे के पात्र में जल भरकर सिरहाने रख दें तथा दूसरे दिन प्रात:काल उसे पीना चाहिए। - ताँबे का कड़ा दाहिने हाथ में धारण किया जा सकता है। - लाल गाय को रविवार के दिन दोपहर के समय दोनों हाथों में गेहूँ भरकर खिलाने चाहिए। गेहूँ को जमीन पर नहीं डालना चाहिए। - किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य पर जाते समय घर से मीठी वस्तु खाकर निकलना चाहिए। - हाथ में मोली (कलावा) छ: बार लपेटकर बाँधना चाहिए। - लाल चन्दन को घिसकर स्नान के जल में डालना चाहिए। सूर्य के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे उपायों के लिए रविवार का दिन, सूर्य के नक्षत्र (कृत्तिका, उत्तरा-फाल्गुनी तथा उत्तराषाढ़ा) तथा सूर्य की होरा में अधिक शुभ होते हैं। चन्द्रमा- - व्यक्ति को देर रात्रि तक

ज्येष्ठ मास में करें सूर्य व वरुण देव की उपासना

ज्येष्ठ का महीने में सूर्य अत्यंत ताकतवर होता है, इसलिए गर्मी भी भयंकर होती है। सूर्य की ज्येष्ठता के कारण इस माह को ज्येष्ठ कहा जाता है। ज्येष्ठा नक्षत्र के कारण भी इस माह को ज्येष्ठ कहा जाता है। इस महीने में धर्म का सम्बन्ध जल से जोड़ा गया है, ताकि जल का संरक्षण किया जा सके। इस मास में सूर्य और वरुण देव की उपासना विशेष फलदायी होती है। ज्येष्ठ मास का वैज्ञानिक महत्व- इस माह में वातावरण और शरीर में जल का स्तर गिरने लगता है। अत: जल का सही और पर्याप्त प्रयोग करना चाहिए। सन स्ट्रोक और खान-पान की बीमारियों से बचाव आवश्यक है। इस माह में हरी सब्जियां, सत्तू, जल वाले फलों का प्रयोग लाभदायक होता है। इस महीने में दोपहर का विश्राम करना भी लाभदायक होता है। जल (वरुण) देव और सूर्य की कृपा पाएं * नित्य प्रात: और संभव हो तो सायं भी पौधों में जल दें। * प्यासों को पानी पिलाएं, लोगों को जल पिलाने की व्यवस्था करें। * जल की बर्बादी न करें, घड़े सहित जल और पंखों का दान करें। * नित्य प्रात: और सायं सूर्य मंत्र का जाप करें। * अगर सूर्य सम्बन्धी समस्या है तो ज्येष्ठ के हर रविवार को उपवास रखें। ज्येष्ठ के मं

ज्येष्ठ माह के व्रत त्यौहार

चैत्र और वैशाख मास के बाद आता है ज्येष्ठ। हिंदू पंचाग के अनुसार चंद्र मास का यह तीसरा महीना होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह मास अक्सर मई और जून के महीने में पड़ता है। जैसा कि सभी चंद्र मासों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं ज्येष्ठ माह भी ज्येष्ठा नामक नक्षत्र पर आधारित है। मान्यता है कि ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन चंद्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र में होता है इसी कारण इस माह का नाम ज्येष्ठ रखा गया है। ज्येष्ठ मास का नाम सुनते ही तपती हुई दुपहरी का चित्र जहन में जरूर बनता होगा। बनेगा भी क्यों नहीं इस मास में झुलसा देने वाली गर्मी जो पड़ती है। गर्मियां वैसे तो फाल्गुन मास के उतरते समय ही शुरू हो जाती हैं फिर चैत्र और वैशाख पार करने पर जब ज्येष्ठ मास का आरंभ होता है तो गर्मी का मौसम ऊफान पर होता है। इसलिये हमारे ऋषि-मुनियों ने ज्येष्ठ में जल का महत्व बहुत अधिक माना है। जल को समर्पित व्रत और त्यौहार भी इसी मास में मनाये जाते हैं। गर्मियों में पानी की किल्लत से हर कोई परेशान रहता है। यही कारण है कि बड़े बुजुर्गों ने इन पर्व त्यौहारों के जरिये पानी का महत्व समझाने का प्रयास किया है। जल के महत्व को

पूर्णिमा को करें मां लक्ष्मी को प्रसन्न

हिन्दू पंचांग के अनुसार हर माह के 30 दिन को चन्द्र कला के आधार पर 15-15 दिन के 2 पक्षों में बांटा गया है- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। हिंदू माह के 15वें दिवस शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन चन्द्रमा अपने पूरे आकार में नजर आता है। इस दिन का भारतीय जनजीवन में बहुत ही महत्व है। सामान्यता हर माह की पूर्णिमा को कोई न कोई पर्व अथवा व्रत अवश्य ही मनाया जाता है। हिदु धर्म शास्त्रों के अनुसार पूर्णिमा माँ लक्ष्मी को विशेष प्रिय है। इस दिन माँ लक्ष्मी की आराधना करने से जातक को जीवन में किसी भी चीज की कमी नहीं रहती है। शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक पूर्णिमा के दिन सुबह लगभग 10 बजे पीपल के वृक्ष पर मां लक्ष्मी का आगमन होता है। कहते हैं कि जो व्यक्ति इस दिन सुबह उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पीपल के पेड़ पर कुछ मीठा रखकर मीठा जल अर्पण करके धूप अगरबत्ती जला कर मां लक्ष्मी का पूजन करें और माता लक्ष्मी को अपने घर पर निवास करने के लिए आमंत्रित करें तो उस जातक पर लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है। हर पूर्णिमा पर सुबह के समय हल्दी में थोड़ा पानी डालकर उससे घर के मुख्य दरवाजे / प्रवेश

वैशाख पूर्णिमा 18 मई, 2019

वैशाख मास को बहुत ही पवित्र माह माना जाता है इस माह में आने वाले त्यौहार भी इस मायने में खास हैं। पूर्णिमा तिथि को हिन्दू धर्म में अधिक महत्व दिया गया है सभी पूर्णिमा को व्रत-उपवास किए जाते हैं। पौराणिक शास्त्रों में चन्द्रमा को मन का कारक बताया गया है। इसलिए चन्द्रमा के किसी भी रूप का असर सीधे धरती लोक पर जातकों के मन पर पड़ता है। वैशाख मास की एकादशियां हों या अमावस्या सभी तिथियां पावन हैं लेकिन वैशाख पूर्णिमा का अपना महत्व माना जाता है। वैशाख पूर्णिमा को महात्मा बुद्ध की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। वैशाख पूर्णिमा का हिंदू एवं बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिये विशेष महत्व है। महात्मा बुद्ध की जयंती इस दिन मनाई जाती है इस कारण बुद्ध के अनुयायियों के लिये तो यह दिन खास है ही लेकिन महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार भी बताया जाता है जिस कारण यह हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिये भी बहुत महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। वैशाख पूर्णिमा पर रखें सत्य विनायक व्रत वैशाख पूर्णिमा पर सत्य विनायक व्रत रखने का भी विधान है। मान्यता है कि इस दिन सत्य विनायक व्रत रखने से व्रती की सारी दरिद्

भक्ति की शक्ति

भक्ति में शक्ति होती है यह सर्वविदित ही है। लेकिन कई बार तर्क-कुतर्क से भक्ति की शक्ति को परखने की मूढ़ता भी कर ली जाती है। भक्ति की शक्ति विश्वास और प्रेम की पराकाष्ठा होती है। इस संबंध में एक कथा आती है जहां भक्त अपनी भक्ति की शक्ति का परिचय देते हैं। एक साधु महाराज श्री रामायण कथा सुना रहे थे। लोग आते और आनंद विभोर होकर जाते। साधु महाराज का नियम था, रोज कथा शुरू करने से पहले 'आइए हनुमंत जी बिराजिए' कहकर हनुमान जी का आह्वान करते थे, फिर एक घण्टा प्रवचन करते थे। एक वकील साहब हर रोज कथा सुनने आते। वकील साहब के भक्तिभाव पर एक दिन तर्कशीलता हावी हो गई। उन्हें लगा कि महाराज रोज आइए हनुमंत जी बिराजिए कहते हैं, तो क्या हनुमान जी सचमुच आते होंगे? अत: वकील साहब ने महात्मा जी से पूछ ही डाला! महाराज जी आप रामायण की कथा बहुत अच्छी कहते हैं, हमें बड़ा रस आता है, परंतु आप जो गद्दी प्रतिदिन हनुमान जी को देते हैं उस पर क्या हनुमान जी सचमुच बिराजते हैं? साधु महाराज ने कहा- हाँ यह मेरा व्यक्तिगत विश्वास है कि रामकथा हो रही हो तो हनुमान जी अवश्य पधारते हैं। वकील ने कहा- महाराज ऐसे बात नहीं बने

मोरपंख के गुण

जीवन में छोटी-मोटी तकलीफ-बाधाएं चलती रहती हैं, उन्हें दूर करने के भी उपाय किए जाते रहे हैं। ऐसे ही उपायों में एक उपाय मोरपंख का है, जिससे कई बाधाएं-तकलीफ दूर हो सकती हैं। - जो व्यक्ति अपने घर में दो मोरपंख रखता हैं, उस परिवार में कभी फूट पैदा नहीं होती है। घर में दो मोरपंख रखने से घर में लड़ाई-झगड़े नहीं होते हैं और परिवार साथ मिल खुशी-खुशी रहता है। - जो व्यक्ति अपने साथ हमेशा मोरपंख रखता हैं उसके साथ कभी कोई दुर्घटना नहीं होती है। मोरपंख सदैव अपने पास रखने से आपका भाग्य प्रबल हो जाता हैं और किसी भी दुर्घटना का भाग नहीं बनते हो। - मोरपंख को घर में रखने से नकारात्मक उर्जा घर से बाहर निकल जाती हैं और सकारात्मक उर्जा घर के अन्दर आ जाती है।आप तो जानते ही हैं जिस घर में सकारात्मक उर्जा रहती हैं वहां लक्ष्मी जी जल्दी आती है। - यदि आप का बच्चा पढ़ाई में कमजोर हैं या उसका पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता है तो आप उसके स्कूल बैग में एक मोरपंख रख दे। ऐसा करने से आपके बच्चे का पढ़ाई में मन लगेगा और वो परीक्षा में अच्छे अंको से पास होगा। - जिन लोगो की राशि में राहू दोष होता हैं उन्हें अपनी जेब या डायर

हरे कृष्ण महामंत्र की महिमा

कलियुग में भगवान की प्राप्ति का सबसे सरल किंतु प्रबल साधन उनका नाम-जप ही बताया गया है। श्रीमद्भागवत का कथन है- यद्यपि कलियुग दोषों का भंडार है तथापि इसमें एक बहुत बड़ा सद्गुण यह है कि सतयुग में भगवान के ध्यान (तप) द्वारा, त्रेतायुग में यज्ञ-अनुष्ठान के द्वारा, द्वापर युग में पूजा-अर्चना से जो फल मिलता था, कलियुग में वह पुण्यफल श्री हरि के नाम-संकीर्तन (हरे कृष्ण महामंत्र) मात्र से ही प्राप्त हो जाता है। कृष्णयजुर्वेदीय कलिसंतरणोपनिषद् में लिखा है कि द्वापर युग के अंत में जब देवर्षि नारद ने ब्रह्माजीसे कलियुग में कलि के प्रभाव से मुक्त होने का उपाय पूछा, तब सृष्टिकर्ता ने कहा- आदिपुरुष भगवान नारायण के नामोच्चारण से मनुष्य कलियुग के दोषों को नष्ट कर सकता है। नारदजीके द्वारा उस नाम-मंत्र को पूछने पर हिरण्यगर्भ ब्रह्माजीने बताया- हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। यह महामंत्र कलि के पापों का नाश करने वाला है। इससे श्रेष्ठ कोई अन्य उपाय सारे वेदों में भी देखने को नहीं आता। हरे कृष्ण महामंत्र के द्वारा षोडश (16) कलाओं से आवृत्त जीव के आवरण नष्ट हो जाते

जीव के चार भेद

सामान्यत: जीव के चार भेद है- (1) पामर (2) विषयी (3) मुमुक्षु (4) मुक्त। अधर्म से धन का उपार्जन  करे और अनीतिपूर्वक उपभोग करे,वह पामर जीव है।  धर्म का पालन करके कमाई करके, फिर वह कमाई- इन्द्रिय-सुख का उपभोग करे वह विषयी जीव है। सांसारिक बंधनों से मुक्ति पाने की इच्छा और प्रयत्न करने वाला जीव मुमुक्षु जीव है। कनक और कांतारूपी माया के बंधनों से मुक्त होकर प्रभु में तन्मय हुआ जीव मुक्त जीव है। शास्त्रों में कहा गया है राजस, तामस और सात्विक, किसी भी प्रकृति का जीव कृष्ण-कथा में से आनन्द पा सकता है। इसलिए दशम स्कंध के तीन विभाग किए है- सात्विक प्रकरण, राजसिक प्रकरण और तामसिक प्रकरण। श्रीकृष्ण प्रेम-स्वरुप होने से परिपूर्ण माधुर्य से भरे हुए हैं। श्रीकृष्ण लीला के विविध रसों में से कोई भी रस से रूचि को पुष्टि मिलती है। धीरे धीरे संसार से आसक्ति कम होती है और श्रीकृष्ण में आसक्ति होने से जीवन सफल होता है। ईश्वर में मन का निरोध होने पर मुक्ति सुलभ है। श्रीकृष्ण को मन में रखने से मन का निरोध होता है। मन का निरोध ईश्वर में ही हो सकता है,अन्य किसी चीज में मन का निरोध नहीं हो शकता है। परीक्षित राजा

वृहस्पति प्रदोष व्रत महिमा

प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है और इस दिन भगवान शंकर की पूजा की जाती है। यह व्रत शत्रुओं पर विजय हासिल करने के लिए अच्छा माना गया है। प्रदोष काल वह समय कहलाता है जिस समय दिन और रात का मिलन होता है। भगवान शिव की पूजा एवं उपवास- व्रत के विशेष काल और दिन रुप में जाना जाने वाला यह प्रदोष काल बहुत ही उत्तम समय होता है। प्रदोष तिथि का बहुत महत्व है, इस समय की गई भगवान शिव की पूजा से अमोघ फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत को यदि वार के अनुसार किया जाए तो अत्यधिक शुभ फल प्राप्त होते हैं। वार के अनुसार का अर्थ है कि जिस वार को प्रदोष व्रत पड़ता है उसी के अनुसार कथा पढऩी चाहिए। इससे शुभ फलों में अधिक वृद्धि होती है। अलग-अलग कामनाओं की पूर्ति के लिए वारों के अनुसार प्रदोष व्रत करने से लाभ मिलता है। प्रदोष काल में की गई पूजा एवं व्रत सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला माना गया है। इसी प्रकार प्रदोष काल व्रत हर माह के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष के तेरहवें दिन या त्रयोदशी तिथि में रखा जाता है। बृहस्पति प्रदोष व्रत की विधि प्रदोष व्रत के दिन व्रती को प्रात:काल उठकर नित्य क्रम से निवृत हो स्नान कर

रुद्राक्ष और तुलसी की माला पहनने के लाभ

रुद्राक्ष, तुलसी जैसी दिव्य औषधियों की माला पहनने के पीछे वैज्ञानिक मान्यता यह है कि होंठ और जीभ का उपयोग कर मंत्र जप करने से गले की धमनियों को सामान्य से ज्यादा काम करना पड़ता है। इसके कारण कंठमाला, गलगंड आदि रोगों के होने की आशंका होती है। इनसे बचाव के लिए गले में रुद्राक्ष व तुलसी की माला पहनी जाती है। रुद्राक्ष की माला एक से लेकर चौदहमुखी रुद्राक्षों से बनाई जाती है। वैसे तो 26 दानों की माला सिर पर, 50 की गले में, 16 की बांहों में और 12 की माला मणिबंध में पहनने का विधान है। 108 दानों की माला पहनने से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है। इसे पहनने वाले को शिव लोक मिलता है, ऐसी पद्म पुराण, शिवमहापुराण आदि शास्त्रों की मान्यता है। शिवपुराण में कहा गया है विश्व में रुद्राक्ष की माला की तरह दूसरी कोई माला फल देने वाली और शुभ नहीं है। श्रीमद् देवी भागवत में लिखा है- रुद्राक्ष धारणच्च श्रेष्ठ न किचदपि विद्यते। विश्व में रुद्राक्ष धारण से बढ़कर कोई दूसरी चीज नहीं है। रुद्राक्ष की माला श्रद्धा से पहनने वाले इंसान की आध्यात्मिक तरक्की होती है। सांसारिक बाधाओं और दु:खों से छुटकारा मिलता है। दिमाग और

15 मई, 2019 को मोहिनी एकादशी

वैशाख शुक्ल एकादशी तिथि को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। जिस प्रकार कार्तिक एवं वैशाख मास उत्तम माना गया है उसी प्रकार वैशाख मास की यह एकादशी भी उत्तम मानी गयी है। मान्यताओं के अनुसार हमारे द्वारा किये गये पाप कर्म के कारण ही हम अपने जीवन में मोह बंधन में बंध जाते हैं।  मोहिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य अपने सभी मोह बन्धनों से मुक्त हो जाता है एवं उसके समस्त पापों का  नाश होता  है, जिसके कारण वह मृत्यु के उपरान्त नरक की यातनाओं से छुटकारा पाकर ईश्वर की शरण में चला जाता है। मोहिनी एकादशी के विषय में मान्यता है कि समुद्र मंथन के पश्चात अमृत पाने के लिए दानवों एवं देवताओं में विवाद की स्थिति पैदा हो गयी थी। दानवों को हावी जानकार भगवान् विष्णु ने अति सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर दानवों को मोहित किया और उनसे कलश लेकर देवताओं को सारा अमृत पीला दिया था। अमृत पीकर देवता अमर हो गये। जिस दिन भगवान विष्णु मोहिनी रूप में प्रकट हुए थे उस दिन एकादशी तिथि थी। भगवान विष्णु के इसी मोहिनी रूप की पूजा मोहिनी एकादशी के दिन की जाती है। व्रत विधि- पुराणों के अनुसार दशम के दिन शाम में सूर्यास्त

धन और स्वास्थ्य की कमी दूर करने के लिए

जिन लोगों के घर में धन और स्वास्थ्य सम्बन्धी कमी का एहसास नित्य होता है, पैसों की भी कमी रहती है और स्वास्थ्य में भी कभी कोई बीमार तो कभी कोई बीमार रहता हो उनके लिए पद्म पुराण में बताया है- वैशाख मास का एक प्रयोग। वैशाख मास की बहुत महिमा बताई है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को पद्म पुराण में उसको शर्करा सप्तमी कहा गया है और वो शर्करा सप्तमी 11 मई 2019 शनिवार को है । उस दिन पानी में सफेद तिल मिलाकर भगवन्नाम सुमिरन करते हुए स्नान करें। फिर सूर्य भगवान की ओर मुख करके सूर्यदेव और माँ गायत्री को प्रणाम करें। सूर्य भगवान को इन मंत्रों से प्रणाम करें- ऊँ नम: सवित्रे  ऊँ नम: सवित्रे  ऊँ नम: सवित्रे विश्व देव मयो यस्मात वेदवादी ति पठ्यसे। त्वमेवा मृतसर्वस्व मत: पाहि सनातन।। ये मंत्र बोलकर सूर्यनारायण को व अन्य देवों को मन ही मन प्रणाम करें। सूर्य भगवान को अघ्र्य देना चाहिए। वैसे भी प्रतिदिन सूर्य भगवान को अघ्र्य अवश्य देना चाहिए। ये सप्तमी 11 मई 2019 शनिवार को कर लेने के उपरान्त फिर दूसरे दिन 12 मई 2019 रविवार को हो सके तो अपने हाथों से दूध चावल की खीर बनाकर उसमें थोड़ा घी डालकर थोड़ा-सा

अक्षय तृतीया : पौराणिक कथाएं

हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया का त्यौहार सुख-समृद्धि के लिए मनाया जाता है और इस दिन को लेकर कुछ पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। जिसके बारे में शायद कम लोग ही जानते होंगे। कहते हैं कि अक्षय तृतीया वाले दिन ही सुदामा अपने बचपन के सखा श्रीकृष्ण से आर्थिक सहायता मांगने गए थे। अक्षय तृतीया पर आज भी साफ मन से दान और पूजा का महत्व गिना जाता है और इसे धन-संपत्ति के लाभ से भी जोड़ा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार एक ब्राह्मणी थी जो कि बहुत गरीब निर्धन थी और अपना जीवन भिक्षा मांगकर गुजारती थी। एक समय ऐसा आया कि उसे पांच दिन तक भिक्षा नहीं मिली और वह प्रतिदिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी। छठवें दिन उसे भिक्षा में दो मु_ी चना मिले। रात को जब अपनी कुटिया पहुंची तो सोचा कि यह चने रात में नहीं खाऊंगी प्रात:काल वासुदेव को भोग लगाकर तब खाऊंगी और वह सो गई। देर रात को उस औरत की कुटिया में चोर घुस आए और उन्होंने चने की पोटली में सोने व हीरे समझ के चुरा ले गए। तभी ब्राह्मणी जाग गई और शोर मचाने लगी। गांव के सारे लोग चोरों को पकडऩे के लिए दौड़े। चोर वह पोटली लेकर भागे। पकड़े जाने के डर से सारे चोर सांदीपनी

अक्षय तृतीया : राशि अनुसार करें खरीदारी

7 मई, 2019 को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाएगा। मान्यताओं के अनुसार इस दिन को खरीदारी के लिए शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि अगर किसी को शादी की या कोई मांगलिक कार्य के लिए शॉपिंग करनी हो तो इस दिन कर सकते हैं, बहुत शुभ होता है। ज्योतिष के मुताबिक इस दिन की गई खरीदी गई वस्तु में इजाफा होता है और जीवन में सुख-समृद्धि की बढ़ोत्तरी होती है। बहुत से लोग हैं जिन्हें लगता है कि अक्षय तृतीया पर केवल सोना खरीदना चाहिए, यही शुभ होता है, लेकिन हकीकत में ऐसा होता नहीं है। ज़रूरी नहीं है कि इस दिन केवल सोने की ही खरीददारी की जाए। अपनी हैसियत के मुताबिक जो भी खरीद सकें वो खरीद लें। ज्योतिष शास्त्र में राशि अनुसार बताया गया है कि अक्षय तृतीया पर कौन सी चीज खरीद सकते हैं। राशि के अनुसार कौन सी वस्तु खरीदना आपके लिए लाभकारी साबित होगी, यह जान लेना आवश्यक है। मेष- इस राशि के जातकों को जहां तक संभव हो सोना या फिर तांबे से बनी छोटी-मोटी वस्तु खरीदनी चाहिए। अगर सोना खरीदने में सक्षम न हों तो तांबे से बनी वस्तुएं खरीद सकते हैं। राशि के अनुसार मेष राशि वालों को अक्षय तृतीया के दिन गेहूं का दान अवश्य करना

अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने की परम्परा

हिंदू धर्म में इस तिथि को अधिक शुभ माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन सोना खरीदने की परंपरा है। इसके अलावा इस दिन बहुत से मांगलिक कार्य भी संपन्न किए जाते हैं। क्यों इस तिथि को इतना शुभ माना जाता है और इस दिन सोना खरीदने के पीछे क्या मान्यताएं हैं। इससे जुड़ी 4 मान्यताएं हैं जिसके कारण इस तिथि को सोना खरीदना शुभ होता है। * अक्षय तृतीया को ऐसी तिथि माना गया है जिसमें किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए मुहूर्त को देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती। वो इसलिए क्योंकि अक्षय तृतीया सर्वसिद्ध अबूझ मुहूर्त तिथि में शामिल है। इसलिए कहा जाता है कि अक्षय तृतीया पर सोना खरीदना बहुत ही शुभ होता है। * इस दिन नई खरीदारी के लिए किसी शुभ मुहूर्त की आवश्यकता नहीं पड़ती। सभी राशि वाले जातकों के लिए इस दिन ग्रह-नक्षत्रों के अनुसार भी यह दिन बहुत विशेष होता है। ऐसे में इस दिन खरीदारी करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। * मान्यता है कि इस दिन जो सोना खरीदता है उसके घर में सोने के रूप में देवी लक्ष्मी और श्री हरि विष्णु का निवास हो जाता है। * इसके अलावा सोने की तुलना सूर्य देव से की जाती है। कहते हैं इस दिन स